बैंकों के राष्ट्रीयकरण पर निबंध | Essay on Nationalization of Banks in Hindi!

19 जुलाई, 1969 को प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी ने इन 14 बैंकों के राष्ट्रीयकरण की घोषणा की:

(1) सेन्ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया,

(2) बैंक ऑफ इण्डिया,

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(3) पंजाब नेशनल बैंक,

(4) बैंक ऑफ बड़ौदा,

(5) यूनाइटेड कामर्शियल बैंक,

(6) केनरा बैंक,

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(7) यूनाइटेड बैंक ऑफ इण्डिया,

(8) देना बैंक,

(9) यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया,

(10) इलाहाबाद बैंक,

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(11) सिन्डीकेट बैंक,

(12) इण्डियन ओवरसीज बैंक,

(13) इन्डियन बैंक तथा

(14) बैंक ऑफ महाराष्ट्र ।

19 जुलाई, 1969 को एक अध्यादेश के अन्तर्गत 50 करोड़ रु. से अधिक जमा राशि वाले 14 बैंकों का स्वामित्व सरकार ने अपने अधिकार में ले लिया । परन्तु बैंकों को राष्ट्रीयकरण के सम्बन्ध में सुप्रीम कोर्ट में एक रिट प्रस्तुत की गयी । 10 फरवरी, 1970 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में राष्ट्रीयकरण को दोषपूर्ण बताकर अवैध घोषित कर दिया ।

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के परिपेक्ष में 14 फरवरी, 1970 को एक अध्यादेश जारी किया गया तथा 26 फरवरी 1970 को संसद में एक विधेयक प्रस्तुत कर उसे पारित कर दिया । 31 मार्च, 1970 को इस कानून पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हो गये । राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने के बाद बैंकों के राष्ट्रीयकरण ने वैध कानून का रूप ले लिया ।

राष्ट्रीयकृत 14 बैंकों की चुकता पूँजी 28.5 करोड़ रुपया थी तथा बैंकों के अपने कोष 66 करोड़ रु. के थे । ये बैंक 6.64 करोड़ रुपया शुद्ध लाभ अर्जित करते थे ।

सरकार के अधिकार में इस समय निम्नानुसार बैंक हैं- 14 राष्ट्रीयकृत बैंक, 1 स्टेट बैंक, तथा 6 स्टेट बैंक के सहायक बैंक । स्मरण रहे, सभी भारतीय बैंक तथा विदेशी बैंकों का राष्ट्रीयकरण नहीं हुआ है । केवल 14 अनुसूचित वाणिज्य बैंकों का ही राष्ट्रीयकरण हुआ है ।

इन्दिरा गाँधी के शब्दों में बैंकों का राष्ट्रीयकरण- ”बैंकों के राष्ट्रीयकरण के द्वारा हम अपने उद्देश्यों की पूर्ति अब तेजी से कर सकेंगे और बैंकिंग विकास की त्रुटियों को दूर किया जा सकेगा । बैंक साख का उचित उपयोग सम्भव हो सकेगा । कृषि, लघु उद्योग तथा निर्यात व्यापार के लिये पर्याप्त साख की व्यवस्था की जा सकेगी ।

बैंकों पर कुछ लोगों का नियन्त्रण समाप्त सके प्रबन्ध व्यवस्था में व्यवसायिक कुशलता लायी जा सकेगी । उद्योग के क्षेत्र में आने वाले नये साहसियों को प्रोत्साहन मिलेगा । बैंक के कर्मचारियों के लिये प्रशिक्षण की व्यवस्था की जा सकेगी । इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिये सामाजिक नियन्त्रण की नीति अपर्याप्त थी अतः बैंकों का राष्ट्रीयकरण इन उद्देश्यों के लिये अनिवार्य था ।

बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पक्ष में तर्क (Arguments in Favour of Bank Nationalization):

राष्ट्रीयकरण के पक्ष में निम्न तर्क प्रस्तुत किये जाते हैं:

(1) समाजवादी उद्देश्यों की पूर्ति के लिये बैंकों पर राष्ट्रीयकरण आवश्यक है ।

(2) केन्द्रीय तथा वाणिज्य बैंकों के बीच एकता के लिये वाणिज्य बैंकों का राष्ट्रीयकरण आवश्यक था ।

