भारत में किशोर अपराध के लिए समाधान | Solution to Juvenile Delinquency in India in Hindi!

किशोरापराध के सुधार के उपाय:

आधुनिक प्रगतिशील देशों में किशोरापराधियों को दण्ड नहीं दिया जाता, बल्कि उनके सुधार का उपाय किया जाता है ।

इस विषय में तीन उपाय सबसे अधिक प्रचलित है:

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(1) प्रवीक्षण

(2) सुधार संस्थाएं

(1) प्रवीक्षण (Probation):

किशोरापराध के सुधार की सबसे प्रचलित विधि प्रवीक्षण है । इसमें किशोरापराध को एक प्रवीक्षण अधिकारी की संरक्षकता में रख दिया जाता है । अमेरिका में सन् 1841 ई॰ से 1859 ई॰ तक जॉन आगस्टस ने 203 युवकों तथा 149 युवतियों को यह विश्वास दिलाकर जमानत पर छुड़ाया कि वे दोबारा अपराध नहीं करेंगे और वास्तव में न तो उनमें से किसी ने दोबारा अपराध किया और न प्रोबेशन की शर्तों को तोड़ा ।

उस समय तक प्रोबेशन का कानून नहीं था । अतः इसको बेल बोंडिंग कहा गया जिससे जमानत का तात्पर्य होता है । अमेरिका में सबसे पहले प्रोबेशन कानून 1876 में मेसाच्यूसैट्स राज्य में पास हुआ । उसके बाद धीरे-धीरे सभ्य देशों में प्रोबेशन या प्रवीक्षण का रिवाज हो गया ।

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प्रवीक्षण के उद्देश्य के बारे में अनेक प्रकार के मत मिलते हैं । अधिकतर लोग प्रवीक्षण को पहली बार अपराध करने वालों के प्रति गर्मी बरतने की एक विधि मानते हैं । एक अन्य मत यह है कि प्रवीक्षण का उद्देश्य चेतावनी देकर अथवा दण्ड का भय दिखलाकर अपराधी का सुधार करना है ।

कुछ नये अपराधशास्त्रियों के अनुसार प्रवीक्षण का उद्देश्य बालक की सामाजिक और मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं को पूरा करना है । कुछ लोगों ने प्रवीक्षण को एक उपचार विधि ही मान लिया है, जिसमें कि बालकों की मनोवृत्तियों और परिस्थितियों का अध्ययन करके उसके सुधार के उपाय किये जाते हैं ।

वास्तव में, प्रवीक्षण के उद्देश्य में उपरोक्त सभी बातें आ जाती है । प्रवीक्षण का उद्देश्य अपराधी की मानसिक प्रवृत्तियों तथा उनकी परिस्थितियों का सूक्ष्म अध्ययन करके कभी उसे दण्ड का भय दिखाकर और कभी नर्मी से समझाकर तथा उसकी सामाजिक और मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं को यथा सम्भव सन्तुष्ट करने की चेष्टा करते हुए अपराधी को सही मार्ग पर लाना है ।

भारत में सन् 1938 में उत्तर प्रदेश का प्रथम अपराधी प्रवीक्षण अधिनियम पास हुआ । इस अधिनियम के अनुसार पहली बार अपराध करने वाले बालक-बालिकाओं को प्रोबेशन पर रखने की व्यवस्था की गई । बड़े-बड़े नगरों में प्रोबेशन अधिकारियों की नियुक्ति की गई ।

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यद्यपि अभी प्रत्येक जिले में प्रोबेशन का प्रबन्ध नहीं है । उत्तर प्रदेश के इस अधिनियम के अनुसार 7 वर्ष से लेकर 24 वर्ष की आयु तक अपराध करने वाले युवकों को प्रवीक्षण अधिकारी की देखरेख में रखा जाता है ।

उत्तर प्रदेश के अलावा भारत में तमिलनाडु और महाराष्ट्र की सरकारों ने भी प्रोबेशन के विषय में अधिनियम बनाये । कुछ अन्य राज्यों ने भी इस दिशा में कदम उठाये हैं, परन्तु सारे देश में प्रोबेशन की व्यवस्था होना अभी दूर की बात है ।

महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु के प्रवीक्षण अधिनियमों में प्रवीक्षण अधिकारी के कामों के विषय में मुख्य निर्देश निम्नलिखित हैं:

(I) प्रोबेशनर में मित्रता स्थापित करना और उससे सहानुभूति का व्यवहार रखना ।

(II) समय-समय पर प्रोबेशनर के घर जाकर उससे मिलना और कभी-कभी उसे अपने घर भी आमन्त्रित करना ।

(III) इस बात की देखरेख करना कि प्रोबेशनर अदालत में दाखिल किये गये बौंड़ की शती का पालन कर रहा है या नहीं ।

(IV) अदालत को प्रोबेशन के व्यवहार के बारे में सूचित करते रहना ।

(V) प्रोबेशनर को सलाह-मशविरा देना और उसके व्यवहार को उचित दिशा में ले जाने की कोशिश करना ।

(VI) प्रोबेशनर को काम-धन्धा दिलाने में सहायता देना ।

प्रोबेशन व्यवस्था अपराधियों को और अधिक अपराधों के करने से रोकने में अधिक लाभदायक सिद्ध हुई है ।

मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं:

(i) प्रवीक्षण व्यवस्था अपराधी को सुधरने का मौका देती है ।

(ii) प्रवीक्षण अधिकारी अपराधी को सहायता और निर्देश देता है ।

(iii) प्रोबेशन व्यवस्था अपराधी को जेल के दूषित वातावरण से बचाती है जिससे वह अनेक सामान्य प्रवृत्तियों का शिकार होने से बच जाता है ।

(iv) प्रवीक्षण व्यवस्था अपराध रोकने के अन्य व्यवस्थाओं से सस्ती भी है ।

(v) प्रोबेशन व्यवस्था केवल अपराधी को अपराध करने से ही नहीं रोकती, बल्कि उसे समाज का एक उपयोगी अंग बनाने में भी सहायता करती है ।

(2) सुधार संस्थायें (Reformatory Institutions):

भारत में 1897 के रिफार्मेट्री अधिनियम के अनुसार सुधार स्कूल स्थापित किये गये ।

आजकल भारत में इस तरह के निम्नलिखित चार स्कूल है:

A. सुधार स्कूल:

(अ) हिसार रिफार्मेट्री स्कूल:

इसमें दिल्ली और पंजाब के 15 वर्ष से कम उम्र के किशोरापराधी भेजे जाते हैं । ये 3 से 5 वर्ष तक स्कूल में रखे जाते हैं । इन्हें मिडिल स्कूल तक की शिक्षा दी जाती है और साथ में प्रौद्योगिक शिक्षा दी जाती है । इसमें चमड़े का काम, सिलाई, लुहार का काम, बैंत का काम, बढ़ईगिरी आदि आते है । इसके अलावा स्काउटिंग, प्राथमिक चिकित्सा, मनोरंजन आदि का भी प्रबन्ध है । अच्छा आचरण होने पर बालक को पुरस्कार दिया जाता है और घर के लिए 15 दिन की छुट्टी भी दी जाती है ।

(ब) लखनऊ रिफार्मेट्री स्कूल:

इसमें उत्तर प्रदेश के 9 वर्ष से 15 वर्ष की आयु तक के किशोरापराधी रखे जाते है । ये 4 से 7 वर्ष तक स्कूल में रहते हैं । स्कूल में इनकी सामान्य और प्रौद्योगिकी शिक्षा का प्रबन्ध है । बालकों को जेब खर्च मिलता है और सादे कपड़ों में स्कूल से बाहर जाने दिया जाता है । स्कूल के बालकों का एक अपना बैंड भी है जो शहर में भेजा जाता है ।

(स) जबलपुर रिफार्मेट्री स्कूल:

इसमें मध्य प्रदेश के किशोर अपराधी रखे जाते हैं । स्कूल में बालकों को पूरी स्वतन्त्रता दी जाती है और उन्हें आत्म-निर्भरता सिखाई जाती है । स्कूल में सामान्य और औद्योगिक दोनों प्रकार की शिक्षा दी जाती है ।

(द) हजारी प्रसाद रिफार्मेट्री स्कूल:

इसमें पश्चिमी बंगाल, बिहार, असम और उड़ीसा के किशोर अपराधियों को प्राथमिक शिक्षा दी जाती है । स्कूल से लगे औद्योगिक कक्ष में स्कूल के अतिरिक्त बाहर के विद्यार्थियों को भी प्रशिक्षण दिया जाता है । प्रतिभाशाली बालकों को बाहर की शिक्षा संस्थाओं में भेजा जाता है

