Read this article in Hindi to learn about the seven major drawbacks of planning in India along with its suggestions. The drawbacks are:- 1. अवास्तविक योजनाएं (Unrealistic Plans) 2. व्यवहारिक अभिगम का अभाव (Lack of Pragmatic Approach) 3. त्रुटिपूर्ण कार्यान्वयन (Faulty Implementation) 4. अधिक महत्वाकांक्षी योजनाएं (Over-Ambitious Plans)  and a Few Others.

सामान्य व्यक्ति का योजना के प्रभावों से पूर्णतया मोहभंग हो चुका है क्योंकि इससे उसका कर भार और जीवन की लागत बड़ी है । भारतीय अर्थव्यवस्था का वृद्धि दर जापान, चीन और मलेशिया की तुलना में बहुत नीचा है । निःसन्देह उत्पादन के नये ढंग नई तकनीकों और नई निपुणता के साथ सामने आये हैं फिर भी निर्धन और समृद्ध के बीच का अन्तराल कम होने के स्थान पर विस्तृत हुआ है तथा आय और धन के वितरण में असमानता बड़ी है ।

देश में आवश्यक वस्तुओं की कमी निरन्तर बनी हुई है । कीमतें तीव्रतापूर्वक बढ़ रही है, भुगतानों के सन्तुलन की स्थिति दिन प्रतिदिन बिगड़ रही है और बेरोजगारी की समस्या बढ़ रही है । इस प्रकार यह माना जाता है कि भारतीय आयोजन को सीमित सफलता प्राप्त हुई है । उन कारणों को देखना आवश्यक है कि आयोजन कहां गलत हो गया है । हमें अपनी गलती, उसे सुधारने के इरादे से खोजनी चाहिये ताकि आर्थिक विकास की प्रक्रिया ठीक प्रकार से कार्य कर सके ।

Drawbacks of Planning in India:

1. अवास्तविक योजनाएं (Unrealistic Plans):

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भारतीय योजनाओं की मुख्य त्रुटि यह है कि वह ऐसी धारणाओं पर आधारित है जो पूर्णतया असंगत है । उदाहरणतया पूँजी उत्पादन अनुपात की मान्यता, वृद्धि दर सभी आवश्यकता से अधिक आशावादी मान्यताए हैं । पुन: कराधान और सार्वजनिक ऋण द्वारा वित्तीय साधनों को बढ़ाने सम्बन्धी अनुमान सदैव गलत प्रमाणित हुये हैं । इन परिस्थितियों के अन्तर्गत योजनाओं की असफलता निश्चित होगी ।

2. व्यवहारिक अभिगम का अभाव (Lack of Pragmatic Approach):

एक अन्य त्रुटि यह है कि हमारे आयोजन में व्यवहारिक दृष्टिकोण का अभाव है । इसका निर्माण कुछ विचारधाराओं पर किया गया है न कि देश द्वारा सामना की जा रही समस्याओं को ध्यान में रखते हुये । योजना के प्रत्येक दस्तावेज में वही आशाएं प्रत्याशाएं सम्मिलित हैं ।

बिना झिझक कहा जा सकता है कि अधिक समय सामान्य जनसमूहों को प्रसन्न करने के लिये नये-नये नारे और मुहावरे गढ़ने में नष्ट हो जाता है न कि देश द्वारा सामना की जा रही गम्भीर समस्याओं के समाधान में ।

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3. त्रुटिपूर्ण कार्यान्वयन (Faulty Implementation):

विभिन्न योजनाओं का त्रुटिपूर्ण निष्पादन सफलता के मार्ग में एक अन्य अड़चन है । कार्यान्वयन के लिये अधिकांश त्रुटियां आरम्भिक स्तरों पर परियोजनाओं की अपर्याप्त योजनाबन्दी है । इससे कार्यक्रम में फिसलाव आता है तथा निष्पादन दुर्बल हो जाता है ।

कुछ अन्य कारक भी हैं जो योजनाओं के त्रुटिपूर्ण कार्यान्वयन के लिये पहचाने गये हैं:

(क) अफसरशाही की उदासीनता

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(ख) कठोर सामाजिक ढांचा

(ग) योजना निर्माण और विभिन्न स्तरों पर इसके निष्पादन में तालमेल का न होना

(घ) लालफीता शाही, भ्रष्ट्राचार और काला बाजारी

(ङ) अन्य स्वार्थ ।

4. अधिक महत्वाकांक्षी योजनाएं (Over-Ambitious Plans):

पंचवर्षीय योजनाओं की असफलता का एक अन्य कारण इनका आवश्यक रूप में अधिक महत्वाकांक्षी होना है । इन में उद्देश्यों की बहुलता होती है । योजना निर्माताओं ने कभी इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि देश में न तो पर्याप्त वित्तीय साधन है और न ही इतनी बड़ी योजना के निष्पादन के लिये प्रशासनिक क्षमता । तथापि योजनाओं का निर्माण राजनीतिज्ञों द्वारा मतदाताओं से किये गये वादों के आधार पर होता है । इसके परिणामस्वरूप एक ओर लक्ष्य निर्धारण में कुछ परस्पर विरोध तथा दूसरी ओर निर्णय निर्माण विरोधाभास रहा है ।