(3) बैंक साख का उचित उपयोग सम्भव हो सकेगा तथा कृषि, लघु उद्योग तथा यातायात के क्षेत्र में पर्याप्त साख की व्यवस्था हो सकेगी ।

(4) बैंक के कर्मचारियों के लिए उचित प्रशिक्षण की व्यवस्था हो सकेगी ।

(5) निजी स्वामित्व की अपेक्षा राष्ट्रीयकृत बैंक अधिक कार्यकुशल होते है ।

(6) बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों का संचालन सरकार के हाथ में रहेगा, जिससे बैंकों के फेल होने का भय नहीं रहेगा । जमाकर्ताओं के निक्षेप अब सुरक्षित रहेंगे ।

(7) बैंकों पर सरकारी स्वामित्व होने के कारण ये बैंक देश की आर्थिक नीतियों के अनुसार प्राथमिकता प्राप्त उद्योगों को वित्तीय सहायता दे सकेंगे ।

(8) पंचवर्षीय योजनाओं के सफल संचालन में सरकार को मदद मिलेगी । बैंक के उपलब्ध साधनों का उपयोग विकास कार्य में होगा ।

(9) बैंकों के राष्ट्रीयकरण से बैंक एकाधिकारी प्रवृत्ति से दूर होंगे । उद्योगपतियों का बैंकों पर नियन्त्रण समाप्त हो जायेगा ।

(10) अब बैंक के संचालक अवांछनीय कार्य नहीं कर सकेंगे जैसे सट्टेबाजी में पैसा लगाना, बैंक के धन से मुनाफाखोरी करना चोर बाजारी करना, बैंक ऋण से संग्रहित करना आदि ।

(11) अब बैंकों की शाखाएँ ग्रामीण क्षेत्रों में भी खोली जा सकेगी ।

राष्ट्रीयकरण के पूर्व सम्पूर्ण बैंकिंग व्यवसाय पर 8 बैंकों का नियन्त्रण था । इस प्रकार दो तिहाई बैंकिंग व्यवस्था 8 बैंकों के पास केन्द्रित था । संक्षेप में, बैंकों के राष्ट्रीयकरण का मूल उद्देश्य बैंकों में व्याप्त एकाधिकारी प्रवृत्तियों को समाप्त करना था ।

राष्ट्रीयकरण के विपक्ष में तर्क (Arguments against Bank Nationalization):

बैंकों के राष्ट्रीयकरण का देश में विरोध भी हुआ । आलोचकों का कहना है कि बैंकों का राष्ट्रीयकरण आर्थिक विचारधारा से प्रभावित न होकर राजनैतिक विचारधारा से प्रभावित है । इसका प्रमाण यह है कि अभी-अभी बैंकों पर सामाजिक नियन्त्रण लगा था । इसके परिणाम आने के पूर्व ही बैंकों का राष्ट्रीयकरण एक चौकने वाली घटना है ।

(1) आलोचकों का कहना है कि भारत में अब तक किया गया राष्ट्रीयकरण असफल रहा है । बैंक भी अब राष्ट्रीयकृत व्यवसाय की श्रेणी में आ गये हैं । अन्य उद्योगों तथा व्यवसाय की तरह बैंकों के राष्ट्रीयकरण भी असफल होगा ।

(2) बैंकों के राष्ट्रीयकरण से देश के औद्योगिक तथा व्यापारिक क्षेत्रों को काफी नुकसान होगा ।

(3) बैंकों का राष्ट्रीयकरण कांग्रेस की आपसी फूट का परिणाम है । यह आर्थिक कारणों की अपेक्षा राजनीतिक कारणों से किया गया है ।

(4) राष्ट्रीयकरण के बाद गरीब लोगों को, कृषकों से तथा लघु उद्योगपतियों को इससे विशेष लाभ नहीं होगा । सरकारी कर्मचारी सारी व्यवस्था को खराब करके रख देंगे ।

(5) राष्ट्रीयकृत उद्योगों की प्रबन्ध व्यवस्था कुशल नहीं होगी ।

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