Read this article in Hindi to learn about:- 1. पदोन्नति अर्थ एवं परिभाषायें (Meaning and Definitions of Promotion) 2.  पदोन्नति की आवश्यकता (Need for Promotion) 3. उद्देश्य (Objectives).

पदोन्नति के अर्थ एवं परिभाषायें (Meaning and Definitions of Promotion):

‘पदोन्नति’ शब्द पद + उन्नति दो शब्दों का सम्मिश्रण है । अतः साधारण शब्दों में किसी संगठन में सेवारत कर्मचारी के पद एवं उत्तरदायित्व में वृद्धि को पदोन्नति कहा जा सकता है । पदोन्नति कर्मचारियों की प्रगति (Advancement) का ही दूसरा नाम है ।

पदोन्नति के फलस्वरूप उच्चस्तरीय पद का कार्यभार ग्रहण करने पर कर्मचारी के दायित्वों में वृद्धि होती है प्रतिष्ठा (Status) बढ़ती है तथा वेतन में अभिवृद्धि होती है । इससे प्रतिष्ठासूचक चिन्हों में परिवर्तन आता है जैसे बड़े आकार का कार्यालय, कार्यालय की साज सज्जा में वृद्धि, टेलीफेन (घर एवं कार्यालय) की सुविधा, कम्पनी की मोटरगाडी, निजी सहायक की सेवायें मिलना तथा सामान्य पर्यवेक्षण से मुक्ति या उनमें ढिलाई आदि ।

पदोन्नति से कार्य की प्रकृति में भी परिवर्तन आ सकता है और यदि कार्य का प्रकृति अपरिवर्तित रहती है तो उनमें गुणात्मक परिवर्तन हो सकता है । कभी-कभी ऐसा भी होता है कि पदोन्नति के साथ वेतन-वृद्धि नहीं होती । ऐसी पदोन्नति शुष्क (Dry) अथवा खोखली (Hollow) मानी जाती है ।

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जैसा कि इन विशेषणों से आभास मिलता है, कर्मचारी इस प्रकार की पदोन्नति में पसन्द नहीं करते । कुछ व्यक्तियों न दृष्टि में तो ये पदोन्नतियां प्रबन्ध के घटियापन का सूचक हैं ।

डेल.एस.बीच (Dale S. Beach) के अनुसार – ‘जब किसी कर्मचारी को उच्चस्तरीय पद का कार्यभार सौंपा जाता है, तो इसे पदोन्नति कहा जाता है ।’ स्कॉट एवं स्प्रीगल (Scott and Spriegal) के अनुसार – ‘पदोन्नति किसी कर्मचारी का ऐसे कार्य पर स्थानान्तरण है जो उसे पहले से अधिक धन अथवा अधिक उच्च स्तर प्रदान करता है ।’

पीगर्स एवं मायर्स (Pigors and Myers) के अनुसार – ‘पदोन्नति किसी कर्मचारी की श्रेष्ठतर कार्य के लिए प्रगति है । यह श्रेष्ठतर कार्य उच्चतर उत्तरदायित्वों, अधिक आदर या हैसियत, अधिक कौशल और बड़ी हुई वेतन दर से कार्य करने के सम्बन्ध में है । उपर्युक्त कार्य के घण्टे या श्रेष्ठतर कार्य स्थिति या कार्य दशायें भी श्रेष्ठतर कार्य का चिन्ह हैं किन्तु यदि कार्य में अधिक उत्तरदायित्व एवं कौशल की आवश्यकता नहीं है और अधिक क्षतिपूरण भी नहीं मिलता है तो इसे पदोन्नति नहीं कहा जाना चाहिए ।’

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि – ‘पदोन्नति कर्मचारियों की प्रगति की वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा उन्हें श्रेष्ठतर कार्य प्रदान किये जाने के कारण अच्छा वेतन एवं सुविधायें, प्रतिष्ठा, आदर, अधिक उत्तरदायित्व, श्रेष्ठ कार्य वातावरण, स्वस्थ कार्य दशायें, सम्मानजनक पद प्राप्त होता है ।’

पदोन्नति की आवश्यकता (Need for Promotion):

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प्रतिस्पर्धा के इस युग में पदोन्नति एक सामान्य क्रम माना जाता है । यह कम्पनी की प्रगतिवादी नीति का परिचायक होने के साथ-साथ व्यक्तिगत विकास का भी एक अनिवार्य अंग है । पदोन्नति के अभाव में व्यक्तिगत विकास की अभिप्रेरणा समाप्त हो जाती है । ऐसी स्थिति, व्यक्ति एवं संगठन, दोनों के लिए घातक सिद्ध होती है ।

अधिकांश कर्मचारी प्रगति की इच्छा रखते हैं और इसी नाते वे अपनी आजीविका की शुरुआत छोटे पदों से करते हैं कि भविष्य में जैसे-जैसे उनके पारिवारिक दायित्वों में वृद्धि होगी, वे अनुभव, कुशलता एवं योग्यता के आधार पर आगे बढ़ते जायेंगे ।

