Read this article in Hindi to learn about:- 1. डी.एन.ए. पुनरावृत्ति का अर्थ (Meaning of DNA-Replication) 2. डी.एन.ए. पुनरावृत्ति के चरण (Stage of DNA-Replication) 3. संश्लेषण में भाग लेने वाले एन्जाइम (Enzymes for Synthesis) and Other Details.

डी.एन.ए. पुनरावृत्ति का अर्थ (Meaning of DNA-Replication):

DNA द्विगुणन (Duplication) कोशिका-विभाजन का मूल सिद्धान्त है । माइटॉटिक विभाजन (Mitotic Division) में एक मातृ-कोशिका दो समान सन्तति-कोशिका के समान होती है । इसके लिए मातृ तथा सन्तति कोशिकाओं में DNA की मात्रा समान होना जरूरी है ।

इस विधि में मातृ-कोशिका का प्रत्येक क्रोमोसोम लम्बाई में चिरकर दो अर्द्ध-क्रोमोसोम में अलग हो जाता है, इनमें से प्रत्येक अर्द्ध-क्रोमोसोम अपना जोड़ा पूरा करके क्रोमोसोम में बदल जाता है । अत: क्रोमोसोम द्विगुणन वास्तव में DNA द्विगुणन होता है, क्योंकि क्रोमोसोम DNA अणुओं से ही बना होता है ।

डी.एन.ए. पुनरावृत्ति के चरण (Stage of DNA-Replication):

पिछले कोई वर्षों में किये गये प्रयोगों से ज्ञात हुआ है कि DNA प्रतिकृति के लिये एक जटिल क्रियाविधि प्रयोग में लायी जाती है । E.Coli जैसे- बैक्टीरिया में DNA पुनरावृत्ति एक बहु-एन्जाइम सम्मिश्र (Multi-Enzyme Complex) की सहायता से होती है । इस बहु-एन्जाइम सम्मिश्र को रेप्लिकेशन एपारेटस (Replication Apparatus) कहते है ।

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E.Coli में DNA पुनरावृत्ति निम्नलिखित चरणों में पूर्ण होती है:

(1) पुनरावृत्ति द्विशाख (Replication Fork) बनने से पहले, DNA में यदि कोई सुपरटिवस्ट (टिवस्ट के ऊपर टिवस्ट) (Super Twist) हो तो, उसे एन्जाइम टोपोआइसोमरेज (Topoiso-Merase) द्वारा हटाया जाता है ।

(2) सूत्रों के पृथक्करण के बाद दोनों एकल सूत्रों (Single Strand) का कुछ समय के लिए DNA बाइंडिंस प्रोटीन्स (DNA Binding Proteins) द्वारा स्थायीकरण (Stabilization) हो जाता है ।

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(3) लैंगिक सूत्र के संश्लेषण के लिए RNA प्रारम्भक 6 प्रोटीनों (DNA B,DNA C,n,n’,n’’ और i) की सहायता से बनता है । यह प्रोटीन सम्मिश्र, प्रिप्राइमिंग सम्मिश्र (Prepriming Complex) कहलाता है ।

यह प्रिप्राइमिंग सम्मिश्र एन्जाइम प्राइमेज (Primase) के साथ मिलकर प्राइमोसोम (Primosome) बनाता है । प्राइमोसोम में छोटे-छोटे RNA अनुक्रम बनाने की क्षमता होती है । ये अनुक्रम DNA टेम्पलेट पर उसके पूरक होते हैं ।

टेम्पलेट पर RNA अनुक्रम, जिन्हें RNA प्रारम्भक (RNA Primer) कहते हैं, 5′ से 3′ दिशा में बनते हैं । इसी दिशा में DNA पॉलीमरेज III न्यूक्लिओटाइस बनाता है ।

(4) प्रति-समान्तर सूत्रों को खोलने (Unwinding) तथा पृथक्करण का कार्य हेलिकेजेज (Helicases) एन्जाइम द्वार किया जाता है । यह दोनों सूत्रों के बीच उपस्थित हाइड्रोजन बन्धनों को खोल देता है ।

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(5) इस बीच प्राइमिंग सम्मिश्र प्राइमोसोम पुनरावृत्ति द्विशाख में आगे बढ़ता है और नया RNA प्रारम्भक अनुक्रम बनाता है । इस प्रकार लैंगिक सूत्र का निर्माण होता है । प्रत्येक टुकड़े का आरम्भ RNA प्रारम्भक से होता है, जिस पर DNA की क्षारक जुड़ती है ।

