नई आर्थिक नीति की शीर्ष आठ विशेषताएं | Top 8 Features of New Economic Policy in Hindi. These features are:- 1. उदारताद (Liberalisation) 2. निजीकरण का विस्तार (Extension of Privatisation) 3. अर्थव्यवस्था का विश्वीकरण (Globalisation of Economy) 4. बाजार-हितैषी राज्य (Market Friendly State) 5. आधुनिकीकरण (Modernisation) and a Few Others.

आर्थिक नीति अथवा सुधारों के लक्षण नीचे दिये गये हैं:

Feature # 1. उदारताद (Liberalisation):

नई आर्थिक नीति का मौलिक लक्ष्य यह है कि यह उद्यमियों को कोई भी उद्योग, व्यापार अथवा व्यापारिक परियोजना आरम्भ करने की स्वतन्त्रता देती है । उद्यमियों को कोई भी नया कार्य आरम्भ करने से पहले कहीं से स्वीकृति प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं होगी । उन्हें केवल इस बात की आवश्यकता है कि उन्हें अपने पसन्द के क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए कुछ शर्तें पूरी करनी होती है ।

नये व्यापारिक उद्यमों के प्रकरण अनुसार परीक्षण की विधि को समाप्त कर दिया गया है । इसके अतिरिक्त अब उद्यमियों को किसी व्यापार में आने के लिए लाइसैन्स की आवश्यकता नहीं होगी । पूंजी बाजारों को भी मुक्त करके निजी उद्यमियों के लिये खोल दिया गया है ।

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अब एक नये शेयर, डीबैन्चर आदि जारी करके नई कम्पनी खोली जा सकती है । यदि उद्यमियों को आयात होने वाले साजो-सामान की आवश्यकता हो तो उन्हें विदेशी विनिमय के लिये केन्द्रीय अधिकारियों से सम्पर्क साधने की आवश्यकता नहीं है ।

नई औद्योगिक नीति ने उद्योगों को निम्नलिखित ढंग से उदार बना दिया है:

(i) 18 उद्योगों को छोड़ कर अन्य सभी उद्योगों को लाइसैंस-मुक्त कर दिया गया वह बिना किसी प्रतिबन्ध के उद्योग स्थापित कर सकते हैं तथा शेयर बेच सकते हैं ।

(ii) बाजार की आवश्यकता के अनुसार उद्योग अपनी क्षमता बढ़ाने का अधिकार रखते हैं ।

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(iii) उत्पादक को किसी भी वस्तु के उत्पादन की इजाजत है तथा बाजार की माँग अनुसार अपने उत्पादन में विविधता ला सकता है ।

(iv) एम.आर.टी.पी. (MRTP) कम्पनियां (जिनका निवेश 100 करोड़ रुपयों से अधिक है) को अब निवेश के पूर्व-प्रवेश निर्णयों की आवश्यकता नहीं है तथा उन्हें अपना आकार बढ़ाने की इजाजत है ।

(v) औद्योगिक सुधारों की नीति ने लघु स्तरीय उद्योगों ५५ तथा सहायक इकाई की परियोजनाओं एवं मशीनरी पर निवेश की सीमा बढ़ा दी है ।

(vi) उद्योग खुले बाजार से विदेशी विनिमय खरीदने के लिये स्वतन्त्र होंगे । उपरोक्त उपायों ने उद्योगों को निर्णय लेने की स्वतन्त्रता दे दी है ताकि वह उत्पादन में अपनी कार्यकुशलता बढ़ा सके तथा विश्वव्यापी प्रतियोगिता का सामना कर सके ।

Feature # 2. निजीकरण का विस्तार (Extension of Privatisation):

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नई आर्थिक नीति का एक और लक्षण निजीकरण के क्षेत्र में विकास करना है । अब अधिक आर्थिक गतिविधियाँ निजी क्षेत्र द्वारा निभाई जायेंगी । निजीकरण की लहर के अधीन सार्वजनिक क्षेत्र के 17 उद्योगों में से 11 उद्याग निजी क्षेत्र को दे दिये गये हैं । इसके अतिरिक्त सरकार ने कुछ सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के स्वामित्व का निजीकरण कर दिया है । ऐसा करने के लिये कुछ चयनित उद्यमों की पूंजी निजी क्षेत्र में बेच दी गई है । निजीकरण के क्षेत्र को अधिक विस्तृत करने के लिये विदेशों के निजी निवेशकों को इन उद्योगों में निवेश करने का अवसर दिया गया है ।

