Read this article in Hindi to learn about the role of voluntary organizations for women development. 

भारत में स्वैच्छिक कार्य सदैव से ही सांस्कृतिक व सामाजिक परम्परा का एक एकीकृत अंग रहा है । भारत में आजादी मिलने से पहले एवं नियोजन के प्रथम कुछ दशकों में स्वैच्छिक संस्थानों द्वारा अनेक सामाजिक सेवाएं प्रदान की गई थीं ।

परम्परागत रूप में स्वतंत्रता से पहले स्वैच्छिक संस्थानों ने समाज सुधार के क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की वृहद गतिविधियां स्वयं संचालित करती थी । स्वतंत्रता प्राप्ति के परिणामतः सरकारी नीतियों में स्वैच्छिक संगठनों को शक्ति व समर्थन की सहमति प्राप्त हुई ।

स्वैच्छिक संस्थानों ने वर्तमान में भी अपने उद्देश्यों, स्थिति (शहरी/ग्रामीण) तथा साधनों की उपलब्धि के आधार पर अनेक वैकल्पिक भूमिकाओं का चयन किया । राष्ट्रीय विकास में स्वैच्छिक संस्थानों की भूमिका की उनके प्रत्यक्ष व पूर्व हस्तगत अनुभव स्थानीय आवश्यकताओं, समस्याओं तथा बंद पड़े साधनों की वजह से परमावश्यक माना गया ।

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स्वैच्छिक कार्य आंदोलन की वचनबद्धता व उत्साह की वतह से इसे अत्यधिक प्रभावशाली माना गया क्योंकि यह किसी भी प्रकार के स्थायी दफ्तरशाही प्रणाली से बंधित नहीं है तथा जनता के प्रति अधिक जबावदेह है ।

स्वैच्छिक क्षेत्रों में अत्यधिक कार्यात्मक लोचशीलता आंकी गई तथा इनकी गतिविधियां अनुमानित जरूरतों पर आधारित पाई गई । इनमें कार्यक्रम के नियोजन व क्रियान्वयन इत्यादि में पूर्व अनुभवों द्वारा लगातार सीखने की एक प्रक्रिया है ।

स्वैच्छिक संस्थानों को आवश्यक शक्ति प्रदान करने वाला सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि उनका जनता व समुदाय से अधिक घनिष्ठ रूप से जुड़ाव है । उनके द्वारा कई मामला में लोगों की जरूरतों व आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व किया जाता है ।

स्वैच्छिक संस्थाएं प्रेरणा संबंधी समस्या की पहचान व विश्लेषण संबंधी योजना, निर्माण सेवाएं प्रदान करने की नवागत विधियों तथा समुदाय का उनकी भावनाओं पर आधारित समावेश करने से संबंधित क्षेत्रों में सरकारी प्रबंध संस्थानों की तुलना अक्सर अधिक प्रभावशाली ढंग से कार्य कर पाती है ।

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इस तरह के क्षेत्रों में कई सबक सीखने को मिलते हैं, जैसे- तकनीक को रहस्यमुक्त करना, अनुभव के पक्ष में औपचारिक शैक्षिक योग्यता पर कम बल देना, लोगों के साथ कार्य करने की योग्यता व अभिरूचि, कष्टसाध्य दफ्तरशाही के बगैर गतिविधियों को विस्तृत करना तथा समुदाय व गैर संस्थागत उपागमों पर विश्वास आदि ।

स्वैच्छिक क्षेत्रों की अनुपम शक्ति सरकार को बगैर (उसकी अधीनता माने) वशीभूत हुए तथा अपनी पहचान खोए बिना उसे प्रभावित करने की योग्यता तथा मुद्दों व विचारों पर सभा आदि के द्वारा जनता व सरकार दोनों हेतु स्वीकार्य बनाने में ही है ।

स्वैच्छिक क्षेत्र में विकेन्द्रित प्रशासन न केवल प्रभावित आधार को सुविधाएं तथा यंत्र रचना उपलब्ध कराता है । बल्कि कार्यक्रमों में लाभदायकता की भागीदारी भी सुनिश्चित करता है ।

भारत में स्वैच्छिक संस्थाएं तथा ऐतिहासिक प्रक्रिया के परिणाम के रूप में प्रकट हुई हैं । जिसने उन्हें उनकी वर्तमान दशा व देश के विकास में वर्तमान भूमिका तक पहुंचाया है । 1950 में ज्यादातर संगठन या तो राहत कार्य प्रदान करते थे ।

