बैंक के प्रकार: बैंकों के प्रकार (कार्यों के साथ) | Bank Types: Types of Banks (With Functions) in Hindi

आधुनिक अर्थव्यवस्था में विभिन्न क्षेत्रों की वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति अलग-अलग बैंकों के द्वार की जाती है । दूसरे शब्दों में, बैंकिंग के क्षेत्र में भी अन्य क्षेत्रों की तरह विशिष्टीकरण अपनाया जाता है । यही कारण है कि कृषि, उद्योग, व्यापार, निर्यात आदि के क्षेत्रों में अलग-अलग प्रकार की बैंकों की स्थापना की गई है ।

वर्तमान समय में विभिन्न प्रकार की बैंकों और उनके द्वारा किए जाने वाले कार्यों का विस्तृत विवरण निम्न प्रकार है:

Type # 1. व्यापारिक बैंक (Commercial Banks):

व्यापारिक बैंकों से अभिप्राय उन बैंकों से है जो एक व्यापारिक संस्थान (Business House) की तरह लाभ के दृष्टिकोण से व्यवसाय करती है । ऑक्सफोर्ड शब्दकोष के अनुसार ”व्यापारिक बैंक वह संस्थान है जो ग्राहक के आदेश पर उसके धन की सुरक्षा करती है ।”

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क्राउथर के शब्दों में – ”व्यापारिक बैंक वह संस्था है जो स्वयं की तथा जनता की साख का व्यापार करती है ।” संक्षेप में यह कहा जा सकता है, जिस प्रकार उत्पादक कच्चा माल खरीद कर उसे निर्मित माल के रूप में बाजार में बेचकर लाभ कमाते हैं, उसी प्रकार व्यापारिक बैंक भी जनता से जमाए स्वीकार करते है और साख का निर्माण कर उसे जनता को बेचकर लाभ कमाते हैं । यहाँ यह उल्लेखनीय है कि विभिन्न प्रकार के जितने भी बैंक वर्तमान में कार्यरत हैं उसमें से व्यापारिक बैंक सबसे प्राचीन है ।

व्यापारिक बैंक का संगठन (Organization of Banks):

संगठन की दृष्टि से व्यापारिक बैंक, में दो भागों में विभाजित किया जाता है:

(a) इकाई बैंकिंग तथा

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(b) शाखा बैंकिंग ।

(a) इकाई बैंकिंग (Unit Banking):

यह प्रणाली सरल व आदर्शपूर्ण है । इकाई बैंकिंग प्रणाली में एक बैंक का एक ही कार्यालय होता है तथा कुछ विशेष परिस्थितियों को छोड़कर अन्य स्थानों पर इस बैंक की शाखाएँ नहीं होती हैं । यह प्रणाली अमेरिका में अधिक लोकप्रिय है ।

(b) शाखा बैंकिंग (Branch Banking):

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शाखा बैंकिंग वह प्रणाली होती है । जिसमें एक बैंक की अनेक शाखा होती हैं जो सम्पूर्ण देश में फैली होती हैं । यह प्रणाली भारत, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा आदि देशों में प्रचलित है ।

व्यापारिक बैंकों के कार्य:

संक्षेप में व्यापारिक बैंक मुख्यतः निम्नलिखित कार्य करते हैं:

(1) निक्षेप स्वीकार करना (To Accept Deposits):

ये बैंक ग्राहकों के निक्षेप (जमा) स्वीकार करते हैं । इन निक्षेपों की जमाराशियों को ग्राहकों को चुकाने का उत्तरदायित्व भी इसी पर होता है ।

व्यापारिक बैंक:

(i) चालू खाता,

(ii) स्थायी जमा खाता,

(iii) बचत खाता,

(iv) ग्रह बचत खाता तथा

(v) अनिश्चितकालीन खाता आदि खोलकर उनमें ग्राहकों की रकम जमा करती है ।

(2) ऋण एवं अग्रिम प्रदान करना (To Provide Loans and Advances):

व्यापारिक बैंक ग्राहकों को:

