नागरिकों की शिकायतें और लोक प्रशासन | Citizens’ Grievances and Public Administration.

कल्याण की और रुझान आधुनिक जनतांत्रिक राज्यों की विशेषता है । अत: राष्ट्र के सामाजिक-आर्थिक विकास में सरकार एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने लगी है ।

इसके परिणामस्वरूप नौकरशाही का विस्तार हुआ है और प्रशासनिक प्रक्रिया में कई गुना बढ़ोतरी हुई है जिसके कारण सरकार के विभिन्न स्तरों पर लोकसेवकों की शक्ति और विवेकाधिकार बढ़ गए हैं । लोक सेवकों द्वारा श क्ति और विवेकाधिकारों के दुरुपयोग ने उत्पीड़न अनाचार, कुप्रशासन तथा भ्रष्टाचार के अवसर खोल दिए हैं । इस प्रकार की स्थिति में प्रशासन के विरुद्ध नागरिकों का शिकायतें पैदा हो जाती हैं ।

चेंबर्स कोश के अनुसार शिकायत (Grievance) का अर्थ है- ‘पीड़ा का एक आधार’; एक परिस्थिति जो उत्पीड़क या गलत लगती है । जनतंत्र का सफलता और सामाजिक-आर्थिक विकास का साकार होना नागरिकों की शिकायतों के समाधान होने का सीमा पर निर्भर है ।

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अत: इन शिकायतों का निपटारा करने के लिए दुनिया के विभिन्न भागों में निम्नलिखित संस्थागत उपायों को विकसित किया गया है:

(a) ऑम्बुड्‌समैन या लोकपाल प्रणाली (Ombudsman System),

(b) प्रशासनिक न्यायालय प्रणाली (The ADC System),

(c) प्राधिकर्ता (The Procurator System) ।

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नागरिकों का शिकायतों का निपटारा करने के लिए दुनिया का सर्वप्रथम जनतांत्रिक संस्था ‘स्केंडिनेवियन इंस्टीट्‌यूशन ऑफ ऑम्बुड्‌समैन’ थी । अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विद्वान डोनेल्ड सी. रोवाट के अनुसार- ”प्रशासन के अनुचित कार्यों के बारे में एक औसत नागरिकों का शिकायतों का निपटारा करने के लिए यह एक अद्वितीय रूप से उपयुक्त संस्था है ।”

ऑम्बुड्‌समैन की संस्था का निर्माण सर्वप्रथम स्वीडन में 1809 में हुआ था । ‘ऑम्बुड’ स्वीडिश भाषा का शब्द है । यह किसी दूसरे व्यक्ति के प्रतिनिधि या प्रवक्ता के रुप में काम करता है । डोनाल्ड सी. रोवाट के अनुसार- ”ऑम्बुड्‌समैन वह अधिकारी है जिसकी नियुक्ति प्रशासन और न्यायिक कार्यों के विरुद्ध शिकायतों को निपटाने के लिए विधायिका द्वारा की जाती है ।”

स्वीडन का ऑम्बुड्‌समैन नागरिकों के निम्नलिखित मामलों की शिकायतों का निपटारा करता है:

(i) प्रशासनिक विवेकाधिकार का दुरुपयोग अर्थात सरकारी सत्ता तथा अधिकार का दुरुपयोग ।

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(ii) कुप्रशासन अर्थात, लक्ष्यों को प्राप्त करने में अकुशलता ।

(iii) प्रशासनिक भ्रष्टाचार अर्थात, काम करने के लिए घूस की माँग ।

(iv) भाई-भतीजावाद अर्थात, रोजगार इत्यादि दिलाने के मामलों में अपने सगे-संबंधियों का पक्ष लेना ।

(v) अशिष्टता अर्थात विभिन्न प्रकार का अभद्र व्यवहार जैसे गाली देना ।

स्वीडन में ऑम्बुड्‌समैन की नियुक्ति संसद द्वारा चार वर्ष के कार्यकाल के लिए की जाती है । उसे मात्र संसद द्वारा उस पर अपना विश्वास समाप्त होने के आधार पर हटाया जा सकता है । वह अपनी वार्षिक रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत करता है, अत: उसको ‘संसदीय ऑम्बुड्‌समैन’ भी कहा जाता है । लेकिन वह संसद अर्थात विधायिका के साथ-साथ कार्यपालिका एवं न्यायपालिका से भी स्वतंत्र होता है ।