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अथवा विद्यालयों निराश्रितों हेतु गृहों तथा अस्पताली जैसी कल्याणकारी गतिविधियों में संस्थागत रूप से सम्मिलित थे । 1960 में इसमें से कई संगठनों ने यह महसूस किया कि आर्थिक रूप से पिछड़े हुए परिवारों को संस्थागत कल्याण तथा राहत सेवाओं के लाभ उपलब्ध कराने में वे योग्य सिद्ध नहीं होंगी ।

इससे उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि सेवाएं ऐसे लाभ प्रदान करने योग्य होनी चाहिए जा लाभ उत्पादक तथा आय सृजन कार्यक्रमों द्वारा आत्मनिर्भर बनाए । 1970 में अनेक स्वैच्छिक संगठनों ने यह अनुभव करना प्रारम्भ किया कि केवल आर्थिक साधनों से अकेले गरीबी पर विजय नहीं प्राप्त की जा सकती तथा विकास का निर्णायक रास्ता असमान सामाजिक संरचना पर आधारित है ।

शिक्षा के नये प्रकार का प्रयोग पिछड़े वर्गों में उनके अधिकारों व स्थिति के बारे में सजगता जगाने के साज-समान के रूप में किया गया ताकि वे उनके स्वयं के विकास हेतु सक्रिय अभिकर्ता बन सकें तथा परिवर्तन की आवश्यकता को समझ सकें कार्यकर्ताओं के समूह इन्हीं विचारों के घेरे में बनाए गये, परिणामत: स्वैच्छिक क्षेत्र में अस्तित्व में आए ।

महिलाओं के संगठनों को स्वैच्छिक संगठनों द्वारा विकास प्रक्रिया में महिलाओं की हिस्सेदारी सुनिश्चित करने की संगठनात्मक संरचनाओं हेतु जरूरत महसूस करने के रूप में महत्ता प्राप्त हुई । कई प्राचीन स्थापित स्वैच्छिक संस्थाओं ने देश में महिलाओं हेतु कल्याणकारी विकास सेवाओं को व्यवस्थित करने में अपनी भूमिका निभा रही है ।

1. स्वैच्छिक संगठनों की नवीन प्रवृत्तियाँ (New Trends of Voluntary Organizations):

1970 से इसके पश्चात् का समय अनेक नव स्थापित संगठनों तथा कार्यकर्ता समूहों हेतु आपातकाल की स्थिति थी । इन समूहों की गतिविधियों वृहद रूप में महिलाओं पर की जा रही हिंसा, क्रूरता व अत्याचारों, जैसे- दहेज के कारण हत्या, दुर्व्यवहार के पाशविक तरीके व शोषण के विरूद्ध लड़ाई के चारों और केन्द्रित हो गई ।

कई मामलों में विपत्ति काल में महिलाओं ने इस प्रकार के समूहों में जाकर सहायतार्थ स्वयं को पंजीकृत कराया तथा मामलों के आधार पर उन्हें शरण आदि प्रदान की गई । इन कार्यकर्ता समूहों ने उत्पीड़ित शिकार तथा सताई हुई महिलाओं को उन्हें स्वयं की पहचान कराने में सहयोग पहुंचायी की थी एवं इन मुद्दों पर महिलाओं में जागृति, प्रेरणा व नई आशा का संचार किया ।

हाल ही में जिन्होंने महिलाओं की चेतना को संगठित करने में सफलता प्राप्त की है तथा महिलाओं से प्रत्यक्षत: कार्य करने, बाहरी भाग से सामग्री संबंधी दोषों पर कम विश्वास करने तथा आन्तरिक क्षमताओं व आर्थिक सामाजिक सांस्कृतिक और राजनीतिक साधनों को प्राथमिकता दी गई ।

इन समूहों ने राज्य के हस्तक्षेप को भी कम किया है । विशेष तौर पर न्यायिक व चतुर्थ जागीर को महिलाओं के अधिकारों व उनकी स्थितियों को बेहतर बनाने की योजना को लेकर इसी समय उन्होंने महिलाओं को संघर्ष हेतु एकजुट कर लिया है ।

