कमांड की एकता: मतलब, तर्क | शासन प्रबंध | Read this article in Hindi to learn about:- 1. निर्देशों में एकता का अर्थ (Unity of Command: Meaning) 2. निर्देशों में एकता का पक्ष में तर्क (Arguments for Unity of Command) 3. निर्देशों में एकता का विरोध में तर्क (Arguments Against Unity of Command).

निर्देशों में एकता का अर्थ (Unity of Command: Meaning):

निर्देशों में एकता का अर्थ है कि एक कर्मचारी को सिर्फ अपने श्रेष्ठतर से लेने चाहिए । दूसरे शब्दों में, किसी भी कर्मचारी को एक से ज्यादा श्रेष्ठतरों से निर्देश नहीं मिलना चाहिए । इस तरह, इसका अर्थ होता है प्रत्येक व्यक्ति के लिए सिर्फ एक बॉस या एकल-निर्देश ।

परिभाषा (Definition):

हेनरी फेयॉल- ”चाहे कोई भी कार्यवाही हो, एक कर्मचारी को सिर्फ एक श्रेष्ठतर से ही आदेश मिलने चाहिए ।”

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फ़िफ़नर व प्रेस्थस- ”निर्देशों में एकता की अवधारणा यह माँग करती है कि किसी संगठन का प्रत्येक सदस्य एक और सिर्फ एक नेता के प्रति जवाबदेह हो ।”

डिमॉक और डिमॉक- ”निर्देश की एक श्रृंखला की उत्पत्ति निर्देश की एकता होती है जिसका सिद्धांत यह है कि प्रत्येक कर्मचारी का मात्र एक वरिष्ठ होना चाहिए ।”

निर्देशों में एकता का पक्ष में तर्क (Arguments for Unity of Command):

संगठनों में भ्रम और हेर-फेर की स्थिति-से बचने के लिए निर्देशों में एकता की अवधारणा को लागू करना अनिवार्य है । निर्देशों में द्वैधता या बहुलता कर्मचारी को भ्रम और परस्पर विरोधी स्थितियों में रखती है, जैसे किसकी कहाँ मानें और क्या मानें ?

इसके अलावा एक अधीनस्थ एक श्रेष्ठतर को दूसरे श्रेष्ठतर के विरुद्ध करके आदेशों की उपेक्षा कर सकता है, जो सांगठनिक लक्ष्य को नुकसान पहुंचाता है । निर्देशों में एकता के सिद्धांत के सबसे महत्त्वपूर्ण समर्थक हैं हेनरी फेयॉल ।

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उन्होंने दावा किया ”अगर इसका उल्लंघन किया गया तो प्राधिकार कमजोर होगा, अनुशासन संकट में आ जाएगा, व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाएगी और स्थिरता पर खतरा पैदा हो जाएगा । जैसे ही दो श्रेष्ठतर एक ही व्यक्ति या विभाग पर अपना प्राधिकार जमाते हैं, वैसे ही चारों ओर बेचैनी फैल जाती है और अगर यह जारी रहा तो अव्यवस्था बढ़ती है, यह रोग बाहरी शक्ति से प्रभावित किसी अव्यवस्था का रूप ले लेता है । यह सांगठनिक स्वास्थ्य की पुनर्स्थापना में सामने आता है, या पूरा निकाय ही गायब होने लगता है । किसी भी हालत में संगठन दोहरे निर्देश के अनुसार अनुकूलित नहीं होता ।”

फेयॉल के अनुसार, दोहरे निर्देश के द्वारा निम्न कारक सामने आते हैं:

i. प्राधिकार को दो सदस्यों के बीच बांटना,

ii. विभागों के बीच अपूर्ण सीमा-निर्धारण,

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iii. अलग-अलग विभागों के बीच कार्यों को लगातार जोड़ा जाना और स्वाभाविक घालमेल और कर्तव्यों का खराब तरीके से तय होना ।

गुलिक और अरविक ने भी निर्देशों में एकता के सिद्धांत का समर्थन किया है । वे मानते हैं कि- ”एक आदमी दो आदमियों या दो मालिकों की सेवा नहीं कर

सकता ।” इसलिए उन्होंने नतीजा निकाला कि- ”सरकार में सुप्रबंधित प्रशासनिक इकाइयाँ निर्विवाद रूप से एक प्रशासक के नेतृत्व के अंतर्गत होती हैं ।”

