देवकीनन्दन खत्री । Biography of Devaki Nandan Khatri in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. जीवन परिचय एवं रचनाकर्म ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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देवकीनन्दन खत्री हिन्दी के पहले उपन्यासकार हैं, जिन्होंने हिन्दी कथा-लेखन को ऐय्यरी और तिलस्मी दुनिया में ले जाने वाले का सूत्रपात किया । वे तिलस्म के कथा-सम्राट हैं । उन्होंने साहित्यिक दृष्टि से तत्कालीन समय में एक क्रान्ति-सी ला दी थी ।

उनके उपन्यासों का उस समय इतना प्रभाव और आकर्षण था कि लोगों ने उनके उपन्यासों को पढ़ने के लिए हिन्दी सीखी । देवकीनन्दनजी के उपन्यासों की घटनाएं एवं कहानियां जीवन में धोखे से बचने के लिए सावधानी देती हैं, वहीं राष्ट्रीय जीवन में एक जागति भी पैदा करती हैं ।

2. जीवन परिचय एवं रचनाकर्म:

देवकीनन्दन खत्री का जन्म 18 जून सन् 1861 को  मुजफ्फरपुर में हुआ था । उनके पिता ईश्वरदास अपनी ससुराल मुजफ्फरपुर  में आकर रहने लगे । यहीं पर उन्होंने अपनी बहिन का विवाह टिकारी राज्य में  किया । देवकीनन्दन ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा उर्दू फारसी में प्राप्त की थी । बाद में उन्होंने हिन्दी, संस्कृत व उर्दू का ज्ञान प्राप्त किया ।

व्यापार के सिलसिले में उनका परिचय काशी नरेश ईश्वरीप्रसाद नारायण से हुआ । उनकी कृपा प्राप्त कर वे चकिया और नौगढ़ के जंगलों, खण्डहरों में घूमते रहते थे । उस समय उनके साथी हुआ करते थे-औलिया, तान्त्रिक, फकीर, साधक । हरिद्वार और हिमालय की भी घुमक्कड़ी यात्रा उन्होंने की ।

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अपने छोटे से जीवन में उन्होंने सामंती जीवन की अच्छाइयों और बुराइयों को भोगा भी था । अत: उनके उपन्यास के मुख्य विषय-राजा-रानी, राजकुमार- राजकुमारी, दास-दासी, सैनिक और सामंत थे, जो उनके उपन्यासों के महत्वपूर्ण अंग बने । करोडपति, सामंत, जमींदार स्वप्नलोक में रहा करते थे ।

अत: उन्होंने अपनी तिलस्मी कथाओं में सामंती जीवनशैली और छोटी-छोटी घटनाओं को उभारा है । सामंतों के पास गुप्त धन होता था, वहीं राजकुमार- राजकुमारियों का आपसी प्रेम पनपता रहता था, जिसमें मदद देते थे दास- दासियां । ज्योतिष और तान्त्रिकों की सहायता से तिलस्म रचते और तिलस्म खोलते ।

उनके उपन्यासों की तिलस्मी नारियां घोड़े पर चढ़ती, वीरता से लड़ती और राजनैतिक कौशल दिखातीं । खत्रीजी ने उन्हें कोमलता की परिधि से बाहर निकालकर एक नया रूप प्रदान किया था । उन स्त्रियों में नैतिकता है । यदि वह खलनायिका है, तो उनमें अनैतिकता देखने को मिलती है ।

तिलस्मों का कार्य कभी सुरंगों में घटता है, तो कहीं पर विभिन्न रूप बदलने के साथ गायब और हाजिर हो जाता है । उनके प्रसिद्ध तिलस्मी उपन्यास ”चन्द्रकान्ता” मै तीन स्त्रियां हैं: चन्द्रकान्ता, चपला और       चंचला । तीनों होशियार, खूबसूरत और चतुर हैं । शस्त्र विद्या, ऐय्यरी के फन, आतिशबाजी के फन में माहिर हैं । चन्द्रकान्ता मूलत: एक प्रेम कहानी है ।

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नवगढ़ के राजा सुरेन्द्रसिंह के राजकुमार वीरेन्द्र सिंह और विजयगढ़ के राजा की राजकुमारी चन्द्रकान्ता में प्रेम हो गया है । किन्तु, विजयगढ के दीवान का लड़का क्रूरसिंह भी चन्द्रकान्ता को प्राप्त करने की कोशिश क्रूरतापूर्वक करता है । वह अपनी शैतानी कोशिश से दोनों प्रेमियों को मिलने से रोकता है ।

अन्तत: क्रूरसिंह और उसके साथियों का अन्त हो जाता है । इधर चुनार का राजा शिवदत्त भी चन्द्रकान्ता को पाने की कोशिश करता है । इस कोशिश में वह राज्य से हाथ धो बैठता है । राजा सुरेन्द्र सिंह उसे क्षमादान देते हैं । फिर भी वह छल करने से बाज नहीं आता ।

छल और क्षमा के बीच चन्द्रकान्ता का साथ देती है-चपला और चंचला । वीरेन्द्र सिंह के साथ तेजसिंह, देवीसिंह, ब्रदीनाथ, जगन्नाथ और ज्योतिषी हैं । अन्त में वीरेन्द्र सिंह तिलस्म को तोड़कर चन्द्रकान्ता का उद्धार करते हैं । तिलस्म तोड़ने के बाद उन्हें प्रचुर सम्पत्ति मिलती है । इस प्रकार कथा का अन्त सुखमय होता है ।

”चन्द्रकान्ता संतति’ उपन्यास के 24 भागों में कौतूहल, उत्सुकता, रोमांच की प्रधानता है । ”कुसुम कुमारी” में रणवीर सिंह और कुसुम कुमारी के प्रेम का वर्णन है । ”एक कटोरा भर खून” में हरिपुर रियासत के राजा की हत्या करके राष्ट्र नामक कर्मचारी राजा बन बैठता है ।

राष्ट्र राजा करणसिंह के बड़े लड़के की हत्या करवा देता है, किन्तु वह बच जाता है और नाहर सिंह डाकू के नाम से प्रसिद्ध हो जाता है । अन्त में सभी बिछड़े हुए भाई और पिता का मिलने होता है । राठू की आंखें निकाल ली जाती हैं और वह मर जाता है । कथा का अन्त सुखद है ।

खत्रीजी के उपन्यासों की भाषा उर्दू मिश्रित हिन्दी है । भाषा में कहीं-कहीं पर कठिनता का अनुभव होता है । उनकी भाषा सरल है, जिसमें अरबी, फारसी के शब्दों की प्रचुरता है । मुहावरे और कहावतों का प्रयोग उनकी भाषा में हुआ है ।

3. उपसंहार:

नि:सन्देह देवकीनन्दन खत्री ने तिलस्मी और ऐय्यारी उपन्यासों के माध्यम से हिन्दी के पाठकों का ऐसा विशाल वर्ग तैयार किया, जिन्होंने उनके उपन्यासों को पढ़ने के लिए हिन्दी सीखी और उसे बड़ी ईमानदारी से पढ़ा भी ।

खत्रीजी ने सामाजिक और राष्ट्रीय समस्याओं को अपना क्षेत्र बनाकर नयी क्रान्ति की जमीन तैयार की । मनोरंजन के साथ-साथ पराधीन भारत के शासकों के विरुद्ध अप्रत्यक्ष रूप से विद्रोह का वातावरण तैयार किया । प्रारम्भिक हिन्दी गद्या साहित्य में उनके लेखन को हमेशा बाद किया जाता रहेगा ।

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