स्वैच्छिक संस्थाओं व कार्यरत समूहों के अलावा भी कई कार्यात्मक समूह हैं, जैसे- महिला मंडल, युवा क्लब, नेहरू क्लब केन्द्र, राष्ट्रीय सेवा योजनाएं, सहकारी संस्थाएं तथा अन्य जनसेवी संस्थाएं जो सफलता की बढ़ती हुई मात्रा के साथ महिलाओं के मुद्दों को प्रभावशाली ढंग से ऊपर उठाया है ।

2. स्वैच्छिक कार्यों पर सरकार की प्रवृत्ति (Government Tendency on Voluntary Works):

योजना आयोग द्वारा भी सामाजिक व आर्थिक विकास प्रक्रिया की तीव्रता में स्वैच्छिक कार्य की भूमिका की पहचाना गया है । विशेषकर छठी व सातवीं पंचवर्षीय योजनाओं में स्वैच्छिक संस्थाओं ने कार्यक्रम में अभिनव योजनाओं की युक्ति तथा परीक्षण कार्यक्रम के क्रियान्वयन में नये मॉडल व अधिगम तथा निश्चित पृष्ठपोषण हेतु एक आधार प्रदान करने में उतनी ही योगदान दिया है जितना कि निर्धनता रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाली महिलाओं की भागीदारी सुरक्षित करने में उन्होंने कई गैर परम्परागत क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा विकसित की है तथा ग्रामीण गरीबों को उनकी पसंद व विकल्प प्रदान करने हेतु सरकारी प्रयत्नों के पूरक के रूप में विस्तृत भूमिका अदा की है ।

उन्होंने ग्रामीण स्तर पर लोगों की आंखों व कानों के रूप में उनकी सेवा की है । अत्यंत साधारण अभिनव लोचशील तथा कम खर्चीले साधन जिन्हें वे अपने सीमित स्रोतों से उपलब्ध करवा सके, उनके माध्यम से उन्होंने प्रयास किया है कि वे अधिक से अधिक समुदाय को कम से कम नियंत्रणों के बावजूद अधिकाधिक लाभ प्रदान कर सकें ।

इस प्रक्रिया का उनके द्वारा सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया गया है कि ग्रामीण तथा स्वदेशी साधनों, ग्रामीण कौशल तथा स्थानीय ज्ञान का एक लागत प्रभावी ढंग से पूर्णतया उपयोग नहीं किया जा रहा है ।

स्वैच्छिक संस्थाओं ने कुछ विस्तृत करने के साथ गरीबों को संगठित करने तथा गुणात्मक सेवाओं की मांग के प्रति चेतना व स्थानीय स्तर के कार्यों के उत्तरदायित्वों में सुधार लाने आदि की भी व्यवस्था की है ।

उन्होंने एक ऐसे आधारभूत कार्यकर्ता की श्रेणी को प्रशिक्षित करने में योगदान दिया है जो पेशे संबंधी स्वेच्छा में विश्वास करते हैं । महिलाओं के विकास में स्वैच्छिक संस्थाओं का बढ़ती हुई भूमिका में सरकार की इच्छा पूर्णरूप से स्पष्ट है ।

महिलाओं को जिन परेशानियों से गुजरना पड़ता है उनका महत्व समझते हुए सरकार ने सही ढंग से यह महूसस किया कि विकास व सेवा प्रावधान की समस्त जिम्मेदारी को नहीं माना जा सकता । अत: महिलाओं के उद्देश्य से चलाये जा रहे अनेक कार्यक्रमों हेतु स्वैच्छिक संस्थाओं की सहायता की आवश्यकता है ।

वर्तमान कार्यक्रमों का अधिक बल केवल उन्हें कल्याणकारी सेवाएं प्रदान करने की तुलना विकास में उनकी उत्पादक भागीदारी तथा महिलाओं की सक्रियता के विकास पर है । स्वैच्छिक क्षेत्र के साथ सरकार की एक अर्थपूर्ण साझेदारी इस प्रकार से विकास में महिलाओं को एकीकृत करने के सरकारी प्रयत्नों में एक महत्वपूर्ण तत्व तथा स्वीकृत लक्ष्य बन गई है ।

3. महिलाएं तथा स्वैच्छिक क्षेत्र (Women and Voluntary Sectors):