ऑम्बुड्‌समैन एक संवैधानिक पद है और उसको सरकारी अधिकारियों द्वारा कानूनों तथा विनियमों के अनुपालन की देखरेख करने तथा यह देखने का अधिकार प्राप्त है कि वे अपने कर्त्तव्यों का पालन उचित रूप से करते हैं या नहीं । दूसरे शब्दों में, वह सभी सरकारी अधिकारियों-नागरिक, न्यायिक तथा सैनिक-पर नजर रखता है ताकि वे निष्पक्षता के साथ, वस्तुगत और वैधानिक रूप से कानून के अनुसार काम करें ।

परंतु वह किसी निर्णय को उलटने या रद्द करने का अधिकार नहीं रखता और प्रशासन अथवा न्यायालयों पर उसका कोई सीधा नियंत्रण नहीं होता है । ऑम्बुड्‌समैन अपनी कार्यवाही किसी अनुचित प्रशासनिक कार्य के विरुद्ध नागरिक से प्राप्त शिकायत के आधार पर या अपनी पहल पर कर सकता है । वह न्यायाधीशों सहित किसी भी पथभ्रष्ट अधिकार पर मुकदमा चला सकता है । वह खुद सजा नहीं दे सकता । उसका काम मामले को उच्चाधिकारियों तक पहुँचाना है ताकि वे आवश्यक दोषनिवारक कदम उठाएँ ।

संक्षेप में, स्वीडन की ऑम्बुड्‌समैन संस्था की विशेषताएँ निम्न हैं:

(i) कार्यपालिका से स्वाधीन कार्यवाही ।

(ii) शिकायतों की निष्पक्ष और वस्तुगत जाँच ।

(iii) जाँच शुरू करने को पहल करने का अधिकार ।

(iv) प्रशासन की सभी फाइलों तक बिना रोक-टोक के पहुँच ।

(v) कार्यपालिका के विपरीत संसद को रिपोर्ट करने का अधिकार । ऑम्बुड्‌समैन की संस्था विधायिका के प्रति कार्यपालिका की जवाबदेही के सिद्धांत पर आधारित है ।

(vi) इसके कार्यों को मीडिया इत्यादि में व्यापक रूप से प्रचारित किया जाता है ।

(vii) शिकायतों को निपटाने का सीधा, सरल, अनौपचारिक, सस्ता और त्वरित उपाय ।

ऑम्बुड्‌समैन की यह संस्था स्वीडन से स्केंडिनेविया के दूसरे देशों-फिनलैंड (1919), डेनमार्क (1955) और नॉर्वे (1962) में फैल गई । दुनियाभर के राष्ट्रमंडल देशों में इस व्यवस्था को सबसे पहले 1962 में न्यूजीलैंड ने संसदीय जांच आयुक्त (Parliamentary Commissioner for Investigation) के रूप में अपनाया ।

ग्रेट ब्रिटेन ने ऑम्बुड्‌समैन के जैसी एक संस्था को 1967 में स्थापित किया जिसको संसदीय प्रशासन आयुक्त (Parliamentary Commissioner for Administrator) कहा जाता है । तब से इस तरह की संस्थाओं को दुनिया के 40 से अधिक देशों ने अपनाया है जिनके नाम और कार्य भिन्न-भिन्न हैं ।

भारत में ऑम्बुड्‌समैन को लोकपाल/लोकायुक्त कहा गया है । डोनाल्ड सी. रोवाट कहते हैं कि यह ”नौकरशाही के आतंक के विरुद्ध जनतांत्रिक सरकार की दीवार है ।” जबकि गेराल्ड ई. कैडेन ने इसको- ”संस्थाकृत जनचेतना” (Institutionalized Public Conscience) कहा है ।

प्रशासनिक अधिकारियों के विरुद्ध नागरिकों की शिकायतों का निपटारा करने के लिए फ्रांस ने एक विलक्षण संस्थानात्मक युक्ति निकाली है । यह है- प्रशासनिक न्यायालयों की फ्रांसीसी प्रणाली (French System of Administrative Courts) ।

फ्रांस में अपनी सफलता के कारण यह यूरोप और अफ्रीका के बेल्जियम और तुर्की जैसे देशों में फैल गयी है । नागरिकों की शिकायतों को निपटाने के लिए पूर्व सोवियत संघ, चीन, पोलेंड, हंगरी, चेकोस्लोवाकिया और रोमानिया जैसे समाजवादी देशों ने भी अपनी संस्थागत युक्तियों का निर्माण किया है । इन देशों में इसे मुख्तार या प्राधिकर्ता (Procurator) प्रणाली कहा जाता है ।