Read this article in Hindi to learn about:- 1. प्रत्यायोजन का अर्थ (Meaning of Delegation) 2. प्रत्यायोजन का अवधारणा (Concept of Delegation) 3. विशेषताएं (Features) 4. आवश्यकता (Need) 5. महत्व (Importance) 6. विधियां (Methods).

प्रत्यायोजन का अर्थ (Meaning of Delegation):

इसका शाब्दिक अर्थ है, प्रदत्तीकरण । प्रत्यायोजन को भारापर्ण या हस्तांतरण भी कहते हैं । प्रत्यायोजन वस्तुतः सत्ता में भागीदारी की प्रक्रिया है । संगठन के संदर्भ में प्रत्यायोजन से आशय उच्च अधिकारी द्वारा अधीनस्थ को अपनी सस्ता का एक भाग प्रदान करना या सौंपना है । यह संगठन में सत्ता के विभाजन का एक तरीका है । वृक्ष व मूरेल ने इसे प्रबंधकीय प्रक्रिया बताया है । जिस प्रकार सत्ता का केन्द्र उच्चाधिकारी होता है, सत्ता के प्रत्यायोजन का केन्द्र अधीनस्थ होता है । थियो हैमेन – ”समस्या यह नहीं है कि सत्ता प्रत्यायोजित की जाती है या नहीं बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि कितनी सत्ता प्रत्यायोजित की जाती है ।” प्रत्यायोजन (Delegation), विकेन्द्रीकरण (Decentralization), निक्षेपण (Devolution) और विस्तृति (Deconcentration) में अंतर है, यद्वपि सभी का सामान्य आशय अधिकारों का हस्तांतरण है ।

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मुत्तलिब के अनुसार विस्तृति प्रशासनिक कार्यवाहियों से निक्षेपण राजनीतिक और वैधानिक कार्यवाहियों से जबकि विकेन्द्रीकरण प्रशासनिक, राजनीतिक वैधानिक सभी से संबंधित है । उदाहरण के लिये पंचायती राज विकेंद्रीकरण जबकि संभागायुक्त और कलेक्टर के कार्यालय विस्तृति है । वहीं केंद्र द्वारा राज्य को अधिकार प्रदान करना निक्षेपण (हस्तांतरण) है । इनमें से कोई भी प्रत्यायोजन का उदाहरण नहीं है । केंद्र या राज्य अपने कार्य पंचायतों से कराये या कलेक्टर अपना कोई कार्य डिप्टी कलेक्टर से करने को कहे तो यह प्रत्यायोजन होगा ।

परिभाषाएं:

मुने- ”प्रत्यायोजन से आशय है,” ”एक उच्च अधिकारी द्वारा अपने अधीनस्थ या को सत्ता का हस्तांतरण ।”

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जार्ज टेरी के अनुसार प्रत्यायोजन से आशय है- ”एक अधिकारी या इकाई से दूसरे अधिकारी या इकाई को सत्ता का हस्तांतरण ।”

मिलेट- ”प्रत्यायोजन का सार है” ”दूसरों को स्वविवेक सौंपना ताकि वे अपने कर्तव्यों से संबंधित समस्याओं के निदान हेतु निर्णय ले सकें ।” इसका अर्थ कार्य सौंपने से कुछ अधिक होता है ।

थियो हैमेन- ”प्रत्यायोजन का मात्र यह अर्थ है कि” ”अधीनस्थों को निर्धारित सीमा में कुछ करने की सत्ता सौंप दी जाए ।”

एफ. जी. मुरे- ”अन्य व्यक्तियों को कार्य का वितरण करना तथा उसे करने हेतु अधिकार प्रदान करना ।”

प्रत्यायोजन का अवधारणा (Concept of Delegation):

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संगठन विभिन्न व्यक्तियों का सामूहिक कार्य होता है । प्रत्येक व्यक्ति को करने हेतु कुछ कार्य और दायित्व सौंपे जाते है और इनके लिए आवश्यक सस्ता भी, ताकि वह निर्णय ले सके । इस प्रक्रिया को ”प्रत्यायोजन” के द्वारा ही सम्पन्न किया जाता है ।

1. संगठन की समस्त सस्ता शीर्ष पर केंद्रित होती है अतएव अधीनस्थों को ऊपर से ही यह सत्ता प्रत्यायोजित होती है ।

2. यद्यपि टेरी ”उच्च से अधीनस्थ” की अधोगामी की दिशा मात्र में ही प्रत्यायोजन को अस्वीकारते हैं तथा मानते हैं कि ऊर्ध्वगामी, समतल, तिर्यक सभी दिशा में प्रत्यायोजन किया जा सकता है ।

3. मिस मेरी पार्कर फालेट प्रत्यायोजन की संकल्पना को एक ”मिथक” मात्र कहती हैं क्योंकि इससे यह अर्थ निकलता है कि शीर्ष प्रबंध को संगठन की समस्त सत्ता पर अधिकार प्राप्त है ।

4. फालेट के अनुसार सत्ता कार्य में सन्निहित होती है अतः जिस व्यक्ति को वह कार्य सौंपा जाता है, उसे स्वमेव उसका प्राधिकार (सत्ता) भी मिलना चाहिए अर्थात् यह उच्च अधिकारी की इच्छा पर निर्भर नहीं हो ।

5. उल्लेखनीय कि प्रत्यायोजन के पश्चात भी सत्ता उच्च अधिकारी (प्रत्यायोजन कर्ता) के पास बनी रहती है । टेरी के शब्दों में – ”यह उसी प्रकार है जैसे आप अपना ज्ञान किसी के साथ बांटे । ऐसे में वह भी इस ज्ञान को प्राप्त कर लेता है लेकिन आप के पास भी वह ज्ञान पूर्ववत बना रहता है ।”

