Read this article in Hindi to learn about the public service commission in India.

भारत में लोक सेवा आयोग की स्थापना का प्रावधान भारत शासन अधिनियम 1919 में किया गया था, लेकिन इसकी स्थापना में विलम्ब हुआ । ली आयोग (1923-1924) ने इसकी शीघ्र स्थापना की अनुशंसा की, और इसके कुछ कार्य तय किये । तब 1926 में लोक सेवा आयोग का गठन हुआ सर रोस बार्कर पहले अध्यक्ष बने । ली आयोग के सुझाये हुए कृत्य आयोग को सौंपे गये । जब 1935 में भारत संघ घोषित हुआ तो आयोग भी संघीय लोक सेवा आयोग बन गया ।

भारत के संविधान के अनुच्छेद 315 में केन्द्र और राज्यों की लोक सेवा में भर्ती हेतु पृथक् या संयुक्त (ऐच्छिक) लोक सेवा आयोग की स्थापना का प्रावधान किया गया हैं ।

संघ लोक सेवा आयोग का कर्मचारी वृन्द (Staff at Union Public Service Commission):

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राष्ट्रपति आयोग के स्टाफ की संख्या, स्वरूप, सेवाशर्तें आदि तय करता है- आयोग के परामर्श से । आयोग का कार्यालय केन्द्रीय सचिवालय का ही एक भाग है, और दोनों में कार्मिकों की अदला-बदली, पदान्नति आदि हो सकती हैं । आयोग का एक कर्मचारी सचिव होता है, जिसका दर्जा भारत सरकार के संयुक्त सचिव के बराबर हैं । यह वही से प्रतिनियुक्ति पर आता है और निश्चित अवधि उपरान्त वापस लौट जाता है ।

आयोग के सदस्यों की स्वतन्त्रता:

संविधान में आयोगों की सदस्यों की स्वन्त्रता हेतु महत्वपूर्ण प्रावधान किये गये हैं ।

जैसे:

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1. सदस्य की सेवा शर्तों में उनके कार्यकाल के दौरान हानिकारक परिवर्तन नहीं होगे ।

2. उन्हें पद से हटाने की प्रक्रिया संविधान में वर्णित है, कि सु.को. के न्यायाधिश की जांच उपरान्त ही उन्हें हटाया जा सकता है ।

3. उनके वेतन भत्ते, संचित निधि पर प्रश्न हैं । अर्थात उन पर व्यवस्थापिका में मतदान नहीं होता ।

4. सदस्यों (अध्यक्ष समेत) को पुन: उनके पद पर या अन्य सरकारी पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता, वैसे राज्य लोक सेवा का सदस्य, वहां का अध्यक्ष बन सकता है, या संघ लोक सेवा आयोग का सदस्य बन सकता हैं । संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष को तो किसी भी अन्य सरकारी पद को ग्रहण करने की अनुमति नहीं है ।

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गठन:

संघ लोक सेवा आयोग का गठन राष्ट्रपति द्वारा तथा राज्य लोक सेवा आयोग का संबंधित राज्यपाल द्वारा किया जाता है । संयुक्त लोक सेवा आयोग का गठन दो या अधिक राज्यों के लिए उनकी सहमति पर राष्ट्रपति करता है ।

स्वरूप:

संघ या संयुक्त आयोग के सदस्यों की संख्या राष्ट्रपति द्वारा तथा राज्य लोक आयोग के सदस्यों की संख्या राज्यपाल द्वारा निर्धारित की जाती है । इनमें से कम से कम आधे वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों (न्यूनतम 10 वर्ष अनुभव) में से भरे जाते है ।

इन सदस्यों या अध्यक्ष के लिए कोई शैक्षणिक अर्हता निर्धारित नहीं हैं । प्रत्येक आयोग के मामले में सदस्यों (अध्यक्ष सहित) का कार्यकाल 6 वर्ष तक नियत हैं, यद्यपि अधिकतम आयु सीमा राज्य और केन्द्र के मामले में क्रमश: 62 और 65 वर्ष हैं । इसके वेतन भत्ते संचित निधि पर भारित है ।

पदमुक्ति:

संघ और राज्य दोनों के सदस्यों को बर्खास्त करने की शक्ति राष्ट्रपति में प्रेषित की गयी है । राज्यपाल अपने राज्य आयोग के सदस्यों को निलम्बित कर सकता हैं, हटा नहीं सकता सदस्यों की पदमुक्ति तीन आधारों में से किसी पर भी हो सकती है ।

यदि:

1. दिवालिया घोषित हो जाऐ ।

2. मानसिक रूप से अक्षम हो जाऐ ।

3. अन्य कोई लाभ का पद स्वीकार कर लें ।

राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के द्वारा जांच उपरान्त ही सदस्य को पदमुक्त कर सकता हैं ।

आयोग के कार्य: अनु. 320 में लोक सेवा आयोगों (केन्द्र/राज्य) के कृत्यों का जिक्र हैं । उल्लेखनीय है, कि आयोग एक परामर्शदात्री निकाय है, अर्थात् यह राष्ट्रपति/राज्यपाल जो प्रतिवेदन सौंपते हैं, वह परामर्श के रूप में होता है, उसे स्वीकार या अस्वीकार या आंशिक स्वीकार किया जा सकता है ।

इनके कृत्य हैं:

1. भर्ती की विधि प्रणाली के बारे में सरकार को परामर्श देना ।

2. पदोन्नति के बारे में परामर्श देना ।

3. विभिन्न पदों पर भर्ती हेतु परीक्षा/साक्षात्कार का आयोजन ।

4. स्थान्तरण के बारे में भी परामर्श देना ।

5. अस्थायी नियुक्तियाँ (1-3 वर्ष की अवधि) करना ।

6. पैंशन के दावे, सेवा के नियमतिकरण के दावे कार्मिक को सरकारी कार्य करते समय हुए नुकसान (आर्थिक/शारीरिक) की भरपाई के दावे आदि के बारे में सरकार को परामर्श देना ।

7. कार्मिक के विरूद्ध आनुशासनिक मामलों (परिनिन्दा, पदोन्नति पर रोक, पदोन्नति, पदमुक्ति, अनिवार्य सेवा निवृति आदि) में परामर्श देना ।

8. अन्य मामले जो राष्ट्रपति (संघ आयोग के सन्दर्भ में) या राज्यपाल (राज्य आयोग) सौंपे उनके बारे में परामर्श देना । डा॰ मतालिब ने 3 कार्य बताये- कार्यकारी, नियाभिकीय और अर्थ न्यायिक ।

कर्मचारी चयन आयोग (Staff Selection Commission):

केंद्रीय लोक सेवा में निम्न पदों पर भर्ती हेतु 1975 में अधीनस्थ चयन आयोग का गठन किया गया था जो 1976 से कर्मचारी चयन आयोग कहलाता है । इसका भी मुख्यालय नई दिल्ली में है । विकेंद्रीत भर्ती प्रणाली के तहत इसके 6 क्षेत्रीय भर्ती कार्यालय और 2 उपक्षेत्रीय भर्ती कार्यालय है ।

कैबिनेट नियुक्ति समिति (Cabinet Appointment Committee):

केंद्रीय सचिवालय में उच्च पदों पर भर्ती हेतु कोई प्रत्यक्ष सेवा गठित नहीं है, अपितु इन पर भर्ती राज्य कार्डर से पदावधि प्रणाली (टेनर सिस्टम) के आधार पर की जाती है । अधीनस्थ सचिव से लेकर उच्च प्रशासनिक पदों पर भर्ती हेतु दो अधीनस्थ मंडल बने हुये हैं । एक केंद्रीय संस्थापना बोर्ड जो अधीनस्थ सचिव, उप सचिव, निर्देशक जैसे पदों पर नियुक्ति की सिफारिश कैबिनेट समिति से करता है ।

दूसरा वरिष्ठ चयन बोर्ड जो संयुक्त सचिव तथा उसके ऊपर के पदों पर नियुक्ति की सिफारिश समिति से करता है । दोनों मण्डलों की सिफारिशों पर अंतिम स्वीकृति कैबिनेट नियुक्ति समिति देती है । यह समिति ही सार्वजनिक उपक्रम चयन समिति की सिफारिशों को भी अनुमोदित करती है ।