लोक प्रशासन की प्रकृति | Nature of Public Administration in Hindi.

लोक प्रशासन की प्रकृति के दो आयाम हैं, एक क्षेत्रगत प्रकृति और दूसरी स्वरूप गत प्रकृति ।

(A) क्षेत्रगत प्रकृति (Area Nature):

लोक प्रशासन के क्षेत्र में किस प्रकृति के कार्य शामिल किए जाएं, मात्र प्रबंधकीय या उच्च स्तर से लेकर अधीनस्थ स्तरों तक के सभी कार्य ।

इस आधार पर दो दृष्टिकोण प्रचलित हैं:

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(1) प्रबन्धकीय दृष्टिकोण (Managerial View):

इस दृष्टिकोण के अनुसार प्रशासन प्रबंध है । गुलिक के अनुसार ”प्रशासन अधीनस्थों से कार्य है ताकि उद्देश्य प्राप्त सके ।” इस प्रकार यह दृष्टिकोण पोस्डकार्ड दृष्टिकोण का समर्थक है । इसके तहत यह जाता है प्रशासन में मात्र पोस्डकार्ड कार्य ही आते हैं, जो उच्च प्रबन्धक वर्ग या प्रशासकवर्ग सम्पन्न करता है ।

इसकी विशेषताएं और मान्यताएं इस प्रकार हैं:

(i) प्रशासन और प्रबन्ध पर्याय हैं ।

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(ii) सर्वत्र ही प्रशासन की क्रियाएं एक समान होती हैं ।

(iii) सभी क्षेत्रों के प्रशासन एक ही हैं चाहे निजि हो या सार्वजनिक ।

(iv) निचले स्तर (Bottom Level) की क्रियाएं प्रशासनिक क्रियाएं नहीं होती हैं ।

(v) प्रबन्धकीय तकनीकों से ही उद्देश्य की प्राप्ति हो सकती है ।

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(vi) प्रत्येक संगठन में दो वर्ग होते है प्रथम वह जो कार्य करवाता है और दूसरा वह जो कार्य करता है । इसमें प्रथम वर्ग ही महत्वपूर्ण है और उसके कार्य ही प्रशासन है ।

(vii) प्रशासन में मात्र प्रबन्धकीय गतिविधियां शामिल हैं, लिपिकीय, तकनीकी, मानवीय (Manual) नहीं ।

पक्ष में तर्क:

(a) प्रबन्धकीय क्रियाएं सभी प्रशासनों में समान रूप से पायी जाती है ।

(b) यदि सभी क्रियाओं को शामिल करेगें तो प्रत्येक क्षेत्र का एक विशिष्ट प्रशासन होगा जैसे शिक्षा प्रशासन, स्वास्थ्य प्रशासन ।

समर्थक विद्वान:

साइमन/स्मिथवर्ग/थाम्पसन, गुलिक, फेयोल, मरसन आदि ।

(2) एकीकृत दृष्टिकोण (Integral View):

इसके अनुसार लोक प्रशासन सभी गतिविधियों का योग है । प्रबन्धकीय, लिपिकीय, तकनीकी, मानवीय आदि सभी क्रियाएं प्रशासन का भाग होती हैं अर्थात उच्च से लेकर निम्न स्तर तक संपादित सभी गतिविधियां का उद्देश्य प्राप्ति में समान योगदान होता है ।

इसकी मान्यताएं इस प्रकार है:

(i) प्रशासन एक सामूहिक कार्य है ।

(ii) प्रशासन मात्र प्रबन्ध नहीं है अपितु उससे अधिक है ।

(iii) प्रबन्धकीय तकनीकों (पोस्डकार्ब), के स्थान पर पाठ्य विषय सामग्री अधिक महत्व रखती है ।

(iv) प्रशासन का हदय निचले स्तर की विषय वस्तु है, जहां प्रबन्ध को काम करना है ।

(v) प्रशासन प्रबन्धकीय, लिपिकीय, तकनीकी आदि विविध गतिविधियों का कुल योग है । इनमें प्रत्येक गतिविधि अपन स्थान पर महत्वपूर्ण है ।

