Read this article in Hindi to learn about:- 1. सामान्यज्ञ तथा विशेषज्ञ लोक सेवक का अर्थ (Generalists and Specialists – Meaning) 2. सामान्यज्ञ तथा विशेषज्ञ लोक सेवक के सेवाओं का वर्गिकरण (Generalists and Specialists – Catergorisation of Services) 3. ऐतिहासिक परिदृश्य (Historical Perspective) 4. वर्तमान स्थिति (Present Position) 5. संगठन के रूप (Forms of Organisation) 6. प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफ़ारिशें (ARC Recommendation).

Contents:

  1. सामान्यज्ञ तथा विशेषज्ञ लोक सेवक  का अर्थ (Generalists and Specialists – Meaning)
  2. सामान्यज्ञ तथा विशेषज्ञ लोक सेवक  के सेवाओं का वर्गिकरण (Generalists and Specialists – Catergorisation of Services)
  3. सामान्यज्ञ तथा विशेषज्ञ लोक सेवक  का ऐतिहासिक परिदृश्य (Generalists and Specialists – Historical Perspective)
  4. सामान्यज्ञ तथा विशेषज्ञ लोक सेवक  का वर्तमान स्थिति (Generalists and Specialists – Present Position)
  5. सामान्यज्ञों और विशेषज्ञों के संगठन  के रूप (Generalists and Specialists – Forms of Organisation)
  6. प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफ़ारिशें (ARC Recommendation)


1. सामान्यज्ञ तथा विशेषज्ञ लोक सेवक  का अर्थ (Generalists and Specialists – Meaning):

भारतीय लोक सेवा के दो घटक सामान्यज्ञ तथा विशेषज्ञ प्रभावशाली होती है । लोक सेवा की प्रभावशाली कार्यप्रणाली के लिए इन दोनों के बीच उचित तालमेल आवश्यक है । तथापि, ब्रिटिश शासनकाल से ही इन दोनों के बीच चले आ रहे विवाद चले आ रहे विवाद का अंत नहीं हुआ है ।

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सामान्यज्ञ लोक सेवक वह है जिसकी कोई विशेष पृष्ठभूमि नहीं होती हैं किंतु वह प्रशासनिक प्रक्रियाओं नियमों तथा विनियमों का अच्छा ज्ञान रखता है । उसे प्रशासन के किसी क्षेत्र में नियुक्त किया जा सकता है । वह प्रबंधक वर्ग का तथा प्रायः नियोजन, आयोजन, स्टाफ से जुड़े कार्य, निर्देशन, समन्वयन, रिपोर्टिंग और बजट से संबंधित कार्य निष्पादित करता है ।

इस प्रकार वह लोक सेवक जो नीति निर्धारित करता, समन्वय स्थापित करता तथा प्रशासन को नियंत्रित करता है, उसे सामान्यत या जनरलिस्ट कहते हैं । भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी आरबीजैन ने कहा है- ”अपनी व्यावसायिक क्षमताओं में एक सामान्यज्ञ को लोक सेवक प्रबंधक के कौशल और तकनीक का स्वामी और एक प्रकार का राजनीतिक होता है । एक प्रबंधक के रूप में उस पर उसकी जिम्मेदारी काम पूरा करने की है और एक राजनीतिज्ञ के तौर पर उसका उत्तरदायित्व प्रशासन प्रणाली की सीमाओं में रहकर राज्य की जटिल सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं पर जनता की सोच की व्याख्या करना है ।”

दूसरी ओर विशेषज्ञ लोक सेवक वह है जिसे प्रशासन के विशेष क्षेत्र में विशेषज्ञता या कौशल प्राप्त हो । वह एक निपुण व्यावसायिक होता है । सामान्यज्ञ की तरह विशेषज्ञ हरफनमौला नहीं होता है । इंजीनियर डॉक्टर कृषिविज्ञ मौसम विज्ञानी शिक्षाविद और सांख्यिकी आदि विशेषज्ञों के उदाहरण हैं ।

दूसरी ओर, विशेषज्ञ लोक सेवक वह है जिसे प्रशासन के विशेष क्षेत्र में विशेषज्ञता या कौशल प्राप्त हो । वह एक निपुण व्यावसायिक होता है । समान्यज्ञ की तरह, विशेषज्ञ हरफनमौला नहीं होता है । इंजीनियर, डॉक्टर, कृषिविज्ञ, मौसम विज्ञानी, शिक्षाविद और सांख्यिकी आदि विशेषज्ञों के उदाहरण हैं ।