(i) साधारण और अग्रिम ऋण,

(ii) अधिविकर्ष एवं

(iii) नकद साख,

(iv) विदेशी विपत्रों को भुनाकर ऋण प्रदान करता है ।

(3) अभिकर्ता (Agent) संबंधी कार्य:

व्यापारिक बैंक अभिकर्ता के रूप में धन का हस्तांतरण, ग्राहकों की ओर से भुगतान एवं उनके धन का संग्रह आदि का कार्य करता है ।

(4) अन्य कार्य (Other Function):

व्यापारिक बैंक उक्त कार्यों के साथ विदेशी विनिमय का क्रय-विक्रय सरकार के बैंकिंग संबंधी कार्य, प्रशिक्षण, साख की सुविधा आदि से संबंधित सेवाएं भी प्रदान करता है ।

Type # 2. औद्योगिक बैंक (Industrial Banks):

आधुनिक युग औद्योगीकरण का युग है । वर्तमान में विशिष्टीकरण एवं श्रम-विभाजन के लाभों को प्राप्त कसे के उद्देश्य से बड़े पैमाने के उद्योगों की स्थापना को बहुत अधिक प्रोत्साहन मिल रहा है । बड़े पैमाने के उद्योगों की साख संबंधी मांग की पूर्ति करना व्यापारिक बैंक एवं अन्य बैंकों के लिए सम्भव नहीं है ।

इसलिए उद्योगों को भारी मात्रा में दीर्घकालीन साख उपलब्ध कराने के उद्देश्य से औद्योगिक बैंकों की स्थापना की गई है । औद्योगिक बैंक दीर्घकालीन साख देने के अतिरिक्त बडी औद्योगिक इकाईयों के ऋण पत्रों, बाण्ड्स एवं अंशों को बिकवाने में भी सहायता प्रदान करते हैं । ये बैंक उद्योगों के अंशों का अभिगोपन भी करते हैं ।

औद्योगिक बैंकों के कार्य:

औद्योगिक बैंक के प्रमुख कार्य निम्न प्रकार हैं:

(1) दीर्घकालीन जमाएँ स्वीकार करना (To Accept Long-Term Deposits):

चूँकि ये बैंक अपने ग्राहकों को दीर्घकालीन ऋण प्रदान करते हैं । इसलिए ये जनता से भी दीर्घकालीन जमाएं स्वीकार करते हैं । अल्पकालीन जमा स्वीकार करने पर ये बैंक उद्योगों की वित्तीय मांग की पूर्ति करने में असमर्थ रहते हैं । अतः ये बैंक दीर्घकालीन जमाएँ ही स्वीकार करती हैं ।

(2) दीर्घकालीन साख की पूर्ति (To Provide Long-Term Credit):

सामान्यतः बडे पैमाने के उद्योगों की गर्भावधि लंबी होती है । अतः वे दीर्घकालीन की मांग करते है, अर्थात् एक उद्योग 3 से 10 वर्ष के बाद लाभ प्राप्त करना प्रारम्भ करता है । ऐसी दशा में केवल औद्योगिक बैंक ही ऐसी संस्था है जो उन्हें दीर्घकालीन ऋण प्रदान करती है ।

उद्योगों को दीर्घकालीन साख की आवश्यकता अनेक कारणों से होती है, जैसे- भूमि क्रय करने, कारखाने की इमारत बनवाने, भारी मशीनें खरीदने आदि ।

(3) औद्योगिक प्रबन्ध में भागीदारी (Participation in Industrial Management):

पश्चिम जर्मनी के औद्योगिक बैंक ऋण लेने वाली कम्पनी के प्रबन्ध में भाग लेते हैं और कम्पनी पर नियंत्रण रखने के लिए अपने प्रतिनिधियों को इन कम्पनी की प्रबन्ध समितियों में रखते हैं । भारत में भी यह नीति अपनाई जाती है ।

(4) निर्यात के लिए सहायता (Helpful in Exports):

औद्योगिक बैंक निर्यात के लिए सहायता देते हैं ।

इसमें:

(i) वे निर्यात के लिए प्रत्यक्ष ऋण देते हैं ।

(ii) निर्यात साख के लिए पुनर्वित प्रदान करते हैं ।

(iii) सरकार के अनुमोदन पर विदेशी मुद्रा में भी ऋण देते हैं ।

(iv) निर्यात पर गारण्टी प्रदान करते हैं ।

(5) अन्य (Others):

उक्त कार्यों के अतिरिक्त ये बैंक अन्य अनेक कार्य करते हैं, जैसे- कम्पनियों के अंशपत्रों का विज्ञापन करना, उन्हें बेचना एवं उनका अभिगोपन करना । इसके अतिरिक्त अपने विनियोक्ता ग्राहकों को विभिन्न कंपनियों में विनियोग करने या ना करने की सलाह भी देते हैं ।

Type # 3. कृषि बैंक (Agriculture Banks):

कृषि की प्रकृति, उद्योग, व्यापार एवं वाणिज्य की प्रकृति से भिन्न होती है । इसीलिए कृषि के लिये जिस साख की आवश्यकता होती है उसकी प्रकृति उद्योगों की साख से भिन्न होती है । यही कारण है कि कृषि साख के लिए एक भिन्न प्रकार के बैंकों की आवश्यकता होती है ।

कृषि को दो प्रकार के ऋणों की आवश्यकता होती है:

(i) अल्पकालीन ऋण:

यह ऋण कृषक बीज, खाद, सिंचाई, गुड़ाई, हल आदि क्रय करने के लिए लेता है । इस प्रकार के ऋणों की पूर्ति कृषि सहकारी समितियों एवं बैंकों के द्वारा की जाती है ।

(ii) दीर्घकालीन ऋण:

कृषकों को इस प्रकार के ऋण की आवश्यकता पुराने ऋण चुकाने, लघु सिंचाई, भू-संरक्षण, बंजर भूमि को तोड़कर कृषि योग्य बनाने, भूमि क्रय करने भूमि में स्थायी सुधार करने, भारी मशीनें खरीदने आदि के लिए होता है । कृषकों को दीर्घकालीन ऋण भूमि विकास बैंक जैसी संस्थाओं से प्राप्त होते हैं ।

कृषि बैंकों के प्रकार एवं कार्य:

कृषि से सम्बन्धित बैंक के प्रकार एवं उनके कार्य निम्नलिखित हैं:

(i) कृषि सहकारी बैंक (Agricultural Cooperative Banks):

ये बैंक कृषकों को कम ब्याज पर अल्पकालीन आवश्यकता के लिए ऋण देते हैं । कृषि सहकारी बैंक सहकारी साख समिति के नाम से भी जाने जाते हैं ।

इन बैंकों का ढाँचा तीन स्तरों में विभाजित होता है:

(अ) ग्रामीण स्तर पर,

(ब) जिला स्तर पर और,

(स) प्रान्तीय स्तर पर ।

इन बैंकों की पूंजी प्रवेश शुल्कों, अंशों की बिक्री, जनता एवं सदस्य के द्वार जमा किये गये निक्षेपों, सुरक्षित कोषों, केन्द्रीय एवं राज्य सहकारी बैंकों के लिये गए ऋणों आदि से प्राप्त होती है । ये उत्पादक एवं अनुत्पादक दोनों प्रकार के ऋण देते है ।

(ii) भूमि विकास बैंक (Land Development):

भूमि विकास बैंक का पुराना नाम भूमि बन्धक बैंक था । ये बैंक दीर्घकालीन अर्थात् 5 से 20 वर्षों के लिए भूमि गिरवी रखकर कृषकों को ऋण प्रदान करते है । कहीं-कहीं ये बैंक इसमें भी अधिक अवधि के लिए ऋण देते हैं । इन ऋणों का भुगतान प्रायः आसान किश्तों पर किया जाता है जो एक निश्चित समय के बाद प्रारम्भ होता है ।

Type # 4. विदेशी विनिमय बैंक (Foreign Exchange Banks):