(vi) प्रशासन क्षेत्रवार पृथक-पृथक होता है, जैसे शिक्षा का प्रशासन, स्वास्थ्य प्रशासन से भिन्न होगा क्योंकि दोनों की अपनी विशिष्ट पाठ्य सामग्री है ।

पक्ष में तर्क:

(a) अधीनस्थ कार्मिकों की उपस्थिति ही सिद्ध करती है कि उनके कार्यों की लक्ष्य प्राप्ति में भूमिका है ।

(b) प्रशासन को सदैव ही एक सामूहिक कार्य माना जाता है, अत: निचले स्तर की उपेक्षा प्रशासन की अवधारणा के विरूद्ध है ।

समर्थक विद्वान:

डिमाक, व्हाइट, एफएम-माकर्स आदि ।

(B) स्वरूपगत प्रकृति (Formative Nature):

लोक प्रशासन के स्वरूप से संबंधित तीन मुख्य सवाल हैं:

(1) यह एक कला है ?

(2) यह एक विज्ञान है ?

(3) यह एक व्यवसाय है ?

पहला प्रश्न सरकारी कामों को करने के कौशल से संबंधित है, जबकि दूसरा इन कार्यों के शैक्षिक स्वरूप (अध्ययन विषय) से संबंधित है । तीसरा प्रश्न लोक प्रशासन के व्यवसायिक पेशे से जुड़ा हुआ है ।

लोक प्रशासन: कला और विज्ञान का विवाद:

प्रत्येक सामाजिक विज्ञान में यह प्रश्न उठाया जाता है कि वह कला है, विज्ञान है या दोनों है । इन विवादों से उस विषय के अध्ययन को मेरी समझ में यही लाभ मिलता है कि पाठकों, विद्यार्थियों को यह पता चलता है कि कला और विज्ञान विषय के लिए कौन से आधारभूत तत्व अनिवार्य होते हैं और वह उन तत्वों से कहां तक सरोकार रखता है, अन्यथा विषय की विषय-वस्तु (Subject Matter) या उसके विकास में यह परिचर्चा कोई महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, ऐसा नहीं लगता ।

इसी प्रकार ग्राहाम वालास के इस कथन से कैसे सहमत हुआ जा सकता है कि लोक प्रशासन को अपरिपक्वास्था में विज्ञान मानने से उसका विकास रूक जाएगा । क्या विज्ञानों की श्रेणी में रखे गये अन्य सामाजिक विज्ञानों के साथ ऐसा हुआ है ?

अनेक विद्वानों ने कला और विज्ञान को पूर्णत: पृथक मानने की भूलें भी की हैं । इस बारे में एम. पी. शर्मा का निष्कर्ष उचित लगता है कि कोई कला किसी न किसी विज्ञान पर ही आधारित होती है । वस्तुत: जिस प्रकार सार्वभौमिक सिद्धांतों की उपस्थिति किसी विषय को विज्ञान बनाने के लिए आवश्यक है, उसी प्रकार कला के भी निश्चित सिद्धांत होते हैं, जिनका प्रयोग करके कलाकार उस कला में निपुण हो पाता है ।

प्रशासन की कला:

लोक प्रशासन को कला मानने पर विवाद नहीं है । शब्द के अनुसार कला से आशय है किसी कार्य को करने का कौशल या उसमें विशेष निपुणता ।

कला की विशेषताएं इस प्रकार हो सकती हैं:

(1) निश्चित कौशल:

प्रत्येक कला एक कौशल होता है, जिसके प्रयोग से कोई भी वस्तु या व्यवहार आकर्षक और उपयोगी बन जाता है, जैसे सुनार की कला सोने को आकर्षक आभुषणों में बदल देती है ।

(2) कल्पनाशीलता:

कला में निपुणता प्राप्त करने के लिए कलाकार को कल्पनाशीलता की जरूरत पड़ती है ।

(3) कतिपय सिद्धांत:

प्रत्येक कला कतिपय सिद्धान्तों पर आधारित है, जिनका पालन करके ही कलाकार बना जा सकता है, या उस कला का प्रदर्शन किया जा सकता है । ये सिद्धान्त बताते हैं कि कार्य ”कैसे” सम्पन्न किया जाता है ।

(4) रूचि:

कला को तभी ग्रहण किया जा सकता है, जब व्यक्ति उसमें रूचि ले ।

(5) अभ्यास:

कला में निपुणता के लिए या उसमें सुधार के अभ्यास जरूरी होता है ।

(6) व्यैक्तिकता:

कला किसी व्यक्ति या समूह की व्यैक्तिक विशेषता होती है ।

(7) जन्मजात प्रवृत्ति:

कुछ व्यक्ति किसी कला के गुणों को लेकर पैदा होते है । अधिकांश व्यक्तियों में एक कला विशेष के प्रति रूझान पाया जाता है, जिसके कारण वे उन कलाओं को आसानी से ग्रहण कर सकते हैं । उपर्युक्त आधारों पर प्रशासन को विश्लेषित करें, तो हम पाते है कि प्रशासन, चाहे लोक का हो या निजी क्षेत्र का, एक निर्विवाद कला है ।

लोक प्रशासन को तीन नजरिये से देखा जाता है:

1. सरकारी कार्यों का प्रशासन

2. एक शैक्षिक विषय और

3. एक व्यवसाय

प्रथम नजरिये में वह एक कला के रूप में सामने आता है । लगभग सभी विद्वान एकमत हैं कि प्रशासन एक पूर्ण कला है । कला का अर्थ है- कौशल आधारित क्रिया या व्यवसाय । जैसे संगीत कला, लुहार की कला, सुनार की कला, मूर्तिकला । प्रत्येक कला का एक निश्चित कौशल होता है इस कौशल में पारंगत होने पर व्यक्ति उस कला का कलाकार बन जाता है ।

कला में निपुणता पाने के लिए व्यवस्थित और निरन्तर अभ्यास की जरूरत होती है । अब यह प्रमाणित हो चुका है कि कला मात्र जन्मजात ही नहीं होती, अपितु वह अभ्यास द्वारा भी ग्रहण की जा सकती है और प्रशिक्षण द्वारा विकसीत की जा सकती है ।

ग्लैडन के शब्दों में, ”कला में ज्ञान की आवश्यकता अवश्य होती है लेकिन वह सिद्धांत की अपेक्षा अभ्यास पर बल देती है, अतः कलाकार के लिए उस ज्ञान या शास्त्र का विद्वान होने की अपेक्षा उस कार्य को करने में कुशल होने की जरूरत है।”

एम. पी. शर्मा ने दार्शनिक अन्दाज में उदाहरण देते हुए बताया कि जीवन में अतिमहत्व की चीजें धन, वस्तु और मनुष्य में से सबसे महत्वपूर्ण मनुष्य है । अतः मनुष्यों का निर्देशन नियंत्रण समन्वय करने वाली प्रशासन की कला निश्चित ही धन वस्तुओं से संबंधित कला से श्रेष्ठतम होनी चाहिए ।

उन्होंने बताया कि जिस प्रकार प्रत्येक कला अपने को किसी माध्यम से व्यक्त करती है, उसी प्रकार प्रशासन की कला भी तीन माध्यमों द्वारा व्यक्त होती है, प्रथम संगठन द्वारा, द्वितीय संगठन के कार्मिकों द्वारा तथा तृतीय उन लोगों के सामाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण द्वारा जिनके लिए संगठन काम कर रहा है ।

कला के लिए आवश्यक आधार यथा कतिपय निश्चित सिद्धांत, अभ्यास की आवश्यकता, रूचि, जन्मजात प्रवृत्ति आदि की कम अधिक मात्रा में उपस्थिति प्रशासन की क्रियाओं, व्यवहारों में भी दृष्टव्य होती है, जो प्रशासन को एक कला बना देती है । यह सिद्धांत की अपेक्षा व्यवहार की कला अधिक है ।

लोक प्रशासन की कला को विद्वानों ने विभिन्न दृष्टिकोणों से परिभाषित किया है:

(1) प्रशासन एक ललित कला है:

आर्डवे टीड, एम.पी. शर्मा आदि प्रशासन को ललित कला मानते है । आर्डवे टीड (आर्ट ऑफ पब्लिक एडमिनिशट्रेशन) के अनुसार, ”यदि रंग-मिट्‌टी से बनी कृति ”कलाकृति” है, स्वरों के उतार-चढ़ाव का नाम ”संगीत” है, शब्दों और भावों का संचय ”साहित्य” है, (और ये सब यदि ललित कलायें है) तो वह ”श्रम” भी ललित कला है, जो उद्देश्य की पूर्ति हेतु व्यक्तियों के संबंधों को निकट लाता है । निश्चित रूप से यह एक उच्च कोटि की कला हे ।”  एम. पी. शर्मा, ”लोक प्रशासन कम नहीं अपितु कुछ अधिक ही ललित कला है ।”

(2) प्रशासन एक कला है, जिसे प्रशिक्षण से प्राप्त किया जा सकता है:

उर्विक- प्रशासन की कला को खरीदा नहीं जा सकता है । सुकरात- प्रशासन की कला विशेष रूप से ग्रहण की जाती हैं । जैसे जूता बनाने के लिए मोची, फर्नीचर बनाने के लिए बढ़ई दक्ष होता है, उसी प्रकार रूसी पोत का संचालन करने वाले भी विशेष दक्ष प्रशासक होते हैं ।

(3) प्रशासन निश्चित रूप से एक कला है:

एल॰ डी॰ व्हाइट- लोक प्रशासन विज्ञान है या नहीं, यह भविष्य की बात है, लेकिन वर्तमान में वह निश्चित ही एक कला है ।

रूथना स्वामी- प्रशासन एक पूर्ण सिद्ध कला है क्योंकि अन्य कला की भांति इसके भी निश्चित सिद्धान्त हैं ।

ग्लैडन- प्रशासन की कला का भी निश्चित ज्ञान और तकनीक मौजूद है ।

माहेश्वरी-अवस्थी- ”एक प्रक्रिया के रूप में लोक प्रशासन निश्चित ही कला है ।”

लोक प्रशासन को कला मानने के पीछे तर्क:

1. प्रशासक या प्रबन्धक या कोई कार्मिक अपने कार्यों को उपलब्ध साधनों और विचार शक्ति के समन्वय द्वारा सम्पन्न करता है । अर्थात प्रशासन समन्वय की कला है । एल. डी. व्हाइट ”प्रशासन लक्ष्य प्राप्ति के लिए बहुत से व्यक्तियों के संबंध में निर्देशन, नियन्त्रण और समन्वयीकरण की कला है ।”

2. लोक प्रशासन में प्रबन्धकीय कला का इस्तेमाल करके ही जनता के लिए अनेक सेवा सुविधाएं संचालित की जाती हैं । लोक प्रशासन की कला द्वारा जीवन को निरन्तर सुखी समृद्ध बनाया जा रहा है ।

3. एक कलाकार के अनुरूप ही प्रशासक भी दूरदृष्टी और स्वप्नदर्शी होता है, तभी वह आदर्श समाज की कल्पना कर उसे प्राप्त करने के तरीकों को निर्देशित करता है ।

4. कला की भांति प्रशासन भी रचनात्मक है । वह उपलब्ध साधनों को बेहतर विकल्प में परिणित करता है ।

5. लोक प्रशासन की सफलता जन सहभागिता की प्राप्ति में है और इसे प्राप्त करना प्रशासन की कला है ।

6. अन्य कला की भांति प्रशासनिक कला सभी प्रशासकों में समान रूप से नहीं पायी जाती ।

7. अन्य कला की भांति प्रशासनिक कला में भी अनुभव के लाभ पारंगतता बढ़ती जाती है ।

8. प्रशासकों के प्रशिक्षण की आवश्यकता से स्पष्ट है कि प्रशासनिक कला की उपेक्षा नहीं की जा सकती ।

निष्कर्ष:

प्रशासन और प्रबन्ध की कला मानव सभ्यता जितनी प्राचीन है और इसका महत्व सभ्यता विकास के साथ निरन्तर बढ़ता गया है । यह एक आवश्यक कला के रूप में सर्वत्र मान्य है । नूरजहां बावा के शब्दों में, प्रशासक को एक काल्पनिक विचारक, रचनात्मक रचयिता,…. महान प्रोत्साहक और नेता होना आवश्यक है, जो भविष्यदृष्टा भी हो । ….. कार्मिकों को अधिक ज्ञान और कुशलता प्राप्त करने के लिए प्रशासकों को ही प्रोत्साहन देने आगे आना है ।”