पश्चिमीकरण पर निबंध | Essay on Westernization: Evidences, Outspread and Consequences in Hindi.

पश्चिमीकरण के लक्षण:

चूंकि भारतवर्ष में आधुनिकीकरण पश्चिमीकरण के परिणाम से हुआ है इसलिये यहाँ पर उपरोक्त आधुनिक परिवर्तनों को पश्चिमीकरण का परिणाम माना जा सकता है । पश्चिमीकरण के प्रत्यय को और भी स्पष्ट रूप से समझने के लिए उसकी प्रकृति को समझना आवश्यक है ।

डॉ. श्रीनिवास के अनुसार पश्चिमीकरण की प्रकृति निम्नलिखित लक्षणों से स्पष्ट होती है:

(i) नैतिक रूप से तटस्थ:

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आधुनिकीकरण को सामान्य रूप से अच्छा माना जाता है किन्तु पश्चिमीकरण के साथ में यह अनिवार्य नहीं है । पश्चिमीकरण अच्छे और बुरे दोनों ही प्रकार के हुए हैं । वास्तव में पश्चिमीकरण नैतिक रूप से तटस्थ प्रत्यय है, उस पर अच्छे-बुरे का निर्णय नहीं दिया जा सकता ।

(ii) पश्चिमीकरण की सीमायें:

पश्चिमीकरण और पाश्चात्य संस्कृति में भी अनार किया जाना चाहिए । पाश्चात्य संस्कृति के सभी तत्व पश्चिम में उत्पन्न नहीं हुए हैं । उदाहरण के लिए ईसाई धर्म की उत्पत्ति एशिया में हुई । दशमलव पद्धति भारतवर्ष में उत्पन्न हुई और अरब से होते हुए यूरोप में पहुँची । बारूद, छापाखाना और कागज का आविष्कार चीन में हुआ ।

ये सब पाश्चात्य संस्कृति के महत्वपूर्ण अंग हैं परन्तु ये पश्चिम की उपज नहीं है । फिर पश्चिमी से जो अनेक देशों का बोध होता है उन सब में कोई सामान्य संस्कृति नहीं मिलती । उदाहरण के लिए संयुक्त राज्य अमरीका, कनाडा, ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली और रूस आदि पश्चिमी देशों में भारी सांस्कृतिक अन्तर दिखलाई पड़ता है । भारतवर्ष में सामाजिक परिवर्तन के रूप में पश्चिमीकरण की जो प्रक्रिया काम करती है उसे ब्रिटिश संस्कृति का प्रभाव समझा जाना चाहिये ।

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(iii) व्यापक, जटिल और बहुस्तरीय प्रत्यय:

पश्चिमीकरण का प्रत्यय एक व्यापक प्रत्यय है । इसमें वे सभी परिवर्तन आते हैं जो पाश्चात्य प्रौद्योगिकी और आधुनिक विज्ञान का परिणाम है । दूसरे, पश्चिमीकरण की प्रक्रिया से समाज और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर भिन्न-भिन्न प्रभाव पड़े है, इस प्रकार वह एक जटिल प्रक्रिया है । तीसरे, पश्चिमीकरण का प्रभाव अनेक स्तरों पर हुआ है । उदाहरण के लिए पहले लोग जमीन पर बैठकर धातु के बर्तन में पत्तों पर भोजन किया करते थे, अब मेज-कुर्सी पर बैठकर छुरी-कटि से खाना खाते हैं, इससे भोजन धार्मिक क्रिया नहीं रह गई और उसका लौकिकरण हो गया । जहाँ पश्चिमीकरण का व्यापक प्रभाव हुआ है वहाँ अनेक क्षेत्रों में पश्चिमीकरण के प्रभाव की सर्वथा अवहेलना की गई है । इस प्रकार पश्चिमीकरण करने से यह नहीं समझा जाना चाहिए कि उसका सब कहीं एकसा प्रभाव पड़ा है ।

(iv) चेतन-अचेतन प्रक्रिया:

पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव को भारत में सब कहीं जान-बूझकर नहीं अपनाया गया है । जहाँ कुछ क्षेत्रों में जान-बूझकर अंग्रेजों का अनुकरण किया गया है वहाँ अन्य क्षेत्रों में अचेतन रूप से ही ऐसा हुआ है । जो लोग अंग्रेजों के निकट सम्पर्क में आए उन पर अंग्रेजों का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक ही था, भले ही वे जानबूझकर ऐसा न करें ।

पश्चिमीकरण के परिणाम:

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भारतवर्ष में पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के परिणामस्वरूप निम्नलिखित परिवर्तन देखे जा सकते है । यहाँ पर पश्चिमीकरण के परिणामों के विषय में डॉ. श्रीनिवास का मत संक्षेप में बतलाना पर्याप्त है ।