विदेशी विनिमय बैंक केवल विदेशी व्यापार के लिए वित्त प्रबन्ध करते हैं । यह सर्वविदित है कि प्रत्येक देश अपने माल की कीमत अपनी ही मुद्रा में लेना चाहता है । इस कारण एक देश की मुद्रा को दूसरे देश की मुद्रा में परिवर्तित करने की समस्या उत्पन्न होती है ।

इसी समस्या को हल करने के लिए विदेशी विनिमय बैंकों की स्थापना की जाती है । ये बैंक अपने पास विभिन्न देशों की मुद्राएँ रखते हैं और इन्हीं मुद्राओं में लेन-देन करते हैं । ये बैंक विदेशों में अपनी शाखाएँ खोलते हैं ।

विदेशी विनिमय बैंकों के कार्य:

इन बैंकों के कार्य निम्नलिखित हैं:

(a) विनिमय बिलों का क्रय-विक्रय (Sale and Purchase of Exchange Bills):

ये बैंक विदेशी विनिमय बिलों का क्रय-विक्रय करके अन्तर्राष्ट्रीय भुगतानों का निपटाय करते हैं । इस बैंक की कार्य विधि इस प्रकार होती है- जब किसी एक देश की विनिमय बैंक की एक शाखा विनिमय बिल खरीदती है और उस विनिमय बिल की कीमत उस देश की मुद्रा में चुकाती है तब वह शाखा उस बिल के विदेश में स्थित अपनी शाखा को भेजती है और वह शाखा उस बैंक से जिसके नाम विनिमय बिल रखा गया है, धन वसूल कर लेती है । इस कार्यविधि में विभिन्न देशों में मुद्रा का स्थानान्तरण नहीं होता तथा मुद्रा के बिना सुगमतापूर्वक अंतर्राष्ट्रीय भुगतान हो जाते हैं ।

(b) विदेशी ऋणों का भुगतान (Payment of Foreign Debts):

ये बैंक सोना, चांदी एवं प्रतिभूतियों का आयात-निर्यात करके अंतर्राष्ट्रीय ऋणों का भुगतान करने में सहयोग देते हैं ।

(c) विदेशी विनिमय का क्रय-विक्रय करना (Sale and Purchase of Foreign Exchange):

ये बैंक विदेशी विनिमय का क्रय-विक्रय करते हैं । इससे विदेशी विनिमय दरों में होने वाले उच्चावचनों को कम किया जाता है । इस प्रकार ये बैंक व्यापारियों को विनिमय दरों में परिवर्तन के कारण उत्पन्न होने वाली जोखिम से बचाते हैं ।

(d) अन्य (Others):

विदेशी विनिमय बैंक उपर्युक्त कार्यों के अतिरिक्त निम्नलिखित कार्य भी करता है:

(i) निक्षेप स्वीकार करना,

(ii) ऋण प्रदान करना,

(iii) अंतर्राष्ट्रीय ऋणों का भूगतान करना,

(iv) प्रतिभूतियों का आयात-निर्यात करना,

(v) विनिमय दरों में होने वाले परिवर्तन को रोकना,

(vi) अग्रिम विनिमय व्यापार का कार्य करना ।

इन सभी कार्यों में विदेशी विनिमय बैंक व्यापारियों को अनिश्चितता की जोखिम से होने वाली हानियों से बचाते हैं ।

Type # 5. केन्द्रीय बैंक (Central Bank):

आधुनिक बैंकिंग व्यवस्था में केंद्रीय बैंक का महत्वपूर्ण स्थान है । केन्द्रीय बैंक की स्थापना देश की बैंकिंग व्यवस्था में नियंत्रित एवं नियमित कराने, देश में मुद्रा व साख पर अंकुश रखने तथा सरकार की मौद्रिक नीति को सफल बनाने के लिए की गई है । वर्तमान में विश्व के लगभग सभी देशों में केंद्रीय बैंक की स्थापना की जा चुकी है । विभिन्न देशों के केन्द्रीय बैंकों में सैद्धान्तिक समानता है किन्तु व्यावहारिक नीतियों में भिन्नता भी पायी जाती है ।

