Read this article in Hindi to learn about the performance of public sector enterprises.

हमारे देश में सार्वजनिक उद्यमों के निष्पादन को मापने की विधि के सम्बन्ध में बहुत मतभेद हैं । निष्पादन को मापने के लिए विभिन्न प्राधिकारियों ने भिन्न मापदण्डों का सुझाव दिया है, बहुत से तत्त्वों को ध्यान में रखते हुए कोई भी ढंग उचित नहीं प्रतीत होता ।

तथापि सार्वजनिक क्षेत्र के निष्पादन को मापने के लिए हमने निम्नलिखित प्रयास किए हैं:

1. केन्द्रीय सरकार के विभाग,

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(क) सार्वजनिक उद्योग और

(ख) प्रान्तीय सरकारों के व्यापारिक संस्थान ।

2.  रोजगार में भाग ।

3.  कुल घरेलू बचत ओर कुल घरेलू पूंजी निर्माण में भाग ।

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4.  केन्द्रीय राजकोष में भाग ।

5.  सार्वजनिक क्षेत्र का विकास ।

6. विदेशी विनिमय की कमाई में भाग ।

1. केन्द्रीय सरकार के विभाग (Parts of Central Government):

(i) रेलवे (Railway):

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भारतीय रेलवे विश्व का दूसरा सबसे बडा एकल प्रबंध के अधीन है जिसने 150 सालों से देश के औद्योगिक और आर्थिक तल के विकास में योगदान दिया है । भारतीय रेलवे के दो मुख्य भागों, भाड़ा और यात्री किराया आय का दो तिहाई भाग है । उच्च-घनता वाला नेटवर्क चार मैट्रोपोलिटियन शहरों, चेन्नई, दिल्ली, कोलकाता और मुम्बई को जोड़ता है जिसको प्रख्यात तौर पर सुनहरा चतुर्भुज कहा जाता है ।

भारतीय रेलवे की सकल प्राप्तियां 1980-81 में 2,624 करोड़ रुपये थी जो 1990- 9,091 करोड़ रुपये तक बढ़ गई, 2001-02 में 37,837 करोड़ रूपये और 2013- 13 में 1,23,733 करोड़ रुपये हो गई । कुल यातायात प्राप्तियां 2012-13 में 12, 161 करोड़ रुपये थी जो 2001-02 में 1,544 रुपये के और 1990-91 में 942 करोड़ रुपये के विरुद्ध थी ।

तालिका 1.1 के अनुसार, 1950-51 के सकल पूँजी गठन में सार्वजनिक क्षेत्र का योगदान 27.3 प्रतिशत था जबकि यह 1960-61 में 53.1 प्रतिशत तक बढ़ गया और यह 1990 तक 40-50 प्रतिशत के बीच था । निजीकरण नीति का आयात 2000-01 में सार्वजनिक क्षेत्र के हिस्से में 25.4 प्रतिशत तक कम हुआ । मगर इसमें 2012-13 में दुबारा 34.6 प्रतिशत तक वृद्धि हुई ।

15 अगस्त, 2002 को प्रधानमंत्री ने भारतीय रेलवे की वृद्धि को तीव्र मार्ग पर डालने के लिए एक महत्वपूर्ण पहल-कदमी को स्वीकृति दी । सरकार ने एक नई गैर बजटीय निवेश की योजना भारतीय रेल विकास के लिए बनाई जिसे राष्ट्रीय रेल विकास योजना कहते हैं । कुल यातायात प्राप्तियां वर्ष 2007-08 में करोड़ रुपयों तक बढ़ गई तथा इसमें 85 प्रतिशंत की वृद्धि देखी गई ।

रेल मार्ग एक व्यापारिक संस्था के साथ-साथ लोक उपयोगी सेवा उपलब्ध कर्ता की दोहरी भूमिका निभा रहे हैं । रेलवे ने निजी भागीदारी को आकर्षित करने के लिए कई कदम उठाये हैं । निजी टर्मिनल स्थापित किये गये है तथा नये बन रहे भागों जैसे विशेष कार्य वाहन (Special Purpose Vehicle) को रेल संचालन उपलब्ध करवाने के लिए भागीदारी आरम्भ की है ।

(ii) डाक एवं तार संचार (Post and Telecommunication):

भारत विश्व में सबसे तेजी से बढ़ता तार संचार बाजार है । नई तार संचार नीति, 1996 की घोषणा 1999 में की गई थी ताकि लाभ आधारित सेवाएं जैसे शुल्क सुधार, स्पीड पोस्ट संरचना का विकास, निगमित ग्राहकों के लिए शुल्क युक्त डाक सेवाएं उपलब्ध हो । तार संचार की घनता 1885 में 12.7 प्रतिशत से बढकर दिसम्बर 2006 में 16.8 प्रतिशत हो गई ।

