Read this article in Hindi to learn about the meaning and defects of adjudication.

अधिनिर्णय का अर्थ (Meaning of Adjudication):

राज्यों के बढते दायित्वों ने प्रदत्त व्यवस्थापन के तहत जिस न्याय निर्णय की प्रणाली को विकसित है, उसे प्रशासनिक आधिनिर्णय के रूप में मान्यता है । अधिनिर्णय (Adjudication) का अर्थ है निर्णय फैसला करना । जब किसी प्रशासकीय अधिकारी या अभिकरण द्वारा किसी विवाद पर न्यायिक निर्णय दिया जाता है, तो उसे अधिनिर्णय कहते है ।

इससे आशय है प्रशासनिक न्यायाधिकरणों या अधिकारियों द्वारा प्रशासनिक कार्यों में उत्पन्न बाधाओं/विवादों का सुनवाई पश्चात फैसला । सामान्य न्यायालय द्वारा दो पक्षों के विवाद का जाँच उपरान्त दिया जाने वाला निर्णय न्यायिक निर्णय कहलाता है जबकि प्रशासकीय अभिकरण द्वारा दिया जाने वाला निर्णय अधिनिर्णय कहलाता है ।

न्यायालय के समान प्रशासकीय अभिकरण विवादों में विभिन्न पक्षों की सुनवाई करते हैं तथा तथ्यों के आधार सूक्ष्म जाँच करके निर्णय करते हैं, ये निर्णय ही प्रशासकीय अधिनिर्णय कहलाते हैं । आधुनिक युग में प्रशासन ने अनेक नियम बनाने की शक्ति हासिल की है । इनका पालन कराना भी उन्हीं का दायित्व है इस हेतु अनेक प्रशासकीय न्यायाधिकरण निर्मित किये जाते हैं, जो मामलों की सुनवाई करके निर्णय देते है ।

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चूंकि ये निर्णय न्यायालय द्वारा नहीं दिये जाते अपितु इनमें बैठे हुए प्रशासकीय अधिकारी देते हैं अतः यह निर्णय न्यायिक निर्णय नहीं कहलाते हुए प्रशासकीय अधिनिर्णय कहलाते है । जैसे- औद्योगिक न्यायाधिकरण, केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल आदि द्वारा दिये गये निर्णय ।

स्पष्ट है कि प्रशासन अपने दैनंदिनी कार्यों के बारे में जो निर्णय करता है, वे अधिनिर्णय नहीं होते अपितु प्रशासकीय निर्णय होते है । अधिनिर्णय के लिए ”विवाद” का होना आवश्यक है । जब किसी प्रशासकीय नीति या कार्य या उसके संबंध में निर्णय को न्याय विरूद्ध कहकर चुनौती दी जाती है, तब ”अधिनिर्णय” की जरूरत पड़ती है । इस चुनौती पर निर्णय करने वाली सत्ता को ”न्यायाधिकरण” कहा जाता है ।

डिमांक- ”प्रशासकीय अधिनिर्णय एक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा प्रशासकीय एजेन्सीयां अपने काम के दौरान उत्पन्न ऐसे मामलों का निपटारा करती है, जिसमें कानून का प्रश्न निहित होता है ।”

एल.डी.व्हाइट- ”प्रशासनिक अधिनिर्णय का अर्थ है, प्रशासकीय अभिकरण द्वारा कानून तथा तथ्य के आधार पर किसी गैर सरकारी पक्ष से संबंधित विवाद की जांच और उस पर निर्णय ।”

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गठन:

सामान्य न्यायालयों से हटकर जब किसी स्वतंत्र न्यायिक किस्म के अभिकरण का गठन शासन करता है तब उसे प्रशासनिक न्यायाधिकरण या अर्द्ध न्यायिक अभिकरण कहते हैं । इन्हें शक्तियाँ भी शासन द्वारा ही प्रदान की जाती हैं ।

इनका स्रोत संविधान भी हो सकता है जैसे- नर्मदा ट्रिब्यनल, कावेरी ट्रिब्यूनल । इनका गठन अंतर्राज्यीय नदी जल विवादों (अनु. 263 के तहत) के निपटारे हेतु, किया जाता है । राज्यों की अन्य सामूहिक समस्या विशेष के समाधान हेतु अंतर्राज्यीय परिषद (अनु. 263 के तहत) का गठन किया जाता है ।