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2. सामान्यज्ञ तथा विशेषज्ञ लोक सेवक  के सेवाओं का वर्गिकरण (Generalists and Specialists – Catergorisation of Services):

भारतीय सिविल सेवाओं को दो वर्गों में बाँटा गया है; तकनीकी सेवाएँ और गैर-तकनीकी सेवाएँ । तकनीकी सेवाएँ वे सेवाएं हैं जिसके लिए अभ्यर्थियों की भर्ती व्यावसायिक और विशेष योग्यता के आधार पर की जाती हैं ।

इन सेवाओं में शामिल हैं- भारतीय आर्थिक सेवा भारतीय सांख्यिकीय सेवा भारतीय वन सेवा केंद्रीय अभियांत्रिकी सेवा केंद्रीय विधिक सेवा केंद्रीय स्वास्थ्य सेवा भारतीय मौसम विज्ञान सेवा आदि । इन तकनीकी सेवाओं को ‘विशेषज्ञ सेवा’ तथा इन सेवाओं के सदस्यों को ‘विशेषज्ञ’ कहा जाता है ।

दूसरी और, गैर-तकनीकी सेवाएँ वे सेवाएँ हैं जिनमें सामान्य शैक्षिक योग्यता के आधार पर भर्ती की जाती है। ये सेवाएँ उन सभी अभ्यर्थियों के लिए हैं जो न्यूनतम अपेक्षित शैक्षिक योग्यता अर्थात विश्वविद्यालय की उपाधि धारण किए हों ।

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इन सेवाओं में शामिल हैं- भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा, भारतीय राजस्व सेवा, भारतीय विदेश सेवा, भारतीय लेखा एवं लेखा परीक्षा सेवा, भारतीय डाक सेवा, केंद्रीय सचिवालय सेवा आदि । गैर-तकनीकी श्रेणी की इन सेवाओं को भी दो उप श्रेणियों में बाँटा जा सकता है- कार्यपरक सेवा और सामान्य प्रयोजन की सेवा ।

कार्यपरक सेवाओं के सदस्य जीवनपर्यंत प्रशासन के उस विशिष्ट क्षेत्र में ही कार्य करते हैं जिसके लिए उनकी नियुक्ति हुई है । समय के साथ ये सदस्य कार्य अनुभव और नियमित प्रशिक्षण के आधार पर बेहतर ज्ञान अर्जित कर लेते हैं । कार्यपरक सेवाओं में भारतीय प्रशासनिक सेवा को छोड़कर गैर तकनीकी श्रेणी की सभी सेवाएँ शामिल हैं ।

सामान्य प्रायोजन की सेवा की श्रेणी में राष्ट्रीय स्तर की एकमात्र सेवा भारतीय प्रशासनिक सेवा है । भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी प्रशासन के विभिन्न क्षेत्रों प्रशासनिक पदक्रमानुसार सर्वोच्च पद धारण करते हैं । भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के लिए कोई कार्यपरक क्षेत्र निर्धारित नहीं है ।

संक्षेप में कहा जा सकता है कि विशेषज्ञ वर्ग में तकनीकी सेवाओं और गैर तकनीकी कार्यपरक सेवाओं के सदस्य आते हैं और सार्विक वर्ग में केवल भारतीय प्रशासनिक सेवा के सदस्य आते हैं । इस प्रकार प्रबंधकुशल और विशेषज्ञ के बीच कोई विवाद नहीं हैं । विवाद है तो वह भारतीय प्रशासनिक सेवा और गैर भारतीय प्रशासनिक सेवा के सदस्यों के बीच है ।


3. सामान्यज्ञ तथा विशेषज्ञ लोक सेवक  का ऐतिहासिक परिदृश्य (Generalists and Specialists – Historical Perspective):