आर्थिक सुधारों के निजीकरण कार्यक्रम में सम्मिलित हैं:

(i) सार्वजनिक क्षेत्र के लिये निर्धारित 17 उद्योगों की संख्या घटा कर 8 करना ।

(ii) आठवीं योजना के अन्त तक निजी क्षेत्र का कुल निवेश में भाग 55 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया ।

(iii) सार्वजनिक उद्यमों के सरकारी शेयरों को कर्मचारियों तथा जनता में बेचना जिससे निजी व्यक्तियों की भागीदारी का विस्तार हो ।

(iv) निजी क्षेत्र के उद्यमी को राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं की ओर से संस्थागत साख सहायता । अतः निजीकरण द्वारा निजी क्षेत्र की कार्यकुशलता एवं उत्पदिकता बढ़ने की सम्भावना है ।

Feature # 3. अर्थव्यवस्था का विश्वीकरण (Globalisation of Economy):

नई आर्थिक नीति का अर्थ है अर्थव्यवस्था बाहरी रूप का नवीनीकरण । अब इसकी गतिविधियां घरेलू बाजार एव विश्व बाजार दोनों से प्रभावित होती इसका अर्थ है कि घरेलू अर्थव्यवस्था तथा विश्व अर्थव्यवस्था का एकीकरण हो गया है । वास्तव में यह सरकार की विभिन्न नीति पहलकदमियों द्वारा सम्भव हो सका है ।

भारत की अर्थव्यवस्था के विश्वीकरण ने आर्थिक नीति में निम्नलिखित परिवर्तन किये हैं:

(i) नई आर्थिक नीति (1991) ने उच्च तकनीक और उच्च निवेश-प्रधान उद्योगों की एक विशेष सूची तैयार की है जिसमें विदेशी सीधे निवेश पर 51 प्रतिशत तक विदेशी शेयरों की स्वतः आज्ञा होगी ।

(ii) भारतीय मुद्रा के अन्तर्राष्ट्रीय समन्वयन के लिये, जुलाई 1991 में रुपये का लगभग 20 प्रतिशत तक अवमूल्यन किया गया । इससे निर्यातों के प्रोत्साहन में सहायता होगी, आयात हतोत्साहित होंगे तथा विदेशी पूजी का बहाव बढ़ेगा ।

(iii) विदेशी तकनीकी समझौतों के सम्बन्ध में, उच्च प्राथमिकता वाले उद्योगों को एक करोड़ रुपयों तक स्वचलित स्वीकृति उपलब्ध है । अब विदेशी मिस्त्रियों को बुलाने की आवश्यकता नहीं और न ही देश में विकसित तकनीकों का विदेशों में परीक्षण करवाने की आवश्यकता है ।

(iv) भारतीय अर्थव्यवस्था का विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ शीघ्र समाकलन बनाने के लिए वर्ष 1992-93 के केन्द्रीय बजट ने रुपये को कुछ सीमा तक परिवर्तनीय बना दिया तथा पुन: वर्ष 1993-94 के बजट में रुपये को पूर्ण रूप में परिवर्तनीय बना दिया ।

तदानुसार, मार्च 1993 में सरकार ने पूर्ण रूप से एकीकृत बाजार निर्धारित विनिमय दर प्रणाली की स्थापना की । इस प्रकार मार्च 1993 में चालू खाते की परिवर्तनीयता की ओर बड़ा कदम उठाया गया । विनिमय दर को एकीकृत किया गया तथा व्यापार खाते के व्यवहारों को विनिमय नियन्त्रण से मुक्त किया गया ।

(v) भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व स्तरीय प्रतियोगिता के घेरे में लाने के लिये, सरकार ने सीमा शुल्क को पर्याप्त सीमा तक संशोधित किया है । तदानुसार, सीमा शुल्क का उच्चतम दर 250 प्रतिशत से घटा कर वर्ष 2002-03 के बजट में 30 प्रतिशत कर दिया गया ।

(vi) सरकार द्वारा एक नई निर्यात-आयात नीति, 1992-97 की घोषणा की गई । नई नीति का उद्देश्य भारत के विदेशी व्यापार के वैश्वीकरण के लिये एक ढांचे की स्थापना करना था जिससे भारतीय उद्योग की उत्पादिकता, आधुनिकीकरण और प्रतियोगिता का विस्तार हो तथा इसकी निर्यात क्षमता अधिक हो ।