गुलिक इस सिद्धांत के महत्व की व्याख्या करते हैं- ”निर्देशों में एकता के सिद्धांत का बेलोच अनुसरण करने में कई ऊटपटाँग बातें हो सकती हैं लेकिन इस सिद्धांत के उल्लंघन से निश्चित तौर पर पैदा होने वाले भ्रम अकुशलता और गैरजिम्मेदारी की तुलना में नगण्य हैं ।”

निर्देशों में एकता का विरोध में तर्क (Arguments Against Unity of Command):

कई विद्वानों ने निर्देशों में एकता के सिद्धांत का विरोध भी किया । सेकलर-हडसन दलील देते हैं- ”प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक ही बॉस की अवधारणा वास्तव में जटिल सरकारी स्थितियों में अब बिरले ही देखने को मिलती है । निर्देश की सीधी रेखा से परे कई अंतर्संबंध मौजूद होते हैं जिन्हें व्यवस्थित और प्रभावी प्रदर्शन के लिए कई व्यक्तियों के साथ काम करने और उन्हें रिपोटिंग करने की जरूरत पड़ती है । सरकार में एक प्रशासक के कई बॉस होते हैं और वह किसी की उपेक्षा नहीं कर सकता । एक से उसे नीति निर्देश मिल सकते हैं, दूसरे से कर्मचारी निर्देश, तीसरे से बजट, चौथे से आपूर्तियाँ और साजो-सामान ।”

जे.डी. मिलेट निर्देशों में एकता के स्थान पर द्वैध देखरेख के सिद्धांत की वकालत करते हैं । वे तर्क देते हैं कि निर्देशों में एकता की अवधारणा का इस अहसास से मेल होना चाहिए कि किसी भी गतिविधि की देखरेख द्वैध हो सकती है- तकनीकी (पेशेवर) और प्रशासनिक । ये दो प्रकार की देखरेख अलग-अलग व्यक्तियों द्वारा की जा सकती है ।

पहली का सरोकार काम को करने में पेशेवर योग्यता से हो सकता है, जबकि दूसरे की दिलचस्पी काम के लिए उपलब्ध व्यक्तियों और भौतिक संसाधनों के कुशल उपयोग में हो सकती है । वह नतीजा निकालते हैं- ”यह बात दिमाग में बैठा लेनी चाहिए कि किसी भी समय कोई कर्मचारी परस्पर विरोधी निर्देशों के अधीन नहीं आता ।”

हरबर्ट साइमन के अनुसार, निर्देशों में एकता का सिद्धांत और विशिष्टीकरण का सिद्धांत परस्पर विरोधी होता है । वे कहते हैं, संगठन में प्राधिकार के सबसे अहम प्रयोगों में से एक निर्णय लेने के काम में विशिष्टीकरण लाना, ताकि हर निर्णय संगठन में वहीं पर लिया जाए जहाँ वह सर्वाधिक विशिष्टता के साथ लिया जा सकता है ।

अगर किसी स्कूल विभाग में कोई एकाउंटेंट एक शिक्षक के अधीन है तो उसके काम के तकनीकी एकाउंटिंग के पहलुओं की बाबत सीधे निर्देश वित्त विभाग जारी नहीं कर सकता । उसी प्रकार, लोक निर्माण विभाग में मोटर गाड़ियों का निदेशक फायर ट्रक चालक को मोटर गाड़ियों के औजारों की देखरेख पर सीधे आदेश नहीं दे सकता ।

एफ. डब्ल्यू. टेलर ने भी निर्देशों में एकता के सिद्धांत को खारिज किया है । इसके स्थान पर उन्होंने ”कार्यात्मक फॉरमैनशिप” की अवधारणा की वकालत की जिसके अंतर्गत एक कर्मचारी को आठ निरीक्षकों या कार्यात्मक फॉरमैनों से आदेश मिलते हैं । यह विशिष्टीकरण और विशेषज्ञ निरीक्षण को सुनिश्चित करता है ।

इसके अतिरिक्त, निर्देशों में एकता की अवधारणा निम्न दो कारकों से भी प्रभावित होती है जो आधुनिक संगठनों के बढ़ते आकार और जटिलता का परिणाम है ।  वे हैं:

(1) बहुल नेतृत्व वाले निकायों जैसे ‘बोर्ड’ और ‘आयोग’ को ‘ब्यूरो’ एक व्यक्ति के नेतृत्व वाली के विरीत अपनाया जाना ।

(2) स्टाफ और सहयोगी एजेंसियों की बढ़ती संख्या और प्रभाव, जिसमें विशेषज्ञ होते हैं ।