B. सर्टीफाइड स्कूल:

रिफार्मेट्री स्कूलों में भयंकर अपराध वाले किशोर अपराधियों को रखा जाता है । छोटे अपराध वाले बालक सर्टीफाइड स्कूलों में रखे जाते है । ये स्कूल भारत में उन सब राज्यों में पाये जाते हैं जिनमें बाल अधिनियम पास किये जा चुके हैं । 14 वर्ष के बालक जूनियर सर्टीफाइड स्कूलों में रखे जाते हैं ।

14 से 16 वर्ष तक के बाल-अपराधी सीनियर सर्टीफाइड स्कूलों में रखे जाते है । इन स्कूलों में 5 से 8वीं कक्षा तक की शिक्षा दी जाती है । तमिलनाडु राज्य में लड़कों के एक सीनियर और दो जूनियर तथा लड़कियों का एक सम्मिलित स्कूल है । राज्य द्वारा संचालित इन स्कूलों के अतिरिक्त 8 सर्टीफाइड स्कूल सार्वजनिक समितियों द्वारा संचालित हैं ।

महाराष्ट्र राज्य में राज्य सरकार द्वारा संचालित 19 सर्टीफाइड स्कूल है । केरल राज्य में एक सर्टीफाइड स्कूल है । इन सर्टीफाइड स्कूलों के अतिरिक्त महाराष्ट्र राज्य की 89 उपयुक्त व्यक्ति संस्थायें बंगाल का आवारा बच्चों का शरणालय, कलकत्ता का कलकत्ता विजिलेन्स समिति शरणालय आन्ध्र प्रदेश में स्त्री नेल्लोडी का बाल शरणालय तथा दिल्ली का बाल शरणालय और मैसूर राज्य में बेलारी का सर्टीफाइड स्कूल संस्थायें किशोर अपराधियों के सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण काम कर रही हैं ।

C. सहायक गृह:

सर्टीफाइड स्कूलों के लिये बच्चे लेने वाली संस्थायें सहायक गृह कहलाती है । सहायक गृह सरकारी और गैर-सरकारी दोनों प्रकार के होते हैं । इनमें सातवीं कक्षा तक की सामान्य शिक्षा और बढ़ईगिरी, कताई, बुनाई, जिल्दसाजी, चटाई बुनना, राज और दर्जी का काम औद्योगिक शिक्षा दी जाती है । इसके अलावा स्काउटिंग, प्राथमिक चिकित्सा, संगीत तथा खेती आदि की शिक्षा का भी प्रबन्ध होता है । सहायक गृहों से निकले हुए बालक बहुत कम संख्या में दुबारा अपराध करते हैं ।

D. बोर्स्टल स्कूल:

टप्पन के अनुसार, Juvenile Delinquency के लेख में इंग्लैण्ड के गृह विभाग ने बोर्स्टल व्यवस्था के सिद्धान्तों की इस प्रकार व्याख्या की है- “इस व्यवस्था का लक्ष्य चरित्र और नैतिक, मानसिक, शारीरिक तथा व्यवसाय सम्बन्धी क्षमताओं का विशेष रूप से उत्तरदायित्व और आत्म-नियन्त्रण के विकास पर जोर देते हुए प्रगति के साथ बढ़ते हुये विकास द्वारा सर्वांगीण विकास करना है ।”

बोर्स्टल संस्था में सदस्यों को दिनभर रुचिकर तथा मेहनत के कामों में लगाये रखा जाता है । सामान्य शिक्षा के साथ-साथ इनमें शारीरिक प्रशिक्षण तथा औद्योगिक प्रशिक्षण का विशेष ध्यान रखा जाता है । इस प्रकार का प्रशिक्षण सबसे पहले 1902 में इंग्लैण्ड में केन्ट प्रान्त में मैंचेस्टर के निकट बोर्स्टल नामक स्थान पर स्थापित किया गया ।

अत: इसका नाम बोर्स्टल स्कूल पड़ा । बोर्स्टल स्कूल भारत में सबसे पहले मद्रास राज्य में 1926 में बने एक अधिनियम के अनुसार स्थापित हुआ । पश्चिमी बंगाल में बेहरामपुर में और बम्बई में धारावाड़ में भी मद्रास के समान बोर्स्टल स्कूल स्थापित किया गया । मैसूर और मध्य प्रदेश में भी इसी प्रकार एक-एक स्कूल बना ।

