मोनोक्लोनल एंटीबॉडी: अर्थ और सिद्धांत | Read this article in Hindi to learn about:- 1. मोनोक्लोनल प्रतिरक्षी का अर्थ (Meaning of Monoclonal Antibodies) 2. मोनोक्लोनल प्रतिरक्षी के सिद्धान्त (Principle of Monoclonal Antibodies) 3. प्राप्त करने की विधि (Method to Obtain) and Other Details.

मोनोक्लोनल प्रतिरक्षी का अर्थ (Meaning of Monoclonal Antibodies):

अधिकतर एन्टीबॉडीज (Antibodies) उत्पन्न करने वाली कोशिकाएँ (Cells) कैन्सर (Cancerous) प्रवृत्ति में परिवर्तित हो जाती है । क्योंकि इन कोशिकाओं में विभाजन की असीमित तथा अनियन्त्रित क्षमता उत्पन्न हो जाती है ।

कोशिकाओं के विभाजन (Division) से ऐसे पिंड को मायलोमा (Myeloma) कहते हैं । ये मायलोमा (Myeloma) एकल (Single) कोशिका से प्राप्त होता है । अत: इस कोशिका (Cells) से प्राप्त संतति कोशिकाओं (Daughter Cells) में एक समान जीन (Gene) पाए जाते हैं ।

जिन्हें क्लोन (Clone) कहते हैं । इस प्रकार से प्राप्त क्लोन की यह विशेषता होती है कि समस्त कोशिकाएँ एक ही प्रकार की एन्टीबॉडीज (Antibodies) का उत्पादन (Production) करती हैं ।

ADVERTISEMENTS:

जर्मनी (Germany) के जॉर्ज जे.एफ. कोहलर (Georges J.F.Kohler) एवं अर्जेन्टीना (Argentina) के सीजर मिल्सटेन (Cesar Milstein) ने 1975 में अनुसंधान शालाओं में मायलोमा (Myeloma) के एकल क्लोन से एन्टीबॉडीज (Antibodies) के उत्पादन की विधि विकसित की थी ।

तथा इन्हें एक क्लोनी प्रति रक्षी (Monoclonal Antibodies) कहा गया इसके लिए कोहलर एवं मिल्सटीन के 1984 में नोबल पुरस्कार दिया गया । दूसरी एन्टी बॉडीज (Antibodies) की अपेक्षा मोनो क्लोनल एन्टी बॉडीज (Monoclonal Antibodies) अधिक स्वच्छ एवं एक समान होती है ।

इसके द्वारा ड्रोसीफिला (Drosophila) के गुण सूत्रों (Chromosomes) में Z-DNA को अंकित करने में सफलता प्राप्त की गयी कैन्सर (Cancer) व प्रतिरोधी तंत्र (Immune System) के उपचार से (Treatment) मोनोक्लोनल एन्टीबॉडीज (Antibodies) का उपयोग किया जाता है ।

वे प्रतिरक्षी (Antibody) जो उन कोशिकाओं से बनते हैं, जो की एकाकी एक पूर्वजक (Single Clone) से व्यूत्पन्न (Derivative) होती है । इन्हें एक क्लोनी (Mono Clonal) प्रतिरक्षी (Antibody) कहते हैं । ये एक एकाकी प्रति जानिक निर्धारक (A Single Antigenic Determinant) को एक प्रतिजन (Antigen) से संयुक्त कराने में अतिविशिष्ट होती है ।

ADVERTISEMENTS:

इसके विपरीत एक व्यक्ति (Individual) के रक्त (Blood) में उपस्थित प्रतिजन (Antigen) के लिए विशिष्ट प्रतिरक्षियाँ (Specific Antibodies) बहुक्लोनी (Polyclonal) होती है । क्योंकि वे बहु एक पूर्वजक (Multiple Clone) से व्युत्पन्न (Derivative) होती है ।

बहु क्लोनी (Polyclonal) प्रतिरक्षी (Antibodies) अपने बंधन स्थलों में विभिन्न संरचनाओं के साथ विभिन्न इन्मूनो ग्लोब्युलिन वर्गों (Immuno Globulin Classes) या अपवर्गों (Sub Classes) के अणुओं (Molecules) का मिश्रण (Mixture) होती है ।

जबकि एक क्लोनी प्रतिरक्षी (Monoclonal Antibodies) में एकल ऐमीनो (Single Amino Acids) क्रम होता है । और ये एकल इम्यूनोग्लोब्युलिन (Immunoglobulin Class) वर्ग की होती है ।

मोनोक्लोनल प्रतिरक्षी के सिद्धान्त (Principle of Monoclonal Antibodies):

प्रतिजन (Antibody) के फलस्वरूप विभिन्न प्रकार के एन्टीबॉडीज (Antibodies) के उत्पादन (Production) के तथ्यों को एफ.एम. बर्नेट (F.M.Burnet) ने 1959 में क्लोन चयन सिद्धांत (Clonal Selection Theory) के रूप में एक्सप्लेन (Explain) किया ।

ADVERTISEMENTS:

इनके इस सिद्धांत के अनुसार प्रतिजन (Antigen) के अणु (Molecule) पर स्थित एकल (Single) निर्धारक के प्रति कोशिकाएँ (Cells) निश्चित अभिक्रियाएँ (Reactions) व्यक्त करती हैं । एवं इस प्रक्रिया (Process) में प्रतिरक्षी कार्यों का उत्पादन (Production) करती है ।

अर्थात लिम्फो साइट कोशिकाएँ एन्टीजन्स (Lymphocyte Cells Antigens) को एक रूप में बृहत अवस्था में न देख कर इनके निर्धारक स्थलों की ओर केन्द्रित रहती है । क्योंकि एक साधारण एन्टीजन (Antigen) पर ऐसे अनेकों निर्धारक स्थल हो सकते है ।

