Read this article in Hindi to learn about the fourteen features of Indian economy as an underdeveloped economy. The features are:- 1. निम्न प्रति व्यक्ति आय (Low Per Capital Income) 2. कृषि की प्रधानता (Predominance of Agriculture) 3. जनसंख्या का उच्च दबाव (High Population Pressure) 4. बेरोजगारी की बहुलता (Abundant Unemployment) and a Few Others.

हमारा देश सातवीं पंचवर्षीय योजना के अन्तिम चरण में होते हुये भी अल्प विकसित अर्थव्यवस्था के मुख्य घटक प्रदर्शित करता है । निर्धनता दूर करना हमारे आयोजन का केन्द्रीय विषय है । भारत की जनसंख्या का 1/3 भाग निर्धनता रेखा से नीचे जीवन व्यतीत करता है तथा अब भी यह मुख्यता कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है ।

जन्म और मृत्यु दर दोनों के उच्च होने के कारण यह जनसांख्यिक रूप में पिछड़ा हुआ है । जहां जीवन प्रत्याशा निम्न स्तर पर है और आहार सम्बन्धी अभाव विद्यमान हैं । औद्योगिक क्षेत्र भी शैशव काल में है ।

तथापि, निम्नलिखित बिन्दु दर्शाते हैं कि हमारी अर्थव्यवस्था अल्प-विकसित है:

Feature # 1. निम्न प्रति व्यक्ति आय (Low Per Capital Income):

ADVERTISEMENTS:

हमारे देश में राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय का स्तर बहुत नीचा है । इसे अल्प विकास का आधारभूत लक्षण माना जाता है । विश्व बैंक के अनुमानों के अनुसार सन् 2005 में भारत में प्रति व्यक्ति आय केवल $720 थी । बहुत थोड़े देशों को छोड़ कर, भारत की यह प्रति व्यक्ति आय विश्व में न्यूनतम थी ।

स्विट्‌जरलैण्ड की प्रति व्यक्ति आय भारत से लगभग 83 गुणा, यू. एस. ए. की लगभग 61 गुणा, जर्मनी की लगभग 76 गुणा और जापान की लगभग 54 गुणा थी । भारत एवं अन्य विकसित देशों में प्रति व्यक्ति आय की असमानता पिछले तीन दशकों (1970-2001) के दौरान कई गुणा बढ़ गई है ।

यद्यपि, आधिकारिक विनिमय दरों पर प्रति-व्यक्ति आय की इस असमानता को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर बताया गया परन्तु क्रय शक्ति समानता अंकों द्वारा आवश्यक सुधार किये जाने के पश्चात् यू. एस. ए. का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद सन् 2005 में भारत से 12.0 गुणा था जबकि आधिकारिक विनिमय दरों पर यह 83.0 गुणा था । आवश्यक समन्वय करने के पश्चात् भी प्रति व्यक्ति आय का यह अन्तर यद्यपि कम हो गया परन्तु फिर भी काफी महत्वपूर्ण तथा अधिक है ।

Feature # 2. कृषि की प्रधानता (Predominance of Agriculture):

भारत प्राथमिक वस्तुओं का उत्पादन करता है । कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य क्षेत्र है, जोकि एक विकसित अर्थव्यवस्था के आर्थिक ढांचे से पूर्णतया विपरीत है ।

ADVERTISEMENTS:

भारत में 58 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या कृषि कार्यों में व्यस्त है जबकि उन्नत देशों में स्थिति बिल्कुल भिन्न है । यू. एस. ए. और यू. के. में जनसंख्या का केवल दो प्रतिशत भाग ही कृषि कार्यों में व्यस्त है ।

भारत की जनसंख्या का 58 प्रातिशत भाग कृषि में व्यस्त होने के बावजूद कृषि देश की राष्ट्रीय आय में केवल 28 प्रतिशत भाग का योगदान करती है । इसके अतिरिक्त-निम्न कृषि उत्पादकता, आधुनिकीकरण और उत्पादन में विविधीकरण का अभाव-कुछ ऐसी आधारभूत समस्यायें हैं जिनसे हमारा कृषि क्षेत्र पीड़ित है ।

