Read this article in Hindi to learn about the ten major shortcomings of planning in India. The shortcomings are: 1. स्थिर अर्थव्यवस्था (Stagnant Economy) 2. निर्धनता (Poverty) 3. आय और धन का असमान वितरण (Unequal Distribution of Income and Wealth) 4. बढ़ती हुई बेरोजगारी (Mounting Unemployment) and a Few Others.

इस तथ्य के बावजूद कि भारत ने कृषि एवं उद्योग के क्षेत्रों में तीव्र उन्नति की है, परन्तु यह दुख का विषय है कि यह बहुत से क्षेत्रों में असफल रहा है । जब हम देखते हैं कि यह घोषित उद्देश्यों की प्राप्ति में असफल रहा है तो इसकी प्राप्तियां बहुत महत्वहीन दिखाई देती हैं ।

इस की मुख्य असफलताओं का वर्णन नीचे किया गया है:

Shortcoming # 1. स्थिर अर्थव्यवस्था (Stagnant Economy):

जब भारत स्वतन्त्र हुआ तो इस पर निश्चिलता के बहुत चिन्ह थे । आर्थिक नियोजन के 50 वर्षों में इसका वृद्धि दर शून्य अथवा शून्य के समीप है । एक अनुमान अनुसार, राष्ट्रीय आय में वृद्धि दर 1950-60 के दौरान लगभग 1.15 प्रतिशत प्रति वर्ष थी और प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि 0.5 प्रतिशत थी ।

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योजनाओं को अपनाने के पश्चात भी ऐसी ही प्रवृति देखी गई । औद्योगिक उत्पति से प्राप्त राष्ट्रीय आय भी यही तथ्य प्रतिबिम्बित करती है । व्यवसायिक ढांचा भी उदासीन चित्र प्रस्तुत करता है क्योंकि 70 प्रतिशत से अधिक व्यक्ति अभी भी कृषि क्षेत्र में व्यस्त हैं ।

Shortcoming # 2. निर्धनता (Poverty):

यह पंचवर्षीय योजनाएं निर्धनता को कम करने में असफल हुई हैं क्योंकि जनसंख्या का 40 प्रतिशत भाग अभी भी निर्धनता द्वारा दृढ़ता से जकड़ा हुआ है । निर्धनता ही घटिया खुराक, दुर्बल स्वास्थ्य और जीवन के निम्न स्तर के लिये उत्तरदायी है । जनसंख्या के एक बडे अनुपात को दैनिक जीवन की अत्याधिक जरूरतों के बिना रहना पड़ता है । संक्षेप में, अल्पविकास और असमानता ही देश की निर्धनता के लिये उत्तरदायी है ।

Shortcoming # 3. आय और धन का असमान वितरण (Unequal Distribution of Income and Wealth):

आयोजन की एक अन्य असफलता यह है कि आय और अन्य सम्पत्तियों का गांवों और शहरों में वितरण विषम रहा है । बड़ी हुई आय का बड़ा भाग, थोड़े से अमीर लोगों की जेबों में चला जाता है जबकि समाज के निर्धन वर्ग कठिनता से निर्वाह करते हुये दुखदायी जीवन व्यतीत करते हैं । इस तथ्य के सम्बन्ध में कोई दो राय नहीं है कि इस देश में दो प्रतिशत लोगों के पास 98 प्रतिशत दौलत है ।

Shortcoming # 4. बढ़ती हुई बेरोजगारी (Mounting Unemployment):

बेरोजगारी देश के सामाजिक वातावरण के लिये एक निरन्तर खतरा है क्योंकि बेरोजगार लोग विभिन्न गैर-कानूनी गतिविधियों का आश्रय लेते हैं । एन.एस.एस. सर्वेक्षण के 38वें आवर्तन अनुसार, मार्च 1985 में, 5 + के आयु वर्ग में केवल 9.20 मिलियन थे, 15 से 59 आयु वर्ग में वह 8.67 मिलियन तथा 15 से 59 के आयु वर्ग में 8.67 मिलियन लोग बेरोजगार थे ।

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ग्रामीण क्षेत्रों में अदृश्य बेरोजगारी और शहरों में पड़े-लिखे बेरोजगारों की स्थिति बहुत निराशाजनक है । बढ़ती हुई बेरोजगारी के कारण हैं- तीव्रतापूर्वक बढ़ती हुई जनसंख्या और पूँजी गहन तकनीकों में वृद्धि, त्रुटिपूर्ण शिक्षा प्रणाली और अस्थिर कृषि ।