प्रशासकीय अधिनिर्णय के दोष (Defect of Administrative Adjudication):

उपर्युक्त लाभों के साथ ही ”अधिनिर्णय” को अनेक आलोचनाओं का शिकार भी होना पड़ा है, निम्नलिखित आधारों पर:

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1. यह विधि के शासन का अतिक्रमण करती हैं ।

2. ये प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्त और उसकी न्यायोचित प्रक्रिया पर आघात करते हैं क्योंकि इनमें से अधिकांश न्यायाधिकरण स्वयं विभाग के द्वारा ही स्थापित होते हैं ।

3. इनके निर्णयों का व्यापक प्रचार-प्रसार नहीं किया जाता जिससे जनता भावी निर्णयों की प्रवृत्ति को नहीं जान पाती ।

4. इन न्यायाधिकरणों में न्यायिक प्रशिक्षण तथा अनुभव प्राप्त व्यक्ति नहीं होते हैं । अतः उनका दृष्टिकोण अपेक्षित निष्पक्षता और न्याय का नहीं रह पाता ।

5. कई बार न्यायाधिकरणों के निर्णयों के विरूद्ध सामान्य न्यायालयों में अपील की अनुमति नहीं रहती जो न्यायिक सिद्धान्त का उल्लंघन है ।

6. अलग-अलग न्यायाधिकरण अपनी-अपनी प्रक्रिया अपनाते हैं, जिससे उनकी एकरूपता भंग हो जाती है । इससे असंगत निर्णयों का मार्ग प्रशस्त होता है और न्यायिक अराजकता फैलती है ।

वस्तुतः उपर्युक्त दोषों के कारण ही लार्ड हेवार्ट ने अधिनिर्णय प्रणाली को नवीन निरंकुशता की संज्ञा दी और इसे ”संगठित अराजकता ” कह डाला । वस्तुतः यही सही है कि प्रशासनिक अधिनिर्णय में अनेक कमियां और दोष है, किन्तु इसकी आधुनिक समाजों में अनिवार्यता है और इसे समाप्त नहीं किया जा सकता । जरूरत इसमें ऐसे सुधारों की है, ताकि यह न्याय के सिद्धान्तों पर खरी उतर सके ।

संरक्षक उपाय या सुधारात्मक प्रयास:

प्रशासनिक अधिनिर्णय को अधिक न्यायोंचित और विधि सम्मत व्यवस्था का रूप देने हेतु निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते है:

1. इनमें नियुक्त व्यक्ति विधिक रूप से शिक्षित तथा पर्याप्त अनुभवी हो । इनकी नियुक्ति सर्वोच्च या उच्च न्यायालय (जैसी व्यवस्था हो) से परामर्श करके की जाए ।

2. सभी न्यायाधिकरणों की एक समान कार्य प्रक्रिया निर्धारित हो ।

3. निर्णय देते समय उसके आधार या कारणों का स्पष्ट रूप से वर्णन हो ।

4. इन निर्णयों को न्यायिक समीक्षा के अधीन रखा जाए ।

5. मात्र विशिष्ट कार्यों की पूर्ति के लिए ही न्यायाधिकरण स्थापित किये जाए, हर किसी कार्य के लिए नहीं ।

6. इनके निर्णयों का यथा समय प्रकाशन और प्रचार-प्रसार हो ।

निष्कर्षत:

प्रशासनिक न्यायाधिकरण आधुनिक युग की एक अनिवार्य जरूरत बन चुके हैं । चूंकि राज्य के हस्तक्षेप में कमी के बजाय बढ़ोतरी की प्रवृत्ति है और उदारीकरण के बावजूद नये-नये क्षेत्रों में उसका पदार्पण हो रहा है, अतएव प्रशासनिक अधिनिर्णय का भी निरन्तर विकास अपेक्षित है ।

इन अधिनिर्णयों में इस तरह सुधार की आवश्यकता है कि इनकी लोचशीलता, त्वरित कार्यवाही, सामाजिक हितों की पूर्ति जैसी विशेषताएं भी अक्षुण्ण रहें, साथ ही इनके अधिक पारदर्शी, न्यायोचित निष्पक्ष और स्वीकार्य बनाया जा सके ।