ग्रेट शो मैन राजकपूर की जीवनी । Biography of Raj Kapoor in Hindi Language!

1. प्ररतावना ।

2. जीवन वृन्त ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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भारतीय हिन्दी फिल्मों का सर्वप्रथम ग्रेट ”शो मैन” कहलाने का अधिकारी यदि किसी को है, तो वह है राजकपूर । भारतीय फिल्मों को एक आकर्षक और रूपहले परदे में कल्पनालोक के सुन्दर संसार के साथ उन्होंने प्रस्तुत किया ।

पहले फिल्में अधिकतर धार्मिक, ऐतिहासिक विषय-वस्तुओं पर आधारित होती थीं, किन्तु राजकपूर ने फिल्मों को सामाजिक यथार्थवाद का सजीव रूप भी प्रदान किया । गीत-संगीत दृश्य-योजना से लेकर उनका फिल्म-लोक सन्देश के साथ-साथ मनोरंजन के रूपहले संसार तक ले जाने में सफल होता था ।

2. जीवन वृत्त:

राज रणवीर कपूर का जन्म 14 दिसम्बर, 1924 को हुआ था । उनके पिता पृथ्वीराज कपूर रंगमंच तथा फिल्म के मजे हुए कलाकार थे । पृथ्वीराज कपूर को रंगमंच और फिल्मों में काम करते देख राजकपूर की ललक फिल्मों में काम करने की इतनी थी कि वे पढ़ाई छोड़ पिता से इसी में मन लगाने की जिद करने लगे ।

बहुतेरा समझाने पर जब वे नहीं माने, तो पृथ्वीराज कपूर ने उन्हें फिल्मों में स्पॉट बॉय के रूप में काम करने को कहा, ताकि बड़े घर का यह सम्पन्न बेटा दूसरों के चाय, नाश्ते के जूठे बर्तन उठाने से लेकर कैमरे तथा सामानों को उठा-उठाकर इतना अपमानित हो कि फिल्मों के बारे में सोचना ही छोड़ दे । राजकपूर ने यह सब बडी ईमानदारी से किया ।

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उन्हें पहली बार अभिनेता के रूप में काम मिला-इंकलाब फिल्म में नायक के रूप में । उन्हें सन् 1947 में फिल्म नीलकमल गिली, जिसके लेखक निर्देशक थे-केदार शर्मा । उनका विवाह कृष्णा देवी के साथ हुआ । अपनी पसन्दीदा कृष्णा से विवाह की खातिर उन्हें बहुत पापड़ बेलने पड़े, क्योंकि उस समय फिल्म से जुड़े लोगों को कोई लड़की देना नहीं चाहता था । कृष्णा से उन्हें तीन पुत्र और एक पुत्री हुई ।

राजकपूर ने आर॰के॰ बैनर नामक कम्पनी का निर्माण किया, जिसके बैनर तले उन्होंने आग, अंदाज, बरसात, आह, बूट पॉलिश, चोरी-चोरी, जागते रहो, जिस देश में गंगा बहती है, छलिया, श्री 420, संगम, बॉबी, सत्यम शिवम सुन्दरम, राम तेरी गंगा मैली, मेरा नाम जोकर, प्रेमरोग तथा आवारा जैसी फिल्मों का निर्माण किया । उनकी फिल्मों की विशेषता उसका गीत-संगीत का प्रबल पक्ष तथा सशक्त पटकथा का होना था ।

गीतकार शैलेन्द्र, गायक पुकेश तथा संगीतकारों की जोड़ी ने तो उनकी फिल्मों में जान फूंक दी । उनकी फइ लेगों की विषयवस्तु अछूतोद्धार, डाकुओं के आत्मसमर्पण, विधवा विवाह तथा प्रेम व सौन्दर्य के लौकिक पक्ष पर आधारित थी ।

उन्होंने पहली बार अपनी फिल्मों की नायिकाओं को झरने के नीचे नहाते दिखाकर सौन्दर्य का नया रूप दिखाया । स्वप्न दृश्यांकन बहुत उच्च स्तर का होता था । उनकी फिल्मों की प्रमुख नायिकाओं में नरगिस, वैजयन्तीमाला, पद्‌मिनी से लेकर हेमामालिनी तक रहीं ।

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वे 14 फिल्मों में एक दशक से भी अधिक नरगिस के साथ नजर आये । 1971 में बनी ‘मेरा नाम जोकर’ उनकी स्वप्नदृष्टा फिल्म थी, जिसमें उन्होंने विदेशी कलाकारों को भी स्थान दिया था । दुर्भाग्यवश यह फिल्म असफल रही, जिससे वे भीतर तक टूट गये थे । राजकपूर की आहारा, श्री 420 जैसी फिल्मो को रूस में बेहद सम्मान मिला ।

चार्ली चैपलिन सेम्पू वे विशेष प्रभावित थे । सन् 1988 में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया । उस समय वे भारत-पाकिस्तान के कलाकारों को लेकर बनायी जाने वाली फिल्म ‘हिना’ के निर्माण में व्यस्त थे । 1987 में उन्हें फिल्म क्षेत्र में दिये गये अपने विशिष्ट योगदान के लिए ‘दादा साहेब फाल्के पुस्कार’ प्रदान किया गया ।

3. उपसंहार:

राजकपूर ने भारतीय फिल्म जगत को रूमानी सपनों का संसार दिया । भारतीय सिनेमा जगत् को नया स्वरूप देने वाले अभिनेता, निर्देशक को भारतवर्ष हमेशा याद रखेगा ।

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