अत: हमारी कृषि पर आवश्यकता से अधिक भार है क्योंकि हमारी जनसंख्या का एक बड़ा भाग इस पर निर्भर करता है । इसके अतिरिक्त, आदमी से भूमि का निम्न अनुपात, भूमि का उप विभाजन और अपखण्डन होने के कारण मशीनों का उपयोग लगभग असम्भव है ।

कृषि के प्राचीन ढंग और आगतों का अपर्याप्त प्रयोग भारत में कृषि को और भी अदक्ष बना देता है । इसी प्रकार भारतीय अर्थव्यवस्था के अन्य अनेक पहलुओं पर भी कृषि की छाप है ।

ADVERTISEMENTS:

सन् 1950-51 में भारत में प्रति श्रमिक कृषि उत्पादकता न्यूजीलैण्ड और पश्चिमी जर्मनी से 33 गुणा कम थी । यू. के. से 20 गुणा कम और जापान के कृषि श्रमिकों से 21 गुणा कम थी । विभिन्न फसलों की प्रति एकड़ उत्पादकता की स्थिति भी इसी प्रकार निराशाजनक थी ।

क्लाउस्टोन (Clouston) के अनुसार- ”भारत में दबे हुये वर्ग हैं, उपकरणों से उद्योग दबे हुये हैं तथा दुर्भाग्य से कृषि उनमें से एक है ।” अत: भारतीय अर्थव्यवस्था मूलत: एक कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है ।

Feature # 3. जनसंख्या का उच्च दबाव (High Population Pressure):

सन् 2001 की जनगणना के अन्तरिम अनुमानों के अनुसार भारत की जनसंख्या लगभग 1027 मिलियन थी । यह सम्पूर्ण अफ्रीका की जनसंख्या से दुगनी और यू. एस. ए., रुस, इंग्लैण्ड, स्वीडन, आस्ट्रेलिया और घाना की संयुक्त जनसंख्या से अधिक है ।

भारत की जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या का 15 प्रतिशत है जबकि इसका क्षेत्र विश्व के क्षेत्र का केवल 2.4 प्रतिशत है । भारत की राष्ट्रीय आय विश्व की राष्ट्रीय आय की मात्र 2 प्रतिशत है । निःसन्देह, भारत की धरती पर न केवल जनसंख्या का बोझ है वरन् इसकी जनसंख्या भी तीव्रता से बढ़ रही है ।

वर्तमान में जन्म दर ऊंचा है तथा मृत्यु दर तीव्रतापूर्वक कम हो रहा है (क्योंकि स्वास्थय उपायों और चिकित्सा सुविधाओं के कारण घातक रोगों जैसे प्लेग आदि जैसी महामारियां समाप्त हो रही हैं) तथापि जनसंख्या की वर्तमान वृद्धि की दर 2.3 प्रतिशत है । श्रम शक्ति वृद्धि की उच्च दर के कारण बेरोजगारी की समस्या गम्भीर हो गई है ।

Feature # 4. बेरोजगारी की बहुलता (Abundant Unemployment):

बेरोजगारी, अल्प-रोजगार अथवा छुपी हुई शहरी और ग्रामीण बेरोजगारी हमारी अर्थव्यवस्था का एक अन्य चिरकालिक लक्षण है । फलत: आर्थिक विकास की निम्न और जनसंख्या वृद्धि की उच्च दर के कारण श्रम शक्ति तीव्रता से बढ़ रही है । छठी पंचवर्षीय योजना के अन्त में ऐसी श्रम शक्ति जिसे लाभप्रद रोजगार उपलब्ध नहीं कराया जा सकता की संख्या 50 मिलियन तक बढ़ सकती है ।

मार्च 1985 में नैशनल सैम्पल सर्वे के 32वें राउंड की दरों पर बेरोजगारी के अनुपात 13.89 मिलियन थे । कृषि क्षेत्र में, कृषि में व्यस्त लगभग 30 प्रतिशत ग्रामीण जनसंख्या छुपी हुई बेरोजगारी का सामना कर रही है जिसकी सीमान्त उत्पादकता शून्य है ।