इनके द्वारा उत्पन्न एन्टी बॉडीज (Anti Bodies) भी अत्यंत विषमांगी (Heterogenous) होती हैं । यह तथ्य अत्यंत जटिल हो जाते हैं । जब एन्टी बॉडीज (Antibodies) विभिन्न वर्गों में जैसे- IgG, IgM व IgA के रूप में उत्पन्न होती है ।

ये सिद्धांत मुख्य निम्न तथ्यों पर आधारित है:

(1) पूरी कोशिकाओं (Cells) में दो प्रमुख जैव रासायनिक परिपथ (Biochemical Step) है, जो 1 व 2 दो के नाम से जाने जाते हैं, जिनके द्वारा न्यूक्लीओ साइड्स (Nucleosides) का संश्लेषण (Synthesis) किया जाता है ।

इस परिपथ में संख्या एक के अन्तर्गत सामान्य पोषकों (Nutritive) जैसे अमीनो अम्ल (Amino Acid) एवं शर्कराओं (Sugars) के द्वारा क्षारीय इकाइयों का निर्माण किया जाता है ।

परिपथ दो में बाह्य रूप (Externally) से विपरित किए गए अथवा प्राणि (Animal) के शरीर द्वारा आन्तरिक रूप से (Internally) उत्पन्न किए गए स्वतन्त्र (Free) एडेनीन (Adenine) ग्वानीन (Guanine), थायमीन (Thymine) एवं साइटोसीन (Cytosine) क्षारक हाइपोजैन्थीन ग्वानीन फास्फोराइबोसिल ट्रांसफरेज (Hypoxanthine Guanine Phosphoribosyl Transferases-HRPR) नामक एन्जाइम (Enzyme) की उपस्थिति में रूपान्तरित (Modified) कर दिये जाते हैं ।

(2) 8-एजोग्वानीन (8-a30 Guanine) जैसे क्षार की उपस्थिति में ही HPRT से रहित कोशिकाएँ जीवित (Living Cells) रहती है । क्योंकि ऐसे क्षारों के RNA व DNA में सम्मिलित होने के फलस्वरूप ट्रांसक्रिप्टशन (Transcription) एवं ट्रांसलेशन (Translation) जैसी क्रियाएँ प्रभावित (Effected) होती है ।

अन्त में यह प्रोटीन्स (Proteins) के संश्लेषण की क्रिया को ग्रसित करती है । यूरेलिस व्युत्पन्न (Uracil-Derivatives) 2-6 डाई एमीनो प्यूरीन (2-6 Diamino Purine) 2-थॉय (Thio) व 5 फ्यूरोयूरेसिल (2-Thio and 5-Fluorouracil) आदि तत्वों को सामान्य क्षारकों की अपेक्षा न्यूक्लीक अम्लों (Nucleic Acid) में आसानी से प्रवेश कराया जा सकता है ।

(3) इसमें विटामिन (Vitamin) फॉलिक अम्ल (Folic Acid) का व्यूत्पन्न (Derivative) अमीनो प्टरीन (Aminopterin) परिपथ की क्रियाविधि को प्रभावित (Effected) करता है तथा परिपथ-2 की सामान्य कोशिकाएं (Cells), अमीनोप्टरीन (Aminopterin) की उपस्थिति (Presence) में भी जीवित बनी रहती है तथा गुणन क्रिया (Multiplication) की क्रिया कर संख्या में वृद्धि करती है । इसके लिए पोषक माध्यम (Nutritive Medium) में हाइपोजैन्थीन (Hypoxanthine) एवं थाई मिडीन (Thymidine) जैसे- क्षारकों की उपस्थिति अनिवार्य है ।

एक क्लोनी प्रतिरक्षी प्राप्त करने की विधि (Method to Obtain Monoclonal Antibodies):

इसमें निम्न Step आते हैं:

(1) सबसे पहले प्रायोगिक जीव (Experimental Animal) साधारणतः मूषक (Rats) को किसी विशेष (रूचि वाले) प्रतिजन (Antigen) के विरूद्ध प्रतिरक्षित (Immunize) किया जाता है ।

(2) इसके प्लीहा (Spleen) या लसीका पर्वो (Lymph Nodes) से लसीका (Lymph) कोशिकाओं (Cells) का एक मिश्रण लिया जाता है ।

(3) इन (Lymph) लसीका कोशिकाओं (Cells) को मूषक (Rats) मायेलोमा कोशिकाओं (Myeloma Cells) के साथ किसी एक अभिकारक जैसे कि पॉलीइथाइलीन ग्लाय कॉल (Polyethylene Glycol) जो कि दोनों प्रकार की कोशिकाओं के सलंयन (In Cubate) को बढ़ाता है । तथा साथ में उष्मायित किया जाता है । इनक्यूबेट (Incubate) कोशिकाओं (Cells) को हाब्रिडोमा (Hybridomas) कहते हैं ।

(4) इन्हें असंलयित (Un Fused) कोशिकाओं (Cells) में से चुना जा सकता है । अगर मायेलोमा कोशिकाएँ (Myloma Cells) परिवर्तन प्रभेद (Varient Strain) की हो अर्थात हाइपोजैन्थिन फास्फोराइबोसिल ट्रान्सफरेज (Hypo-Zanthine Phosphoribosyl Transferase HPRT) में अपूर्ण (Imcomplate) हो ।

HPRT कोशिकाएँ (Cells) एक संवर्धन माध्यम (Culture Medium) में प्यूरिन संश्लेषण (Purine Synthesis) के लिए वहिर्जात (Exogenous) हाइपोजैन्थिन (Hypozanthine) का उपयोग नहीं कर सकती, इस प्रकार यदि ऐमीनोनोटेरिन (Aminopterin) पर वृद्धि करवायी जाए, तो प्यूरिन (Purine) व पिरिमिडीन (Pyridinaidine) संश्लेषण (Synthesis) में अवरोध हो जाता है और एकल कोशिकाएँ (Monoclonal Cells) या क्लोन (Clone) से जो प्रतिरक्षी (Immunize) बनाती है ।