(6) लैंगिक सूत्र के विपरीत, लीडिंग सूत्र (Leading Strand) पुनरावृत्ति द्विशाख के उद्भव (Origin) स्थल से DNA पॉलीमरेज III होलोएन्जाइम की क्रिया से सतत रूप से बनता है, किन्तु लीडिंग सूत्र बनने से पहले RNA प्रारम्भक बनता है या नहीं यह निश्चित नहीं है, किन्तु ऐसा माना जाता है कि RNA प्रारम्भक का संश्लेषण लेना चाहिये ।

(7) एक बार RNA प्रारम्भक के अपना स्थान पा लेने पर पॉलीमरेज III होलोएन्जाइम स्वतन्त्र 3’ OH सिरे पर क्रम से न्यूक्लिओटाइड जोड़ना आरम्भ कर देता है । DNA का एक छोटा टुकड़ा बनने के बाद पॉलीमरेज I,RNA प्रारम्भक को हटा देना है और खाली स्थान को तथा दो टुकड़ों के बीच फॉस्फोडाइएस्टर बन्ध लाइगेज (Ligase) की क्रिया से बना लिये जाते है ।

कई प्रोटीन व एन्जाइम जोकि E.Coli में DNA की पुनरावृत्ति के लिये उत्तरदायी होते है यूकेरियोटिक (Eukaryotic) जन्तुओं में भी पाए जाते हैं । यूकेरियोट में भी संश्लेषण सतत व असतत होता है और RNA प्रारम्भक बनते है । हालाँकि E.Coli मॉडल पूरी तरह यूकेरियोट में DNA के संश्लेषण को प्रदर्शित नहीं करता, किन्तु उच्च जीवों में किस प्रकार DNA का संश्लेषण होता है ।

वाट्सन एवं क्रिकवाद (Watson and Crick Hypothesis):

वाट्सन एवं क्रिक (Watson and Crick) के अनुसार डी.एन.ए (DNA) मॉडल में दो स्ट्रेण्ड्स (Two Stands) होते हैं, जो एक ओर (One End) से खुलकर दो अलग-अलग स्ट्रेण्ड्स (Strands) में पृथक (Separate) हो जाते हैं ।

इस क्रिया में हाइड्रोजन (Hydrogen=H) बॉण्ड्स (Bonds) टूट जाते हैं । इस प्रकार पृथक हुए दोनों एकल स्ट्रेण्ड्स (Single Strands) नए स्ट्रेण्ड्स का संश्लेषण करते है ।

सूत्री विभाजन (Mitotic Division) में क्रोमेटिड्स (Chromatids) पाए जाते हैं, जो पुन: अन्तरालावस्था (Interphase) में गुणसूत्र (Chromosome) का निर्माण करते है । जिसके फलस्वरूप DNA द्विगुणन (Replication) होता हैं ।

पुनरावृत्ति (Replication) के समय बन्धनों (Bonds) के ढीले हो जाने के कारण DNA अणु के दोनों कुण्डल (Helix) एक सिरे से दूसरे सिरे तक पृथक् होते चले जाते हैं और इस प्रकार DNA की दो श्रृंखलाएँ बन जाती हैं ।

केन्द्रक रस (Nuclear Sap) तथा जीवद्रव्य (Protoplasm) में उपस्थित विभिन्न प्रकार के क्षारक (Base); जैसे- A,G,C एवं T अनेक प्रकार की उपापचयी क्रियाओं द्वारा न्यूक्लियोटाइड (Nucleotide), ट्राइफॉस्फेट (Triphosphate) इकाइयाँ (Units); जैसे- ATP, GTP CTP तथा TTP का निर्माण करते हैं ।

ये इकाइयाँ (Units) दोनों अलग हुए कुण्डलों (Helix) से क्षारकों (Bases) को पूरक नियम (Complementary Law) के अनुसार अपने-अपने पूरक क्षारकों को आकर्षित कर स्थान ग्रहण कर लेती हैं ।

कुण्डल (Helix) पर स्थित ऐडेनीन (A) की ओर थायमीन (T) तथा साइटोसिन (C) की ओर ग्वानीन (G) आने लगते हैं तथा हाइड्रोजन (H) बाँण्ड्स (Bonds) द्वारा मजबूती के साथ बँध जाते हैं और क्रमानुसार विन्यस्त होकर दूसरे न्यूक्लियोटाइड्‌स (Nucleotides) से जुड़ जाते हैं ।

यह क्रिया डी.एन.ए. पॉलीमरेज (DNA Polymerase) एन्जाइम (Enzyme) द्वारा होती हैं । इस प्रकार पुरानी (Old) पॉलीन्यूक्लियोटाइड (Polynucleotides) की श्रृंखला (Chain) बन जाती है ।