इससे निर्यात और आयात को नियन्त्रित करने वाली विधियों को सरल तथा स्पष्ट करने में सहायता मिलती है । नीति ने विदेशी व्यापार एवं बाजार शक्तियों पर सभी प्रतिबन्ध और नियन्त्रणों को समाप्त कर दिया । पुन: 31 मार्च, 2002 को एक नई एगजिम नीति (Exim Policy) की घोषणा की गई जिसने व्यापार व्यवहारों को और सरल कर दिया और विश्व बाजार में भारत की प्रतियोगिता शक्ति में सुधार हुआ ।

(vii) विदेशी प्रतियोगिता का सामना करने के लिये, सरकार ने अपने भुगतानों के सन्तुलन को सुधारने तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में भारत का भाग बढ़ाने के लिये कई कदम उठाये ।

(viii) विदेशी निवेश तथा तकनीक का देश में बहाव बढ़ाने के लिये सरकार ने कई कदम उठाये ।

जैसे:

(i) उच्च प्राथमिकता वाले, उद्योगों को विदेशी तकनीकी सहायता देना,

(ii) निजी उद्यमियों द्वारा विदेशी तकनीक को आयात करने की स्वतन्त्रता तथा देसी तकनीक के विदेशों में परीक्षण की स्वतन्त्रता दी गई ।

Feature # 4. बाजार-हितैषी राज्य (Market Friendly State):

राज्य की भूमिका चयनित गैर-मण्डी क्षेत्रों तक सीमित था बाजार अर्थव्यवस्था के समतल कार्यान्यवन को सुनिश्चित करने के लिये है । भूतकाल की तुलना में,

कुछ चयनित उद्यमों का स्वामित्व निजी क्षेत्र को स्थानान्तरित कर दिया गया । साधनों के स्वामी के रूप में इसकी गतिविधियां दो प्रकार की गतिविधियों तक सीमित है ।

एक तो उन गतिविधियों को प्रच्छन्न करती है जो अर्थव्यवस्था को चलाने के लिये बहुत आवश्यक हैं तथा सामाजिक सेवाओं से सम्बन्धित जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य आदि, तथापि, अधिक आवश्यक रूप में, राज्य को बाजार का समतलीय कार्यान्वयन सुनिश्चित करना है । इसके लिये, सरकार को समष्टि-आर्थिक नीतियों के प्रयोग द्वारा स्थायित्व सुनिश्चित करना है । जब बाजार असफल होता है तो प्रान्त इसमें हस्तक्षेप करेगा ।

Feature # 5. आधुनिकीकरण (Modernisation):

नई आर्थिक नीति, आधुनिक तकनीकों को उच्च प्राथमिकता देती है । यह बढ़ते हुये उद्योगों के वृद्धि दर को तीव्र बनाती है । भारतीय उद्योगों में तकनीकी गतिशीलता आयात करने के लिये सरकार ने सभी विदेशी सहयोगों को मुक्त करने का निर्णय किया । निजी उद्यमी, अपनी और से ही इन सहयोग वाले उद्यमों के साथ समझौते की शर्तें तय करने के लिये स्वतन्त्र होंगे ।

इसके अतिरिक्त सरकारें निजी उद्यमियों को अपने शोध और विकास केन्द्र स्थापित करने के लिये बहुत सी कर रियायतें दे रही हैं । सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र दोनों की रुग्ण औद्योगिक इकाइयों (Sick Units) को पुन: जीवित करने तथा उनका आधुनिकीकरण करने के प्रयास किये जा रहे हैं ।

Feature # 6. नई सार्वजनिक क्षेत्र नीति (New Public Sector Policy):

सार्वजनिक क्षेत्र को प्राथमिकता प्राप्त हुई । कांग्रेसी सर कार के वित्त मन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह के शब्दों में सार्वजनिक उद्यमों को इस आशा से प्राथमिकता दी गई थी कि इससे पूजी संचित होगी, उद्योगीकरण तथा आर्थिक वृद्धि सुनिश्चित होगी तथा निर्धनता का विलोपन होगा । लेकिन इनमें से किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हुई । अतः नये आर्थिक सुधार अब सार्वजनिक क्षेत्र से परिवर्तित होकर निजी क्षेत्र को अधिक प्राथमिकता दे रहे हैं ।

