आचार्य चतुरसेन शास्त्री । Biography of Acharya Chatursen Shastri in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. जीवन परिचय एवं उपलब्धियां ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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हिन्दी के ऐतिहासिक, सामाजिक और राजनैतिक उपन्यासकारों में आचार्य चतुरसेन शास्त्री का सर्वश्रेष्ठ स्थान है । आचार्य चतुरसेन शास्त्री ने अपनी औपन्यासिक कला के माध्यम से उपन्यास के क्षेत्र में नये युग की शुरुआत की ।

उनके उपन्यास अपने कथ्य, विषयवस्तु और शिल्प की दृष्टि से उत्कृष्ट कहे जा सकते हैं । संस्कृतनिष्ठ तथा आलंकारिक भाषा-शैली में उनके उपन्यास कालक्रम तथा उद्देश्य की दृष्टि से विशिष्ट कहे जा सकते    हैं ।

2. जन्म परिचय एवं उपलब्धियां:

आचार्य चतुरसेन का जन्म 26 अगस्त 1891  ई॰ को उत्तरप्रदेश के सिकन्दराबाद में एक छोटे से गांव-चांदौख में हुआ था । उनके पिता का नाम केवलराम ठाकुर तथा माता का नाम नन्हीं देवी था । अनपढ़ माता तथा अल्पशिक्षित पिता की सन्तान चतुरसेन  की प्रतिभा के बारे में ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की थी कि वे बहुमुखी प्रतिभा के साहित्यकार होंगे ।

चतुरसेन बहुत ही भावुक, संवेदनशील और स्वाभिमानी प्रकृति के थे । दीन-दुखियों तथा रोगियों के प्रति उनके मन में असाधारण करुणा भाव था, जिसके कारण वैद्यकीय ज्ञान प्राप्त कर उन्होंने औषधालय भी खोला, जिसके कारण आर्थिक स्थिति इतनी अधिक बिगड़ी कि उन्हें अपनी पत्नी के जेवर तक बेचने पड़े ।

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25 रुपये माहवार की नौकरी के बाद 1971 में डी॰ए॰वी॰ कॉलेज लाहौर में आयुर्वेद  में शिक्षक बन गये । वहां उनकी नहीं बनी । अजमेर आकर उन्होंने अपने श्वसुर का कल्याण औषधालय संभाल लिया, जिसके कारण उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर हो गयी । शास्त्रीजी ने जीवन के संघर्षो के बीच अपनी रचनाधर्मिता जारी रखी ।

सन् 1981 में उन्होंने अपना पहला उपन्यास ”हृदय की परख” रचा । इसके बाद 1921 में सत्याग्रह और असहयोग इस विषय पर गांधीजी पर केन्द्रित आलोचनात्मक पुस्तक लिखी, जो काफी चर्चित रही । साढ़े चार सौ कहानियों के अतिरिक्त उन्होंने बत्तीस उपन्यास तथा अनेक नाटक लिखे ।

साथ ही गद्या, इतिहास, धर्म, राजनीति, समाज, स्वास्थ्य-चिकित्सा आदि विभिन्न विषयों पर उन्होंने लेखन कार्य किया । उनकी प्रकाशित रचनाओं की संख्या 186  है । आचार्य चतुरसेन का कथा-साहित्य हिन्दी के लिए एक गौरव है ।

उनके उपन्यासों में ”वैशाली की नगरवधू”, ”सोमनाथ:”, ”वय रक्षाम:”, “सौना और खून”, ”आलमगीर” इत्यादि प्रसिद्ध है । शास्त्रीजी के उपन्यासों में ग्रामीण, नगरीय, राजसी जीवनशैली की झलक देखने को मिलती है । वे पुराण, इतिहास. संस्कृत, मानव साहित्य और स्वास्थ्य विषयक साहित्य पर बड़ी गंभीरता और ईमानदारी से लिखते रहे ।

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आरोग्य शास्त्र, स्त्रियों की चिकित्सा, आहार और जीवन, मातृकला तथा अविवाहित युवक-युवतियों के लिए भी उन्होंने उपयोगी पुस्तकें लिखी । चतुरसेनजी ने ”यादों की परछाई” अपनी आत्मकथा में ‘राम’ को ईश्वर रूप में न बताकर मानव रूप में बताया । समाज और मनुष्य के कल्याणार्थ लिखा गया उनका साहित्य सभी के लिए उपयोगी रहा है ।

3. उपसंहार:

आचार्य चतुरसेन शास्त्री का लेखन समाज तथा समस्त मानव जाति के लिए उपयोगी रहा है । उनके उपन्यासों से उनके गम्भीर ज्ञान का पता चलता है । पौराणिक उपन्यासों को ऐतिहासिक रंग देकर मानव-

जीवन से जोड़ना उनकी अपनी मौलिक विशेषता रही है । ऐसे महान साहित्यकार, आयुर्वेद के ज्ञाता आचार्य चतुरसेन शास्त्री ने आजीवन साहित्य साधना करते हुए 2 फरवरी, 1960 को अपनी देह त्यागी ।

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