अन्त में पॉलीन्यूक्लियो-टाइड लाइगेज (Polynucleotide Ligase) नामक एन्जाइम (Enzyme) पॉलीन्यूक्लियोटाइड्स के छोटे-छोटे टुकडों को छोड़कर पूर्ण DNA अणु का निर्माण कर देता है ।

DNA में पुनरावृत्ति को निम्न प्रकार के चित्रों की सहायता से भी स्पष्ट किया जा सकता है:

इस प्रकार एक DNA के दो कुण्डलों (Double Helix) से दो समान कुण्डल (Helix) बन जाते हैं । द्विगुणन (Replication) में एक गुणसूत्र (Chromosome) पर उपस्थित सभी DNA में एक जैसी क्रिया होती हैं, जिसके फलस्वरूप एक गुण सूत्र से दो क्रोमेटिड्स बन जाते हैं ।

DNA-संश्लेषण में भाग लेने वाले एन्जाइम (Enzymes for DNA-Synthesis):

(1) DNA Polymerase,

(2) Polynucleotide Ligase ।

(1) डी.एन.ए. पोलीमिरेज (DNA Polymerase):

DNA Polymerase में तीन संलग्न-स्थल होते हैं । इनमें से एक टेमप्लेट DNA (Template DNA) से, तथा दूसरा ट्राइफॉस्फेट न्यूक्लिओटाइड (Triphosphate Nucleotides) से तथा तीसरा DNA प्राइमर (DNA Primer) के 3’ –OH सिरे से संलग्न होता है ।

DNA Polymerase पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखला (Polynucleotide Chain) के 5’ से 3’ सिरे की और Uniphosphate Nucleotides को Primer DNA से जोड़ता है तथा छोटे-छोटे खंडों के रूप में नये स्टैण्ड (New Strands) संश्लेषित (Synthesis) होते हैं ।

(2) पॉली न्यूक्लिओटाइड-लाइगेज (Polynucleotide-Ligase):

एन्जाइम (Enzyme) द्वारा पॉलीन्यूक्लिओटाइड-श्रृंखला (Polynucleotide Chain) के रूप में जोड़ दिये जाते हैं ।

डी.एन.ए. पुनरावृत्ति पक्ष में प्रणाम (Evidences in Favour of DNA-Replication):

(1) मेसेल्सन एवं स्टॉहल का प्रकार (Meselson and Stahl’s Experiment):

मेसेल्सन एवं स्टॉहल (Meselson and Stahl) ने 1958 में अपने इस प्रयोग के परिणामों को सिद्ध किया कि DNA वास्तव में अर्द्ध संरक्षी (Semi Conservative) विधि से ही पुनरावृत्ति (Replication) करता हैं ।

इस प्रयोग के लिए मेसेल्सन एवं स्टॉहल (Meselson and Stahl’s) ने बैक्टीरिया E.Coli को उपयोग में लिया तथा प्रयोग किया । उन्होंने इसकी कोशिकाओं को लगभग 14 पीढ़ियों तक 15N भारी आइसोटोप युक्तसंवर्धन माध्यम में उगाया, जिससे DNA की नाइट्रोजिनस क्षारों में पाई जाने वाली प्रत्येक नाइट्रोजन 14N के स्थान पर 15N से अंकित हो जाए ।

इसके बाद इन कोशिकाओं को अचानक ही 14N वाले संवर्धन माध्यम में स्थानान्तरित कर दिया गया । यदि पुनरावृत्ति अर्द्धसंरक्षी विधि द्वार होती है, तो अगली पीढ़ी के DNA में एक सूत्र 14 N व दूसरा 15 N होना चाहिए । इसके बाद प्रतिकृति द्वारा भविष्य की पीढ़ियों में क्रमशः 14 N आता जायेगा, अर्थात् घनत्व धीरे-धीरे कम होता जायेगा ।

इसके उपरान्त भारी DNA को हल्के DNA से पृथक करने के लिए घनत्व प्रवणता समतोलन सेण्ट्रिफ्यूगेशन (Density Gradient Equilibrium Centrifugation) विधि का उपयोग किया जाता है ।

DNA को सीजियम क्लोराइड के सान्द्र घोल (8.8 M CsCl in Water) में डाल दिया जाता है और इस घोल को पारदर्शी क्वार्टज नली (Transparent Quartz Tube) में डालकर लगभग 5-8 घण्टों तक तेज गति से सेण्ट्रीफ्यूज किया जाता है ।