टेलीफोनों की कुल संख्या 31 मार्च, 2003 को 54.13 मिलियन से बढ्‌कर 31 दिसम्बर, 2006 को 189.92 मिलियन तक हो गई । दिसम्बर 2006 के अंत तक लाख सार्वजनिक कॉल कार्यालयों ने कार्य किया और इनमें से दो लाख से ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रों में है । मोबाइल ग्रामीण संचार सेवक स्कीम 12,000 गांवों तक टेलीफोन हर घर तक पहुँचाएगी ।

तार संचार की सकल आय 1980-81 में 278 करोड़ रुपये से 2013-14 में 9,788 करोड़ रुपये तक बढी है यद्यपि कुल कार्यशील खर्चे की यह कुल प्राप्ति 2013-14 में 6,019 करोड़ रुपये से ज्यादा है । भारतीय डाक नेटवर्क विश्व में सबसे बड़ा नेटवर्क है । जो लोगों को सेवाएं दे रहा है ।

सेवाओं को चार भागों में व्यापक रूप से बाटा गया है वह संचार सेवाएं (चिट्ठियां, डाक पत्र), यातायात सेवाएं (पार्सल), वित्तीय सेवाएं (बचत बैंक, मनी आर्डर, अन्तर्राष्ट्रीय धन स्थानांतरण सेवा, सार्वजनिक निजी सांझेदारियां, विस्तारित वित्तीय सेवाओं के लिए और डाक जीवन बीमा) और प्रीमियम वेल्यू एडिड सेवाएं (स्पीड़ पोस्ट, व्यवसाय डाक, खुदरा डाक आदि) ।

(क) केन्द्रीय सरकार के सार्वजनिक उद्यमों का निष्पादन (Performance of Central Government Public Enterprises):

केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम (CPSEs), विस्तारित उद्योग और बुनियादी ढांचा, लगातार अर्थव्यवस्था के विकास में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं । कुल 290 CPSES 31 मार्च, 2014 से विभिन्न मंत्रालयों/विभागों के प्रबधकीय नियंत्रण के अधीन कार्यरत है ।

इनमें से 234, कार्यात्मक और 56 निर्माण अधीन है । वित्तीय निवेश (पेड अप पूँजी + दीर्घकाल के ऋण) सभी (CPSEs) में 9,92,971 करोड़ रुपये पर है जिन्होंने 31 मार्च, 2014 को 2012-13 पर 17.46 प्रतिशत की वृद्धि को दिखाया ।

2013-14 में 163 लाभ बनाने वाले CPSES का कुल लाभ (Net Profit) 1,49,164 करोड़ रुपये था और 71 हानि बनाने वाली CPSES की कुल हानि 20,055 करोड़ रुपये थी । तेल और प्राकृतिक गैस निगम लि. (ONGC), कोयला इंडिया लि., रष्ट्रीय थर्मल पावर निगम (NTPC) लि. भारतीय तेल निगम लि. और राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (NMDC) लि., 2013-14 के दौरान लाभ बनाने वाली पाँच शीर्ष CPSEs थी ।

भारत संचार निगम लि. (BSNL), एयर इंडिया लि. हिन्दुस्तान फोटोफिल्म मैनुफैक्चरिंग कम्पनी लि., हिन्दुस्तान केवल लि. और भारतीय राष्ट्रीय व्यापार निगम लि., 2013-14 में शीष पाँच हानि बनाने वाली CPSEs थी ।

CPSEs का लाभांश भुगतान, सरकारी ऋण पर ब्याज और कर के भुगतान द्वारा Central Exchequer के लिए योगदान 2012-13 में 1,63,207 करोड़ रु. से बढ़ कर 2013-14 में 2,20,161 करोड़ रुपये होगा । यह मुख्यतः लाभांश भुगतान, आबकारी कर, सीमा शुल्क, कार्पोरेट कर और लाभांश कर के प्रति योगदान में वृद्धि के कारण था ।

(ख) प्रान्तीय सरकार के व्यापारिक उद्यम (State Government Commercial Undertakings):

प्रान्तीय सरकार तथा केन्द्र शासित प्रदेशों के विभागीय उद्यम, वनों और खनिजों को छोड़ कर, सभी पिछले कुछ समय से हानि उठा रहे हैं । प्राप्तों और केन्द्र शासित प्रदेशों के विभागीय रुग्ण उद्यमों ने वर्ष 1990-91 में 1,005 करोड़ शुद्ध हानि उठाई ।

दो मुख्य गैर-विभागीय उद्यम, प्रान्तीय बिजली बोर्ड (SEBs) तथा प्रान्तीय सड़क यातायात निगम (SRTCs) अपने कार्यों में बहुत हानियां उठाते रहे । प्रान्तीय सड़क यातायात निगम का निष्पादन भी इसी प्रकार असन्तोषपूर्ण था । आशा थी कि आने वाले वर्षों में यह हानियां और भी कम हो जायेगी ।

2. रोजगार में भाग (Share in Employment):