उनका तब संवर्धन माध्यम (Culture Medium) में से क्रमिक तनुकरण (Serial Dilution) व कोशिका वृद्धि (Cell Growth) द्वारा मिश्रण में से चुनाव किया जाता है । इस प्रकार कई क्लोन (Clone) जो एक प्रतिरक्षी का उत्पादन (Production) करते हैं । और जो प्रतिजन (Antigen) पर एक सीमित संख्याओं के निर्धारकों (Determinants) की पहचान करते हैं । उससे प्राप्त किए जा सकते हैं ।

(5) क्लोन (Clone) के चुनाव (Selection) के बाद ऊतक संवर्धन (Tissue Culture) माध्यम (Medium) से प्रतिरक्षियों को वियुक्त (Isolate) कर लिया जाता है । उन्हें प्रायोगिक जीन (Experimental Gene) की पेरिटोनियल गुहा (Peritoneal Cavity) में क्लोन (Clone) कोशिकाओं (Cells) को अन्त:क्षेपित कर भी प्राप्त किये जा सकते हैं । जहाँ कोशिकाएँ (Cells) प्रचुरोद् भवन (Proliferation) करती है और प्रतिरक्षियों का श्रवण (Secretion) करती हैं ।

(6) कुछ समय (दिनों) बाद गुहा (Cavity) में से जलोदर अथवा एसाइट्‌स द्रव्य (Ascites Fluid) प्राप्त किया जा सकता है, जिसमें प्रतिरक्षी होते हैं और उन्हें वियुक्त कर लिया जाता है ।

मोनो क्लोनीय प्रतिरक्षी (Monoclonal Antibodies):

एन्टीबाडीज (Antibodies) एक विशेष प्रकार के प्रोटीन (Protein) साधारण तथा ग्लायकोसिलित (Glycosylated) होते हैं, जो जंतुओं द्वारा प्रतिजन (Antigen) अणुओं (Molecules) की अनुक्रिया (Response) में उत्पादित किए जाते हैं । इन प्रोटीन्स (Proteins) को इम्यूनोग्लाबुलिन (Immunoglobulin Ig) कहते हैं ।

प्रत्येक एन्टी बॉडीज (Antibodies) उस प्रतिजन (Antigen) विशेष से ही आबद्ध होता है, जिसकी अनुक्रिया में उसका उत्पादन होता है । इसे प्रतिजन-प्रतिरक्षी परस्पर क्रिया (Antigen-Antibody Interaction) कहते हैं और यह अत्यंत विशिष्ट (Specific) होता है ।

परन्तु कभी-कभी एक प्रतिजन (Antigen) की अनुक्रिया में उत्पादित प्रतिरक्षी (Antibody) किसी अन्य प्रतिजन (Antigen) से भी बराबर क्रिया कर सकता है । इस क्रिया को पार-क्रिया (Cross-Reaction) कहते हैं । प्रतिजन (Antigen) अणु (Molecule) का वह भाग, जो कि प्रतिजन-प्रतिरक्षी (Antigen-Antibodies) परस्पर क्रिया में भाग लेता है ।

इसे एपिटोप (Epitope) या प्रतिजनी निर्धारक (Antigenic Determinant) कहा जाता है । जब किसी प्रतिजन (Antigen) अणु (Molecule) से प्रतिरक्षी (Anti Body) अणु (Molecule) आबद्ध (Joint) होता है, तो प्रतिजन (Antigen) अणु (Molecule) निष्क्रिय हो जाता है ।

इसी कारण टीकाकरण (Vaccination) के बाद कोई भी व्यष्टि (Individual) संबंधित रोग से असंक्रम्य (Immune) हो जाता है । इसीलिए किसी प्रतिजन (Antigen) की अनुक्रिया में जंतुओं द्वारा प्रतिरक्षी (Antibodies) उत्पादन को रोधक्षय अनुक्रिया (Immune Response) कहा जाता है तथा प्रतिजनों (Antigens) की इस क्षमता के प्रतिरक्षाजनत्व (Immunogenicity) कहते हैं ।

इसके विपरीत प्रतिजन अणुओं (Antigenic Molecules) के प्रतिरक्षी (Antibodies) विशेष से परस्पर क्रिया करने की क्षमता को प्रतिजनत्व (Antigenicity) कहा जाता है । सामान्यता, प्रतिजनी एपिटोप (Antigenic Epitope) ही प्रति रक्षाजनी भी होता है ।

किन्तु कुछ छोटे अणु (Small Molecules) प्रतिजनी (Antigenic) होते हैं । किन्तु ये स्वयं प्रतिरक्षाजनी (Immune Genic) नहीं होते हैं । इन अणुओं (Molecules) को हैप्टेन (Hapten) कहा जाता है ।

लेकिन जब हैप्टेन अणुओं (Hapten Molecules) को किसी अन्य बड़े अणु (Large Molecules) से संलग्न कर दिया जाता है, तो यह प्रतिरक्षाजनी (Immunogenic) भी हो जाता है । ऐसे बड़े अणुओं (Large Moleculars) को वाहक (Carries) कहते हैं । वाहक (Carries) अणु (Molecules) स्वयं भी रक्षाजनी (Immunogenic) हो सकता है ।

मोनोक्लोनल एन्टीबाडीज का उत्पादन (Production of Mono Clonal Antibodies):

एक विशेष प्रकार (Special Type) की Ab, जो कि एक विशेष प्रकार (Special Type) के Ag (Epitope) के प्रति कार्य करती है और जिसे हाइब्रोडोमा सेल लाइन (Hybriodoma Cell Line) उत्पन्न किया जाता है । वह मोनोक्लोनल (Monoclonal) AB कहलाती है ।