जब CsCl पर सेण्ट्रीफ्यूगल बल कार्य करता है, तो यह सेडिमेंट होना प्रारम्भ हो जाता है, क्योंकि CsCl पानी से अधिक घना (Dense) होता है । सेडिमेंट होने की इस प्रवृत्ति का विसरण (Diffusion) द्वारा विरोध किया जाता है, किन्तु कई घण्टों बाद एक समतोलन (Equilibrium) की स्थिति आ जाती है ।

नलिका में CsCl की सान्द्रता का वितरण इस प्रकार से होता है कि सबसे अधिक घनत्व नलिका के तल में एवं सबसे कम घनत्व नलिक के ऊपरी भाग में होता है, तथा अन्य सभी मध्य घनत्व दोनों के बीच में होते हैं ।

नलिका में उपस्थित DNA के अणु CsCl घनत्व प्रवणता के उस भाग में आकर जम जाते है, जिस भाग की घनत्व प्रवणता उस DNA के अणु के समान होती है । DNA की निश्चित स्थिति को अल्ट्रा वायलेट किरणों (Ultraviolet Rays) द्वारा निर्धारित किया जाता है ।

इसमें नलिका का फोटो पैरा बैंगनी किरणों (Photo Paraviolet Rays) द्वारा लिया जाता हैं । क्योंकि ये किरणें केवल DNA पट्टी द्वारा ही शोषित की जाती हैं । CsCl द्वारा नहीं इसलिए DNA की स्थिति निश्चित हो जाती है ।

CsCl की घनत्व प्रवणता में DNA गहरी पट्टी के रूप में दिखाई देता है, इस DNA पट्टी की स्थिति के अनुसार इसमें उपस्थित DNA का घनत्व ज्ञात किया जा सकता है ।

यह पाया गया है कि भारी DNA जिसमें 15 N है, CsCl के घोल के तल पर पट्टी (Band) बनाता है । वह DNA जिसे एक पीढ़ी तक 14 N संवर्धन माध्यम में उगाया गया, वह नलिका के मध्य (Intermediate Position) में पट्टी बनाता है ।

जबकि हल्का DNA अर्थात् जिसे दो पीढ़ी तक 14 N माध्यम में उगाया गया है, वह नलिका में ऊपरी भाग में पट्टी बनाता है । प्रथम पीढ़ी के बाद जो DNA बनता है, उसकी मात्रा मध्यवर्ती अथवा संकर घनत्व की थी । यह तभी सम्भव है जब DNA की प्रतिकृति अर्द्धसंरक्षी विधि द्वारा हुई हो ।

दूसरी पीढ़ी के बाद दोनों पट्टियाँ समान तीव्रता की प्राप्त होती हैं, जिसका अर्थ था कि दो विभिन्न घनत्व वाला DNA समान मात्रा में स्थित था । इसके बाद क्रमशः आगे आने वाली पीढ़ियों में वही दोनों पट्टियाँ निरन्तर प्रकट हुई और संकर घनत्व वाली पट्टी धीरे-धीरे कम होती गई एवं हल्के घनत्व वाली पट्टी बढ़ती गयी ।

(2) केरन्स का ऑटोरेडियों ग्राफी प्रयोग (Cairn’s Autoradiography Experiment):

बैक्टीरियल गुण सूत्र (Bacterial Chromosomes) की पुनरावृत्ति (Replication) की अर्ध-संरक्षी (Semi Conservative) विधि को केरन्स ने ऑटोरेडियोग्राफी (Autoradiography) की तकनीक (Techniques) द्वारा प्रस्तुत किया । हाइड्रोजन का रेडियोएक्टिव आइसोटोप टिट्रियम (Tritium) है, जिसे विभिन्न पदार्थों के साथ समाहित (Incorporate) किया जा सकता है ।

यदि इससे थायमिडिन (Thiamine का Nucleoside) के हाइड्रोजन परमाणु (Hydrogen Atom) को विस्थापित किया जाये, तो यह थायमिडिन में समाहित हो जाता है और अब थायमिडिन, ट्रिटिएटेड थायमिडिन (Tritiated Thymidine 3H-TdR) कहलाती है ।

ट्रिटिएटेड थायमिडिन का प्रयोग इसलिये किया गया क्योंकि थायमिडिन क्षारक DNA में ही होता है RNA में नहीं । अत: इसके द्वारा DNA का ही वरणात्मक अंकन होगा । अब इन कोशाओं को ट्रिटिएटेड थायमिडिन से निकालकर इनके गुणसूत्रों को स्लाइड पर स्मीयर (Smear) बनाकर फैला दिया जाता है ।