सामान्यज्ञ और विशेषज्ञ इन दो श्रेणियों के द्विभाजन की उत्पति ब्रिटिश नॉर्थकोट ट्रेवलियान समिति की रिपोर्ट 1854 में मिलती है । इस समिति ने ब्रिटिश प्रशासनिक वर्ग (सार्विक) के सदस्यों के लिए उच्च पदों तथा तकनीकी (विशेषज्ञ) सेवाओं के लिए अधीनस्थ पदों की सिफारिश की थी । इस समिति का प्रभाव भारतीय सिविल सेवा से संबद्ध मैकाले समिति की रिपोर्ट 1854 पर भी पड़ा था जिसने भारत में भी वही पद स्थिति रखने की सिफारिश की ।

इस प्रकार, ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन काल के दौरान भारत में प्रशासनिक तंत्र को इस प्रकार ढाला गया था कि सामान्यज्ञ: सेवाओं विशेषतः आई.सी.एस. के सदस्यों को सर्वोच्च पद प्राप्त हो । स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी इस प्रशासनिक रूप में कोई महत्त्वपूर्ण बदलाव नहीं आया है ।

ब्रिटेन में, फुल्टन समिति की रिपोर्ट 1968 में बदली परिस्थितियों में इस मामले की जाँच तथा उन सिफारिशों का उल्लेख है जिसके आधार पर समिति ने विशेषज्ञों को बेहतर दर्जा प्रदान करने और उनकी भूमिका में वृद्धि करने के साथ-साथ उच्च सिविल सेवा के व्यावसायीकरण की सिफारिश की थी ।

इसके बावजूद ब्रिटेन में सामान्यज्ञ अब भी सर्वोच्च पद पर बने हुए हैं किंतु विशेषज्ञों के दर्जे में थोड़ा सुधार जरूर आया है । इसी प्रकार भारत में भी द्वितीय वेतन आयोग (1957-1959) संसदीय प्राक्कलन समिति और प्रशासनिक सुधार आयोग (1966-70) ने विशेषज्ञ श्रेणी के सदस्यों के दर्जे और स्थिति में सुधार लाने की सिफारिश की थी पर स्थिति बदली नहीं है तथा थोड़े बहुत बदलाव के साथ पुरानी प्रणाली ही कायम है ।


4. सामान्यज्ञ तथा विशेषज्ञ लोक सेवक  का वर्तमान स्थिति (Generalists and Specialists – Present Position):

प्रशासनिक प्रणाली में सामान्यज्ञ और विशेषज्ञों की भूमिका और उनकी वर्तमान स्थिति से संबंधित विवरण का उल्लेख नीचे किया जा रहा है ।

दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि विशेषज्ञों और सामान्यज्ञों के बीच के विवाद की स्थिति निम्नलिखित बातों से स्पष्ट हो सकती है:

1. सामान्यज्ञों का वेतन और उनकी सेवाशर्ते (पदोन्नति सहित) विशेषज्ञों की तुलना में बेहतर हैं । विशेषज्ञों की यह सबसे बड़ी परिवेदना है ।

2. केंद्र और राज्य सरकार स्तर पर अधिकांश उच्च पद (नीति निर्धारण और विचारकर्ता के स्तर के पद) भारतीय प्रशासनिक सेवा के सदस्यों के लिए सुरक्षित हैं; अर्थात इन उच्च पदों पर विशेषज्ञों की तैनाती नहीं की जाती है ।

3. सचिवालय स्तर से नीचे के पदों पर आमतौर पर विशेषज्ञ होते हैं किंतु अधिकांश मामलों में सामान्यज्ञों को कार्यकारी विभागों के प्रमुख पद पर नियुक्त किया जाता है जैसे- कृषि निदेशक, मुख्य वन संरक्षक, स्वास्थ्य निदेशक आदि ।

4. क्षेत्रीय स्तर पर संभागीय आयुक्त, कमांड एरिया विकास आयुक्त और अन्य प्रमुख पदों पर सार्विकों की तैनाती होती है ।

5. जिला स्तर पर जिला प्रशासन प्रमुख ‘जिलाधीश’ का पद भी सामान्यज्ञ लोक सेवक के खाते में है । जिला प्रशासन के अधीन कई तकनीकी विभाग हैं जिनके प्रमुख विशेषज्ञ लोक सेवक होते हैं । जिला परिषद में मुख्य कार्यकारी अधिकारी का पद भी प्रबंधकुशल के हवाले है जो विशेषज्ञों के दल का नेतृत्व करता है ।