अत: यह वह प्रीपेरेशन (Preparation) होता है, जिसमें एक ही प्रकार की AB पाई जाती है । प्लाज्मा सेल (Plasma Cells) और अत्यधिक सूक्ष्म (B-Cells) AB उत्पन्न करती है, किन्तु कभी विभाजन (Division) नहीं करती । इसके विपरीत माइलोमा सेल (Myloma Cell) जोकि बोन मैरो (Bone Marrow) के केन्सीरस लिम्फो साइडस (Cancerous Lymphosides) होते हैं ।

कभी Ab उत्पादन (Production) नहीं दर्शाते, परन्तु वे इन विट्रो (Invitro) अत्याधिक विभाजन (Division) दर्शाते हैं । सन् 1975 में जार्ज कोहलर और सीजर माइलस्टीन (Beorge Kohler and Cessar Milstein) ने स्पीलीन सेल (Spleen Cell) से B Cell को प्राप्त किया ।

यह प्लीहा (Spleen) एक इम्मूयनाइज्ड माउस (Immunised Mouse) से लिया गया था । फिर उन्होंने B-Cell जो कि Ab Producing Cell थे । जो केन्सर (Concer Glycor) करवाया । इस तरह उन्होंने एक हाइब्रिड सेल (Hybrid Cell) का निर्माण किया ।

अब इस हाइब्रिड सेल (Hybrid Cell) में दोनों लक्षण (Character) देखे जा सकते हैं । Ab उत्पादन क्षमता (Production Power) तथा त्वरित विभाजन की क्षमता दोनों ही B-Cells को अब Immortalised Cells कहते हैं ।

इस हाइब्रिड सेल (Hybrid Cell) के निर्माण (Formation) के पश्चात् PEG मिडिया (Media) से हाइब्रिड सेल (Hybrid Cell) को मीडिया (Media) से पृथक (Isolate) करने के लिए आवश्यक हो गया ।

इस मीडिया (Media) में तीन प्रकार के सेल (Cells) पाए गए:

(1) प्लाज्मा सेल (Plasma Cell),

(2) माएलोमा सेल (Myoloma Cell),

(3) हाइब्रिडोमा सेल (Hybridoma Cell) ।

सिलेक्शन प्रोसीजर (Selection Procedure) के लिए एक विशेष प्रकार का (Special Type) का मीडिया (Media) का उपयोग किया गया । और इस मीडिया (Media) को हाट सिलेक्शन (Hat Selection) कहा गया ।

हैट हाइपीजैनफिन अमीनो टेरिन थाइमीडिन (Hat Hypoxan Phin Aminoptrin Thymedine):

यह मीडिया (Media) केवल हाइब्रिड कोशिका (Hybrid Cell) की ही वृद्धि करता है । हैट (HAT) मीडिया (Media) एक सिलेक्टिव (Selective) प्रकार का मीडिया (Media) होता है, जो हाइब्रिड सेल (Hybrid Cell) के लिए उपयोग किया जाता है ।

प्यूरिन्स (Purines) तथा पिरमिडीन (Pyrimidines) का सेल्युलर बायो प्यूरिन्स (Purines) तथा पिरिमिडीन (Pyrimidines) का सेल्युलर बायो सिन्थीसिस (Cellular Biosynthesis) रोक देता है । परंतु नारमल सेल (Normal Cell) फिर भी मल्टी प्लाए (Multiply) कर सकते हैं ।

अगर माध्यम (Medium) में हाइपोजैन्थिन (Hypoxanthin) और थाइमिडीन (Thymidine) उपस्थित हो, तो इस मार्ग (Pathway) को सेलवेज (Salvage) या बाइपास पाथवे (By Pass Pathway) कहते हैं । हाइपोजैन्थिन (Hypoxanthene) को ग्वानिन (Guanine) में बदला जा सकता है ।

हाइपोजैन्थिन ग्वानिन फास्फो राइबोसेल ट्रांसफर (Hypo Xanthene Guanine Phospho Ribosail Transfer (HGPRT)) एक एन्जाइम (Enzyme) HGPRT की मदद से जबकि थाइमिडीन (Thymidine) को Thymodine Kinase द्वारा फास्फोराइलेजेशन (Phosphorylization) किया जाता है ।

HGPRT और TK Salvage Pathway के एन्जाइम (Enzyme) होते हैं । अत: यह आवश्यक होते हैं । हैट मीडिया (HAT Media) पर ऐसे सेल (Cell) जो HGPRT+ होते हैं और YK+ होते हैं । ये Proliferate कर सकते हैं । जबकि इन इन्जाइम की अगर कमी होती है, तो HGPRT और TKHAT मीडियम (Medium) पर बंट (Divided) नहीं हो सकते ।

HAT मीडियम (Medium) को सिलेक्टिव मीडियम (Selective Medium) के रूप में उपयोग करने के लिए मानव कोशिका (Human Cells) या माउस कोशिका (Mouse Cell) दोनों को ही एन्जाइम्स (Enzymes) का एक Deficient अर्थात केवल एक एन्जाइम (Enzyme) HGPRT और TK बनाया जाता है ।

अगर मानव कोशिका (Human Cell) (HGPRT+) हो TK भी बनाया जाता है । तथा मूषक कोशिका (Mouse Cell) को HGPRT या TK+ बनाया जाता है । उनके फ्यूजन कोशिका (Fusion Cell) TK+ और HGPRT+ दोनों ही धनात्मक (Positive) हैं और केवल वही कोशिका HAT मीडियम (Medium) में वृद्धि दर्शाएगा, जबकि वो दोनों Deficient Cell ऐसा करने में समर्थ नहीं होंगे ।