इसे सुनिश्चित करने के लिये वह निम्न कदम उठा सकता है:

1. पर्यवेक्षण

2. नियंत्रण

3. प्रदत्त सत्ता को वापस लेना

4. प्रदत्त सत्ता का कम कर देना अर्थात उसका एक भाग वापस ले लेना ।

5. सत्ता की मात्रा बड़ा देना अर्थात कुछ और सत्ता सौंप देना ताकि अधीनस्थ अपने कार्य को सफलतापूर्वक कर सके ।

प्रत्यायोजन की विशेषताएं (Features of Delegation):

1. प्रत्यायोजन ऊपर से नीचे होता है ।

2. प्रत्यायोजन के द्वारा प्रत्यायोजन करने वाला व्यक्ति अपने दायित्व से मुक्त नहीं होता ।

3. यह अधिकारों का वितरण है, विकेन्द्रीकरण नहीं ।

4. इसका उद्देश्य प्रबंधकीय एवं क्रियात्मक दक्षता को बढ़ाकर विशिष्टीकरण को प्राप्त करना होता है ।

5. प्रत्यायोजन एक से अधिक प्रकार का हो सकता है ।

6. यह अधीनस्थों की अधिकार सीमा को स्पष्ट करता है ।

7. ऐसे अधिकारों का प्रत्यायोजन नहीं किया जा सकता जो स्वयं अधिकारी या भारार्पणकर्ता के पास न हो ।

8. प्रत्यायोजन दूसरों का सहयोग प्राप्त करने का एक अनूठा प्रयास है ।

9. अधीनस्थ को अमुक कार्य के निष्पादन हेतु अधिकार का ही प्रत्यायोजन किया जाता है । भारार्पण-कर्ता के पद का नहीं ।

प्रत्यायोजन यह नहीं है:

1. यह पद का प्रत्यायोजन नहीं है (अपितु कार्य और सत्ता का है)

2. प्रत्यायोजन निर्णयों से बचना नहीं है ।

3. यह प्रबंधकीय शक्ति या सत्ता को गंवाना नहीं है ।

4. यह असीमित नहीं है (अर्थात प्रत्यायोजन की सीमायें हैं और एक निश्चित दायरे में ही होता है ।)

5. यह उत्तरदायित्व का हस्तांतरण नहीं है ।

6. यह सत्ता का वितरण है, विकेन्द्रीकरण नहीं है ।

7. प्रत्यायोजन की प्रक्रिया:

न्यूमेन व थियो हेमेन ने प्रत्यायोजन प्रक्रिया के तीन चरण बताये:

(i) अधीनस्थों को कार्य सौंपना ।

(ii) कार्य करने के लिए आवश्यक सत्ता प्रदान करना ।

(iii) उत्तरदायित्व तय करना ।

न्यूमैन के अनुसार ये तीन तत्व प्रत्यायोजन का तीन टांगों वाला यन्त्र (Tripot) है, जिसमें प्रत्येक दूसरे से संबल प्राप्त करता है और कोई भी दो अपने आप खड़े नहीं हो सकते ।

प्रत्यायोजन की आवश्यकता (Need for Delegation):

1. एक व्यक्ति सभी कार्य नहीं कर सकता ।

2. अधीनस्थों की योग्यता का लाभ लेना ।

3. कार्यों को शीघ्र संपन्न करने हेतु आवश्यक ।

4. कार्यों में गुणवत्ता लाने हेतु ।

5. विशेषज्ञों की सेवाएं लेने हेतु ।

6. अनौपचारिक सम्बन्धों के विकास में सहायक ।

7. प्रबन्धक के कार्यभार को हल्का करना ।

8. परिस्थितिनुकूल और शीघ्र निर्णय हेतु ।

प्रत्यायोजन का महत्व (Importance of Delegation):

1. बिना प्रत्यायोजन के संगठन साकार नहीं हो सकता ।

2. उच्च अधिकारियों पर से कार्य भार हल्का हो जाता है ।

3. छोटे काम अधीनस्थों को सौंपकर उच्च अधिकारी अन्य महत्वपूर्ण कार्यों पर अधिक ध्यान दे पाते हैं ।

4. अधीनस्थों में प्रबंधकीय क्षमता का विकास होता है ।

5. कुंण्टज/ओडोनेल के शब्दों में जिस तरह अधिकार संगठन की कुंजी है उसी तरह अधिकारों का प्रत्यायोजन प्रबंध की कुंजी है । एलन ने प्रत्यायोजन को प्रबन्ध का यन्त्र कहा है ।

प्रत्यायोजन की विधियां (Methods of Delegation):

हर्मन एवं रूडमैन ने प्रत्यायोजन की शुरूवात करने तथा प्रत्यायोजन को प्रभावी बनाने हेतु 3 विधियां बतायी:

1. आबँटन पुनरीक्षण – अधीनस्थ को जो कार्य सौंपा गया है उसका एक सारांश बनाने को कहा जाता है ।

2. परोक्ष सहभागिता – वरिष्ट अधिकारी अधीनस्थों से उन समस्या वाले क्षेत्रों का पता लगाने हेतु पूछता रहता है जिन पर कार्य की प्रगति हेतु अधिक ध्यान देना आवश्यक है ।

3. प्रतिवेदन लिखने की योग्यता – अधीनस्थों में किसी समस्या की जाँच उपरान्त उससे प्राप्त परिणामों को लिखित में सूचित करने की योग्यता होना चाहिए ।