सप्तर्षि-मरीचि, अंगिरा, अत्रि, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, वसिष्ठ । Biography of Saptarishi in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. सप्तर्षियों का परिचय ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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महाऋषियों में कुछ ऐसे ऋषि हुए हैं, जो अध्ययन, अध्यापन, यज्ञकर्ता, दीर्घायु, मन्त्रकर्ता, ऐश्वर्यवान, दिव्यदृष्टियुक्त, आयु में वृद्ध, ऐसे सात गुणों से युक्त होते हैं । उन्हें ही सप्तर्षि कहा जाता है । ये अपने संकल्प से उत्पन्न हैं ।

प्रत्येक मनवंतर में भिन्न-भिन्न सप्तर्षि होते हैं । मरीचि, अंगिरा, अत्रि, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, वसिष्ठ-ये सातों महर्षि ब्रह्माजी के द्वारा मन से रचे गये हैं । अत्यन्त तेजस्वी और बुद्धिमान् हैं । प्रजापति होने के कारण इन्हें सपाब्रह्मा कहा जाता है ।

2. सप्तर्षियों का परिचय:

इनका परिचय इस प्रकार है:

मरीचि: ये भगवान के अंशावतार माने जाते हैं । इनकी कई पत्नियां हैं, जिसमें प्रधान दक्ष प्रजापति की पुत्री संभूति और धर्म नामक ब्राह्मण कन्या है । इनकी सन्तति का विस्तार व्यापक है । महर्षि कश्यप इन्हीं के पुत्र हैं । ब्रह्माजी ने सबसे पहले ब्रह्मपुराण इन्हीं को दिया । ये सदा सर्वदा सृष्टि की उत्पत्ति और पालन कार्य में लगे रहते हैं । सभी पुराणों, वेदों तथा महाभारत में इनका प्रसंग वर्णित है ।

अंगिरा: ये बड़े तेजस्वी महर्षि हैं । इनकी कई पत्नियां हैं । बृहस्पति का जन्म इनकी शुभा नामक पत्नी से हुआ ।

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अत्रि: ये दक्षिण दिशा की ओर रहते हैं । अनुसूया इन्हीं की धर्मपत्नी है । भगवान श्रीरामचन्द्रजी ने इन्हीं का वनवास के समय उद्धार किया था । अनुसूयाजी ने सीताजी को भांति-भांति के गहने, कपड़े प्रदान कर सती धर्म का महान् उपदेश दिया था । जब अत्रिजी को ब्रह्माजी ने प्रजा विस्तार के लिए आज्ञा दी, तब वे अपनी पत्नी अनुसूया सहित ऋक्ष नामक पर्वत पर जाकर तप करने लगे ।

इनके घोर तप से इन्हें भगवान का प्रत्यक्ष दर्शन प्राप्त हुआ । इनके मस्तक की योगाग्नि से तीन लोक जलने लगे । इस पर ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने प्रकट होकर इन्हें वर मांगने को कहा । तब इन्होंने तीनों के समान तेजस्वी पुत्र की कामना की । तीनों के अंश से तीन पुत्र हुए, जिनमें भगवान् विष्णु के अंश से दत्तात्रय, ब्रह्माजी के अंश से चन्द्रमा और शिवजी के अंश से दुर्वासाजी का जन्म हुआ ।

पुलस्त्य: ये बड़े ही धर्मपरायण, तपस्वी थे । योग विद्या के आचार्य थे । जब पराशरजी राक्षसों के विनाश के लिए बड़ा यज्ञ कर रहे थे, तो पराशरजी को इन्होंने यज्ञ रोकने को कहा । यज्ञ रोक दिये जाने पर इन्होंने पराशरजी को समस्त शास्त्रों के ज्ञान का आशीर्वाद दिया ।

इनकी सन्ध्या, प्रतीचि, प्रीति, हविर्भू नामक तीन पत्नियां थीं, जिनसे कई पुत्र हुए । अगरत्य, निदाघ ऋषि इन्हीं के पुत्र हैं । विश्रवा भी इनके पुत्र हैं, जिनसे रावण, कुम्भकर्ण और विभीषण का जन्म हुआ ।

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पुलह: ये ज्ञानी महर्षि हैं । इन्होंने महर्षि सनन्दन से जो ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त किया, उसे ही ऋषि गौतम को सिखाया था । इनकी क्षमा तथा गति नामक पत्नियों से अनेक सन्तानें हुईं ।

क्रतु: ये ज्ञानी महर्षि हैं । इन्होंने क्रिया और सन्नति से विवाह किया था । इनके साठ हजार बालखिल्य ऋषि थे । ये  समस्त ऋषि भगवान सूर्श के रथ के सामने मुंह करके स्तुति करते हुए चलते हैं ।

वसिष्ठ: महर्षि वसिष्ठ एक तपस्वी, तेजस्वी, क्षमाशील ऋषि थे । इनकी पत्नी अरुन्धती बड़ी ही साध्यी और पतिव्रता नारी थी । भगवान् राम के दर्शन और संगति पाने के लिए इन्होंने सूर्यवंशियों की पुरोहिती स्वीकार की । कहा जाता है कि एक बार गुरु वसिष्ठ और विश्वामित्र के बीच तपस्या बड़ी है या सत्संगति, इस बात पर ठन गयी थी ।

वसिष्ठ बोले: ”सत्संगति बड़ी है ।” विश्वामित्र ने कहा: ”तप बड़ा है ।” दोनों पंचायत कराने शेष भगवान के पास पहुंचे । शेष भगवान् पृथ्वी का भार अपने सिर पर उठाये हुए थे । वे बोले: “आप दोनों बारी-बारी मेरे सिर पर रखी हुई पृथ्वी को थोड़ी देर उठाइये ।” सर्वप्रथम तपस्या पर घमण्ड करने वाले ऋषि विश्वामित्र ने अपने दस हजार वर्ष की तपस्या का फल देकर पृथ्वी को सिर पर उठाना चाहा, पर उठा न सके ।

पृथ्वी कांपने लगी थी । अब वसिष्ठजी की बारी थी । उन्होंने अपने आधे क्षण के सत्संग का फल देकर पृथ्वी को सहज ही उठा लिया । इस उदाहरण से विश्वामित्र ने सत्संग को ही बड़ा माना । वसिष्ठजी समस्त प्रकार की सिद्धियों से युक्त गहवासियों के सर्वश्रेष्ठ हैं, अत: इनका नाम वसिष्ठ पड़ा ।

विश्वामित्र ने इनके सौ पुत्रों का संहार कर दिया, तो भी इन्होंने उनके प्रति किसी भी प्रकार का प्रतिशोध भाव नहीं रखा । महादेवजी ने प्रसन्न होकर इन्हें ब्राह्मणों का आधिपत्य प्रदान किया ।

3. उपसंहार:

प्रत्येक मन्वंतर बीत जाने पर सप्तर्षि बदल जाते हैं । मन्वंतर की व्यवरथा धर्म और लोकरक्षण के लिए भिन्न-भिन्न सप्तर्षि होते हैं । इसी प्रकार सभी सप्तर्षि महायोगी, सिद्धपुरुष तेजस्वी तथा ब्रह्मा द्वारा मन से उत्पन्न होते हैं, जिनका महत्त्व आकाश में सप्तर्षि तारों के रूप में भी चिरन्तन है ।

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