कुछ वर्षों में मोनोक्लोनल (Monoclonal AB (MoAb)) को कर्मिशीयली (Commercially) भी उत्पादन किया गया, जिसे कोशिका संवर्धन (Cell Culture) में बायोरिएक्टर (Bio Reactor) में किया गया । 1980 के बाद से अब तक कई सारी MoAb को Comercially बनाया जा चुका है । ये यूरोप (Europe) तथा एशिया (Asia) के देशों जिसमें भारत भी शामिल है ।

मोनोक्लोनीय एवं बहुक्लोनीय प्रतिरक्षी (Monoclonal and Polyclonal Antibodies):

साधारणतया (Generally) प्रत्येक प्रतिजन (Antigen) में दो या अधिक भिन्न एपिटोप (Epitope) होते हैं, जो अलग-अलग विशिष्टता वाले SIg अणुओं (Molecules) से क्रिया करते हैं ।

जिससे एक अकेला (Single) प्रतिजन (Antigen) एक से अधिक भिन्न विशिष्टता वाली B-कोशिकाओं (Cells) का विभेदन एवं प्रचुरन प्रेरित (Induced) करेगा, जिससे एक से अधिक भिन्न प्लाज्मा (Plasma) कोशिका (Cells) क्लोन (Clone) उत्पादित (Produced) करेगा ।

जब कोई B-कोशिका प्रतिजन (Antigen) के SIg से आबद्धन के कारण सक्रिय (Active) होती है, तो वह कई बार विभाजन (Division) करती है और विभेदित (Differentiate) होकर प्लाज्मा कोशिकाओं (Plasma Cells) का एक क्लोन (Clone) बनाती है । एक क्लोन (Clone) की कोशिकाएँ (Cells) एक विशिष्टता के प्रतिरक्षी (Antigen) का उत्पादन करती है ।

लेकिन एक ही प्रतिजन (Antigen) अणु (Molecule) के भिन्न एपिटोपों (Epitopes) से आबद्धन के कारण दो या अधिक भिन्न SIg विशिष्टता वाली B कोशिकाएं (Cells) भिन्न विशिष्टताओं वाले प्रतिरक्षी (Antigen) उत्पादित करने वाली प्लाज्मा (Plasma) कोशिकाओं (Cells) के क्लोन (Clone) उत्पन्न करेगी ।

केवल एक प्रतिजन (Antigen) से प्रतिरक्षीकरण (Immunization) करने के बाद प्राप्त सीरम (Serum) में भी एक से अधिक प्रकार की विशिष्टताओं वाले प्रतिरक्षी (Antibody) अणु (Molecule) होंगे । ये सभी उसी अकेले प्रतिजन (Antigen) के भिन्न एपिटोपों (Epitopes) के लिए विशिष्ट होंगे ।

इस प्रकार की सीरम (Serum) को बहुक्लोनीय प्रतिरक्षी (Polyclonal Antibodies) कहते हैं । इसके विपरीत एक हाइब्रिडोमा क्लोन (Hybridoma Clone) केवल एक विशिष्टता वाले प्रतिरक्षी (Antibodies) उत्पादित करता है ।

अत: उन्हें मोनोक्लोनीय प्रतिरक्षी (Monoclonal Antibodies) कहते हैं । मोनोक्लोनीय प्रतिरक्षियों (Monoclonal Antibodies) का उत्पादन (Production) हाइब्रिडोमा क्लोनो (Hybridoma Clones) के द्वारा किया जाता है ।

इसके लिए हाइब्रिडोमा कोशिकाओं (Hybridoma Cells) को निम्न विधियों से बड़े पैमाने पर कल्चर (Culture) करते हैं:

(1) मूषक पेरीटोनियमी गुहा (Mouse Peritoneal Cavity),

(2) पात्रे कल्चर (Pot Culture),

(3) मूलभूत हाइब्रीडोमा तकनीकी (Basic Hybridoma Technology) ।

(1) मूषक पेरीटोनियमी गुहा (Mouse Peritoneal Cavity):

हाइब्रिडोमा कोशिकाओं (Hybridoma Cells) में उपयुक्त विभेद के मूषक (Mouse) की पेरीटोनियमी गुहा (Peritoneal Cavity) में प्रति रोपित करते हैं ।

बाद में इन मूषकों (Mouse) का जलोदर तरल (Ascitic Fluid) इकट्ठा करके उसमें से मोनो क्लोनीय प्रतिरक्षी (Monoclonal Antibody) का शोधन (Purification) करते हैं ।

इस विधि में पात्रे कल्चर की अपेक्षा (50-100) गुना अधिक प्रतिरक्षी (Antigens) की प्राप्ति होती है, जो निम्न बिन्दु हैं:

1. प्रतिरक्षी (Antigen) अपेक्षाकृत कम शुद्धता वाले होते हैं ।

2. उत्पादन में अधिक श्रम लगता है ।

3. रोग मुक्त तथा विशिष्ट जीन प्रारूप वाले मूषकों (Mouse) का उपयोग अनिवार्य होता है ।

(2) पात्रे कल्चर (Pot Culture):

हाइब्रिडोमा कोशिकाओं का पात्रे कल्चर विलोडित (Stirred) रिऐक्टरों, वायु उत्थाप (Airlift) किण्वत्रों (Fermenters) तथा निश्चलित (Immobilized) कोशिकाओं (Cells) पर आधारित कल्चर पात्रों (Culture Pots) में किया जाता है ।

कुछ कल्चर (Culture) विधियों, जैसे- ऑप्टिसेल (Opticell) आदि से प्रतिदिन 40-50g मोनोक्लोनीय प्रतिरक्षी (Mono Cloneal Antigen) प्राप्त होते हैं । पोष पदार्थ (Nutritive Substance) ऐसा होना चाहिए जो कोशिकाओं (Cells) के प्रचुरन (Proliferation) एवं प्रतिरक्षी (Antibody) उत्पादन (Production) दोनों ही के लिए उपयुक्त हो ।