बोर्स्टल स्कूल में 16 से 21 वर्ष की आयु के अपराधी रखे जाते हैं 32 वर्ष की आयु के बाद इनको स्कूल से छोड़ दिया जाता है । साधारणतया बोर्स्टल स्कूल राज्य के जेल विभाग के अधीन होते हैं । तमिलनाडू राज्य का बोर्स्टल स्कूल कई खण्डों में विभाजित है । इन खण्डों का निरीक्षक एक हाउस मास्टर होता है । हाउस मास्टर खण्ड के काम और अनुशासन का उत्तरदायी होता है । हाउस समूहों में बँटा होता है । बोर्स्टल स्कूल में अच्छा आचरण दिखलाने वाले अपराधी को स्टार श्रेणी दी जाती है ।

इस श्रेणी में बन्दी को उसकी पसन्द का काम मिलता है और साथ ही साथ बैज धन राशि के रूप में कुछ धन भी दिया जाता है । स्टार श्रेणी में अच्छा आचरण दिखलाने वाले सदस्यों को विशेष स्टार श्रेणी में रखा जाता है ।

विशेष स्टार श्रेणी के सदस्यों को बिना निगरानी के बाहर जाने की सुविधा दी जाती हैं । वे परेड, वर्कशाप तथा मनोरंजन कक्ष आदि की देखरेख करते हैं और सन्तरी आदि का काम करते हैं । वे संस्था से बाहर खेल-कूद प्रतियोगिताओं में और स्काउट शिविरों में भाग लेने को भी भेजे जा सकते हैं ।

E. किशोर बन्दीगृह:

उत्तर प्रदेश में बरेली में बोर्स्टल व्यवस्था के अनुकूल एक किशोर बन्दीगृह स्थापित किया गया है । उड़ीसा में अंगुल और बिहार में पटना में भी इसी प्रकार के किशोर बन्दीगृह स्थापित किये गये है । किशोर बन्दीगृह में उन्नीस वर्ष की आयु तक के या अधिक से अधिक 21 वर्ष की आयु तक के अपराधी रखे जा सकते हैं । किशोर बन्दीगृह साधारण जेलों से भिन्न हैं ।

यह एक सुधार संस्था है । इसमें बन्दियों को सामान्य शिक्षा और औद्योगिक शिक्षा दी जाती है । बन्दी जेल से बाहर जाकर भी काम कर सकते है । वे समय-समय पर अपने परिवार से मिलने घर भी जा सकते हैं । जेल की पढ़ाई खत्म करने के बाद सदस्य आगे पढ़ने के लिए जेल से बाहर के स्कूलों में भी जा सकते हैं ।

बरेली जेल में कैदियों की अपनी देख-रेख में एक कैन्टीन भी है जिससे उनको अपनी आवश्यकता की वस्तु में मिल जाती है । जेल में बन्दियों द्वारा चुनी हुई एक पंचायत भी होती है । यह पंचायत सफाई तथा भोजन की व्यवस्था की देखरेख करती है । यह कैदियों के अनुशासन भंग के मामलों में निर्णय देती है । किशोर बन्दीगृह अपराधियों के सुधार में बड़े सफल सिद्ध हुए हैं ।

बरेली के किशोर बन्दीगृह से पिछले बारह वर्षों में केवल एक ही कैदी भागा है । बन्दीगृह के सदस्यों की कमाई का धन उनके नाम जमा कर दिया जाता है और जेल छोड़ते समय उन्हें दे दिया जाता है ताकि वे कोई स्वतन्त्र व्यवसाय स्थापित कर सकें । जेल में खिलौने बनाने, चमड़े का काम, बुनाई, सिलाई, गलीचा बनाना, खेती, मुर्गी पालन, बैण्ड बजाना आदि विभिन्न उपयोगी काम सिखाये जाते हैं ।

देश में विभिन्न प्रकार की सुधार संस्थाओं के उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है कि भारत सरकार तथा राज्य सरकारें इस ओर ध्यान दे रही है । यद्यपि यह काम खासतौर से राज्यों का ही है परन्तु भारत सरकार ने भी इस दिशा में काफी सहायता दी है ।

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