5. प्राकृतिक बाधाएं (Natural Constraints):

भारतीय योजनाओं की धीमी गति के कारण, प्राकृतिक कारक भी उतना ही उत्तरदायित्व रखते हैं । कृषि क्षेत्र हमारे सर्वोत्तम प्रयत्नों के बावजूद अब भी मौनसून पर निर्भर है । इसी प्रकार, क्रमिक योजनाओं के समय के दौरान सूखा और अकाल ने आग में ईंधन का काम किया जिससे अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े हैं ।

6. जनसंख्या की तीव्र वृद्धि (Rapid Growth of Population):

जनसंख्या में तेज वृद्धि पंचवर्षीय योजनाओं के कार्य में एक अन्य बाधा का कार्य करती है । फलतः अधिकांश साधन बड़ी हुई जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये उपयोग हो जाते हैं तथा इन का बहुत थोड़ा भाग विकास कार्यों के लिये बचता है । अतः योजनाकाल के दौरान आर्थिक विकास की गति को धीमा करने में जनसंख्या में वृद्धि बहुत उत्तरदायी है ।

7. असमन्वय (Incoordination):

योजनाओं की असफलता का एक अन्य कारण है केन्द्रीय और प्रान्तीय सरकार के बीच तालमेल का न होना । इसके अतिरिक्त सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र भी परस्पर सहयोग से कार्य नहीं करते । क्रियाशील वर्ग पर अफसरशाही का अत्याधिक दबाव है जबकि अर्थव्यवस्था का एक बड़ा भाग निजी क्षेत्र के हाथों में है । अतः सीमित अवधि में यह आश्चर्यजनक कार्य सम्भव नहीं है ।

सुधार के लिये प्रस्ताव (Suggestions for Improvement):

जैसा कि उपरोक्त परिचर्चा से स्पष्ट है, हमारी योजनाओं ने कुछ कारणों से आर्थिक विकास की गति को धीमा किया है । इस का यह अर्थ नहीं कि देश की आयोजन प्रक्रिया में कोई मौलिक त्रुटि है ।

योजनाओं का निर्माण और कार्यान्वयन जनसमूहों के कल्याण और देश की खुशहाली के लिये किया जाता है । बीते समय से सीखे गये पाठ के आधार पर योजनाओं की सफलता के लिये इन्हें नई दिशा देना आवश्यक हो जाता है ।

अतः आयोजन को पुन: सशक्त बनाने के लिये कुछ निम्नलिखित उपाय प्रस्तावित किये गये हैं:

1. सबसे पहले, भारतीय नियोजन को, ग्रामीण एवं शहरी द्विभाजन के अन्तराल को भरने पर बल देना चाहिये ।

2. निवेश व्यय को उच्चतम प्राथमिकता देने की रणनीति अपनायी जानी चाहिये जिसका लक्ष्य वर्तमान साज-सामान की दक्षता को अधिकतम बनाना और अनुपयुक्त साधनों का प्रयोग होना चाहिये ।

3. वित्तीय एवं भौतिक लक्ष्यों के बीच उचित सम्बन्ध बनाने की महान आवश्यकता है ।

4. योजनाओं के कार्यान्वयन की ओर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये जो योजनाओं के पिछले अनुभव और अन्य विकसित देशों से प्राप्त ज्ञान पर आधारित हो ।

5. मानवीय साधनों के विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और परिवार नियोजन, सी एवं शिशु कल्याण और सामान्य लोगों की मौलिक आवश्यकताओं आदि के सुबद्ध और व्यापक कार्यक्रमों को उच्च प्राथमिकता दी जानी चाहये ।

6. रोजगार के संवर्धन तथा विज्ञान एवं शिल्प विज्ञान को आर्थिक विकास की आवश्यक आगत बनाने के विशेष कार्यक्रमें की रचना की जानी चाहिये ।

7. योजना में प्रोत्साहन और प्रोत्साहनीं के उपायों का पैकेज होना आवश्यक है जिनके द्वारा निजी निवेश के बहाव को वांछित मार्गों की ओर निर्दिष्ट किया जा सके ।

8. राजकोषीय एवं मौद्रिक उपायों के विशेष प्रयत्न किये जाने चाहिये जिससे गैर-स्फीतिकारी ढंग से विकासकारी प्रक्रिया जारी रखने में सहायता प्राप्त हो ।

9. योजना में विकेन्द्रीकरण का विशेष वर्णन अत्यावश्यक है जिससे योजनाओं में सर्व सामान्य की सह-भागिता बढ़ेगी ।

10. विभिन्न योजनाओं को लोकप्रिय बनाने पर बल दिया जाना चाहिये ताकि प्रत्येक व्यक्ति उनकी सफलता के लिये कार्य करे ।

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