बिजली सेल के प्रकार (आरेख के साथ) | Types of Electric Cell (With Diagram) in Hindi!

Type # 1. प्राथमिक सेल (Primary Cell):

प्राथमिक सेल वे होते हैं जिन्हें पुन: आवेशित नहीं किया जा सकता । इन सेलों में होने वाली रासायनिक क्रियाएँ अनुत्क्रमणीय होती हैं । साधारण वोल्टीय सेल, लेक्लांशी सेल, डेनियल सेल, बटन सेल आदि प्राथमिक सेल हैं ।

वोल्टीय सेल (Simple Voltaic Cell):

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इटली के वैज्ञानी वोल्टा (1745-1827) द्वारा सन् 1790 में विद्युतधारा प्राप्त करने की दिशा में सार्थक प्रयास किया गया । उन्होंने खोजा कि जब अलग-अलग धातुओं की दो छड़ों (पट्टियों) को अम्लीय घोल में डुबोया जाता है तो इन दोनों छड़ों को जोड़ने वाले तार में धारा प्रवाहित होने लगती है । खोजकर्ता के नाम पर ही इस सेल को वोल्टीय सेल कहते हैं ।

वोल्टीय सेल में वैद्युत अपघटय् के रूप में तनु सलफ्यूरिक अम्ल का उपयोग किया जाता है तथा एक इलेक्ट्रोड ताँबे की छड़ और दूसरा इलेक्ट्रोड जस्ते की छड़ के रूप में होता है । यह दोनों इलेक्ट्रोड वैद्युत अपघट्‌य में डूबे रहते हैं (चित्र-11.5) ।

धातु की छड़ों और बहुत अपघट्‌य अन्त के बीच रासायनिक अभिक्रिया से इलेक्ट्रॉन (ऋण आवेश) उत्पन होते हैं जो ताँबा तथा जस्ते की छड़ों को जोड़ने वाले चालक तार में कैथोड (जस्ते की छड़) से ऐनोड (ताँबे की छड़) की ओर प्रवाहित होते हैं । इस प्रकार इस सेल में धारा का प्रवाह ताँबे की छड़ से जस्ते की छड़ की ओर होता है ।

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दोष:

(1) इस सेल का प्रमुख दोष यह है कि, इस सेल से अधिक समय तक धारा प्राप्त नहीं की जा सकती है ।

(2) इसमें द्रव उपयोग किया जाता है अत: इसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना असुविधाजनक होता है ।

डेनियल सेल (Daniel Cell):

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वोल्टीय सेल के सिद्धान्त का उपयोग करके, वैज्ञानी जे.एफ. डेनियल (1790-1845) ने 1836 में एक अन्य सेल का निर्माण किया । इसे खोजकर्ता के नाम पर ही डेनियल सेल कहा जाता है । डेनियल सेल में ताँबे का एक पात्र होता है । जो एक धनात्मक विद्युत (एनोड) के समान कार्य करता है ।

ताँबे के इस पात्र में नीला थोथा (कॉपरसल्फेट) का घोल लिया जाता है जो विद्युत अपघटय् का कार्य करता है । एक छोटा पात्र जो सरन्ध्र पदार्थ का बना होता है इसमें तनु सल्फ्यूरिक अम्ल भरकर ताँबे के पात्र के अन्दर रख दिया जाता है । जस्ते की छड़ को सरंध्र पदार्थ के पात्र जिसमें सल्फ्यूरिक अम्ल है, में डुबा दिया जाता है । जस्ते की यह छड़ ऋणात्मक विद्युताग्र (कैथोड) का कार्य करती है ।

लाभ:

डेनियल सेल वोल्टीय सेल की तुलना में अच्छा सेल है, क्योंकि इससे दीर्घ अवधि तक स्थायी विद्युतधारा प्राप्त होती है ।

दोष:

इस सेल में तनु सल्फ्यूरिक अम्ल (गन्धक का अम्ल) व नीले थोथे का विलयन उपयोग में लाने के कारण रखरखाव व आवागमन में कठिनाई होती है । अत: वैज्ञानी अन्य सुविधाजनक सेलों की खोज करते रहे ।

शुष्क सेल (Dry Cell):

शुष्क सेल से आप भली-भाँति परिचित होंगे । रेडियो, ट्रांजिस्टर, टॉर्च, घड़ी, खिलौने आदि में उपयोग होने वाला सेल ही शुष्क सेल है । फ्रांसीसी वैज्ञानी जार्ज लेकलांशे (Georges Leclanche 1839-1882) ने सन् 1866 में इस सेल का निर्माण किया । वास्तव में शुष्क सेल लेकलांशे द्वारा बनाए गए लेकलांशे सेल का ही सुधरा हुआ रूप है ।

लेकलांशे सेल में वैद्युत अपघट्‌य के रूप में विलयन का उपयोग किया जाता है । शुष्क सेल में जस्ते के पात्र में अमोनियम क्लोराइड, स्टार्च और मैदे की बनी हुई लुगदी या जेली (Jelly) होती है । जस्ते का पात्र ऋणात्मक विद्युताग्र का कार्य करता है ।

इसी लुगदी के अन्दर मलमल के कपड़ों की कई पर्तों के अन्दर पिसे हुए कार्बन तथा मैंगनीज-डाइऑक्साइड के मिश्रण को ग्स्सरीन, जिंक क्लोराइड तथा प्लास्टर ऑफ पेरिस में मिलाकर भर देते हैं । इसके बीच में कार्बन की एक छड् होती है जो धन इलेक्ट्रोड का कार्य करती है ।