अत: बेरोजगारी में न केवल भौतिक मानवीय क्षमता की व्यर्थता सम्मिलित है, बल्कि समाज के दुर्लभ साधन भी सम्मिलित हैं । अप्रैल, 1990 में, रोजगार केन्द्रों के रजिस्टरों में 29.3 मिलियन लोगों के नाम दर्ज थे । “अतिरिक्त श्रम” की यह उच्च संख्या भारतीय अर्थव्यवस्था के अल्प विकसित लक्षण का एक संकेत है ।

सन 1990 से 95 की पांच वर्षों की अवधि के दौरान श्रम में प्रवेश पाने वाले श्रमिकों की संख्या का अनुमान लगभग 37 मिलियन है । अत: दसवीं योजना के अन्त तक बेरोजगारी का कुल भार लगभग 74 मिलियन था ।

Feature # 5. पूंजी का अभाव (Capital Deficiency):

पूंजी का अभाव भारतीय अर्थव्यवस्था का एक अन्य मौलिक लक्षण है । भौतिक पूंजी के भण्डार पर्याप्त नहीं हैं जिनसे कि सम्पूर्ण श्रम शक्ति को पर्याप्त साज-सामान उपलब्ध किया जा सके ताकि वह प्राकृतिक साधनों का पूर्ण प्रयोग कर सकें ।

इसी प्रकार मानवीय पूंजी भी सन्तोषजनक नहीं है । नि:सन्देह, भारत में पूजी निर्माण की दर आज लगभग 20 प्रतिशत है जोकि अन्य अल्प विकसित देशों की तुलना में पर्याप्त रूप में ऊंची है । परन्तु जब हम इसकी विश्व के अन्य विकसित देशों से तुलना करते हैं तो स्थिति निराशाजनक प्रतीत होती है ।

वास्तव में, हमने जो आज प्राप्त किया है, वह अनेक देशों की तीस वर्ष से अधिक पहले की प्राप्तियों से बहुत कम है । सन् 1969 में जापान में पूंजी निर्माण की दर 39 प्रतिशत थी तथा ग्रीक और फिनलैण्ड में यह 30 प्रतिशत थी ।

यदि हम आत्म-निर्भर वृद्धि की इच्छा रखते हैं तो पूजी निर्माण की दर को राष्ट्रीय आय के 25 प्रतिशत तक अवश्य कायम रखा जाना चाहिये । सन् 1990-91 के दौरान बचत और निवेश दरें क्रमश: 21 और 25 प्रतिशत थीं । सन् 2001 में घरेलू बचतों की दर 23.4 प्रतिशत थी जो 2007 में बढ़ कर 34.8 प्रतिशत हो गयी ।

भारत में पूंजी निर्माण के निम्न स्तर के कारण हैं:

(i) निवेश करने की प्रेरणा का अभाव,

(ii) बचत करने की निम्न प्रवणता और क्षमता ।

बचत करने की प्रवृति इसलिये कम है क्योंकि कम आय के कारण उपभोग प्रवृत्ति ऊंची है । निवेश करने की प्रेरणा के अभाव का कारण है मांग की कमी के कारण बाजार का सीमित आकार ।

इसके अतिरिक्त ‘प्रदर्शन प्रभाव’ द्वारा प्रेरित स्पष्ट उपभोग स्थिति को और भी बिगाड़ता है । अत: पूंजी का विद्यमान भण्डार दुर्बल है और पूंजी निर्माण निराशाजनक है अत: भारतीय अर्थव्यवस्था अल्प विकास की स्थिति में है ।

यहां हमें याद रखना चाहिये कि भारत ने निवेश की उच्च दर को प्राप्त कर लिया है, परन्तु पिछले कुछ वर्षों में पूंजी निर्माण ने अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण सुधार नहीं किये हैं । इसका कारण है- बड़ी मात्रा में पूंजी की व्यर्थता और तुलनात्मक रूप में पूंजी की अदक्षता जिसे बढ़ते हुये पूंजी उत्पाद अनुपात से देखा जा सकता है ।

Feature # 6. मानवीय साधनों की निम्न गुणवत्ता (Poor Quality of Human Resources):