Type # 6. अंतर्राष्ट्रीय बैंक (International Bank):

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक समस्याओं में हल करने के लिए समय-समय पर अंतर्राष्ट्रीय बैंकों की स्थापना की गई है । प्रारंभ में अंतर्राष्ट्रीय बैंक का प्रमुख कार्य जर्मनी के द्वारा मित्र देशों द्वारा किये गये युद्ध सम्बन्धी खर्चों का निपटारा करना था । द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दो अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की स्थापना की गई । ये हैं- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं अंतर्राष्ट्रीय पुननिर्माण एवं विकास बैंक ।

इन संस्थाओं के प्रमुख कार्य निम्न प्रकार हैं:

(i) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के कार्य (Functions of International Monetary Fund):

(a) यह बैंक सदस्य देशों को अल्पकालीन आर्थिक सहायता प्रदान करता है । यह आर्थिक सहायता मुख्यतः संकट काल में विनिमय दर की कठिनाईयों को हल करने या भुगतान संतुलन के घाटे को पूरा करने के लिए दी जाती है ।

(b) सदस्य देशों को तकनीकी सहायता देता है ।

(c) विदेशी विनिमय सम्बन्धी परामर्श देता है ।

(d) सदस्य देशों के बैंक अधिकारियों को प्रशिक्षण देता है ।

(ii) विश्व बैंक के कार्य (Functions of World Bank):

(a) यह सदस्य देशों के आर्थिक विकास एवं युद्ध में नष्ट होने पर उसके पुनर्निर्माण के लिए ऋण प्रदान करता है ।

(b) यह गारण्टी देकर अन्य राष्ट्रों से सदस्य देशों के ऋण दिलाता है ।

(c) यह तकनीकी सहायता देता है ।

(d) सदस्य देशों के बैंक अधिकारियों को प्रशिक्षण भी देता है ।

(e) अंतर्राष्ट्रीय विवादों को सुलझाने में सहायता प्रदान करता है ।

Type # 7. बचत बैंक (Savings Bank):

कम आय समूह वाले लोगों में बचत प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से बचत बैंक की स्थापना की जाती है । ये बचत बैंक छोटी-छोटी बचतों को जमा के रूप में स्वीकार करते हैं । ये व्यापारिक बैंकों की सहायक बैंक के रूप में कार्य करते है । ये बैंक बचत बढ़ाने के लिये ग्राहकों को अनेक प्रकार की सुविधाएँ प्रदान करते है । पश्चिम देशों में, विशेषकर अमेरिका, इंग्लैण्ड, जर्मनी आदि देशों में इनका प्रचलन बहुत लम्बे समय से है । भारत में डाकघर, बचत बैंक के रूप में कार्य कर रहा है ।

Type # 8. देशी बैंकर्स (Indigenous Bankers):

देशी बैंकर्स विश्व के सभी देशों में पाये जाते हैं । देशी बैंकर्स के अंतर्गत साहूकार, सुनार महाजन आदि को सम्मिलित किया जाता है । भारत जैसे अल्पविकसित देशों में ये 50 से 60 प्रतिशत साख प्रदान करते हैं ।

इनके प्रमुख कार्य हैं:

(i) उत्पादक एवं अनुत्पादक ऋण प्रदान करना,

(ii) भूमि, जमीन, जायदाद आदि गिरवी रखकर ऋण देना । ये बैंकर्स कई बार विश्वास पर बिना जमानत के भी ऋण देते हैं,

(iii) ये हुण्डियों पर ऋण प्रदान करते हैं ।

(iv) नकद धन के अतिरिक्त ये वस्तुओं और सेवाओं के रूप में ऋण देते हैं, किन्तु इन वस्तुओं और सेवाओं की मात्रा मुद्रा से आंक ली जाती है ।

(v) इनका व्यक्तियों से निकटतम सम्पर्क होता है ।

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