Read this article in Hindi to learn about:- 1. संचार का अर्थ (Meaning of Communication) 2. संचार का परिभाषाएं (Definition of Communication) 3. महत्व (Importance) 4. प्रणाली (System) and Other Details.

संचार का अर्थ (Meaning of Communication):

संचार अंग्रेजी के कम्युनिकेशन का पर्याय है जो ग्रीक शब्द कम्यूनिस से बना है । कम्यूनिस का अर्थ है सामान्यतया स्थापित करना । संचारकर्ता और संचार प्राप्तकर्ता दोनों किसी निश्चित जानकारी पर संचार द्वारा ही सामान्य या एक समान स्थिति में आ जाते हैं ।

(i) संचार का अर्थ होता है संदेश और उसकी समझ को हस्तांरित करना ।

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(ii) वस्तुतः संदेश का प्रेषण मात्र ही पूर्ण संचार नहीं हो सकता अपितु साथ में उसकी समझ भी हस्तांरित होनी चाहिए ।

(iii) संचार एक कार्य भी है और एक प्रक्रिया भी ।

(iv) कार्य के रूप में ”संचार करना” महत्वपूर्ण होता है जबकि प्रक्रिया के रूप में संचार प्रेषित करने वाली प्रक्रिया महत्वपूर्ण होती है।

संचार का परिभाषाएं (Definition of Communication):

एलन- “संचार उन कार्यों का योग है- जो एक व्यक्ति दूसरे के दिमाग में समझ उत्पन्न करने के लिए करता है । यह कहने, सुनने, समझने की व्यवस्थित-अनवरत प्रक्रिया है ।”

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पीटर ड्रकर- ”संचार वह योग्यता है, जिसके द्वारा उधम के कार्यात्मक समूह एक-दूसरे को तथा एक-दूसरे के कार्यों, उद्देश्यों को समझ पाते हैं ।”

साइमन- ”संचार उस बहुमार्गी प्रक्रिया का नाम हैं, जिसके द्वारा निर्णय-विज्ञपतियां एक सदस्य से दूसरे सदस्य तक पहुंचाया जाता है । यह एक बहुमुखी प्रक्रिया हैं, जो औपचारिक एवं अनौपचारिक सभी मार्गों का उपयोग करती हैं ।”

जार्ज टेरी- ”संचार एक चिकना पदार्थ है जो संगठन में संचालन को सुगम बना देता है ।”

डेविस- ”संचार एक प्रक्रिया, ”संदेश समझ” एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुचाने की ।”

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थियो हैमेन- ”संचार सूचना और समझ एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक हस्तांतरित करने का कार्य है ।”

मिलेट- ”संचार का अर्थ है साझा उद्देश्यों की साझा समझ ।”

टीड- ”संचार का अर्थ है सामूहिक समस्या पर मस्तिष्कों का सामूहिक मिलन ।”

ऐलन- ”संचार एक व्यक्ति के मस्तिष्क को अन्य मस्तिष्कों से जोड़ने वाला पुल है ।”

चेस्टर बनार्ड- ”सत्ता ही संचार हैं । जो संचार समझा नहीं जा सके वह सत्तारहित होता है ।”

संचार का महत्व (Importance of Communication):

(1) एल्विन डाड के अनुसार संचार प्रबन्ध की मुख्य समस्या है ।

(2) संगठन निजी हो या सरकारी, संचार के बिना मृत प्राय: है । उसके विभिन्न भागों को तथा उनमें संचालित होने वाली गतिविधियों को आपस में जोड़ने का काम संचार ही करता है ।

(3) योजना बनाना, उसको क्रियान्वित करना संचार के माध्यम से ही संभव है । इस हेतु अधीनस्थों को निर्देश देने के लिये, उनमें समन्वय स्थापित करने के लिए, उन्हें अधिकारों का प्रत्यायोजन करने के लिए, प्रतिवेदन लेने हेतु और उन पर निर्देशन, नियंत्रण का उपयोग करने हेतु संचार की ही प्रक्रिया अपनानी पड़ती है ।