इसके बाद इन्हें फोटोग्राफिक इमल्शन (Photographic Emulsion) जो कि सिल्वर ब्रोमाइड का बना होता है, की पतली फिल्म से ढँककर अन्धेरे में रख दिया जाता है । स्लाइडों को लगभग 6-8 सप्ताह तक अन्धेरे में रखा जाता है ।

रेडियोऐक्टिव परमाणु (Radioactive Atom) सामान्यतः अस्थायी होते हैं और रोडियोऐक्टिव कणों का उत्सर्ग (Emission) कहते हैं । ये कण सिल्वर ब्रोमाइड के कणों को जो कि उनके ठीक ऊपर स्थित है, को अपचयित (Reduce) करते हैं जिससे एक निगेटिव फोटोग्राफ (Negative Photograph) जैसी फिल्म बन जाती है ।

फिल्म में से इमल्शन धुल जाता है और जिन स्थानों पर अपचयित सिल्वर ग्रेन होते है वहाँ गहरे रंग के धब्बे बन जाते हैं । ये धब्बे अप्रत्यक्ष रूप में अंकित DNA की उपस्थिति को प्रदर्शित करते हैं । अनुलिपिकरण करने वाले DNA में एक पुनरावृत्त द्विशाख (Replicating Fork) दिखाई देती है, इसी बिन्दु पर DNA की दो श्रृंखलाओं से चार श्रृंखलाएँ बनती हैं ।

प्रथम पुनरावृत्ति के बाद DNA के दोनों सूत्रों में से केवल एक सूत्र में रेडियोऐक्टिवता का समावेश होता है, जबकि द्वितीय पुनरावृत्ति के बाद DNA के दोनों सूत्रों में रेडियोऐक्टिवता का समावेश हो जाता है । अत: DNA की अर्द्धसंरक्षी पुनरावृत्ति की पुष्टि होती है ।

(3) टेलर का उपयोग (Taylor’s Experiment):

टेलर (J.H.Taylor) एवं इसके सहयोगियों (Co-Workers) ने ऑटोरेडियोग्राफी द्वारा विसिया फेबा (Vicia Faba) की जड़ के मूलाग्र की कोशिकाओं में DNA पुनरावृत्ति (अनुलिपिकरण) की अर्धसंरक्षी विधि को प्रदर्शित किया है ।

रेडियोऐक्टिवता थाइमिडीन वाले माध्यम में जडों को रखकर उनकी कोशिकाओं (Cells) के DNA में रेडियोऐक्टिवता का समावेश किया गया । फोटोग्रफी फिल्म (Photographic Film) में अंकित गुणसूत्र की बाह्रा रूपरेखा सिल्वर के कणों के प्रकीर्ण काले धब्बों के रूप में दिखाई देती है ।

इन मूलाग्रों को रेडियोऐक्टिवता से रहित माध्यम में रखने पर अग्रलिखित तथ्य सामने आये:

प्रथम पीढ़ी के गुणसूत्रों (Chromatid) के दो क्रोमेटिड में समान रूप से रेडियोएक्टिवता थी, क्योंकि उनमें DNA के द्विहेलिक्स (Double Helix) का पुराना स्ट्रैण्ड रेडियोऐक्टिव था, जबकि नया स्ट्रैण्ड रेडियोऐक्टिव नहीं था । दूसरी पीढ़ी के प्रत्येक गुणसूत्र (Chromosomes) के दोनों क्रोमेटिड में से केवल एक रेडियोऐक्टिव था ।

टेलर के प्रयोग गुणसूत्र (Chromosomes) पुनरावृत्ति की अर्धसंरक्षी विधि (Semiconservative Method) को प्रमाणित करते हैं, क्योंकि गुणसूत्र (Chromosomes) का प्रत्येक क्रोमेटिड DNA के केवल एक द्विकुण्डलित अणु (Double Helical Molecule) का बना होता है, अत: यह DNA की पुनरावृत्ति को ही प्रदर्शित करता है ।

डी.एन.ए.–प्रतिरूपण का महत्व (Significance of DNA-Duplication):

(1) DNA में द्विगुणन द्वारा सन्ततियों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी अस्तित्व बना रहता है ।

(2) जीवधारियों का विशेष-लक्षण DNA का बार-बार जनन करना होता है जो द्विगुणन द्वारा सम्भव होता है ।

(3) आनुवांशिक लक्षण, जो DNA पर उपस्थित होते हैं, समान प्रतिरूपों पर आ जाते हैं और सन्तति कोशिकाओं में इनका एक-एक प्रतिरूप पहुँचता है ।