6. सामान्यज्ञ श्रेणी के अधिकारी विशेषज्ञ श्रेणी के अधिकारियों की तुलना में अपने राजनीतिक प्रभुओं के सानिध्य में अधिक रहते हैं ।

7. सामान्यज्ञों की अंत: सांगठनिक गतिशीलता विशेषज्ञों की तुलना में अधिक है । आई.ए.एस. अधिकारी एक विभाग से दूसरे विभाग में विभाग से लोक उद्यम या स्थायी शासन में तैनात होता रहता है, किंतु विशेषज्ञ की तैनाती केवल संबद्ध विभागों और प्रशासनिक क्षेत्र तक ही सीमित रहती है ।

8. सामान्यज्ञ श्रेणी के अधिकारियों की पदोन्नति विशेषज्ञ श्रेणी के अधिकारियों की तुलना में अधिक और शीघ्र होती है ।

9. विशेषज्ञों के कार्य निष्पादन का आकलन प्रबंधकुशल आई.एस.ए अधिकारियों द्वारा किया जाता है ।

10. विशेषज्ञों के विचारों और प्रस्तावों तथा उनकी सलाहों पर आई.ए.एस. अधिकारी ध्यान नहीं देते क्योंकि वे विशेषज्ञों को अपने अधीन मानते हैं ।

सामान्यज्ञों और विशेषज्ञों के बीच विवाद के उपर्युक्त कारणों से विशेषज्ञों में असंतोष की भावना व्याप्त हुई है जिसके फलस्वरूप उनके मनोबल और कार्यकुशलता पर प्रभाव पड़ा है ।

सामान्यज्ञों के पक्ष में तर्क:

सामान्यज्ञ सर्वोच्चता के संदर्भ में निम्न तर्क दिए गए हैं:

1. सामान्यज्ञ अपनी क्षमता, योग्यता और व्यापक अनुभव के कारण उच्च प्रबंधन स्तर के कार्यों के निष्पादन में विशेषज्ञों की तुलना में अधिक उपयुक्त हैं ।

2. सचिवालय में कर्मचारियों के कार्यकाल की प्रणाली जिला या फील्ड स्तर के अनुभव की धारणा पर आधारित है जो सामान्यज्ञ प्रशासकों के पक्ष में जाती है ।

3. प्रशासन के सभी स्तरों पर प्रबंधीकीय कार्य करने के लिए सामान्यज्ञ लोक सेवक का होना आवश्यक है, क्योंकि प्रशासन ऐतिहासिक तौर पर ‘क्षेत्र प्रशासन’ अर्थात तालुक जिला संभाग आदि के सिद्धांत पर आधारित है ।

4. अनुभवहीन मंत्री और विशेषज्ञ के बीच सामान्यज्ञ जनता और सरकार के बीच तथा दवाब समूहों और जनहित के बीच मध्यस्थ का कार्य करता है ।

5. विशेषज्ञ संकीर्ण और संकुचित विचार के होते हैं क्योंकि उनमें समुचित जानकारी का सर्वथा अभाव होता है । पॉल एच.एप्पलबी ने इस संदर्भ में ठीक ही कहा है ”किसी भी तरह के विशेषज्ञकिरण का मूल्य संकुचितवाद है” । दूसरी और सामान्यज्ञ का दृष्टिकोण व्यापक और मान्यता उदार होती है ।

विशेषज्ञों के पक्ष में तर्क:

प्रशासन में अपनी बेहतर पदस्थिति और अधिक भूमिका के पक्ष में विशेषज्ञों ने निम्न तर्क दिए हैं:

1. नीति निर्धारण से जुड़े सभी पदों के लिए सामान्यज्ञ उपर्युक्त नहीं है क्योंकि उनमें व्यावसायिकता तथा पर्याप्त जानकारी का अभाव होता हैं ।

2. अनुभवहीन सार्विक विशेषज्ञों द्वारा प्रेषित प्रस्तावों की तकनीकी जटिलता को नहीं समझ सकते हैं । जैसा कि कहावत है कि आई.ए.एस. अधिकारी ”हरफन मौला तो हैं किंतु माहिर किसी में नहीं ।”

