आर्य संस्कृति: आर्य संस्कृति का भाषाई फ्रेम | Aryan Culture: Linguistic Frame of Aryan Culture.

हिंद-यूरोपीय भाषा आर्य संस्कृति की प्रमुखतम विशेषता मानी जाती है । भाषाशास्त्रियों ने आद्य हिंद-यूरोपीय भाषा का रूप तैयार किया है । उनके अनुसार इसका प्रारंभ सातवीं अथवा छठी सहस्राब्दी ई॰ पू॰ में हुआ । हिंद-यूरोपीय भाषा पूर्वी एवं पश्चिमी शाखाओं में बाँटी जाती है और लगभग 4500 ई॰ पू॰ से पूर्वी शाखा के उच्चारण संबंधी विकास में कई चरण बतलाए जाते हैं ।

इस शाखा की भाषा को आद्य हिंद-ईरानी भाषा कहा जाता है । किंतु अभिलेखीय साक्ष्य की दृष्टि से आद्य हिंद-ईरानी भाषा जिसमें हिंद-आर्य भाषा भी सम्मिलित है 2300 ई॰ पू॰ के पहले नहीं मिलती है । इस भाषा के प्राचीनतम उदाहरण इराक के अगेड वंश के पाटिया पर लिखे मिलते हैं ।

उसमें अरिसेन और सोमसेन नामक दो नाम मिलते हैं और हंगरी के भाषाशास्त्री जे॰ हरमट्‌टा ने इनका समय 2300-2100 ई॰ पू॰ के लगभग रखा है । अनातोलिया के हत्ती अभिलेख बतलाते हैं कि वहाँ हिंद-यूरोपीय भाषा की पश्चिमी शाखा के बोलनेवाले 19वीं से 17वीं शताब्दी ई॰ पू॰ के बीच मौजूद थे ।

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पूर्वी शाखा के बोलनेवाले की उपस्थिति मेसोपोटामिया में 16वीं से 14वीं शताब्दी ई॰पू॰ तक कस्सियों और मितानियों के अभिलेख से सिद्ध होती है । पर भारतवर्ष में इस प्रकार के अभिलेख नहीं मिलते हैं । अतएव अभिलेखों के अभाव में यह कहना कि हिंद-आर्य भाषा बोलनेवाले लोग भारत से मेसोपोटामिया गए अनर्गल लगता है ।

हरमट्‌टा का यह विचार है कि आद्य हिंद-ईरानी भाषा में कॉकेसस क्षेत्र की भाषाओं से शब्द उधार लिए गए हैं और साथ-ही-साथ फीनिश उग्राइक भाषाओं के शब्द भी लिए गए हैं । इससे पता चलता है कि हिंद-ईरानी भाषा का विकास पश्चिम में फीनलैंड और पूरब में कॉकेसस क्षेत्र के बीच कहीं पर हुआ ।

प्रसिद्ध पुरातत्वविद, गॉर्डन चाइल्ड ने पहले यह विचार रखा था कि अनातोलिया हिंद-यूरोपीयों का उद्‌गम स्थान है । कछ रूसी भाषाशास्त्री भी इसी प्रकार का मत प्रकट करते हैं । उनके अनुसार हिंद-यूरोपीय भाषा का मूल स्थान कॉकेसस के दक्षिण वाले क्षेत्र में हो सकता है ।

इस क्षेत्र में पूर्वी अनातोलिया और उत्तरी मेसोपोटामिया पड़ते हैं । यद्यपि अनातोलिया घोड़े वाले काला सागर क्षेत्र के निकट है, तथापि यहाँ छठी-पाँचवी सहस्राब्दी ई॰ पू॰ में न तो घोड़े मिलते हैं और न हिंद-यूरोपीय संस्कृति के कोई अन्य तत्व ।

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रूसी भाषाशास्त्रियों के निष्कर्ष से ब्रिटिश पुरातत्त्वविद् रेनफ्रू की इस परिकल्पना को बल मिलता है कि पूर्वी अनातोलिया आर्यों का मूल निवास स्थान था । उनके अनुसार वहाँ पहले-पहल खेती का प्रारंभ सातवीं सहस्राब्दी ई॰ पू॰ में हुआ और इसके फैलने से हिंद-यूरोपीय भाषा विभिन्न दिशाओं में फैली ।

किंतु हम जानते है कि प्रारंभिक नेतुफियन अर्थात् फिलिस्तीन के इलाके में 10,000 ई॰ पू॰ के आसपास अनाज पैदा किए जाने लगे और 7000 ई॰ पू॰ के लगभग फिलिस्तीन में जमकर खेती होने लगी ।

सातवीं और छठी सहस्राब्दी ईसा-पूर्व में खेती इराक, ईरान और पाकिस्तानी बलूचिस्तान में भी मिलती है। अतएव कृषि का उदय केवल पूर्वी अनातोलिया ही में नहीं हुआ । यह भी याद रहे कि हिंद-यूरोपीय भाषा के सबसे पुराने बोलनेवालों के जीवन में खेती का कोई बड़ा स्थान नहीं था । संकेत मिलता है कि जहाँ-जहाँ हिंद-यूरोपीय गए वहाँ की खेती की पद्धति उन्होंने अपनाई ।

यह भी सोचने की बात है कि अपने उद्‌गम स्थान से आर्य भाषा क्यों लुप्त हो गई । यह भी ध्यान रखना चाहिए कि रेनफ्रू विकल्प के रूप में मध्य एशिया को भी आर्यों का उद्‌गम स्थान बतलाते हैं । प्रसारवादी पुरातत्वविद नहीं होने पर भी वे आर्य समस्या की व्याख्या प्रसारवादी सिद्धांत के आधार पर करते हैं ।