(4) जनन-कोशिकाओं से सन्तति-कोशिकाओं में आनुवांशिक संकेत बराबर मात्रा में पहुँचते रहते हैं ।

डी.एन.ए. पुनरावृत्ति के प्रकार (Types of DNA Replication):

i. गुणसूत्रों की अर्द्धसंरक्षी प्रतिकृति (Semi-Conservative Replication of Chromosomes):

जे.एच.टेलर (J.H.Taylor) ने बिसिया फाबा (Vicia Faba) के मूलाग्र की कोशिकाओं (Root Tips) में गुणसूत्रों (Chromosomes) के द्विगुणन (Replication) का अध्ययन किया तथा ऑटोरेडियोग्राफी (Autoradiography) का प्रयोग करके उसके परिणामी के सन् 1857 में प्रकाशित किया ।

उनके अनुसार ट्रिटिएटेड थायमिडिन के माध्यम में उगाने के बाद अब मूलाग्रों को अनांकित (Unlabeled) थायमिडिन के माध्यम में स्थानन्तिरित किया गया, तो द्विगुणन की प्रथम पीढ़ी में दोनों ही अर्धगुणसूत्र अंकित पाए गए, अर्थात् प्रत्येक अर्धगुणसूत्र में DNA हिन्दू कुण्डलिनी था और DNA के दोनों सूत्रों में से एक अंकित था ।

पुनरावृत्ति के दो चक्रों के बाद, प्रत्येक गुणसूत्र में अर्धगुणसूत्रों के दो जोड़े पाए गए (Tetraploid), जिनमें से ऐसे प्रत्येक जोड़े में एक अर्धगुणसूत्र अंकित तथा दूसरा अनांकित था । पुनरावृत्ति के तीसरे चक्र में प्रत्येक गुणसूत्र में अर्धगुणसूत्रों के चार जोडें पाए गए (Octoploid), इनमें से दो जोडों में एक अंकित व दूसरा अनांकित अर्धगुणसूत्र था, जबकि अन्य दो जोड़ी में ही अर्धगुणसूत्रों अनांकित थे ।

यह देखा जा सकता है कि ये साइटोलोजिकल परिणाम, DNA के अर्द्धसंरक्षी प्रतिकृति को ही प्रमाणित करते हैं । आरम्भ में आर्थर कोर्नबर्ग (Arthur Kornberg) ने एक एन्जाइम को खोजा जिसे DNA-पॉलीमरेज I कहा जाता है ।

अनेक वर्षों तक यह माना जाता रहा कि यही एन्जाइम DNA की पुनरावृत्ति के लिए आवश्यक है । किन्तु यह पाया गया कि यदि इस एन्जाइम की विशेष जीन उत्परिवर्तित हो जाती है और DNA पॉलीमरेज I नहीं बनता है, तो इसकी अनुपस्थिति का DNA की पुनरावृत्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, किन्तु वह एन्जाइम जिसकी उपस्थिति DNA की पुनरावृत्ति के लिये आवश्यक होती है, DNA-पॉलीमरेज III कहलाता है ।

यह एक सम्मिश्रण (Complex) होता है, जिसमें कई-उप-इकाइयाँ होती हैं, इसलिये इसे पॉलीमरेज III होलाएन्जाइम (Polymerse III Holoenzyme) भी कहते हैं ।

DNA पुनरावृत्ति की सबसे सामान्य प्रक्रिया वह है, जिसमें संश्लेषण एक निश्चित भाग में तथा एक विशिष्ट स्थान से प्रारम्भ होता है, जिसे उद्भव स्थल या प्रारम्भिक स्थल (Origin Site) कहा जाता है ।

इस स्थान पर क्षारकों का एक विशेष क्रम पाया जाता है, जिसे प्रारम्भिक प्रोटीनों (Initiation Proteins) द्वारा पहचाना जाता है । दोनों सूत्रों का पृथक्करण प्रारम्भिक स्थल से आरम्भ होता है, जिससे एक बुलबुले (Bubble) या आँख (Eye) जैसी रचना बनती है ।

इसके उपरान्त बुलबुले में पूरक श्रृंखलाएँ बनना आरम्भ होती हैं, जो प्रारम्भिक स्थल से विपरीत दिशाओं में बनती है । इस प्रकार पुनरावृत्ति करते समय DNA की द्विक कुण्डलिनी में दो ‘Y’ के समान वृद्धि (Growing Point) दिखाई देते हैं ।