सार्वजनिक क्षेत्र के रोजगार की दो मुख्य श्रेणियां हैं:

(क) सरकारी प्रशासन, रक्षा तथा अन्य सरकारों सेवाएं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य आदि

(ख) केन्द्र, प्रान्त एवं स्थानीय सरकार के स्वामित्व वाले सार्वजनिक उद्यम ।

वर्ष 2000 में सार्वजानिक उद्यमों में कर्मचारियों की संख्या 193.38 लाख थी जोकि 31 मार्च 1981 तक 154.84 लाख थी परन्तु 2012 में यह 176.10 लाख घटी । यहां यह कहना उचित होगा कि सार्वजनिक क्षेत्र कर्मचारियों के 70 लाख भाग को व्यवस्थित क्षेत्र में रोजगार उपलब्ध करवाता है ।

समाज में सबसे बड़े रोजगार के उद्यम, सामाजिक तथा व्यक्तिगत सेवाएं मार्च 2012 के अन्त तक 90.4 लाख थीं तथा अगला स्थान है- परिवहन, भण्डारण तथा संचार का, अतः इन उद्योगों में कर्मचारियों की संख्या 24.9 लाख थी । सार्वजनिक क्षेत्र रोजगार की स्थिति तालिका 1.3 में दर्शायी है ।

3. कुल घरेलू बचत और कुल घरेलू पूंजी निर्माण में भाग (Share in Gross Domestic Saving and Gross Capital Formation):

कुल घरेलू बचत और कुल घरेलू पूंजी निर्माण में सार्वजनिक क्षेत्र के भाग को तालिका 7.1 में संक्षिप्त किया गया है । वर्ष 1950-51 से वर्ष 2012-13 के समय के दौरान कुल घरेलू पूंजी निर्माण 9.3 प्रतिशत से बढ़ कर 34.8 प्रतिशत हो गया, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र का भाग कठिनता से 2.8 प्रतिशत से सुधर कर 8.1 प्रतिशत हो गया । इसी प्रकार कुल घरेलू बचत के क्षेत्र में ऐसी प्रवृत्ति देखने को मिली ।

4. केन्द्रीय कोष में भाग (Share in Central Exchequer):

सार्वजनिक क्षेत्र ने केन्द्रीय कोष में लाभांशों, कार्पोरेट टैक्सों, उत्पादन, शुल्क, सीमा शुल्क आदि के रूप में शानदार योगदान दिया है । तालिका 1.2 केन्द्रीय कोष में किये गये योगदान को दर्शाती है । 2005-06 में सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का केन्द्रीय कोष में योगदान 24,370 करोड़ रुपए था । जो 2013-14 में 55,077 रुपए तक बढ गया ।

5. सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार (Expansion of Public Sector):

योजनाबन्दी के युग में सार्वजनिक क्षेत्र का बहुत विस्तार हुआ है । पहली योजना के आरम्भ होते समय कठिनता से 5 सार्वजनिक उद्यम थे जिसमें 29 करोड़ रुपयों का निवेश का था । 31 मार्च, 2013-14 के अन्त तक 234 सार्वजनिक उद्यम थे जिसमें 17,15,684 करोड़ रुपयों की पूंजी निवेशित थी । इसकी वृद्धि की संख्या तथा निवेश की राशि तालिका 1.2 में प्रस्तुत की गई है ।

6. विदेशी विनिमय आय में भाग (Share in Foreign Exchange Earning):

विदेशी व्यापार के भाग में, सार्वजनिक क्षेत्र अर्थव्यवस्था के लिए विदेशी मुद्रा की कमाई तथा व्यय की बचत में सहायक सिद्ध हुआ है । बहुत-सा आधुनिक साजो-सामान, पूंजीगत मशीनरी का आजकल अपने देश में ही निर्माण हो रहा है जबकि यह पहले आयात होता था ।

उदाहरण के रूप में, भारतीय तेल निगम, हिन्दोस्तान एन्टीबायोटिक्स लिमिटेड और इण्डियन ड्रग्स एण्ड फार्मासिटीकल्व आदि ने काफी हद तक विदेशी निर्भरता को समाप्त किया है । उसी प्रकार तेल और प्राकृतिक गैस आयोग और भारतीय तेल निगम भी देश की आत्म-निर्भरता को बढाने के प्रयत्न कर रहे हैं ।

मुख्य उत्पाद जिनका निर्यात होता था- मशीन टूल्ज, पिग आयरन, रेल कोच, स्टील, स्कूटर्ज, टैक्सटाइल और रैडीमेड गारमैन्टस आदि ।

तथापि विदेशी विनिमय में इसका योगदान तीन प्रकार से हैं:

1. सीधे निर्यात वाली वस्तुओं का उत्पादन सार्वजनिक क्षेत्र में है ।

2. सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा उपलब्ध कराई गई सेवाएं ।

3. उद्यमों की व्यापारिक एवं विपणन सेवाएं ।