Shortcoming # 5. जनसंख्या की असामान्य वृद्धि (Abnormal Growth of Population):

सभी योजनाओं का मुख्य लक्ष्य बढती हुई जनसंख्या को रोकना था परन्तु योजनाएँ असफल रही है । जनसंख्या की तीव्र वृद्धि ने स्थिति को अत्याधिक खराब कर दिया है । यह समस्या निर्धनता और बेरोजगारी की जुड़वां समस्याओं को जन्म देती है ।

Shortcoming # 6. स्फीतिकारी दबाव (Inflationary Pressure):

स्फीति का आरम्भ, विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान निवेश की भारी खुराकों के कारण हुआ । अब समस्या की विकटता और भी बढ़ गई है क्योंकि इसने सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक सम्बन्धों में गम्भीर असन्तुलन उत्पन्न कर दिये हैं । निश्चित आय वर्ग के लोगों के लिये जीवन स्तर बनाये रखना बहुत कठिन हो गया है । कीमतों में असामान्य वृद्धि के कारण अन्य समस्याएं जैसे भ्रष्टाचार, काला बाजार, बेईमानी और अनैतिकता आदि उत्पन्न हो गई हैं ।

Shortcoming # 7. भुगतानों का विपरीत सन्तुलन (Adverse Balance of Payment):

यह सत्य है कि कृषि और औद्योगिक क्षेत्र का उत्पादन कई गुणा बढ़ गया है परन्तु फिर भी हम आयातों पर निर्भर हैं । हमारी योजनाओं में हमने निर्यातों के संवर्धन और आयातों के प्रतिस्थापन पर बल दिया है ताकि भुगतानों के असन्तुलन को ठीक किया जा सके, परन्तु इस दिशा में कोई उन्नति नहीं हो पाई ।

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यह निरन्तर असगत रहा है, परन्तु छठी योजना के अन्तिम वर्ष से स्थिति और भी बिगड़ गई । सातवीं योजना में सुधार नहीं हुआ । वर्ष 1990 में कुल बाहरी ऋण 1,21,869 करोड़ रुपये था ।

Shortcoming # 8. अनुत्पादक व्यय (Unproductive Expenditure):

अनुत्पादक मार्गों में बढ़ते हुये व्यय के कारण भारत में पूँजी का अभाव है । इसके अतिरिक्त पांच सितारा होटलों के निर्माण तथा अन्य प्रकार के व्यर्थ उपभोग पर भारी व्यय किया जा रहा है । इसके लाभ प्रायः कुछ समृद्ध लोगों को प्राप्त होते हैं और उनके पास धन का केन्द्रीकरण हो जाता है । परिणामस्वरूप, समृद्ध लोग और भी समृद्ध हो जाते हैं तथा निर्धन लोग पिछड़ जाते हैं ।

Shortcoming # 9. घाटे की वित्तव्यवस्था की भारी राशि (Huge Amount of Deficit Financing):

विभिन्न योजनाओं के लिये साधनों को गतिशील बनाने के लिये, सरकार आन्तरिक साधनों से प्रबन्ध करने में पूर्णतया असफल रही है । इस प्रकार घाटे की वित्त व्यवस्था के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं बचता ।

प्रत्येक क्रमिक योजना में घाटे की वित्त व्यवस्था की गई । सन 1950-51 से सन 1984-85 तक इस देश के घाटे की वित्त व्यवस्था की कुल राशि 24,440 करोड़ रुपये थी । सातवीं योजना के दौरान इसके 14000 करोड़ होने का प्रस्ताव रखा गया ।

Shortcoming # 10. पक्षपात पूर्ण वृद्धि का पार्श्व-दृश्य (Biased Growth Profile):

भारतीय योजनाओं ने अनेक बुराइयों को जन्म दिया है । जैसे एकाधिकारिक प्रथाएं विस्तृत असमानताएं और निर्धनता, परन्तु फिर भी योजनाओं ने पक्षपात वृद्धि की है जोकि समाज के संभ्रान्त वर्ग के पक्ष में हुई । इससे समृद्ध और निर्धनों की बीच, क्षेत्र से क्षेत्र अन्तराल विस्तृत हुआ है । फलतः अभी भी बहुत से लोग निर्धनता रेखा से नीचे हैं ।

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