DNA की पुनरावृत्ति के समय जो श्रृंखलायें बनती हैं, वे टेम्पलेट के प्रति समान्तर होती है । अत: 3’ में 5’ सूत्र पर नया 5’ से 3’ पूरक सूत्र बनता है । इसी प्रकार 5’ से 3’ सूत्र पर नया 3’ से 5’ पूरक सूत्र बनता है ।

5′ से 3′ दिशा में जो पुनरावृत्ति होती है उसमें नई न्यूक्लिओटाइड 3-OH सिरे पर जुड़ती है, जबकि 3′ से 5′ दिशा में पुनरावृत्ति होने पर नई न्यूक्लिओटाइड 5′-P सिरे पर जुड़ना चाहिये ।

अत: दोनों दिशाओं में नई श्रृंखला के संश्लेषण के लिये अलग-अलग एन्जाइम होने चाहिये, किन्तु DNA संश्लेषण में भाग लेने काले पॉलीमरेज III एन्जाइम केवल 5.3 दिशा में ही संश्लेषण करते है ।

इस कारण वह श्रृंखला जो 5’→3’ दिशा में बनती है, वह सतत रूप से बनती है, जबकि दूसरे सूत्र पर पुनरावृत्ति असतत रूप से होती है और छोटे-छोटे टुकड़े (Fragments) बनते हैं, प्रत्येक टुकड़ा 5’→3’ दिशा में ही बनता है ।

इन टुकडों को ओकाजाकी टुकड़े (Okazaki Segments or Pieces) कहा जाता है । इन्हें बाद में एन्जाइम लाइगेज (Ligase) द्वार आपस में जोड़ दिया जाता है । नई श्रृंखला जो सतत रूप से बनती है लीडिंग सूत्र (Leading Strand) तथा असतत रूप से बनी श्रृंखला लैगिंग सूत्र (Lagging Strand) कहलाती है ।

ii. DNA प्रतिकृति में RNA प्रारम्भक (RNA Primer in DNA Replication):

DNA की वास्तविक प्रतिकृति आरम्भ होने से पहले RNA के छोटे-छोटे टुकड़े बनते है । जिन्हें RNA प्रारम्भक कहते है । DNA के संश्लेषण के लिये पहले से उपस्थित RNA की श्रृंखला का होना अत्यन्त आवश्यक है, जिससे पॉलीन्यूक्लिओटाइड जुड़ते हैं ।

RNA प्रारम्भक 5′-3′ दिशा में होती है एवं इसका संश्लेषण पुनरावृत्ति के उद्भव स्थल के पास स्थित DNA की टेम्पलेट द्वारा होता है । RNA संश्लेषण, RNA-पॉलीमरेज की सहायता से होता है ।

बाद में RNA के खण्ड को DNA पॉलीमरेज I की सहायता से हाइड्रोलाइज (Hydrolyse) कर दिया जाता है । परिणामस्वरूप जो खाली स्थान बनते हैं, उन्हें फिर DNA पॉलीमरेज I की उत्येरक क्रिया (Catalytic Activity) द्वारा न्यूक्लिओटाइडों से भर दिया जाता है ।

यह भी देखा गया है कि यदि रिफेम्पिसिन (Rifampicin) नामक एण्टीबायोटिक द्वारा RNA के संश्लेषण को रोक दिया जाता है, तो DNA की पुनरावृत्ति नहीं होती है । इस प्रकार DNA प्रतिकृति में RNA प्रारम्भिक का योगदान प्रमाणित होता है ।

आरम्भ में आर्थर कोर्नबर्ग (Arthur Kornberg) ने एन्जाइम को खोजा जिसे DNA-पॉलिमरेज I कहा जाता है । अनेक वर्षों तक यह माना जाता रहा है कि यही एन्जाइम DNA की पुनरावृत्ति के लिए आवश्यक है ।

किन्तु यह पाया गया कि यदि इस एन्जाइम की विशेष जीन उत्परिवर्तित हो जाती है और DNA-पॉलिमरेज I नहीं बनता है, तो इसकी अनुपस्थिति का DNA की पुनरावृत्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता । किन्तु वह एन्जाइम जिसकी उपस्थिति DNA की पुनरावृत्ति के लिए आवश्यक होती है, DNA-पॉलिमरेज III कहलाता है ।

यह एक सम्मिश्रण (Complex) होता है, जिसमें कई उप-इकाइयाँ होती हैं, इसलिए इसे पॉलिमरेज III होलोएन्जाइम (Polymerase III Holoenzyme) भी कहते हैं । केरन्स ने निष्कर्ष निकाला था कि DNA का संश्लेषण गुणसूत्र पर एक निश्चित बिन्दु पर आरम्भ होता है और एक दिशा में ही चलता है ।