(4) फिफनर ने इसे प्रबंध का हृदय कहा है और मिलेट ने इसे संगठन की रक्त धारा की संज्ञा दी । बर्नाड ने संचार को संगठन का केंद्रीय तत्व माना है । मेरी नाइंग कुशिंग और न्यूमैन-समर ने इसे अच्छे समन्वय का एकमात्र साधन माना है ।

(5) साइमन, ”बिना संचार के कोई संगठन नहीं हो सकता है । क्योंकि तब व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित करने की कोई संभावना समूह में नहीं होगी ।”

संचार प्रणाली (Communication System):

संचार किसी सामग्री (लिखित या मौखिक संदेश) का किया जाता है, जो किसी माध्यम से होता है । इस हेतु एक निश्चित प्रक्रिया की आवश्यकता होती है ।

ये सब मिलकर संचार प्रणाली को जन्म देते हैं जिसके 3 तत्व हैं:

1. विषय सामग्री- जिसका संचार करना है, जैसे आदेश, निर्णय सूचना, आंकड़े आदि ।

2. संचार की विधि या तरीका- जैसे लिखकर, बोलकर, सुनकर, हावभाव या आचरण द्वारा ।

3. संचार प्रक्रिया- इसमें संदेश के स्त्रोत से लेकर संदेश पहुंचने तक सभी आवश्यक अंग आते है जैसे संवाददाता, संवाद, माध्यम, संवाद प्राप्तकर्ता प्रतिपेषण, इत्यादि ।

संचार प्रक्रिया (Communication Process):

सामान्यतया संचार प्रक्रिया के पांच तत्व या भाग है:

1. संवाददाता- इसी से संचार प्रक्रिया शुरू होती है । यह संवाद प्रेषित करता है ।

2. संवाद- यह संवाददाता से उत्पन्न होता है तथा संचार का मुख्य भाग है क्योंकि इसी का संचार करना संचार प्रक्रिया का प्रमुख लक्ष्य होता है ।

3. माध्यम- जिससे होकर विषय सामग्री प्राप्तकर्ता तक पहुंचती है । जैसे टेलिफोन, समाचार पत्र, आदि ।

संचार की सम्मेलन प्रणाली:

माहेश्वरी-अवस्थी के अनुसार आधुनिक युग में सबसे महत्वपूर्ण साधन, सम्मेलन प्रणाली है । इसमें व्यापक पैमाने पर भागीदारी होती है और प्रत्यक्ष संचार होता है । कई समस्यायें इसमें हल होती हैं, विचार विमर्श के माध्यम से ।

यद्यपि अनुमान समिति ने इसकी दुरूह प्रणाली को लेकर आलोचना की है । लोक प्रशासन में सम्मेलन पद्धति ने लोकप्रियता हासिल कर ली है । यह पद्धति देर को बचाती है, लालफीताशाही को घटाती है और तदनुरूपता को कम करती है ।

नोट:

प्रत्यक्ष संचार में एक स्थिति ऐसी हो सकती है जब किसी भौतिक माध्यम की जरूरत न पड़े । जैसे संवाददाता और संवाद प्राप्तकर्ता का एक ही स्थान पर आमने-सामने उपस्थित होना ।

4. संवाद प्राप्तकर्ता- यह दूसरे छोर पर होता है । द्विमार्गीय संचार में संवाद प्राप्तकर्ता और संवाददाता दोनों की स्थिति बदलती रहती है ।

5. प्रतिक्रिया या प्रतिपेषण- संवाद के प्रति प्राप्तकर्ता के व्यवहार की संवाददाता को होने वाली जानकारी ।

संचार के साधन (Sources of Communication):

1. श्रव्य साधन- जैसे रेडियो सभा सम्मेलन टेलीफोन ।

2. दृश्य साधन- व्यक्ति के हावभाव, नाटक, टेलीविजन, चलचित्र, समाचार पत्र ।

3. दृश्य- श्रव्य साधन- सवाक चलचित्र, टेलीविजन ।

4. प्रत्यक्ष संचार साधन- सभा सम्मेलन गोष्ठियां साक्षात्कार, टेलीविजन ।

5. अप्रत्यक्ष साधन- लिखित सामग्री (डाक, बुलेटिन, तार) टेलीफोन ।

वीनर का साइबरनेटिक्स मॉडल:

