भारत में खुदरा करोबार | Retail Business in India in Hindi.

हम भारतवर्ष के लोग इस बात को ठीक से नहीं समझ पा रहे हैं कि खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ठीक रहेगा नहीं, हम इसके प्रति आशावान कम, संकालू अधिक दिख रहे हैं । हमारे देश की राजनीतिक पार्टियां इस बात को हवा में उड़ा रही है जबकि उन्हें इस बात की फिक्र होनी चाहिए कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था ठीक से कैसे चल सकती है ।

इस मुद्दे पर बड़ी गंभीरतापूर्वक विचार कर हमें इस दिशा में सकारात्मक प्रयास करने चाहिए । यह निवेश हमारे लिये एवं अनोखा पहलू है, जो भारत में राशनिग के साथ शुस्न हुआ इसका सफर कपड़ा ओर फूटवियर खुदरा से होकर गुजरा है । आज भारत में 1.4 करोड़ खुदरा करोबारी है और यह 407 अरब डॉलर से भी बड़ा बाजार है ।

यहां असंगठित क्षेत्र की प्रधानता है और कुल बिक्री में इसकी भागीदारी 95 प्रतिशत तक है । जब से भारत ने उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण को अपनाया है तबसे यहां डिमार्ट मेंटल स्टोर, हाइपर मार्केट और स्पेशिपलिटी स्टोर खुले हैं ।

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लोगों की क्रयशक्ति बढ़ने से बेहतर सेवाओं और उत्पादों के लिए उनकी मांग बढ़ी है इसके लिए विनिर्माण, रिटेल स्पेस, तकनीक, फूड लाजिस्टिक्स और प्रसस्करण में बड़े पैमाने पर निवेश की जरूरत हे और निवेश सरकार की क्षमताओं से बाहर है ।

आज हमारे देश ने सुरक्षा के क्षेत्र में विदेशी निवेश के रास्ते खोल दिये है तो हमें खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का विरोध नहीं करना चाहिए । देश में खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की कोशिशें तो 1991 के बाद से ही शुरू हो चुकी है ।

हमने 1997 में थोक व्यापार (कैश एण्ड कैरी) में 100 प्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति दी । देश के बड़े उद्योगपतियों ने भी खुदरा कारोबार में प्रवेश किया तो इसका भी विरोध हुआ । सरकार ने 2006 में एकल सिंगल ब्रांड खुदरा व्यापार में 51 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को अनुमति दी गई । लेकिन सरकार के ये प्रयास विदेशी निवेश को आकर्षित करने में सफल नहीं हो सके क्योंकि विदेशी निवेशक भारत में मल्टी ब्रांड में विदेशी निवेश की अनुमति चाहते थे ।

ऐसा होने से हमारे देश में किसने की दुकानों पर बिकने वाले सामान पर विदेशी निवेशकों की अनुमति मिली । इस दिशा में सरकार ने पुन: 2010 में जब ”ओद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग” ने मल्टी ब्रांड में एफडी आई को लेकर एक परिचर्चा पत्र जारी किया इसमें आम जनता की राय के साथ-साथ विशेषज्ञों को भी शामिल किया गया इसमें निष्कर्ष यह निकला कि परिचर्चा पत्र में 65 प्रतिशत लोगों ने रिटेल में एफ.डी.आई. का विरोध किया ।

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लेकिन सरकार ने फिर भी इस ओर से ध्यान नहीं हटाया और लगातार अपनी कार्यवाही जारी रखी और सरकार ने नवंबर 2011 में रिटेल क्षेत्र में 51 प्रतिशत एफ.डी.आई की अनुमति दे दी । लेकिन सरकार के इस कदम का भारी विरोध हुआ तो लागू करने के प्रस्ताव को स्थागित कर दिया ।

अगर हम एफ.डी.आई. की वस्तु स्थिति की चर्चा करें, तो इसका फायदा तब दिखाई देता था जब 1951 में उपभोक्ता द्वारा चुकाई गई कीमत का 89 प्रतिशत हिस्सा किसानों तक पहुँचता था जो कि आज 34 प्रतिशत रह गया है ।

आज उपभोक्ता द्वारा चुकाई गई कीमत का 66 प्रतिशत उन नकली किसानों की पॉकेट में जा रहा है जो कभी खेती की व्यवस्था को देखते भी नहीं है । इस तरह पूरे वर्षभर में किसानों को 20 लाख करोड़ रूपये का घाटा हो रहा है ।

किसानों के शोषण का बड़ा कारण सरकार द्वारा व्यापारियों के हित में बनाया गया कानून ”कृषि उमा विपणन समिति” है । इस कानून के द्वारा किसान अपनी उपज को सीधे न बेचकर बिचौलियों के माध्यम से ही बेच सकेंगे ।

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इस वजह से कृषि उपज को किसान से सस्ती दर पर खरीदकर कई गुना कीमत पर बेची जाती थी । लेकिन सरकार ने 2003 में ए.पी.एम.सी.- 1954 में संशोधन किया, लेकिन कृषि राज्य सूची का विषय होने के कारण इस कानून को नहीं लागू किया । आंध्रप्रदेश ने इस को आंशिक रूप से लागू किया ।

खुदरा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के उद्देश्य:

(i) बिचौलियों से किसानों का बचाना ।

(ii) खाद्य पदार्थों की होने वाली बर्वादी को रोकना ।

(iii) कृषि क्षेत्र का ग्रामीण क्षेत्र की आधारभूत ढांचे को सुदृढ़ बनाना ।

(iv) किसानों को आत्मनिर्भर बनाना ।

(v) आपूर्ति शृंखला, प्रवचन, भण्डारण पर भारी निवेश करना ।

खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की समस्या:

(i) बिचौलियों का उन्मूलन ।

(ii) कृषि क्षेत्र का पिछड़ापन होना ।

(iii) शहरों से ग्रामीण क्षेत्र की दूरी ।

(iv) ग्रामीण क्षेत्र में सड़कों का अभाव ।

(v) किसानों पर स्टोरेज की कमी ।

(vi) पूंजी की कमी ।

(vii) केवल (53) महानगरों तक ही पहुँच होना । इत्यादि समस्याओं के चलते देश में खुदरा बाजार में एफ.डी.आई को अपनाने में शंका हो रही है ।

देश की खुदरा कंपनियों की हालत बद से बत्तर होती जा रही है । भारत में रिटेल बिजनेस के अग्रदूत किशोर वियानी जी पूरी तरह कर्ज में डूबे हुये हैं, एडिडास ने अपने 100 स्टोर बंद करने की घोषणा, आदित्य विडला और रिलायंस रिटेल ने भी अपने 100 से अधिक घाटे वाले रिटेल स्टोर बंद कर दिये है ।

खतरे:

स्थानीय दुकानदारों के कारोबार को निगल गई । जब ये एक बार स्थापित हो जाते हैं तो पहले तो सस्ती दर पर सामान उपलब्ध कराते है । आदि/आदत में बदलने पर होने पर कुछ समय बाद ये अपने सामान की कीमतों में वृद्धि कर देते है । उदाहरण ब्राजील में 1987 में रिटेल स्टोर खुलने के बाद 1987-1997 के बीच फल-सब्जियों की बिक्री में छोटे दुकानदारों की हिस्सेदारी में 30 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई ।

इन्डोनेशिया में तो केवल एक वर्ष 2002-03 में 1.54 लाख यानी 9 प्रतिशत छोटी दुकानें बद हो गई । भारत में खुदरा से चार करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है । राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण 2009-10 के अनुसूची इस प्रकार रोजगार की दृष्टि में कृषि के बाद यह दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है ।

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