स्वैच्छिक संस्थानों द्वारा महिला दशक के दौरान महिला कार्यक्रमों को वेग प्रदान करने तथा उन्हें नई दिशा देने के क्षेत्र में महती भूमिका निभाई है । सरकार द्वारा तैयार की गई कई योजनाओं तथा कार्यक्रमों में विशाल मात्रा में नई विशेषताएं स्वैच्छिक संस्थाओं द्वारा सफलतापूर्वक चलाई जा रही योजनाओं के अनुभवों पर आधारित हैं ।

महिलाओं के विकास में स्वैच्छिक संस्थाओं के समावेश हेतु न्याय संगतता पूर्णतः स्पष्ट है । भारत में महिलाओं को अनेक बंधनों के कारण पीड़ित होना पड़ता है जैसे साक्षरता की निम्न दर, साधनों की उपलब्धि में कमी तथा इस कारण उत्पन्न बाधाएं जो महिलाओं को विभेदित करती है ।

इस तरह की स्थिति में स्वैच्छिक संस्थाओं की भूमिका महिलाओं में उनके अधिकारों व उनकी शक्ति के प्रति जागरूक बनाने, उनमें उचित प्रेरणा व नेतृत्व विकसित करने की है, जिससे वह महसूस कर सके कि उनके अधिकारों में किसी प्रकार की कटौती नहीं की जा सकती ।

महिलाओं के विकास में सहायक वातावरण निर्माण प्रक्रिया महिलाओं के विकास को प्रवृत्त करने की राजनीतिक इच्छा सहित सामाजिक आर्थिक तत्वों की अत्यधिक संख्या पर आधारित है । सातवीं योजना के दीर्घकालीन उद्देश्यों में वर्णित किया गया है कि महिलाओं का सामाजिक व आर्थिक स्थिति को ऊपर उठाना राष्ट्रीय विकास का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है ।

मौलिक रूप से महिलाओं में विश्वास की छाप छोड़ने का तथा विकास हेतु उनकी सक्रियता के बारे में सजगता लाने का सुझाव दिया गया है । इस रूपरेखा के साथ महिलाओं को लाभदायक रोजगार एक प्रभावशाली व्यूह रचना के रूप में उच्चतम प्राथमिकता के तहत है ।

अनेक मंत्रालयों व विभागों में स्वैच्छिक संस्थाओं के समावेश पर विशेष बल देने के साथ महिलाओं के विकास हेतु विभिन्न कार्यक्रम तैयार किये गये हैं । स्वैच्छिक संस्थाओं की भूमिका को, विशेषकर महिलाओं के सैन्य-संगठन में भविष्य की विकास व्यूह रचनाओं हेतु एक निर्णायक तत्व के रूप में देखने को मिलता है ।

स्वैच्छिक संस्थाओं को उच्चतर समावेश का इस प्रकार कुछ सरकारी कार्यक्रमों को क्रियान्वयन में विचार-विमर्श किया गया है जैसे एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम, स्वरोजगार हेतु ग्रामीण युवाओं का प्रशिक्षण, ग्रामीण क्षेत्रों में महिला व बाल, विकास कार्यक्रम, एकीकृत बाल-विकास सेवा योजना तथा प्रौढ़-शिक्षा कार्यक्रम ।

इन योजनाओं में समावेश के अतिरिक्त स्वैच्छिक संस्थाएं न्यूनतम मजदूरी के प्रवर्तन को प्रभावित करने, वनों की सुरक्षा, सामाजिक-वानिकी उपभोक्ता संरक्षण विज्ञान व तकनीकी को विकसित करने, ग्रामीण आवास, वैधानिक शिक्षा इत्यादि में भी अहम् भूमिका निभा रही है । महिलाओं पर नवीन केन्द्रण सहित कुछ कोष स्वैच्छिक संस्थाओं हेतु संबंधित मंत्रालयों विभागों के इन कार्यक्रमों के क्रियान्वयन हेतु होने चाहिए ।

इसके अतिरिक्त केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड, जनकार्य व ग्रामीण तकनीकी को विकसित करने हेतु समिति तथा राष्ट्रीय ग्रामीण विकास कोष आदि में स्वैच्छिक संस्थाओं के साथ सहयोग एवं गतिविधियों को विस्तृत व दृढ़ होना चाहिए । चूंकि स्वैच्छिक संस्थाएं जनकोषों पर आधारित हैं अत: उनका उत्तरदायित्व सुनिश्चित होना चाहिए ।

