वायुमंडलीय दबाव पर निबंध | Essay on Atmospheric Pressure in Hindi!

Essay # 1. वायुमंडलीय दाब का आसय (Introduction to Atmospheric Pressure):

वायुमंडलीय दाब पृथ्वी पर हवाओं का दबाव है । यह पृथ्वी के धरातल पर पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण टिका है व अपने भार के कारण पृथ्वी पर दबाव डालता है । वायुमंडलीय दबाव का अर्थ है किसी दिए गए स्थान तथा समय पर वहाँ की हवा के स्तंभ का भार । इसे ‘बैरोमीटर’ में प्रति इकाई क्षेत्रफल पर पड़ने वाले बल के रूप में मापते हैं ।

जलवायु वैज्ञानिकों ने इसके लिए ‘मिलीबार’ को इकाई माना है । एक मिलीबार एक वर्ग से.मी. पर एक ग्राम भार का बल है । एक हजार मिलीबार का वायुमंडलीय दबाव एक वर्ग से.मी. पर 1.053 कि. ग्राम भार है, जो पारा के 75 से.मी. ऊँचे स्तंभ के बराबर होता है ।

पारा के 76 से.मी. ऊँचे स्तंभ का वायुदाब 1013.25 मिलीबार होता है जो समुद्रतल (Sea level) पर वायुदाब है । बैरोमीटर के पठन में तेजी से गिरावट तूफानी मौसम का संकेत देती है । बैरोमीटर के पठन का पहले गिरना फिर धीरे-धीरे बढ़ना वर्षा की स्थिति का द्योतक है । बैरोमीटर में पठन का लगातार बढ़ना प्रति चक्रवाती और साफ मौसम का संकेत देता है ।

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वायुमंडलीय दाब के वितरण को समदाब रेखाओं (आइसोबार) के द्वारा दर्शाया जाता है । यह वह कल्पित रेखा है जो समान वायुदाब वाले स्थानों को मिलाती है । समदाब रेखाओं की परस्पर दूरियाँ वायुदाब में अंतर की दिशा और उसकी दर को दर्शाती है, जिसे दाब प्रवणता कहते हैं । इसे ‘बैरोमीट्रिक ढाल’ भी कहा जाता है । पास-पास स्थित समदाब रेखाएँ तीव्र दाब प्रवणता का संकेत करती हैं ।

तापमान में अंतर हवा के घनत्व में परिवर्तन से संबंधित है । चूंकि पृथ्वी पर तापमान का वितरण काफी असमान है, इसी कारण वायुदाब का वितरण भी असमान है । वायुदाब में अंतर के कारण हवा में क्षैतिज गति आती हैं । इस क्षैतिज गति को पवन कहते हैं ।

पवन, ऊष्मा और आर्द्रता को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करते हैं और वृष्टि होने में मदद करते हैं । इसलिए वायुमंडलीय दाब को मौसम के पूर्वानुमान का एक महत्वपूर्ण सूचक माना जाता है ।

Essay # 2. वायुमंडलीय दाब का वितरण (Distribution of Atmospheric Pressure):

i. ऊर्ध्वाधर वितरण (Vertical Distribution):

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वायुमंडल की निचली परतों में हवा का घनत्व व वायुमंडलीय दाब अधिक होते हैं । ऊँचाई के साथ हवा के दाब में कमी आती है । यद्यपि ऊँचाई और वायुदाब के बीच सीधा संबंध नहीं होता, फिर भी सामान्य रूप से क्षोभमंडल में वायुदाब घटने की औसत दर प्रति 300 मीटर की ऊँचाई पर लगभग 34 मिलीबार है ।

ii. क्षैतिज अक्षांशीय वितरण (Horizontal Distribution):

विषुवतीय निम्न (Equatorial Low 10N-10S):

यह अत्यधिक निम्न वायुदाब का कटिबंध है । यह तापजन्य निम्न दाब पेटी है । इस कटिबंध में धरातलीय क्षैतिज पवन नहीं चलती, क्योंकि इस कटिबंध की ओर जाने वाली पवन इसकी सीमाओं के समीप पहुँचते ही गर्म होकर ऊपर उठने लगती है ।