साधारणतया DMEM, IMDM, F12 एवं RPMI 1640 में से काई पोष पदार्थ अकेले अथवा किसी अन्यों के साथ मिश्रण में उपयोग किया जाता है और इनमें लगभग सदैव ही इंसुलिन (Insulin), ट्रांसफरिन (Transferine), इथेनोलामीन (Ethanolamine) तथा सीरम (Serum) भी मिलाते हैं । कई हाइब्रिडोमाओं (Hybridoma) के लिए अतिरिक्त हार्मोनो (Hormones) एवं वृद्धि कारकों (Growth Factors) की आवश्यकता पड़ सकती है ।

(3) मूलभूत हाइब्रिडोमा तकनीक (Basic Hybridoma Technology):

हाइब्रिडोमा (Hybridoma) तकनीक की खोज 1975 में जोर्जेज को हलेट (Georges Kohler) तथा केसल मिलस्टैन (Cesal Milstein) ने की थी इनको नील्स जर्ने (Niels Jerne) के साथ 1984 में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।

दो कोशिकाओं (Cells) के संलग्न से निर्मित कोशिका को हाइब्रिडोमा तकनीक का नाम दिया गया । यह संलग्न (Fusion) प्रतिरक्षी (Anti Body) का निर्माण करने वाली लिम्फोसाइट (Lymphocyte Cells) तथा मायलोमा (Myloma Cells) कोशिका के मध्य किया जाता है ।

इस प्रकार निर्मित कोशिका को संकरित कोशिका (Hybridoma Cell) तथा मायलोमा (Myloma Cells) कोशिका के मध्य किया जाता है । इस प्रकार निर्मित कोशिका को संकरित कोशिका (Hybridoma Cell) कहते हैं ।

इसमें प्रतिरक्षी (Antibody) के उत्पादन (Production) की क्षमता पाई जाती है तथा केन्सर कोशिकाओं (Cancer Cells) के समान इनमें तीव्र विभाजन (Division) की क्षमता भी पाई जाती है ।

इस तकनीक में विभिन्न पद (Step) आते हैं:

(1) चूहे (Rats) की प्लीहा (Spleen) में एक विशिष्ट एन्टीजन (Special Antigen) को लगातार प्रवेश कराकर इसे विशिष्ट (Special) प्रतिरक्षी (Antibody) के उत्पादन हेतु इम्यूनाइज्ड (Immunized) करते हैं । प्लीहा (Spleen) की कोशिकाएँ (Cells) प्रतिरक्षी (Antibody) को पैदा करती है । इन प्रतिरक्षिय कोशिकाओं को प्राप्त कर लिया जाता है ।

(2) एक अन्य चूहे (Rats) या खरहे (Rabbit) में कैन्सर (Cancer) को पैदा करते हैं । इनसे मायलोमा (Myloma) कोशिकाएं (Cells) प्राप्त कर ली ।

(3) दोनों प्राणियों (Animals) से कोशिकाओं को प्राप्त करते हैं तथा प्रतिरक्षी (Antibodies) प्लीहा कोशिकाओं (Spleen Cells) तथा मायलोमा (Myloma Cells) को पृथक-पृथक संवर्धित (Culture) करते हैं । मायलोमा (Myloma) कोशिका में प्रतिरक्षी (Antibodies) का उत्पादन (Production) रूक जाता है ।

तथा यह HGPRT (Negative) होती है । अर्थात इसमें हाइपोजेन्थिन ग्वानीन फास्फोराइबोसाइल ट्रांसफेरज (Hypoxanthine Guanine Phosphoribosyl Transferase (HGPRT)) एन्जाइम (Enzyme) का संश्लेषण (Synthesis) नहीं होता है ।

(4) दोनों कोशिकाओं (Cells) का संलग्न (Fusion) PEG (Polyethylene Glycol) के उपयोग द्वारा प्रेरित (Induced) किया जाता है । इनका संकलन (Fusion) होकर यह संकरित कोशिका (Hybridoma Cell) में परिवर्तित हो जाती है ।

(5) संकरित कोशिका (Hybridoma Cell) को HTA (Hypoxanthine Aminopterin Thymidine) माध्यम (Medium) में संवर्धित (Culture) किया जाता है । इस माध्यम में उपस्थित एमिनोटेरीन (Aminopterin) के द्वारा न्यूक्लिओटाइड (Nucleotide) संश्लेषण पथ (Synthesis Pathway) अवरूद्ध हो जाता है । तथा कोशिका (Cell) एक दूसरे पथ (Pathway) पर निर्भर हो जाती है ।

इस द्वितीय (Second Pathway) हेतु HGPRT एन्जाइम (Enzyme) की आवश्यकता होती है । यह एन्जाइम (Enzyme) मायलोमा कोशिका (Myloma Cells) में अनुपस्थित होते हैं । इस प्रकार B-लिम्फोसाइट (Lymphocyte) तथा HGPRT (-) युक्त मायलोमा (Myloma Cells) कोशिकाएँ यदि संकलित (Fuse) नहीं हो पाती है तो इनकी मृत्यु हो जाती है ।

इस कारण HAT माध्यम (Medium) हाइब्रीडोमा कोशिका (Hybridoma Cells) के चयन में सहायक होता है । क्योंकि B कोशिकाओं से HGPRT जीन (Gene) तथा माइलोमा (Myloma) कोशिकाओं (Cells) से ट्‌यूमर (Tumour) के गुण आ जाते हैं ।

(6) क्लोनिंग (Cloning) तथा हाइब्रीडोमा (Hybridoma) के उत्पादन हेतु वांछित हाइब्रीडोमा (Hybridoma) का चयन किया जाता है ।