शिक्षा मौलिक कुशलताओं और योग्यताओं को विकसित करती है और एक प्रेरक मूल्य प्रणाली की रचना करती है । परन्तु भारत में जनसंख्या का एक बड़ा भाग अनपढ़, अशिक्षित और पुराने विचारों का है और इसलिये मानवीय पूंजी की गुणवत्ता दुर्बल है ।

सन् 2001 की जनगणना के अनुसार केवल 65.3 प्रतिशत भारतीय साक्षर है । जबकि यू. एस. ए., कैनेडा और यू. के. में लगभग 98 प्रतिशत जनसंख्या शिक्षित है ।

उच्च शिक्षा के क्षेत्र में उन्नत देशों ने विशेष रूप में विज्ञान, प्रौद्योगिकी और कुशलताओं के निर्माण के लिये प्रशिक्षण में प्रशंसनीय उन्नति की है, परन्तु हमारे देश में अभी भी इसका अभाव है । मानवीय पूंजी की निम्न गुणवत्ता देश के पिछड़ेपन का कारण और प्रभाव दोनों ही है ।

Feature # 7. अल्प-प्रयुक्त प्राकृतिक साधन (Underutilized Natural Resources):

यह सत्य ही कहा गया है कि भारत एक समृद्ध देश है जिसमें निर्धन लोग रहते हैं । इसका अर्थ है कि देश में प्राकृतिक साधनों का बहुत बड़ा भण्डार है परन्तु भौतिक वस्तुओं और सेवाओं के लिये उनका पूर्ण उपयोग नहीं हो रहा, फलत: लोग निर्धन हैं ।

निर्धनता का कुचक्र निरन्तर चल रहा है उदाहरणार्थ भारत में 17 मिलियन हैक्टेयर कृषि योग्य भूमि अभी भी बेकार पड़ी है । व्यापक जल साधनों के बावजूद, हमने जल विद्युत क्षमता का केवल 25 प्रतिशत ही उपयोग किया है तथा सिचाई क्षमता का केवल 50 प्रतिशत से कुछ अधिक ।

इसी प्रकार वन सम्पदा का भी दुरुपयोग हो रहा है । प्राकृतिक साधनों की व्यर्थता कोई अपवाद नहीं है और वह मुख्यता उनके अल्प विकास के कारण है । यह सत्य है कि बहुत से ज्ञात साधनों का अभी तक भली प्रकार प्रयोग नहीं हो रहा तथा बहुत से साधन अभी तक अज्ञात हैं तथा उन्हें अभी तक छुआ नहीं गया । भारत ने अभी तक अपनी जल विद्युत क्षमता का 5 प्रतिशत भी विकसित नहीं किया ।

Feature # 8. प्रौद्योगिक पिछड़ापन (Technological Backwardness):

प्रौद्योगिकी के निम्न स्तर की विद्यमानता भारतीय अर्थव्यवस्था के अल्प विकास का एक अन्य लक्षण है । सभी उत्पादक गतिविधियों में पुरातन और पुरानी हो चुकी विधियों का प्रयोग किया जाता है और भारत में नई प्रौद्योगिकी उपलब्ध नहीं है ।

वैज्ञानिक अनुसंधान का अभाव, कुशल श्रम शक्ति और प्रशिक्षित तकनीशियनों की अनुपस्थिति मुख्य त्रुटियां हैं जो कृषि एवं औद्योगिक क्षेत्र में आधुनिक तकनीकों के मार्ग में अड़चन बनती है । यहां तक कि कृषि क्षेत्र में भी उत्पादन की तकनीकें प्राथमिक और पिछड़ी हुई हैं ।

निःसन्देह, हरित क्रान्ति ने कृषि प्रौद्योगिकी को आधुनिक बना दिया है परन्तु यह कुछ प्रांतों जैसे पंजाब, हरियाणा, यू. पी. के कुछ भाग और तमिलनाडु तक ही सीमित है । वहां भी केवल समृद्ध किसानों ने ही आधुनिक प्रौद्योगिकी का लाभ उठाया है ।

Feature # 9. त्रुटिपूर्ण आर्थिक संगठन (Defective Economic Organisation):