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परिणामस्वरूप इस कटिबंध में केवल ऊर्ध्वाधर वायुधाराएँ ही पाई जाती हैं । वायुमंडलीय दशाएँ अत्यधिक शांत होने के कारण इस कटिबंध को डोलड्रम या शांत कटिबंध कहते हैं ।

उपोष्ण उच्च (Subtropical High 23 1/2–35N-S):

इसके निर्माण के लिए तापीय के साथ-साथ गतिक कारक भी उत्तरदायी हैं । विषुवतीय निम्नदाब क्षेत्र से ऊपर उठी हवाएँ ऊपरी वायुमंडल में ध्रुवों की ओर प्रवाहित होती हैं । परन्तु पृथ्वी के घूर्णन बल के कारण ये पूर्व की ओर विक्षेपित होने लगती हैं । इस बल को सबसे पहले फ्रांसीसी वैज्ञानिक कॉरिऑलिस ने बताया था, इसी कारण इस बल का नाम ‘कॉरिऑलिस बल’ पड़ा । विषुवत रेखा से बढ़ती दूरी के साथ-साथ इस बल की मात्रा भी बढ़ती है ।

परिणामस्वरूप ध्रुवों की ओर बढ़ने वाली वायु जब तक 25 अक्षांश पर पहुँचती है तब तक इसकी दिशा में इतना अधिक विक्षेप हो चुका होता है कि वह पश्चिम से पूर्व की ओर प्रवाहित होने लगती है एवं आगे आने वाली हवाओं के लिए अवरोधक का कार्य करने लगती है जिसके परिणामस्वरूप हवा वहीं ऊँचाई में जमा होने लगती है ।

हवा के क्रमशः ठंडा होने पर इसका घनत्व बढ़ता जाता है एवं भार बढ़ने के कारण हवा वहीं नीचे उतरने लगती है । इस प्रकार कर्क और मकर रेखाओं तथा 35 उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों के मध्य उच्च वायुदाब कटिबंध का निर्माण हो जाता है । अत्यधिक क्षीण व परिवर्तनशील पवनों के कारण यहाँ वायुमंडल बहुत शांत रहता है ।

इस वायुदाब कटिबंध को ‘अश्व अक्षांश’ भी कहा जाता है, क्योंकि पुराने जमाने में घोड़ों को ले जाने वाली नौकाओं को यहाँ की शांत वायुमंडलीय दशाओं के कारण काफी कठिनाई होती थी एवं नौकाओं का भार हल्का करने के लिए घोड़ों को कभी-कभी समुद्र में भी फेंकना पड़ता था, इसीलिए इस कटिबंध का नाम अश्व अक्षांश पड़ा ।

उपध्रुवीय निम्न (Sub-Polar Low 45-66 1/2N-S):

इसके निर्माण में भी गतिक कारक अत्यंत महत्वपूर्ण हैं । उपोष्ण कटिबंधों और ध्रुवीय क्षेत्रों से झाने वाली वायु क्रमशः 45 उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों तथा आर्कटिक वृतों के मध्य परस्पर टकराती है एवं ऊपर उठ जाती है जिससे यहाँ निम्न दाब क्षेत्र का निर्माण होता है व चक्रवाती आंधियाँ आती हैं ।

ध्रुवीय उच्च (उत्तरी व दक्षिणी ध्रुवों के निकट) (Polar High):

अत्यधिक निम्न तापमान के कारण यहाँ वायुमंडल की ठंडी व भारी हवाएँ सतह पर उतरती रहती हैं, परिणास्वरूप यहाँ उच्च वायुदाब क्षेत्र का निर्माण होता है ।

वायुदाब कटिबंधों की स्थिति स्थिर नहीं है । ये वायुदाब कटिबंध सूर्य के आभासी संचरण के कारण गर्मियों में उत्तर की ओर एवं सर्दियों में दक्षिण की ओर खिसकते रहते हैं ।

सूर्यातप की मात्रा में असमानता एवं जल व स्थल का असमान रूप से गर्म होना भी इसकी स्थिति को प्रभावित करते हैं । सामान्यतः स्थलीय भागों में उच्च दाब क्षेत्र जाड़ों में तथा निम्न दाब क्षेत्र गर्मियों में अधिक प्रभावी रहते हैं ।

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