सार्वजनिक क्षेत्र के प्रकरण में ओद्योगिक नीति ने निम्नलिखित मुख्य निर्णय लिये:

(i) सार्वजनिक क्षेत्र के लिये सुरक्षित उद्यमों की सूची को 17 से घटा कर 8 कर दिया गया ।

(ii) आरक्षित क्षेत्र में चयनित प्रतियोगिता का आरम्भ ।

(iii) सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में अंशों (शेयरों) का विनिवेशन जिससे साधनों की वृद्धि हो तथा सामान्य जनता और कर्मचारियों की सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में भागीदारी का विकास हो ।

(iv) सार्वजनिक क्षेत्र के रुग्ण उद्यमों सम्बन्धी नीति निजी क्षेत्र के समान ही

होगी । रुग्ण सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम जिनके सुधरने की सम्भावना कम है उन्हें पुन: जीवित करने सम्बन्धी योजनाओं के निर्माण के लिये बी.आई.एफ.आर. को साँप दिया जायेगा ।

(v) निष्पादन समझौते द्वारा अथवा एम.ओ.यू. प्रणाली (MOU) द्वारा निष्पादन को सुधारना जिसके द्वारा प्रबन्धकों को अधिक स्वायत्ता दी जायेगी तथा परिणामों के लिये वे उत्तरदायी होंगे ।

Feature # 7. वित्तीय सुधार (Financial Reforms):

नरसिम्हम कमेटी (Narsimham) की रिपोर्ट का अनुसरण करते हुये भारत सरकार ने अपने वित्तीय क्षेत्र को सुधारने के लिये कई कदम उठाये हैं ।

उनमें सम्मिलित हैं:

(i) तरलता अनुपात को घटाना,

(ii) सीधे क्रैडिट कार्यक्रमों की समाप्ति,

(iii) ब्याज दरों का मुक्त निर्धारण,

(iv) बैंक खातों की प्रणाली में सुधार,

(v) गैर-निष्पादक परिसम्पत्ति के लिये प्रबन्ध,

(vi) विशेष न्यायाधिकरणों द्वारा ऋणों की शीघ्र वसूली का प्रबन्ध करना,

(vii) अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के बैंक, राष्ट्रीय स्तर के बैंक, स्थानीय बैंक, ग्रामीण बैंक, निजी क्षेत्र के बैंकों की स्थापना के लिये बैंक प्रणाली का पुनर्गठन,

(viii) विदेशी बैंकों से उदारतापूर्ण व्यवहार,

(ix) ब्रांच लाइसैन्स प्रणाली की समाप्ति,

(x) बैंकों को अधिक स्वतन्त्रता देना और रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया एवं वित्त मन्त्रालय के दोहरे नियन्त्रण को समाप्त करना,

(xi) वित्तीय संस्थाओं जैस फाइनैन्स कम्पनियों, व्यापारिक बैंकों, साझे कोषों का सुधार और,

(xii) पूंजी बाजार सुधारों का आरम्भ ।

Feature # 8. राजकोषीय सुधार (Fiscal Reforms):

सरकार ने राजकोषीय घाटे को कम करने के कई राजकोषीय उपाय आरम्भ किये । राजकोषीय घाटा जोकि वर्ष 1990-91 में कुल घरेलू उत्पाद का 8.4 प्रतिशत था, वर्ष 1996-97 में 5 प्रतिशत था तथा फिर वर्ष 1999-2000 में 4.4 प्रतिशत रह गया । अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिये सरकार ने सार्वजनिक व्यय पर कई नियन्त्रण लगाये और कर तथा गैर कर आय को बढ़ाने के लिये कदम उठाये ।

अन्य उपायों में शामिल हैं- केन्द्रीय एवं प्रान्तीय सरकारों द्वारा राजकोषीय अनुशासन लगाना, उत्पादन एवं सीमा शुल्कों के दरों के ढांचे को तर्क संगत बनाना वर्ष 1999-2000 के बजट में व्यय सुधार आयोग की स्थापना, प्रान्तों एवं केन्द्र के सावजानेक क्षेत्र के उद्यमों की कार्यशैली को व्यवस्थित करना तथा इन उद्यमों को बजटीय सहायता देना, प्रान्तीय बिजली बोर्डों के शुल्क ढाँचों को तर्कसंगत बनाना तथा परिवहन निगमों एवं सिचाई परियोजनाओं के प्रयोग व्ययों को न्याय संगत बनाना ।