(I) संस्थाओं पर प्रभाव:

पश्चिमीकरण के प्रभाव से जाति-प्रथा, संयुक्त परिवार इत्यादि अनेक पुरानी संस्थाओं में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए, दूसरी ओर समाचारपत्र, मतदान, ईसाई मिशनरी जैसी नई सस्थाओं का जन्म हुआ ।

(II) मूल्यों में परिवर्तन:

पश्चिमीकरण के परिणामस्वरूप भारतवर्ष में मानवतावाद, समानतावाद तथा लौकिकवाद के मूल्य बड़े । ब्रिटिश, सिविल और पीनल कानून ने हिन्दू और मुस्लिम कानून में व्यापक परिवर्तन किए । सभी लोगों को न्याय और कानून के सामने समानता दी गई । दास-प्रथा को समाप्त कर दिया गया और प्रत्येक धर्म, प्रजाति तथा जाति के लोगों को विद्यालयों में प्रवेश की अनुमति दी गई ।

क्रमशः स्त्रियों में भी शिक्षा का प्रचार हुआ । सैद्धान्तिक रूप से सभी लोगों को सामान्य आर्थिक अवसर दिए गए । अनेक तथाकथित धार्मिक प्रथाओं को समाप्त कर दिया गया जो मनुष्य में अन्तर फैलाती थीं । इस प्रकार की प्रथाओं में अस्पृश्यता उल्लेखनीय है ।

(III) सरकारी सुधार:

पश्चिमीकरण के प्रभाव से समस्त देश में राज्यों की ओर से अनेक सुधार किए गए जिनसे महामारियों को रोकने, अकालों से बचाव और शिक्षा के प्रसार की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य हुआ ।

(IV) हिन्दुत्व की पुन: व्याख्या:

पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से आर्य-समाज, ब्रह्म-समाज, प्रार्थना-समाज, थियोसोफिकल सोसाइटी, रामकृष्ण विवेकानन्द मिशन आदि अनेक समाज-सुधारक आन्दोलनों ने हिन्दू धर्म और संस्कृति की जाँच की और उसके अनेक पहलुओं की आधुनिक विज्ञान की प्रगति के प्रकाश में व्याख्या की ।

हिन्दू धर्म की व्याख्या करने में महर्षि दयानन्द, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानन्द, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, श्री अरविन्द महात्मा गाँधी और राजा राममोहन राय ने महत्वपूर्ण कार्य किया । इससे हिन्दू धर्म के अनेक ऐसे पहलुओं की ओर संकेत किया गया जिनमें परिवर्तन आवश्यक था । इससे सती प्रथा-निषेध बाल-विवाह पर रोक, विधवा पुनर्विवाह की अनुमति, अस्पृश्यता उन्मूलन जैसे महत्वपूर्ण सामाजिक सुधार हुए ।

(V) विविध राजनीतिक और सांस्कृतिक आन्दोलन:

उपरोक्त समाज-सुधार आन्दोलनों के अतिरिक्त पश्चिमीकरण के प्रभाव से भारतवर्ष में राजनीति और संस्कृति के क्षेत्र में अनेक आन्दोलन प्रारम्भ हुए । जहाँ एक ओर राष्ट्रीय आन्दोलन का जन्म हुआ वहाँ दूसरी ओर साम्प्रदायिक, जातिवादी, क्षेत्रवादी, भाषावादी और प्राचीन परम्परावादी आन्दोलन उत्पन्न हुए । इन आन्दोलनों ने अनेक विचारों के प्रचार के लिए शिक्षा, पुस्तके, समाचारपत्र, पत्रिकायें आदि के माध्यम अपनाए ।

(VI) शिक्षा का प्रचार:

पश्चिमीकरण का सबसे अधिक महत्वपूर्ण प्रभाव आधुनिक शिक्षा के व्यापक प्रचार के रूप में दिखलाई पड़ता है । अंग्रेजी शासनकाल में नाना प्रकार के विद्यालय, कालिज और विश्वविद्यालय खुले । देश में अनेक पत्र-पत्रिकायें विभिन्न विचारधाराओं को फैलाने लगीं । साक्षरता आन्दोलन बढ़ा और एक ऐसे शिक्षित वर्ग का निर्माण हुआ जो आधुनिक भारतीय क्रान्ति का अग्रदूत बन गया ।

पश्चिमीकरण के वाहक:

भारत में पश्चिमीकरण की प्रक्रिया को अंग्रेज और भारतीय दोनों ने ही फैलाया । अस्तु दोनों ही पश्चमीकरण के वाहक कहे जा सकते हैं । अंग्रेजों में तीन वर्ग के लोगों का प्रभाव देखा जा सकता है, एक तो सैनिक और सिविलियन अधिकारी जो सबसे ऊँचे स्तर पर थे; दूसरे सौदागर व्यापारी और बगीचों के मालिक जोकि इनसे नीचे स्तर पर थे और तीसरे, मिशनरी अंग्रेजों का वर्ग । इन तीनों ही वर्गों के अंग्रेजों ने भारतवर्ष में पश्चिमीकरण फैलाया दूसरी ओर अनेक भारतीयों ने भी पश्चिमीकरण की प्रक्रिया में योगदान दिया ।

इनमें निम्नलिखित दो वर्गों के लोग सम्मिलित हैं:

(a) अंग्रेजों के प्रत्यक्ष सम्पर्क में आने वाले:

जो भारतीय अंग्रेजों के प्रत्यक्ष सम्पर्क में आए उन पर अंग्रेजों का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था । इनमें एक ओर वे लोग थे जो अंग्रेजों के यहाँ चपरासी, खानसामा आदि की नौकरी करते थे, दूसरी ओर वे लोग थे जो हिन्दू-धर्म छोडकर ईसाई बन गये थे । इन दोनों का पश्चिमीकरण की प्रक्रिया में गौण महत्व है ।

(b) अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित:

भारतवर्ष में पश्चिमीकरण की प्रक्रिया में उन भारतीयों का अधिक योगदान है जो पाश्चात्य संस्कृति से अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित थे । इनमें एक ओर वे भारतीय सम्मिलित है जिन्होंने नई शिक्षा पाई, विभिन्न व्यवसायों में दाखिल हुये अंग्रेजी नौकरशाही में नौकरी की अथवा बड़े-बड़े नगरों में उद्योग और व्यापार चलाए ।

इन लोगों में सभी मध्यम वर्ग के नहीं थे । उदाहरण के लिए राजा राममोहन राय और रवीन्द्र नाथ ठाकुर उच्च वर्ग के परिवार में उत्पन्न हुए थे । इन अंग्रेजी पढ़े-लिखे लोगों ने हिन्दू समाज और संस्कृति में व्यापक परिवर्तनों की ओर अनेक आन्दोलन चलाकर उन परितर्वनों को उत्पन्न किया ।

मुस्लिम समाज में सर सैयद अहमद खाँ इसी वर्ग के भारतीय लोगों में आते हैं जिन्होंने मुस्लिम समाज के पश्चिमीकरण में महत्वपूर्ण कार्य किया । पिछड़े वर्गों में डॉ॰ भीमराव अम्बेडकर ने पश्चिमीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया इन उल्लेखनीय महापुरुषों के अलावा हिन्दुओं में अनेक जातियों का विशेष रूप से पश्चिमीकरण हुआ जिनमें उत्तरी भारत के कायस्थ, बंगाल के वैद्य, पश्चिमी भारत के पारसी और बनिया, उत्तर प्रदेश के कुछ मुसलमानों और केरल के नायर लोगों में पाश्चात्य शिक्षा का विशेष प्रभाव पड़ा ।

भारतीयों के द्वारा पश्चिमीकरण का विस्तार अंग्रेजी अस्पतालों में रहने वाले रोगियों, अंग्रेजी न्यायालय में जाने वाले वादियों और प्रतिवादियों तथा समाचारपत्रों और पुस्तकों को पड़ने वालों के माध्यम से भी हुआ । उदाहरण के लिए कलकत्ता, बम्बई और मद्रास में सबसे पहले पश्चिमीकरण हुआ और क्रमशः यह प्रक्रिया देश के बाकी भागों में फैली ।

भारतवर्ष में पश्चिमीकरण से जो कुछ भी ग्रहण किया गया उसमें बहुत कुछ का चुनाव किया गया और कुछ को छोड़ दिया गया, कुछ का विस्तार किया गया और कुछ की फिर व्यवस्था की गई । पश्चिमीकरण की भारवतर्ष में सफलता भारतीय संस्कृति की परम्परागत सहिष्णुता का परिणाम था ।

भारतवर्ष में उदारता, सहिष्णुता और आत्मालोचन की अति प्राचीन परम्परा रही है । आधुनिक पश्चिमीकरण से प्रभावित विवेकानन्द, रानाडे, गोखले, तिलक, टैगौर श्री अरविन्द, पटेल, गाँधी, नेहरू, राधाकृष्णन जैसे महापुरुषों ने प्राचीन भारतीय संस्कृति और दर्शन का पाश्चात्य विज्ञान और आधुनिक चेतना से समन्वय करने की चेष्टा की ।

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