प्राधिकरण: सिद्धांत और प्रकार | शासन प्रबंध | Read this article in Hindi to learn about:- 1. प्राधिकार का अर्थ (Meaning of Authority) 2. प्राधिकार के सिद्धांत (Theories of Authority) 3. प्रकार (Types).

प्राधिकार का अर्थ (Meaning of Authority):

मूनी व रीली ने प्राधिकार की व्याख्या उस ‘सर्वोच्च समन्वयक शक्ति’ के रुप में की जो सांगठनिक ढांचे को वैधता प्रदान करती है । प्राधिकार की प्रमुख चारित्रिक विशेषता वैधता है, जबकि शक्ति की चारित्रिक विशेषता बल प्रयोग है । प्राधिकार दफ्तर संभालने वाले की वैध शक्ति है ।

लोक प्रशासन में प्राधिकार के तीन स्रोत होते हैं:

(i) कानून अर्थात संविधान, विधिक अधिनियम, अधिकृत विधान और न्यायिक निर्णय,

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(ii) परंपरा अर्थात सांगठनिक प्रथाएँ, नियम और काम करने की आदतें,

(iii) प्रत्यायोजन अर्थात् उच्चतर से निम्नतर स्तरों तक प्राधिकार का अनुदान ।

मिलेट के अनुसार, निम्न क्षेत्रों में प्रभावी ढंग से अपने कर्तव्य को पूरा करने के लिए प्रशासकों को पर्याप्त प्राधिकार की जरूरत होती है:

(i) गतिविधियों का उद्देश्य और ध्येय निर्धारित करना अर्थात् कार्यक्रम प्राधिकार ।

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(ii) कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से चलाने के लिए जरूरी ढाँचे की रचना और संगठन, अर्थात् सांगठनिक प्राधिकार ।

(iii) कार्यक्रम के लक्ष्य और प्राथमिकताओं के अनुसार बजट संबंधी आवश्यकताओं का निर्धारण, अर्थात्, बजटीय प्राधिकार ।

प्राधिकार के वितरण के आधार पर संगठन के दो प्रकार निम्न हैं:

(i) ब्यूरो प्रकार, जहां प्रशासनिक प्राधिकार एक व्यक्ति को प्राप्त होता है ।

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(ii) बोर्ड और आयोग प्रकार, जहां प्रशासनिक प्राधिकार व्यक्तियों के एक समूह को प्राप्त होता है ।

प्राधिकार के सिद्धांत (Theories of Authority):

प्राधिकार की दो सिद्धांत हैं । पहला, क्लासिकीय चिंतकों द्वारा समर्थित प्राधिकार के स्थितिगत सिद्धांत और दूसरा, व्यवहारवादियों द्वारा समर्थित प्राधिकार के स्वीकृति सिद्धांत ।

प्राधिकार के स्थितिगत सिद्धांत:

प्राधिकार के स्थितिगत सिद्धांत निम्न परिभाषाओं में प्रतिबिम्बित होते हैं:

मैक्स वेबर- ”प्राधिकार जनता की इच्छित और बेशर्त आज्ञाकारिता है जो इस विश्वास पर आधारित होती है कि श्रेष्ठ के लिए उन पर अपनी इच्छा थोपना उचित है और उनका इसे मानने से इंकार करना अनुचित ।” हेनरी फेयॉल- ”प्राधिकार आदेश देने का अधिकार और आज्ञा का पूर्णत: पालन करवाने की शक्ति है ।”

यहां वेबर और फेयॉल प्राधिकार को संगठन के एक पद का गुण मानते हैं बजाय एक व्यक्तिगत सदस्य का गुण मानने के । दूसरे शब्दों में, प्राधिकार औपचारिक पद के साथ होता है और जो भी इस पर आसीन होता है उसे प्राधिकार का इस्तेमाल करना चाहिए और आदेश और निर्देश जारी करने चाहिए । यह अधीनस्थों का कर्तव्य है कि वे इन आदेशों और निर्देशों का पालन करें ।

प्राधिकार का स्वीकृति सिद्धांत:

बर्नार्ड ने वेबर और फेयॉल द्वारा प्रतिपादित प्राधिकार के पारंपरिक (क्लासिकीय या स्थितिगत या औपचारिक) सिद्धांत को खारिज किया । उन्होंने प्राधिकार के स्वीकृति सिद्धांत का प्रतिपादन किया । इस विचारधारा के अनुसार, श्रेष्ठ के प्राधिकार की वैधता अधीनस्थ द्वारा दी गई स्वीकृति है । एक श्रेष्ठतर प्राधिकार का प्रयोग तभी कर सकता है जब इसे अधीनस्थ स्वीकार करें ।

