सामाजिक परिवर्तन में समाजशास्त्रीयों का कार्य! Read this article in Hindi to learn about the role of socialist in social change.

1. संक्रमण काल:

वर्तमान काल में भारतीय समाज एक संक्रमण काल से गुजर रहा है जिसमें सभी प्रकार के अच्छे बुरे परिवर्तन दिखलाई पड़ रहे है । निहित स्वार्थों को लेकर गुटबाजी का बाजार गर्म है । एक ओर सुधार-सुधार की चिल्लाहट सुनाई पड़ती है तो दूसरी ओर इस शोरगुल का लाभ उठाकर स्वार्थी लोग राजनैतिक सामाजिक, आर्थिक सभी क्षेत्रों में अपना उल्लू सीधा कर रहे है ।

समाज की भावी रूपरेखा के विषय में परस्पर विरोधी विचारधाराओं में संघर्ष हो रहा है कुछ लोग भारत को पश्चिम की एकदम सच्ची प्रतिलिपि बना डालना चाहते हैं तो कुछ लोग वेद ओर उपनिषदों के काल की ओर लौट चलने का शंख फूंक रहे हैं । जागृति अवश्य है, जीवन भी है, परिवर्तन की इच्छा भी कम नहीं, परन्तु कमी मार्ग दर्शन की ।

2. सामाजिक इन्जीनियर:

यह मार्ग दर्शन कौन करेगा ? एक व्यक्ति यदि कोई मकान बनवाता है तो पहले कुशल विशेषज्ञों से उसका नक्शा बनवाता है और उस नक्शे के पास हो जाने के बाद कुशल कारीगरों की देख-रेख में मकान बनाया जाता है ।

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सरकार पुल या बाँध बनवाती है तो उसका कार्य इन्जीनियरों को सौंप देती है पुलिस या न्याय विभाग उसमें कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता क्योंकि आजकल प्रत्येक कार्य का विशेषीकरण हो गया है और इन्जीनियर अपने कार्य का विशेषज्ञ है परन्तु समाज निर्माण अथवा सामाजिक परिवर्तन जैसे गम्भीर प्रसंग पर सभी अपनी मनमानी राय देने और अपनी मनमानी करने लगते हैं ।

किसी सीमा तक यह ठीक भी है क्योंकि समाज के दोषों का पता समाज में रहने वाले समाज के व्यक्तियों को ही चल सकता है परन्तु इसी प्रकार रोग का पता भी रोगी को ही चलता है फिर भी उसको डाक्टर कोई नहीं मानता ।

रोगी स्वयं अपना इलाज नहीं करता वह यह कार्य डाक्टर अथवा शरीर के इन्जीनियर पर सौंप देता है इसी प्रकार समाज के परिवर्तन की दिशा का निर्देशन भी सामाजिक इन्जीनियरों को सौंप देने की आवश्यकता है ये सामाजिक इन्जीनियर कौन हैं ?

ये वे लोग है जो समाज के ढाँचे, उसके स्वरूप, उसकी प्रक्रियाओं तथा उसके परिवर्तनों आदि के नियमों से भली-भाँति परिचित हैं कहना न होगा कि समाजशास्त्री ही समाज का इन्जीनियर है । सामाजिक परिवर्तनों को सरलतापूर्वक लाने में निर्देशन करना उसी का काम है ।

3. सामाजिक इन्जीनियर का दोहरा कार्य:

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भारतीय समाज में सामाजिक परिवर्तनों को सफलतापूर्वक उपस्थित करने में सामाजिक इन्जीनियर को दोहरा कार्य करना पड़ेगा । एक ओर तो उसको प्रत्येक दिशा में परिवर्तन के लिए रचनात्मक सुझाव देने होंगे दूसरी ओर उन सुझावों को कार्यान्वित करने के मार्ग में बाधाओं को हटाने की भी व्यवस्था करनी पड़ेगी ।

प्रत्येक समाज में विभिन्न वर्गों के तात्कालिक हितों में अनिवार्य रूप से संघर्ष रहता है । प्रत्येक वर्ग अपने पक्ष में अधिक से अधिक परिवर्तन लाने की चेष्टा करता है और दूसरे के हित में परिवर्तन का उग्र विरोध करता है । इसी प्रकार राजनैतिक दलों तथा आर्थिक वर्गों में भी विभिन्न गुटों में बड़ा उग्र विरोध पाया जाता है ।

कुछ रूढ़िवादी लोग सामाजिक व्यवस्था में किसी भी प्रकार के परिवर्तन का उग्र विरोध करते हैं । वे पुरानी रूढ़ियों और परम्पराओं से ही चिपटे रहना चाहते हैं और इसी में अपनी और समाज की भलाई मानते है । ऐसी परिस्थिति में समाजशास्त्री को केवल सुधार की दिशा में सुझाव ही नहीं देते हैं बल्कि इस बात का प्रयत्न करना है कि समाज के इन परस्पर विरोधी गुटों और दलों में संघर्ष न हो ।

4. प्रचार और शिक्षा:

इस दिशा में सबसे पहला कार्य जनता में फैले भ्रम और सामाजिक परिवर्तन विषयक अज्ञान को दूर करना है । यह कार्य बड़ा कठिन है क्योंकि स्वयं समाजशास्त्री इस विषय में सभी बातों पर एक मत नहीं हैं । परन्तु फिर भी सर्वमान्य वैज्ञानिक सिद्धान्तों को लोगों को बतलाया जा सकता है और उन्हें उपयुक्त दृष्टिकोण ग्रहण करने की दिशा में शिक्षा दी जा सकती है क्रन्तिकारियों की गति को सन्तुलित करने और रूढ़िवादियों को परिवर्तन के लाभ बताने के लिए शिक्षा और प्रसार की आवश्यकता है ।