कार्बन की छड् के ऊपरी सिरे पर पीतल की टोपी लगी होती है । सेल के ऊपरी भाग को किसी ताप-रोधी पदार्थ (जैसे चपड़ा या लाख आदि) से बन्द करके सील कर देते हैं । इसमें एक बारीक छेद भी कर दिया जाता है, जिससे रासायनिक क्रिया के दौरान निकलने वाली गैसें बाहर निकल सकें ।

इस सेल को सुगमता से एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाया जा सकता है । इसके छोटे आकार के कारण इसके रखरखाव में तथा उपयोग में सुविधा होती है । इससे धारा लगातार और काफी समय तक प्राप्त की जा सकती है स्मरणीय है कि सेल में प्रयुक्त जस्ते के खर्च होने से हमें विद्युतधारा मिलती है । अत: जस्ते की अत्यधिक कमी होने से सेल काम करना बंद कर देता है । एक बार धारा मिलना बंद होने के बाद यह अनुपयोगी हो जाता है ।

 

दोष:

 

इसे दोबारा आवेशित नहीं किया जा सकता है ।

बटन सेल (Button Cell):

आवश्यकतानुसार शुष्क सेलों को अत्यन्त छोटा बनाया जाता है । इनकी आकृति बटन जैसी होती है । अत: इन्हें बटन सेल कहा जाता है । इसमें धनात्मक विद्युताग्र (एनोड) के रूप में जस्ता, एल्यूमीनियम या निकिल का उपयोग किया जाता है । ऋणात्मक विद्युताग्र (कैथोड) के लिए सिल्वर ऑक्साइड मरक्यूरी ऑक्साइड या केडमियम ऑक्साइड उपयोग किया जाता है ।

वैद्युत अपघट्‌य के रूप में सोडियम हाइड्रॉक्साइड या पोटेशियम हाइड्रॉक्साइड का उपयोग किया जाता है । इन सेलों का उपयोग कलाई घड़ी, केलकुलेटर, कप्यूटर, खिलौने, कैमरे, छोटी टॉर्च आदि में किया जाता है ।

Types # 2. द्वितीयक सेल (Secondary Cell):

द्वितीय सेल वे सेल होते हैं जिन्हें पुन: आवेशित किया जा सकता है । अत: इन सेलों को संचायक सेल (Storage or Accumulator) भी कहते हैं । सीसा संचायक सेल, नीफे सेल आदि संचायक या द्वितीय सेल हैं ।

वोल्टीय सेल, डेनियल सेल और शुष्क सेल में जब विद्युताग्र और वैद्युत अपघट्‌य के बीच जब रासायनिक क्रिया होना बंद हो जाती है तो इनसे धारा मिलना भी बंद हो जाती है और इनसे पुन: धारा प्राप्त करने के लिए इसमें प्रयुक्त रासायनिक पदार्थों को अपने मूल रूप में फिर से प्राप्त करना संभव नहीं होता है ।

अत: विज्ञानियों ने ऐसे सेल के लिए खोज जारी रखी जिससे पुन: धारा प्राप्त की जा सकती है । सन् 1854 में फ्रांसीसी विज्ञानी गेस्टन प्लांटे ने एक सेल का आविष्कार किया जिसमें रासायनिक अभिक्रिया को जिसके द्वारा विद्युतधारा उत्पन्न होती है उत्क्रमणीय बनाया जा सकता था ।

सेल में विद्युतधारा प्रवाहित करके जब रासायनिक अभिक्रिया को उत्क्रमणीय किया जाता है तो सेल के रासायनिक पदार्थ पुन: मूल रूप में प्राप्त हो जाते हैं और सेल पुन: कार्य करने योग्य हो जाता है । इस प्रकार इस सेल में रासायनिक पदार्थ काफी लम्बे समय तक उपयोग में आता रहता है ।  सेल को पुन: उपयोग योग्य बनाने की इस प्रक्रिया को सेल को चार्ज करना या सेल को आवेशित करना कहते हैं तथा इस प्रकार के सेल को संचायक सेल कहते हैं ।

सीसा-संचायक सेल बैटरी (Lead Accumulator Battery):

इस सेल में काँच, कठोर रबर या प्लास्टिक का एक बर्तन होता है । जिसमें तनु सल्फ्यूरिक अम्ल भरा रहता है । इसमें सीसे की दो प्लेटें डूबी रहती हैं । आवेशन के पश्चात सीसे की एक प्लेट ऐनोड (धनात्मक विद्युताग्र) तथा दूसरी प्लेट कैथोड (ऋणात्मक विद्युताग्र) का कार्य करती है । इस सेल से प्रबल धारा अधिक समय तक प्राप्त की जा सकती है । विद्युताग्र सीसे के ऑक्साइड और स्पंजी सीसे के होते हैं ।

दोष:

i. यह सेल बहुत कीमती (महंगा) होता है ।

ii. यह भारी होता है अत: एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से नहीं ले जाया जा सकता ।

iii. इसमें तनु सल्फ्यूरिक अम्ल का उपयोग किया जाता है । इस कारण से इससे कपड़े व हाथ-पैर जलने का डर रहता है ।

उपयोग:

इसका उपयोग कार, बस, इन्वर्टर, प्रयोगशाला आदि में किया जाता है ।

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