4. महिला संगठनों में स्वैच्छिक कार्य (Voluntary Work in Women Organizations):

महिलाओं के अधिकारों को तब तक लागू नहीं किया जा सकता जब तक वे स्वयं को संगठित करने योग्य न हो जाए । सामूहिक संगठनों से शक्ति आकर्षित होती है । यह कार्य प्रारम्भ करने, सभा आयोजित करने, मण्डप आदि तैयार करने, दबाव डालने तथा सौदेबाजी हेतु पूर्व शर्त हैं । आधारभूत संगठन कार्य करने के एक संगठनात्मक आधार प्रदान कर विकास कार्यक्रमों में भागीदारी हेतु निर्धन महिलाओं को अधिक विशाल स्तर पर अवसर मुहैया करा सकते हैं ।

संगठित होकर साथ-साथ काम करके अनुभवों व स्रोतों का आपस में बांटकर, दबाव समूहों के निर्माण द्वारा तथा इसी प्रकार के दूसरे कार्य करके महिलाएं अपनी स्थिति में बदलावों के अवसरों हेतु स्वतंत्र अभिगम खोज सकती है ।

एक विशाल मात्रा में महिलाएं असंगठित क्षेत्रों में काफी विकट स्थिति में तथा बिना किसी वैधानिक संरक्षण के कार्यरत हैं तथा जीविका चलाने में संलग्न हैं । असंगठित क्षेत्र में महिलाओं को सामूहिक कार्य के समस्त लाभों की देने से इंकार कर देते हैं ।

फैल हुए नया असंगठित क्षेत्रों के पास न तो कोई राजनीतिक शक्ति होती है और न ही सौदेबाजी की ताकत ही । परिणामतः मजदूरी, कार्य की दशाओं, बीमा, प्रोविडेण्ट फंड, मेटर्निटी अवकाश तथा क्रेंचेस आदि से संबंधित संरक्षित श्रम कानूनों के क्रियान्वयन में बहुत अधिक कठिनाइयां उत्पन्न होती हैं । तथा आर्थिक साधनों के स्रोतों जैसे साख, तकनीकी प्रशिक्षण व विपणन में भी समस्याएं उत्पन्न होनी हैं ।

महिलाओं की आर्थिक सहभागिता तथा आधारभूत स्तर पर उनके संगठनों की जरूरत को निर्णायक मानते हुए ग्रामीण महिलाओं हेतु ग्राम स्तर पर संगठनों के विकास पर कार्य समूह की स्थापना 1977 में कृषि मंत्रालय द्वारा की गई ।

ग्रामीण महिलाओं के संगठन का लक्ष्य विकास की गति में अधिकांश महिलाओं पर फोकस डालने हेतु नया कार्यक्रम तैयार करना एवं उन्हें सामाजिक परिवर्तन के यंत्रों के रूप में कार्य करने योग्य करना था ।

इस समूह ने आधारभूत स्तर पर व्यापार संघों तथा सहकारी संघों के समान महिला संगठनों को स्थापित करने की आवश्यकता को बढ़ावा देने की सिफारिश की । गैर सरकारी निकाय की इस सिफारिश को राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण समर्थन प्राप्त हुआ तथा महिलाओं के स्वैच्छिक संगठनों द्वारा इसका स्वागत किया गया ।

महिलाओं के विकास के उद्देश्यों को नये सिरे से परिभाषित किया गया । स्वैच्छिक तथा सरकारी प्रयत्नों के फोकस को न सिर्फ विकास प्रक्रिया में उन्हें एकीकृत करने वरन् सहभागिता के यथार्थ चित्रण में उनकी आवश्यकताओं को नये सिरे से परिभाषित करने हेतु भी महिलाओं की समस्याओं के विशुद्ध कल्याणकारी उपागम द्वारा विस्तृत किया गया ।

अतएव सरकारी संस्थानों की बढ़ोतरी के योगदान को परम्परागत रूप से जानी जाने वाली सामाजिक कल्याणकारी गतिविधियों की तुलना में नई दिशा मिली है । गैर सरकारी संगठनों, निर्धन महिलाओं के स्पष्टीकरण तथा व्यक्ति व समष्टि स्तर पर योजनाओं में इनके एकीकृत करने व इन्हें मान्यता प्रदान कराने हेतु मंचों के माध्यम से महिलाओं के विकास की समर्थन प्रदान किया गया है ।