कर्मचारियों के माता-पिता, पत्नी, बच्चे तथा परिवार के अन्य निकटतम व्यक्ति भी कर्मचारी की पदोन्नति की आकांक्षा रखते हैं । इससे उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ती है । अतः पदोन्नति के महत्व को आसानी से समझा जा सकता है । पदोन्नति से निम्नलिखित उद्देश्यों की प्राप्ति सम्भव होती है ।

पदोन्नति के उद्देश्य (Objectives of Promotion):

अन्य शब्दों में, पदोन्नति के उद्देश्य निम्नलिखित हैं:

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वाटकिन्स डॉड (Watkins Dodd) एवं अन्य विद्वानों के अनुसार पदोन्नति निम्न उद्देश्यों की पूर्ति करती है:

(i) पदोन्नति से कर्मचारी के साहस, मनोबल एवं पहल करने की क्षमता में वृद्धि होती है ।

(ii) पदोन्नति से संगठन या संस्था को अच्छे कर्मचारी सरलता से उपलब्ध हो जाते हैं ।

(iii) पदोन्नति कर्मचारी की कार्यकुशलता, योग्यता तथा प्रशिक्षण का प्रमाण है ।

(iv) पदोन्नति से कर्मचारी में निराशा एवं अस्थिरता की स्थिति समाप्त होती है ।

(v) पदोन्नति कर्मचारी को गतिमान रखती है ।

(vi) पदोन्नति कर्मचारी की प्रगति का मार्ग प्रशस्त करती है ।

(vii) पदोन्नति कर्मचारी विकास के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता को दर्शाती है ।

पदोन्नति के द्वारा उपर्युक्त वर्णित उद्देश्यों के अतिरिक्त निम्न उद्देश्यों की पूर्ति भी सम्भव है:

(1) कर्मचारी की पदोन्नति करके उसे योग्यतानुसार कार्य सौंपकर उपलब्ध मानव संसाधन का अधिकतम सदुपयोग करना ।

(2) कार्य में रुचि जाग्रत करना एवं उसे बनाये रखना ।

(3) कर्मचारी को अपनी योग्यता प्रदर्शित करने का अवसर प्रदान करना ।

(4) कर्मचारी को अपनी प्रगति के लिए सदैव प्रयत्नशील रखना ।

(5) सौहार्द्रपूर्ण मानवीय सम्बन्धों का निर्माण करना ।

(6) उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम सदुपयोग करना ।

(7) कर्मचारी को अधिक कार्यकुशलतापूर्वक कार्य करने के लिए प्रेरित रखना ।

(8) कर्मचारी के मनोबल में वृद्धि करना ।

(9) कर्मचारी को कार्य सन्तुष्टि प्रदान करना ।

(10) कर्मचारी में कार्य के प्रति गर्व की भावना उत्पन्न करना ।

(11) कर्मचारी की प्रतिष्ठा एवं स्थिति में वृद्धि करना ।

(12) कर्मचारी की योग्यतानुसार पदोन्नति से कर्मचारी-आवर्तन और अनुपस्थिति दर में कमी लाना ।

(13) उपक्रम के बाहर से अच्छे कर्मचारियों को संस्था में सेवायें प्रदान करने के लिए आकृष्ट करना ।

(14) कर्मचारियों को पदोन्नति देकर उनकी सेवाओं के उन्हें पुरस्कृत करना ।

(15) कर्मचारियों की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करना ।

सामान्यतः सभी कार्मिक पदोन्नति चाहते हैं लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में कुछ कार्मिक पदोन्नति को ठुकरा भी सकते हैं जैसे वेतन में होने वाली वृद्धि इतनी कम हो कि वह भावी प्रगति के लिए पर्याप्त उत्प्रेरण प्रदान नहीं कर सकती । कहीं-कहीं तो यह भी सम्भव है कि पदोन्नति के फलस्वरूप घर ले जाने वाले वेतन में कमी भी आ जाये ।

कुशल कार्मिक अपने पर्यवेक्षक से अधिक वेतन उठा सकता है । पदोन्नति को ठुकराने का अन्य कारण असुरक्षा की भावना हो सकती है । एक कार्मिक अपने वर्तमान कार्य में कुशलता प्राप्त कर लेता है और अपने आपको सुरक्षित अनुभव करता है ।

पदोन्नति के फलस्वरूप उसके कार्य की प्रकृति में परिवर्तन आ सकता है और इस नये कार्य में वह अपने आपको इतना सुरक्षित महसूस नहीं करता । पदोन्नति को ठुकराने का एक कारण और भी हो सकता है और वह है अपने वर्तमान सहकर्मियों से अलगाव । अलगाव के फलस्वरूप वह कार्मिक, सामाजिक रूप से उनसे अलग-थलग पड़ जाता है । कार्मिक से पर्यवेक्षक पद पर पदोन्नति होने से ऐसी ही स्थिति उत्पन्न हो सकती है ।

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