भारतीय अर्थव्यवस्था में उचित वैज्ञानिक आर्थिक संगठनों का न होना अल्प विकास का एक अन्य पहलू है । बैंक, साख अभिकरण आदि आर्थिक संगठन जोकि आर्थिक विकास में अत्याधिक महत्व रखते हैं पर्याप्त रूप में विकसित नहीं है ।

कृषि में अभी भी साख का 80 प्रतिशत भाग स्थानीय साहूकारों से प्राप्त किया जाता है । छोटे किसानों को आसान शर्तों पर ऋण उपलब्ध करने के लिये कुछ साख अभिकरणों को विकसित करना अत्यावश्यक है । निर्धन काश्तकारों की सुरक्षा के लिये, पट्टाधारी पंजीकरण लागू करना बहुत आवश्यक है ।

”काश्तकार भूमि का स्वामी नहीं” यह त्रुटिपूर्ण कृषि संगठन का एक अन्य लक्षण है । इसी प्रकार ‘अभिकरण व्यवस्था का प्रबन्ध’ निजी क्षेत्र में औद्योगिक एवं वाणिज्यात्मक संस्थाओं में प्रभुत्व रखता है ।

स्तर 1969 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बावजूद निगमित समस्याओं के लिये बाजार संकीर्ण ही रहा है । कार्पोरेट शेयरों और ऋणपत्रों के रूप में घरेलू बचतें शुद्ध बचतों का केवल 44 प्रतिशत भाग हैं ।

Feature # 10. उपभोग का निम्न स्तर (Low Level of Consumption):

भारतीय अर्थव्यवस्था का एक अन्य महत्वपूर्ण लक्षण लोगों द्वारा लिये जाने वाले आहार की न केवल अपर्याप्त गुणवत्ता है बल्कि उसमें सुरक्षात्मक तत्वों का अभाव भी है । यद्यपि, कम आय वाले देशों में औसत कैलोरी ग्रहण केवल 2415 कैलोरी प्रतिदिन है जबकि विकसित देशों में यह 3400 कैलोरी प्रतिदिन है ।

जनसंख्या का 30 प्रतिशत भाग निर्धनता रेखा से नीचे रहता है । भारत में प्रोटीन की औसत उपलब्धता मात्र 49 ग्राम प्रतिदिन है जबकि चीन में 65 ग्राम और पाकिस्तान में 60 ग्राम और यू. एम. ए. में 107 ग्राम है ।

राष्ट्रीय पोषण निर्देशन विभाग के सर्वेक्षण (National Nutrition Monitoring Bureau Survey) के अनुसार विभिन्न प्रान्तों में लगभग 50 प्रतिशत घर ऐसे आहार का सेवन करते हैं जिससे उन्हें पर्याप्त ऊष्मांक अथवा प्रोटीन प्राप्त नहीं होती अथवा दोनों ही प्राप्त नहीं होते ।

जीवन के इस निम्न स्तर के कारण रोग उत्पन्न होते हैं और कड़े परिश्रम के लिये लोगों की शारीरिक क्षमता कम होती है । इसके अतिरिक्त जनसंख्या का बहुत थोड़ा भाग है जिसे सुरक्षित पीने का पानी और अच्छे निवास की सुविधाएं उपलब्ध हैं । राष्ट्रीय भवन संगठन के एक अनुमान के अनुसार सन् 2000 के अन्त तक लगभग 41 मिलियन घरों की कमी रह जायेगी ।

Feature # 11. जनसंख्या के व्यावसायिक वितरण में कोई परिवर्तन नहीं (No Change in Occupational Distribution of Population):

विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में लोगों का व्यावसायिक वितरण निरन्तर द्वितीयक अथवा तृतीयक क्षेत्रों में परिवर्तित होता है । इस सम्बन्ध में वी. के. आर. वी. राव एक कदम आगे जाते हुये कहते हैं कि जनसंख्या के आंकड़े व्यावसायिक संदर्भ में संरचनात्मक अधोगति दर्शाते हैं ।