असंगठित क्षेत्रों के एकीकरण तथा स्वरोजगार से संबंधित यह मुद्दा जिसमें 60 प्रतिशत से अधिक महिलाएं संलग्न हैं । SEWA जैसे संगठनों की गतिविधियों तथा वृद्धि द्वारा सृजित था । महिला कार्यकर्ताओं ने महिला श्रमिकों की इस श्रेणी के अधिकारों पर ध्यान केन्द्रित किया ।

यहां तक कि आंकड़ों की संग्रहण विधि में अपर्याप्तताओं के कारण गैर श्रमिकों के रूप म वर्गीकृत किया । स्वरोजगार प्राप्त महिलाओं के व्यापार संघों में वृद्धि को सरकारी विभागों, विशेष रूप से कल्याण मंत्रालयों, महिला व बाल मंत्रालय, श्रम ग्रामीण विकास मंत्रालयों से समर्थन व मान्यता मिली है ।

ग्रामीण क्षेत्रों में महिला व बाल विकास का नया कार्यक्रम इसकी सर्वेक्षण पर आधारित कार्यविधि, महिलाओं के समूहों की व्यवसायगत पहचान तथा उनकी प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है । यह कार्यक्रम की वित्तीय सहायता से ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा शुरू की गई है ।

कार्य स्तर पर SEWA की कार्यविधि भी अन्य गैर सरकारी संगठनों की ओर ही मुड़ी हुई है । अनेक अन्य मंचों तथा कार्य समूहों ने भी अकाल राहत गतिविधियों को बढ़ावा दिया है । बलात्कार के खिलाफ मंच, महिलाओं के दमन के विरूद्ध मंच हो गया ।

शोध स्तर पर महिलाओं से संबंधित सही आंकड़ों की कमी तथा उन्हें विकास में एकीकृत करने से संबंधित बाधाओं के प्रति जागरूकता ने महिलाओं के अध्ययनों की प्रगति हेतु मंचों तथा संघों के निर्माण हेतु अनुसंधान संगठनों का नेतृत्व किया ।

पाँचवीं तथा छठी पंचवर्षीय योजनाओं में नीति स्तर, कार्यक्रम स्तर तथा व्यष्टि स्तरों पर सरकारी तथा गैर सरकारी संगठनों के मध्य नियमित अन्तर्सम्बन्ध पर लगातार प्रकाश डाला गया ।

रोजगार समिति द्वारा सिफारिश की गई कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम (NREP) तथा न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम (MUP) की तरह चलाये जा रह कार्यक्रमों को ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धन महिलाओं की विशाल संख्या को रोजगार मुहैया कराने हेतु विकसित किया जा सकता है ।

स्वैच्छिक कार्य ब्यूरो 1982 में केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड (CSWB) द्वारा महिला व बालकों पर अत्याचार तथा दहन हिंसा के रिपोर्ट किए गये मामलों का अनुसंधान करने हेतु की गई जो स्वैच्छिक संगठनों तथा बोर्ड द्वारा सहयोग में एक प्रयोग था ।

ब्यूरो की गतिविधियों का मार्गदर्शन करने हेतु सरकारी तथा स्वैच्छिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों की एक सलाहकार समिति निर्मित की गई । पंडित जवाहरलाल नेहरू के पास भारत के भविष्य का आकार बनाने में महिलाओं की क्षमता व योग्यता को मान्यता देने की अन्तर्दृष्टि थी ।

उन्होंने कहा- ”मुझे पूरा विश्वास है कि हमारी वास्तविक व आधारभूत वृद्धि केवल तभी होता जब महिलाओं को सार्वजनिक जीवन में उनकी भूमिका निभाने का पूर्ण अवसर प्रदान किया जाए । हमारे कानून पुरुष निर्मित हैं, हमारा समाज पुरुष प्रधान है और इसलिए इस मामले में हमारे विचार स्वाभाविक रूप से एक ओर झुके हुए हैं । हम वस्तुनिष्ठ नहीं हो सकते क्योंकि हमने विचारों व कार्यों के निश्चित दायरे में विकास किया है । लेकिन भारत का भविष्य संभवतया अंतिमय: पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं पर ही अधिक निर्भर होगा ।”