उन्होंने प्राधिकार को इस रूप में परिभाषित किया- ”यह एक औपचारिक संगठन में संचार (क्रम) का चरित्र है, जिसकी बदौलत संगठन का कोई योगदान करने वाला या सदस्य इसे, जो वह करता है या जो वह नहीं करता, उसके नियंत्रक या निर्धारक के रूप में स्वीकार करता है, कम से कम जहां तक संगठन का प्रश्न है ।”

बर्नार्ड के अनुसार, एक अधीनस्थ किसी संचार को प्राधिकारिक तभी मानेगा जब निम्न चार स्थितियां साथ-साथ मौजूद हों:

(i) जब वह संचार को समझता हो (अर्थात् बोधगम्यता),

(ii) जब यह संगठन के उद्देश्य के साथ असंगत न हो,

(iii) जब पूर्णता में वह उसके निजी हित से मेल खाता हो,

(iv) जब वह उसे पूरा करने में मानसिक और शारीरिक रूप से सक्षम हो (अर्थात्, व्यावहारिकता) ।

बर्नाड आगे जोड़ते हैं कि प्राधिकार की स्वीकृति में संगठन के व्यक्तिगत-प्रतिभागी की ‘तटस्थता का क्षेत्र’ सहायता करता है । वह कहते हैं कि अधीनस्थ द्वारा-आदेश तभी तक स्वीकार किए जाएंगे जब तक वे इस क्षेत्र में पड़ते हैं ।

इसलिए, कार्यकारियों को सिर्फ वे ही आदेश देने चाहिए जो इस क्षेत्र में पड़ते हों । इस तटस्थता के क्षेत्र की सीमा योगदान संतुष्टि समानता द्वारा निर्धारित होती है । बर्नार्ड की तरह ही साइमन ने भी प्राधिकार के स्वीकृति सिद्धांत की वकालत की । उन्होंने प्राधिकार की व्याख्या ‘उन निर्णयों को लेने की शक्ति’ के रुप में की, ”जो किसी दूसरे के गतिविधियों” का मार्गदर्शन करते हैं ।

इसके बाद बर्नार्ड के ‘तटस्थता के क्षेत्र’ का अनुसरण करते हुए उन्होंने ‘स्वीकृति का क्षेत्र’ पेश किया । साइमन ने कहा कि जब श्रेष्ठतर इस स्वीकृति के क्षेत्र के बाहर अपने प्राधिकार का प्रयोग करता है तो अधीनस्थ उसे मानने से इंकार कर देता है ।

प्राधिकार के प्रकार (Types of Authority):

मैक्स वेबर ने प्राधिकार को तीन वर्गों में विभाजित किया:

(i) पारंपरिक प्राधिकार, जो परंपराओं, प्रथाओं और नमूनों पर आधारित होता है ।

(ii) करिश्माई प्राधिकार, जो शासक की अपवादस्वरुप बेहतरीन व्यक्तिगत योग्यताओं पर आधारित होता है ।

(iii) कानूनी-तार्किक प्राधिकार, जो कानून, नियमों और कायदों पर आधारित होता है ।

अमिताई एतिजिओ ने प्राधिकार को तीन वर्गों में बाँटा है:

(i) बल प्रयोग प्राधिकार, जो नकारात्मक प्रतिफल, शारीरिक खतरे इत्यादि जैसी सजाओं के डर पर आधारित होता है ।

(ii) मानक प्राधिकार, जो प्रतीकात्मक प्रतिफलों के वितरण और हस्त साधन पर आधारित होता है ।

(iii) उपयोगितावादी प्राधिकार, जो उन भौतिक प्रतिफलों को देने पर आधारित होता है जो अधीनस्थों के लिए स्वीकार्य और वांछनीय होते हैं । इसीलिए, इसे ईनाम प्राधिकार नाम से भी जाना जाता है ।

प्राधिकार को निम्न तीन प्रकारों में भी वर्गीकृत किया गया है:

(i) रेखा प्राधिकार, जिसका सरोकार सांगठनिक लक्ष्यों की पूर्ति से है ।

(ii) स्टाफ प्राधिकार, जिसका सरोकार संगठन के लक्ष्यों की पूर्ति के लिए रेखा जो परामर्श देने से है ।

(iii) कार्यात्मक प्राधिकार, जो पूरा किए जाने वाले कार्य में निहित है और इस तरह निर्देश की पूरी श्रृंखला से होकर गुजरता है ।