3. सामान्यत लोक सेवा का गठन, 19वीं सदी में इंग्लैंड और भारत में विकसित ”बुद्धिमान नौसिखिया” के सिद्धांत पर आधारित था; परंतु यह वर्तमान के लिए ठीक नहीं । आज प्रशासनिक कार्य अधिक जटिल तकनीकी और विषय प्रधान हो गया है ।

4. वर्तमान ढाँचे में मंत्री विशेषज्ञों की सलाह और विशेष ज्ञान का लाभ लेने से वंचित हैं ।

5. सामान्यज्ञों द्वारा तैयार नीतियाँ वास्तविकता से परे हैं क्योंकि वे उन समस्याओं से अनभिज्ञ हैं जिनका सामना इन नीतियों को कार्यान्वित करते समय विशेषज्ञों को करना पड़ता है ।


5. सामान्यज्ञों और विशेषज्ञों के संगठन  के रूप (Generalists and Specialists – Forms of Organisation):

सामान्यज्ञों और विशेषज्ञों के संगठन के चार रूप हैं । उसके मध्य के संबंध की प्रकृति उनके द्वारा अपनाए गए रूप के प्रकार पर आधारित है ।

इनका विवरण नीचे दिया जा रहा है:

i. पृथक पदानुक्रम:

इस प्रणाली में सामान्यज्ञ और विशेषज्ञ दोनों तरह के अधिकारियों का वेतन समान होगा किंतु विशेषज्ञों को अधिक सम्मान मिलेगा । यह रूप जर्मनी, स्वीडन और ऑस्ट्रेलिया में प्रचलित है ।

ii. समांतर पदानुक्रम:

इस प्रणाली में विशेषज्ञ और सार्विक साथ-साथ काम करेंगे । दूसरें शब्दों में, दोनों के अपने-अपने पदानुक्रम (एक दूसरे के समांतर) होंगे । दोनों के बीच निरंतर संपर्क से काम में तालमेल बना रहता है ।

iii. संयुक्त पदानुक्रम:

इस प्रणाली में सामान्यज्ञ नौकरशाह और विशेषज्ञ तकनीकीविद् संयुक्त रूप से अपने वरिष्ठ अधिकारी स्थायी सचिव को रिपोर्ट करते हैं जो सामान्यत श्रेणी का होता है । इसी प्रकार, विशेषज्ञ और सामान्यज्ञ दोनों ही मंत्री को सलाह दे सकते हैं ।

iv. समेकित पदानुक्रम:

इस प्रणाली के अंतर्गत सभी सेवाओं और संवर्गों को एक में मिलाकर एक समेकित लोक सेवा (संवर्ग) होगी । इन सेवाओं में प्रवेश के लिए एक ही खुली प्रतियोगी परीक्षा होगी तथा वेतन और सेवा-शर्तें भी समान होंगी । पाकिस्तान ने इस मॉडल को वर्ष 1973 में अपनाया था । भारत में भी इस मॉडल पर विचार हो रहा है तथा इस आशय के सुझाव प्राप्त हो रहे हैं कि अखिल भारतीय सेवाओं और केंद्रीय सेवाओं को एक में मिलाकर एकीकृत सिविल सेवा का गठन किया जाए ।


6. प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफ़ारिशें (ARC Recommendation):

सार्विक और विशेषज्ञ के मध्य के विवाद के निपटान के लिए प्रशासनिक सुधार आयोग ने कार्मिक प्रशासन से संबंधित अपनी रिपोर्ट (1969) में निम्नलिखित सिफारिशें की थीं:

1. भारतीय प्रशानिक सेवा के लिए कार्यपरक क्षेत्र अलग किया जाना चाहिए । इस क्षेत्र में भू-राजस्व प्रशासन मजिस्ट्रेट से जुडे कार्य और राज्यों में विनियामक वे कार्य शामिल हो सकते हैं जो अन्य कार्यपरक सेवाओं के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते हैं । आयोग का मानना था कि आई.सी.एस. को सामान्यज्ञ सेवा नहीं माना जाना चाहिए, इसकी भूमिका अब पूर्णतः कार्यपरक होनी चाहिए ।

2. उच्च सेवाओं को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाना चाहिए-कार्यक्षेत्र से जुड़े पद और मुख्यालय से जुड़े पद । किसी कार्यपरक क्षेत्र के सभी पदों पर चाहे वे पद कार्यक्षेत्र से जुड़े हों या सचिवालय से; उस कार्यपरक सेवाओं के सदस्यों को ही कार्य सँभालना चाहिए ।