(7) मोनो क्लोनल प्रतिरक्षी (Monoclonal Antibodies) के उत्पादन हेतु चयनित हाइब्रीडोमा (Hybridoma) का संवर्धन (Culture) किया जाता है । इन हाइब्रीडोमा (Hybridoma) कोशिकाओं (Cells) के भविष्य में उपयोग हेतु फ्रीजिंग (Freezing) विधि द्वारा परिरक्षित कर लिया जाता है ।

वर्तमान समय में इस तकनीक में अनेक सुधार किए गए हैं । संवर्धन (Culture) हेतु सीरम (Serum) का उपयोग किया जाता है । सीरम (Serum) एक जटिल मिश्रण (Complex Mixture) है, जो एल्बूमिन (Albumin), ट्रांसफेरिन (Transferine), लिपोप्रोटीन (Lipoprotein) तथा विभिन्न हॉर्मोन (Hormone) का मिश्रण (Mixture) होता है ।

इस मिश्रित प्रतिरक्षियों के शुद्धिकरण (Purification) में कठिनाई होती है । लार्ज (Large) स्तर (Scale) पर प्रतिरक्षियों के उत्पादन में यह एक महंगी विधि है । इस कठिनाई से बचने के लिए सीरम (Serum) मुक्त माध्यम का प्रचलन भी बढ़ा है ।

सीरम (Serum) मुक्त माध्यम के उपयोग से निम्न फायदे हैं:

(A) प्रतिरक्षियाँ शुद्ध रूप में निर्मित होती है ।

(B) गुणात्मके नियंत्रण हेतु कम विभिन्नताएँ होती हैं ।

(C) प्राणियों पर निर्भरता कम होती है ।

(D) संक्रामक कारकों का खतरा कम हो जाता है ।

(E) दक्षता की दृष्टि से सर्वाधिक उपयुक्त है ।

मोनोलेयर कल्चर (Monolayer Culture):

यह विधि (Method) संलग्न निर्भर कोशिकाओं (Cells) के लिए अनिवार्य है । इस विधि में उच्च सोपानन (Scalingup) का मुख्य उद्देश्य सवस्ट्रेट (Substrate) की कुल उपलब्ध सतह बढ़ाना होता है ।

इसके लिए निम्न युक्तियाँ विकसित (Develop) की गई हैं:

(1) बोतल (Roux Bottle):

यह बोतल (Bottle) प्रयोग शालाओं में बहुधा उपयोग की जाती है और स्थिर रखी रहती है । इसकी भीतरी सतह का केवल एक भाग (175-200 cm2) ही कोशिका (Cell) संलग्न (Attachment) के लिए उपलब्ध होता है ।

(2) रोलर (Roller) बोतल (Bottle):

यह बोतल (Bottle) रोल (Roll) की जाती है । जिससे इसकी संपूर्ण भीतरी सतह (Inner Surface) संलग्न (Attachment) के लिए उपलब्ध होती है । अत: ये रूक्स बोतल (Roux Bottle) से अधिक उपयोगी होती है ।

इसके रूपांतरणों (Modification) में उपलब्ध सतह और भी अधिक होती है । जैसे- स्पाइरा सेल (Spira Cell), काचनली (Glasstube) एवं विस्तारित सतह रोलर बोतलें ।

(3) बहुट्रे यूनिट (Multitray Unit):

ये एक मानक (Standard) बहुट्रे यूनिट में 10 प्रकोष्ठ (Chamber) एक दूसरे पर समाचित (Stacked) रहते हैं । सभी प्रकोष्ठ (Chamber) एक दूसरे से चैनल (Channel) द्वारा संबंधित होते हैं, जिससे पूरी यूनिट (Unit) के सभी आपरेशन (Operation) का एक साथ किए जाते हैं । इस यूनिट का आयतन 12.5 1 एवं उपलब्ध सतह 600 cm2 होती है । यह Polystyrene की बनी एवं एक बार उपयोग के लिए होती है ।

(4) संश्लिष्ट खोखले रेशे (Synthetic Hollow Fiber):

ये ऐक्रिलिक पालीमर (Acrylic Polymer) के 350 gm व्यास (Radius) के, रेशे (Fibre) एक कार्ट्रिज में भरे होते हैं । पोष पदार्थ को रेशे में से पंप (Pump) करते हैं और कोशिकाएं (Cells) इन रेशों (Fibre) के बाहर रहती है । पोष पदार्थ रेशों की दीवाल से परक्यूज (Perfuse) करता है और कोशिकाओं (Cells) को उपलब्ध होता है ।

यह मुख्य रूप से निलंबन (Suspended) कल्चरों (Cultures) के लिए उपयोग किया जाता है, किन्तु यदि पाली सल्फोन (Polysulphone) रेशों का उपयोग किया जाए तो कोशिका संलग्न (Cell Attachment) भी हो सकता है ।

(5) आप्टीसेल कल्चर युक्ति (Opticell Culture Device):

यह एक बेलनाकार (Cylindrical) सिरेमिक कार्ट्रिज (Ceramic Cartridge) होता है, जिसमें लंबवत 1mm2 के चैनल (Channel) बने होते हैं । इससे उपलब्ध सतह बहुत अधिक (40 cm2 सतह/ml पोष पदार्थ) की होती है ।

इसका उपयोग मोनो क्लोनल (Monoclonal) प्रतिरक्षी (Antibody), वायरस आदि के उत्पादन के लिए होता है । यह निलंबन एवं एकल परत दोनों ही प्रकार के कल्चरों (Cultures) के लिए उपयुक्त होता है ।

(6) प्लास्टिक फिल्म (Plastic Film):

टेफ्लॉन (Taflon) के 5 × 30 cm थैलों में पोषपदार्थ (2-10mm गहरा) भरकर कल्चर पात्र (Culture Pot) के रूप में उपयोग करते हैं । कोशिकाएं थैलों (Cells Bags) की भीतरी सतह से संलग्न होती है । टेफ्लॉन (Taflon) की ट्यूबों (Tubes) को एक रील (Reel) पर लपेट कर पोषपदार्थ को ट्‌यूब में से प्रवाहित करते हैं ।