इससे औद्योगिक-करण की गति तीव्र हुई है । परन्तु भारत के सन्दर्भ में आर्थिक नियोजन इसके संकेतात्मक स्वरूप के कारण अधिक प्रभावी नहीं है जिस कारण औद्योगिक क्षेत्र से वांछित दर पर वृद्धि नहीं हुई है तथा औद्योगिक एवं तृतीयक क्षेत्र ग्रामीण क्षेत्र की अतिरिक्त जनसंख्या के समावेशन में असफल रहे हैं ।

Feature # 12. धन के वितरण में असमानता (Inequality in Distribution of Wealth):

भारतीय अर्थव्यवस्था का एक अन्य आवश्यक लक्षण धन का असमान वितरण है । भारतीय रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट अनुसार लगभग 20 प्रतिशत घरों के पास 1000 रुपयों से कम मूल्य की सम्पत्ति है जोकि कुल सम्पत्ति का केवल 0.7 प्रतिशत है ।

इसके अतिरिक्त 51 प्रतिशत घरों के पास 5000 रुपयों से कम मूल्य की सम्पत्ति है जोकि कुल सम्पत्ति का केवल 8 प्रतिशत है । उच्चतम 4 प्रतिशत घर हैं जिनके पास 50,000 रुपयों से अधिक मूल्य की सम्पत्ति है जोकि कुल सम्पत्ति का 31 प्रतिशत है ।

Feature # 13. जनसांख्यिक लक्षण (Demographic Characteristics):

भारत के जनसांख्यिक लक्षण सन्तोषजनक नहीं हैं बल्कि यह जनसंख्या के उच्च घनत्व से सम्बन्धित हैं । जनसंख्या का एक छोटा अनुपात 15-60 वर्ष के कार्यशील आयु वर्ग में है तथा जनसंख्या का बड़ा भाग 0-15 वर्ष के अल्प आयु वर्ग में हैं ।

सन् 2001 की जनसंख्या की गणना के अनुसार भारत में जनसंख्या 324 प्रति वर्ग किलोमीटर है जबकि विश्व का जनसंख्या घनत्व 41 प्रति वर्ग किलोमीटर है । यहां तक कि चीन में घनत्व लगभग 12 प्रति वर्ग किलोमीटर है । इस सबसे स्पष्ट है कि हमारी जनसंख्या का निर्भरता बोझ बहुत ऊंचा है ।

इसके अतिरिक्त, निम्न आय स्तर और जीवन के निम्न स्तर में सन्तुलित आहार, उचित आवास तथा चिकित्सा सुविधाओं की अनुपस्थिति भारत में निम्न जीवन प्रत्याशा (58.6 वर्ष) के लिये उत्तरदायी है जबकि विश्व के अन्य विकसित देशों में जीवन प्रत्याशा 75 वर्ष है । भारत में शिशु मर्त्यता की दर भी बहुत ऊंची है जोकि लगभग 91 प्रति हजार शिशु है जबकि विकसित देशों में यही दर 5 से 7 शिशु प्रति हजार है ।

Feature # 14. अन्य फुटकर कारण (Other Miscellaneous Causes):

इसके अतिरिक्त श्रम तथा उत्पादन के अन्य कारकों की गतिशीलता का अभाव, दुर्बल सामाजिक एवं आर्थिक संरचनात्मक सुविधाएं, उद्यमीय प्रवृत्ति का अभाव, राजनीतिक जागृति का अभाव, आर्थिक विकास की प्रेरणा का अभाव, अदक्ष, अनुभवहीन, भ्रष्ट प्रशासनिक व्यवस्था कुछ ऐसे लक्षण हैं जो भारत को अल्प विकसित अर्थव्यवस्था सिद्ध करते हैं ।

अत: उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अब भी अल्प विकसित है क्योंकि यह अब भी अल्प विकास के मौलिक लक्षण दर्शाती है । परन्तु पिछले दशकों में आयोजन द्वारा विकास के पहलू की ओर ध्यान दिया गया तथा अनेक क्षेत्रों में उन्नति की प्राप्ति हुई । अत: भारतीय अर्थव्यवस्था को एक विकासशील अर्थव्यवस्था के रूप में स्वीकार किया जा सकता है ।

Home››India››Features››