3. प्रबंधन से जुड़े जिन वरिष्ठ पदों के लिए विषय ज्ञान आवश्यक है उन पदों को सुसंगत और संबद्ध कार्यपरक संवर्गों के व्यक्तियों द्वारा ही भरा जाना चाहिए ।

4. लोक सेवा का व्यावसायीकरण होना चाहिए । इस प्रयोजन से भर्ती प्रशिक्षण और कैरियर प्लानिंग के कार्यों में नवीनता लाई जानी चाहिए ।

5. एक तर्कसंगत बेतन ढाँचा अपनाया जाना चाहिए ताकि प्रत्येक कार्य की वास्तविक जिम्मेदारियाँ सामने आ सकें ।

6. लोक उद्यमों में अल्पकालिक अथवा पूर्णकालिक अध्यक्ष या प्रबंधक निदेशक या निदेशकों के पदों पर सार्विक वर्ग के सचिवों को नियुक्त करने की प्रथा बंद होनी चाहिए ।

अब तक उठाए गए कदम:

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से भारत सरकार ने सामान्यज्ञ-विशेषज्ञ विवाद को सुलझाने के लिए निम्नलिखित कदम उठाये हैं:

1. भारत सरकार ने 1948 में केन्द्रीय सचिवालय सेवा का गठन किया । इसके फलस्वरूप स्थायी सचिवालय अधिकारियों के एक पृथक संवर्ग का उदय हुआ ।

2. सरकार ने 1957 में केन्द्रीय प्रशासनिक पूल की स्थापना की ताकि केन्द्रीय सचिवालय में उच्चतर पदों पर नियुक्तियाँ की जा सकें ।

3. 1966 में भारतीय वन सेवा का गठन किया गया जो कि एक विशेषज्ञ अखिल भारतीय सेवा है ।

4. 1961 में भारतीय आर्थिक सेवा और भारतीय सांख्यिकी सेवा का गठन हुआ और ये दोनों सेवायें भी विशेषज्ञ केन्द्रीय सेवाएँ थीं ।

5. सरकार द्वारा सचिव, अतिरिक्त सचिव, संयुक्त सचिव जैसे वरिष्ठ प्रशासनिक पदों पर विशेषज्ञों की नियुक्ति की गयी है ।

6. केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उद्यमों के निदेशक मंडलों में विशेषज्ञों को प्रवेश दिया गया है ।

7. योजना आयोग के अधिकांश पदों पर विशेषज्ञों की नियुक्ति की गयी है ।

फुल्टन कमेटी की सिफ़ारिशें:

ब्रिटेन में लोक सेवा पर गठित फुल्टन समिति (1966-68) ने लोक सेवा के व्यवसायीकरण और तर्क संगतिकरण की सिफारिश की थी । इसने प्रशासकों को सामान्यज्ञ के रूप में सम्बोधित किया और निम्नलिखित प्रेक्षण किए ।

1. आज के लोकसेवकों को राजनीतिक, वैज्ञानिक, सामाजिक, आर्थिक और तकनीकी समस्याओं से निबटने के लिए सुसज्जित होना चाहिए । उन्हें नये ज्ञान की तीव्र वृद्धि के साथ कदम मिलाकर चलना चाहिए और नयी तकनीकें अर्जित करके उनका अनुप्रयोग करना चाहिए । संक्षेप में लोक सेवा में गैर पेशेवर लोगों के लिए कोई स्थान नहीं है । इस सेवा में अनिवार्य रूप से पेशेवर महिलाओं और पुरुषों को शामिल किया जाना चाहिए ।

2. हमारा लक्ष्य प्रशासकों द्वारा विशेषज्ञों को या विशेषज्ञों द्वारा प्रशासकों को प्रतिस्थापित करना नहीं है । उन्हें एक-दूसरे का अनुपूरक होना चाहिए । अपनी विषय सामग्री में प्रशिक्षित और अनुभवी प्रशासक एक विशेषज्ञ के साथ अधिक सार्थक सम्बन्धों की स्थापना करेगा और इस प्रकार सेवा में विशेषज्ञ और प्रशासक दोनों का सर्वोत्तम योगदान प्राप्त होगा ।