वीनर के अनुसार संचार समाज में एकीकरण रखने वाला कार्य है । समाज में विघटन की प्रक्रिया पायी जाती है जिसे एंट्रापी कहते हैं । उचित संचार द्वारा इस पर नियंत्रण करके समाज को विघटित होने से रोका जा सकता है । उचित संचार का अर्थ है आधुनिक संचार प्रौद्योगिकी (साइबरनैटिक्स) का प्रयोग ।

वीवर-शैनान कम्यूनिकेशन मॉडल:

संचार प्रक्रिया को लेकर वॉरन वीवर और क्लाउड शैनान ने ”आठ घटकीय सिद्धांत” दिया है । इसमें 8 तत्व शामिल हैं- स्त्रोत, कूटकारक, सन्देश, माध्यम, कूटमोचक, संवाद प्राप्तकर्ता, प्रतिपेषण और शोर ।

इसमें कूटकारक (Encoder) स्त्रोत से उत्पन्न संवाद को माध्यम में प्रवाहित होने योग्य बना देता है । कूटमोचक (Decoder) उसको इस योग्य बना देता है कि प्राप्तकर्ता उसे समझ सके ।

प्रतिपेषण (Feedback) को वीवर-शैनान ने ”प्रत्यक्ष बोध की प्रक्रिया” का नाम दिया अर्थात संदेश के प्रति प्राप्तकर्ता की प्रतिक्रिया से संवाददाता को अवगत होना चाहिए । शोर संचार प्रक्रिया में उत्पन्न बाधा है ।

संचार के स्वरुप (Nature of Communication):

संगठनात्मक आधार पर संचार के तीन स्वरूप हो सकते हैं:

1. आंतरिक संचार- जो संगठन और उसके कार्मिकों के मध्य होता है ।

2. अंतव्र्येक्तिक संचार- जो संगठन में कार्यरत कार्मिकों के मध्य होता है ।

3. बाह्य संचार- जो संगठन और जनता के मध्य होता है ।

मिलेट के अनुसार सम्मेलन पद्धति:

1. किसी समस्या के बारे में जानकारी प्राप्त करने में सक्षम बनाती है ।

2. समस्या के समाधान में मदद करती है ।

3. निर्णयों की स्वीकृति और कार्यान्वयन हासिल करने में सक्षम बनाती है ।

4. संगठन में काम कर रहे अफसरों के बीच एकता का बोध पैदा करती है ।

5. प्रशासनिक कर्मचारियों के बीच सूचना के आदान-प्रदान को बढ़ावा देती है।

6. कर्मचारियों का मूल्यांकन करने में सहायता करती ।

प्रबंध सूचना तंत्र:

प्रबंध सूचना तंत्र अत्याधुनिक संचार तकनीकों पर आधारित सूचना प्रणाली है जिसका वर्तमान में अत्यधिक प्रयोग हो रहा है ।

इसके तीन तत्व हैं:

1. सूचना प्राप्त करना

2. सूचना का संधारण करना और

3. सूचना भेजना

इसके लाभ हैं:

(1) संगठन को सही समय पर सही सूचना की प्राप्ति ।

(2) सूचना को संगठन के अनुरूप स्वरूप देना ।

(3) संगठन को कार्य केंद्रित और लक्ष्य केंद्रित रखना ।

(4) प्रभावी नियंत्रण और पर्यवेक्षण में प्रबंध को सहयोग देना ।

(5) संगठन की सफलता सुनिश्चित करना ।

संचार पर विचार (Views of Communication):

(i) हेनरी फेयोल:

संगठन में संचार-समस्या पर सर्वप्रथम विचार करने वाले चिंतक हेनरी फेयोल थे । उन्होंने औपचारिक संचार प्रक्रिया को उत्पादकता से जोड़ा और इसीलिये संचार की तीव्रता पर जोर दिया ।

(ii) पदसोपान और गैंग प्लांक:

पदसोपान के समर्थक फेयोल ने संचार को भी इतना महत्व दिया कि उन्हें कठोर ”उचित माध्यम” प्रक्रिया में संशोधन करना पड़ा ताकि संचार की गति अवरूद्ध न हो । उन्होंने गैंग प्लांक के रूप में ”क्षेतिज संचार” का समर्थन किया ताकि विलंब न हो ।

(iii) चेस्टर बर्नार्ड:

बर्नार्ड ने संगठन के तीन तत्व बताये- सामूहिक उद्देश्य, योगदान की इच्छा और संचार (या सत्ता) । बर्नार्ड ने संचार का सत्ता के रूप में प्रयुक्त किया है । लेकिन वे औपचारिक के स्थान पर अनौपचारिक संचार को अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं ।

(iv) मेरी पार्कर फालेट:

फालेट ने प्रशासनिक द्वन्द्व को कम करने के लिये समन्वय का सिद्धांत दिया । समन्वय के लिये जरूरी है कि प्रबंधक अधीनस्थों से प्रत्यक्ष संपर्क में रहे । यह संपर्क तभी होगा जब ऊध्वार्धर और क्षेतिज दोनों रेखाओं पर अवस्थित कार्मिकों के मध्य प्रत्यक्ष संचार हो । फालेट ने इसके लिये आधुनिक साधनों के स्थान पर प्रबंधक की सूझबूझ को अधिक महत्व दिया है ।

(v) हरबर्ट साइमन:

साइमन के अनुसार संचार से आशय है “निर्णय आज्ञप्ति को एक सदस्य से दूसरे सदस्य तक पहुंचाने वाली प्रक्रिया ।” स्पष्ट है कि बिना संचार के अभाव में समूह द्वारा व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित करने की कोई संभावना नहीं होगी । साइमन अनौपचारिक संचार मार्गों पर बल देते हुए कहते हैं कि, “ग्रेपवाइन (औपचारिक संचार) किसी भी संगठन में जनमत के बेरोमीटर की तरह है । यदि प्रशासक इसे सुने तो सदस्यों में दिलचस्प बने हुए मुद्‌दों से तो परिचित होता ही है, उन मुद्‌दों पर सदस्यों की राय भी जान लेता है ।”

(vi) मैकेन मारा:

इन्होंने सही निर्णय के लिये पर्याप्त और संबंधित सूचनाओं को जरूरी माना । उनके अनुसार, ”मुझे किसी समस्या से संबंधित पर्याप्त और सही तथ्य, सूचनाएं उपलब्ध करा दीजिये, में पूर्णत: सही निर्णय ले लूंगा ।”

(vii) नाबर्ट वीनर:

वीनर ने अत्याधुनिक संचार के लिये साइबरनेटिक्स शब्द सर्वप्रथम प्रयुक्त किया था, जो मूलत: ग्रीक शब्द “काइबरनिट्स” से बना है । काइबरनिट्स का अर्थ है, नाविक या कर्णधार ।

(viii) धनात्मक और ऋणात्मक “एन्ट्रापी”:

वीनर के अनुसार संचार समाज या संगठन में एकीकरण सुनिश्चित करने वाला महत्वपूर्ण तत्व है । प्रत्येक समाज या संगठन में विघटन की प्रक्रिया या प्रवृत्ति पायी जाती है जिसे उसने धनात्मक एंट्रापी कहा । इस धनात्मक एंट्रापी को काबू में रखकर ही विघटन पर नियंत्रण रखा जा सकता है और ऐसा उचित संचार व्यवस्था द्वारा होता है । जैसे-जैसे आधुनिक प्रवृत्तियां विकसित हो रही हैं, धनात्मक एंट्रापी की मात्रा और स्वरूप भी बदल रहा है अतः उस पर नियंत्रण के लिये उतनी ही अधिक प्रभावी संचार प्रणाली की जरूरत है ।

इस युग में ”साइबरनेटिक्स” ऐसी ही संचार प्रणाली है जिसके अभाव में व्यवस्था कायम नहीं रखी जा सकती । हिक्स-गुलेट ने वीनर को संगठन में कम्युटर आधारित सूचना प्रौद्योगिकी के विकास को सुनिश्चित करने का श्रेय दिया है ।