इसके बाद यह अनुभव किया गया कि केरन्स के परिणामों की व्याख्या द्वि-दिशीय (Bi-Directional) प्रतिकृति के रूप में भी की जा सकती है । ऑटोरेडियोग्राफी, इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी तथा आनुवंशिक अध्ययनों से प्राप्त सभी प्रमाण DNA की द्वि-दिशीय प्रतिकृति की ही पुष्टि करते हैं ।

iii. DNA की पुनरावृत्ति असंतत होती है (DNA Replication is Discontinuous):

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि DNA Polymerase एन्जाइम मूल DNA के 5’-3’ पोलीन्यूक्लिओटाइड स्ट्रैन्ड के साथ-साथ 5’-3’ दिशा में पोंलीन्यूक्लिओटाइड श्रृंखला का निर्माण करता है ।

इससे स्पष्ट है कि एक ही एन्जाइम मूल DNA के 5’-3’ पोलीन्यूक्लिओटाइड स्ट्रैन्ड के साथ-साथ 3’-5’ श्रृंखला को संश्लेषित करने में असमर्थ होता है । ओकाजाकी (Okazaki) के अनुसार दोनों स्ट्रैन्ड में DNA का संश्लेषण साथ-साथ होता है ।

इस क्रिया में एक ही एन्जाइम द्वारा पोलीन्यूक्लिओटाइड श्रृंखला छोटे-छोटे खंडों के रूप में संश्लेषित होती है । ये खंड ओकाजाकी की खंड (Okazaki Pieces) कहलाते हैं तथा प्रत्येक खंड में 1000-2000 तक न्यूक्लिओटाइड होते हैं ।

Polynucleotide Ligase एन्जाइम इन खंडों के एक-दूसरे से जोड़कर पूरी पोलीन्यूक्लिओटाइड श्रृंखला का निर्माण करता है । DNA के असंतत संश्लेषण की ऑटोरेडियोग्राफिक परीक्षणों (Autoradiographic Experiments) द्वारा भी पुष्टि होती है ।

iv. DNA की एकदिशिक व द्विदिशिक पुनरावृत्ति (Unidirectional and Bidirectional Replication of DNA):

J.Cairns ने अपने परीक्षणों से यह निष्कर्ष निकाला कि DNA संश्लेषण गुणसूत्र पर एक निश्चित बिन्दु से शुरू होकर केवल एक दिशा की ओर अग्रसर होता है, किन्तु आधुनिक परीक्षणों द्वारा इसके द्विदिशिक (Bidirectional) होने की पुष्टि होती है ।

Levinthal एवं Cairns ने प्रतिपादित किया कि पुनरावृत्ति के समय दोनों स्ट्रैण्ड एक-दूसरे से पूर्णतः पृथक नहीं होते, बल्कि ये केवल एक सिरे पर पृथक होना आरम्भ करते हैं और इसके साथ ही दोनों पृथक हुए खण्ड अपने पूरक न्यूक्लिओटाइड को अपनी ओर आकर्षित करना शुरू कर देते हैं ।

इसका अर्थ हुआ कि पुनरावृत्ति करते हुए DNA में Y- के समान दो क्षेत्रों को प्रदर्शित करने में सफलता पायी है । इनमें से एक वृद्धि बिन्दु तथा दूसरा प्रारम्भिक बिन्दु कहलाता है ।

 

डी.एन.ए. पुनरावृत्ति के विधियाँ (Methods of DNA Replication):

डेल ब्रेक (Del Bruck) के अनुसार पुनरावृत्ति (Replication) की निम्न दो संभव विधियाँ हो सकी है:

(1) संरक्षी विधि (Conservative Methods):

इस विधि के अनुसार पुराने पैतृक (Parental) या मूल DNA के दोनों स्ट्रैण्ड (Strands) पुनरावृत्ति (Replication) के बाद साथ-साथ रहते हैं तथा सन्तति (Daughter) के दोनों स्ट्रैण्ड (Stands) संश्लेषित (Synthesis) होते हैं ।

(2) डिस्परसिव या परिक्षैपी विधि (Dispersive Method):

इस विधि के अनुसार DNA के अणु पुनरावृत्ति (Replication) के समय विघटित होकर विखण्डित हो जाते हैं तथा ये खंड-सन्तति स्ट्रैण्ड (Daughter Strands) में अनियमित क्रम में होते हैं । वैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगों (Experiments) के आधार पर सिद्ध कर दिया है कि पुनरावृत्ति (Replication) अद्ध-संरक्षी (Semi-Conservative Method) द्वारा सम्पन्न होतीं हैं ।

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