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शिक्षा और प्रसार के इस कार्य में व्याख्यान, प्रेस रेडियो समाचार पत्र आदि विविध साधनों का सहारा लिया जा सकता है इस प्रचार और शिक्षा से जहाँ एक ओर जनता को सामाजिक सुधारों के विषय में जानकारी होगी वहां जनता में परिवर्तनों के प्रति विश्वास भी उत्पन्न होगा । समाजशास्त्रियों के इस कार्य में सरकार का सहयोग होना अनिवार्य रूप से आवश्यक है ।

दोनों के सहयोग से ही यह कार्य हो सकता है प्रचार और शिक्षा के इस कार्य में सामाजिक इन्जीनियरों को भारतीय समाज की रुचियों इच्छाओं भावनाओं और स्वभाव का अध्ययन करना पड़ेगा और उसी के अनुरूप अपने विचार उपस्थित करने पड़ेंगे किसी सामाजिक परिवर्तन को सरल बनाने के लिये यह बड़ा आवश्यक है कि उसको समाज के सामने इस रूप में उपस्थित किया जाय कि लोग उसको देश के लिए निश्चित रूप से कल्याणकारी समझ लें ।

समाज पर कोई भी परिवर्तन बलात् लादा नहीं जा सकता और यदि ऐसा हो भी जाय तो वह परिवर्तन कभी भी स्थायी नहीं होगा जब तक वह समाज के स्वभाव का एक अंग नहीं बन जाता तब तक वह कभी भी उखाड़ा जा सकता है सामाजिक परिवर्तन के इस मूल तत्व को ध्यान में रखकर जनता में प्रचार और शिक्षा से समाजशास्त्री सामाजिक परिवर्तन के कार्य को बड़ा सुगम बना सकते हैं ।

5. सामाजिक इन्जीनियर के रूप में समाजशास्त्री:

भारतवर्ष में तलाक, विधवा विवाह, दहेज निरोध, अछूतों की समानता आदि के विषय में कानून बन चुके है परन्तु केवल कानून से कभी स्थायी सामाजिक परिवर्तन नहीं किये जा सकते । इस विषय में लोकमत तैयार करना बड़ा आवश्यक है ।

तभी देश में इन कानूनों का भली प्रकार पालन हो सकेगा भारत में आज जातिवाद एक भारी समस्या बन गया है । इससे राष्ट्रीय एकता में और देश की उन्नति में बड़ी बाधा पड़ती है परन्तु इस विषय में कानून क्या कर सकता है ? इसमें तो तभी परिवर्तन हो सकता है जब जातिवाद के विरुद्ध लोकमत तैयार किया जाय ।

इसी प्रकार साम्प्रदायिकता की समस्या भी जटिल है । पाकिस्तान के बाद हिन्दू-मुस्लिम समस्या अब उतनी उग्र नहीं रह गई है परन्तु फिर भी उनमें तनाव अभी शेष है । हरिजनों के समान ही भारत में आदिवासियों के कल्याण की भी योजनायें बनाई जा रही है ।

इन योजनाओं की सफलता के लिए उनको कार्यन्वित करने वाले अफसरों और सरकारी कर्मचारियों को आदिवासी समाजों के विषयों में पूरा ज्ञान होना चाहिये । इस ज्ञान की अनुपस्थिति में वे कभी-कभी बड़ी भयंकर भूलें कर बैठते है जिनसे कल्याण के स्थान पर स्थिति और भी गम्भीर हो जाती है ।

आदिवासियों की समस्याओं का एक उदाहरण नागा समस्या है जिसको सुलझाने में बड़ी समझदारी की आवश्यकता है इधर औद्योगीकरण तथा नगरीकरण से सम्बन्धित सैकड़ों समस्यायें आज देश के सामने हैं बाल अपराध की समस्या वेश्याओं की समस्या, शराबखोरी की समस्या हड़ताल और तालेबन्दी की समस्या, मिल मालिक और मजदूरों के सम्बन्ध की समस्या, वयस्क अपराधियों की समस्या आदि कितनी ही समस्यायें ऐसी हैं जिनको दूर करने के लिए आवश्यक प्रयत्नों में समाजशास्त्री का निर्देशन बड़ा आवश्यक है ।

हर्ष का विषय है कि सामाजिक परिवर्तनों को सरल बनाने में सामाजिक इंजीनियर के इस महत्व की भारत की वर्तमान सरकार ने उपेक्षा नहीं की है । इधर समाजशास्त्र का अध्ययन और प्रचार बराबर बढ़ रहा है । गांवों में खण्ड विकास अधिकारी अच्छा कार्य कर रहे हैं ।

शिक्षा के क्षेत्रों में वयस्क शिक्षा अधिकारी तथा सामाजिक शिक्षा अधिकारी के कार्य से बड़ी सहायता मिली है । सामाजिक शिक्षा के क्षेत्र में खोज को भी प्रोत्साहन दिया जा रहा है अपराधियों के लिये सुधारगृह खोले गये है । इधर सरकार ने पीड़ित और असहाय स्त्रियों के लिये नारी निकेतनों की व्यवस्था की है । वेश्यावृत्ति उन्मूलन में कानूनी रोक के साथ-साथ वेश्याओं के पुनर्वास की व्यवस्था की गई है ।

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