कोशिकाएं ट्यूब की भीतरी सतह से संलग्न होती है । स्टेरीसेल (Stericell) नामक पात्र इसी युक्ति पर बना है । टेफ्लॉन (Taflon) गैसों के लिए बहुत अधिक पारगम्य (Permeable) होता है ।

(7) हेलीसेल पात्र (Heli-Cell Vessels):

इन पात्रों (Vessels) में बहुत से पाली स्टाइरीन (Poly Stereine) रिबन (Ribbon) (3 mm × 5 -10 mm × 100 µm) कुंडलित (Helical) दशा में रहते हैं । पोष पदार्थ को पात्र (Vessels) में से प्रवाहित करते हैं । यह रिबनों (Ribbons) में चारों ओर घूमता बहता है । कोशिकाएं रिबनों (Ribbons) की सतह से संलग्न होती है ।

उपरोक्त पात्रों (Vessels) में उच्च सोपानन (Scalingup) दो तरह से होता है:

(i) उपलब्ध सतह में वृद्धि करके,

(ii) कई यूनिटों (Units) का उपयोग करके ।

परन्तु कुछ युक्तियों में उच्च सोपानन पात्र (Scaling Vessels) के आयतन (Volume) को बढ़ाकर किया जाता है और इनमें एकल सतह (Monolayer) कल्चर (Culture) मूल रूप से निलंबन कल्चर (Suspension Culture) के समान किए जाते हैं ।

(8) मनका तल रिऐक्टर (Bead Bed Reactor):

इनमें 3-5mm व्यास (Radius) के काँच के मनके (Bead) भरे होते हैं । 3mm के मनकों की अपेक्षा 5mm के मनकों से अधिक कोशिका (Cells) प्राप्ति होती है । मनकों की सतह से कोशिकाएं संलग्न होती है । पोष पदार्थ को नीचे से ऊपर अथवा ऊपर से नीचे की ओर मनकों के कालम में से प्रवाहित करते हैं ।

(9) विषमांगी रिऐक्टर (Heterogeneous Reactor):

इनमें काँच या जंगरोधी इस्पात की वृताकर प्लेटें एक शैफ्ट (Shaft) पर एक दूसरे से 5-7mm दूरी पर लगी होती है । पोष पदार्थ का मिश्रण (Mixing) वायु उत्थान (Air Lift) 44 (Pump) द्वारा या शैफ्ट के घूमने से होता है । लेकिन इस युक्ति में उपलब्ध सतह अपेक्षाकृत काफी कम (1-2 cm2 सतह/ml पोष पदार्थ) होती है ।

(10) सूक्ष्मवाहक (Micro Carrier) पद्धति (Technique):

इस पद्धति में कोशिका संलग्न के लिए 90-300 µm व्यास (Radius) के कणों या सूक्ष्म वाहकों का उपयोग करते हैं । ये सूक्ष्म वाहक डैक्स्ट्रैन (Dextran), पाली एक्रोलेइन (Polyacrolein), काँच (Glass), पाली ऐक्रिलामाइड (Polyacrylamide), सिलिका (Silica) सेल्युलोस (Cellulose), जिलेटिन (Jelatine), कौलेजेन (Collagen) आदि के बने होते हैं ।

सूक्ष्म वाहकों का आपेक्षिक घनत्व (Specific Gravity) 1.02 से 1.05 होता है । लागेरिथ्मीय प्रावस्था (Logarithmic Phase) के 3I कल्चर (Culture) से कोशिकाओं (Cells) को विलग करके उन्हें II नए पोष पदार्थ में संरोपित (Inoculate) करते हैं ।

अब इसमें 2-3g/I की दर से सूक्ष्म वाहक मिलाते हैं और कल्चर (Culture) को 3-8 घंटे तक 15-25 rpm पर विलोडित (Stir) करते हैं । इस दौरान कोशिकाएँ (Cells) सूक्ष्म वाहकों से संलग्न (Attach) हो जाती हैं और बाद में उनके चारों ओर एकल परत बनाती हैं ।

अब धीरे-धीरे कल्चर का आयतन बढ़ा कर 31 कर देते हैं और विलोडन 20-100 rpm पर करते हैं । तथा हर तीसरे दिन पोष पदार्थ बदलते रहते हैं । इस पद्धति (Technique) में एकल परत कल्चर (Monolayer Culture) निलंबन कल्चर (Culture) जैसे हो जाते हैं ।

किन्तु कोशिका वृद्धि स्थिर एकल परत (Monolayer) पद्धतियों की तुलना में कम होती है । कोशिका (Cell) प्राप्ति के लिए विलोडन (Stirring) में कम होती है । कोशिका (Cell) प्राप्ति के लिए विलोडन (Stirring) रोक देते हैं । फिर पोष पदार्थ को निथार कर सूक्ष्म वाहकों को बफर से धो लेते हैं और इन्हें ट्रिप्सिन (Trypsine) से उपचारित करते हैं ।

अब पोष पदार्थ मिलाकर फिर विलोडन करते हैं । जिससे कोशिकाएँ पोष पदार्थ में तैरने लगती हैं । अब विलोडन रोक देते हैं और कोशिकाओं सहित पोष पदार्थ को निथार लेते हैं । अथवा सूक्ष्म वाहकों को ही घोल डालते हैं । जैसे- जिले टिन सूक्ष्म वाहकों को ट्रिप्सिन (Trypsin) उपचार (Treatment) द्वारा डेक्स्ट्रैन सूक्ष्म वाहकों को डेक्स्ट्रैनेस उपचार द्वारा करते हैं ।