विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) पर निबंध: शीर्ष सात निबंध | Essay on World Trade Organisation (WTO): Top 7 Essays in Hindi.

Essay Contents:

  1. विश्व व्यापार संगठन का परिचय [Introduction to World Trade Organisation (WTO)]
  2. विश्व व्यापार संगठन की प्रस्तावना (Preamble of W.T.O.)
  3. विश्व व्यापार संगठन के उद्देश्य (Objectives of W.T.O.)
  4. विश्व व्यापार संगठन का क्षेत्र (Scope of W.T.O.)
  5. विश्व व्यापार संगठन के कार्य (Functions of WTO)
  6. विश्व व्यापार संगठन मन्त्री स्तरीय कान्फ्रैंस (WTO Ministerial Conference)
  7. विश्व व्यापार संगठन की उन्नति (Progress of World Trade Organisation – WTO)

Essay # 1. विश्व व्यापार संगठन का परिचय [Introduction to World Trade Organisation (WTO)]:

पिछले कुछ वर्षों से गैट (GATT) राजनेताओं, मीडिया तथा हमारे देश की जनता के लिये विशेष महत्व का विषय बना हुआ है । अधिकांश मतभेद राजनैतिक विचारधारा पर आधारित प्रतीत होता है न कि किसी यथार्थ विश्लेषण पर । परिचर्चा को किसी फलदायक निष्कर्ष की ओर ले जाने से पहले हम गैट (GATT) के मौलिक विषय-वस्तु और डन्कल ड्राफ्ट का वर्णन करेंगे ।

गैट की स्थापना वर्ष 1948 में 223 देशों द्वारा जिनमें भारत भी सम्मिलित था जेनेवा (Geneva) में की गई । इसमें सदस्य देशों का एक व्यापार समझौता सम्मिलित था । गैट एक अन्तर्राष्ट्रीय मच है जो सीमा शुल्क और कोटा जैसे बन्धनों को कम करके तथा विकासशील देशों को कुछ विशेष एवं भिन्न व्यवहार देकर विश्व व्यापार को बढाने का यत्न करता है ।

ADVERTISEMENTS:

अस्तित्व में आते ही गैट ने विश्व व्यापार में बाधाओं को दूर करने के लिये भिन्न-भिन्न स्थानों पर बातचीत के सात दौर आयोजित किये । बातचीत का आठवां दौर जो उरग्वे-दौर (Uruguay Round) के नाम से जाना जाता है वर्ष 1986 में आरम्भ हुआ तथा लम्बे समय के लिये उरग्वे में चलता रहा ।

पहले दौरों में जिन विषयों पर विचार हुआ वे हैं:

1. टैरिफ

2. संरक्षण

ADVERTISEMENTS:

3. शुष्क भूमियों पर उत्पादन

4. प्राकृतिक साधनों में उत्पादन

5. वस्त्र उद्योग

6. कृषि उत्पादन और कीमतें आदि

ADVERTISEMENTS:

7. गैट नियम

8. रुकावटें

9. बहु-व्यापार समझौते

10. सबसिडी आदि

11. विवाद निपटारा प्रणाली

12. गैट की कार्यप्रणाली ।

उरग्वे दौर (Uruguay Round):

बातचीत का आठवा दौर उरग्वे, पुन्टा डेल एस्टे में आर्थर डंकल की अध्यक्षता में आरम्भ हुआ । यह बातचीत के पहले दौरों से बहुत भिन्न था क्योंकि इस नये विषय जैसे कृषि, वस्त्र उद्योग, निवेश, बौद्धिक सम्पदा अधिकार और सेवाएँ आदि सम्मिलित थे, जिससे यह पहले से कहीं अधिक संवेदनशील बन गया । इस दौर के महत्वपूर्ण विषय सदस्य देशों की घरेलू नीतियों से सम्बन्धित थे ।

गतिरोध को तोड़ने के लिये श्री आर्थर डकेल ने 20 दिसम्बर 1991 को एक व्यापक दस्तावेज प्रस्तुत किया । इस दस्तावेज में उन समझौतों के परिणाम होते थे जिन के परिणामों को तब तक प्राप्त कर लिया जाता था तथा जिन क्षेत्रों में मतभेद रहता था वहां समझौते के प्रस्ताव प्रस्तुत किये जाते थे ।

अन्त में 15 अप्रैल, 1994 को भारत सहित 125 देशों द्वारा गैट (GATT) पर हस्ताक्षर किये गये तथा इसे अप्रैल 1995 से प्रभावी बनाया गया । प्रत्येक हस्ताक्षर-कर्ता अन्य सभी हस्ताक्षर-कर्ताओं को ‘अति कृपापात्र राष्ट्र’ (Most Favoured Nation) (MFN) का पद देगा ।

इसका दीर्घकालिक उद्देश्य इस प्रकार है- कृषि सहायता और संरक्षण को एक स्वीकृत समय के भीतर बाजार पहुंच में विशेष दृढ़ वचनबद्धताओं के साथ, घरेलू समर्थन और निर्यात प्रतियोगिता को धीरे-धीरे पर्याप्त रूप में कम करके एक न्यायसंगत और बाजार प्रवृतिक कृषि व्यापार प्रणाली की स्थापना करना ।

विश्व व्यापार संगठन [World Trade Organisation (W.T.O.)]:

विश्व व्यापार संगठन (W.T.O.) 1 जनवरी 1995 को अस्तित्व में आया जो अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के सम्बन्ध में सम्पूर्ण विश्व की अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख आशा बिन्दु हैं । विश्व व्यापार संगठन के सर्वप्रथम महा-निदेशक पीटर सदरलैण्ड (Peter Sutherland) ने कहा, ”विश्व व्यापार संगठन राष्ट्रों को आय वृद्धि और प्रासंगिक एवं खुले व्यापार द्वारा अच्छी सेवाओं की रचना के लिये एक वैश्विक सहकारी प्रयास में बांधता है ।”

गैट/विश्व व्यापार संगठन समाचार (जनवरी 1995) के अवलोकन अनुसार नये वैश्विक व्यापार नियम 120 देशों की वर्षों की बातचीत द्वारा तय हुये । विश्व व्यापार समझौतों और बाजार पहुंच वचनबद्धताओं द्वारा विश्व की आय के वर्ष 2005 तक 500 विलियन डॉलर तक बढ़ जाने की सम्भावना है और वैश्विक व्यापार वृद्धि उसी वर्ष सामान्य से ¼ गुणा ऊंची होगी ।

संक्षेप में, WTO सरकार के विभिन्न देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रोत्साहित करने तथा सीमा शुल्क के बंधनों को कम करने के लिए किया गया आवश्यक सिद्धान्तों तथा नियमों से संबंधित बहुपक्षीय समझौता और बंधन मुक्त (Loose) संगठन है । यह एक बहुपक्षीय संधि है जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के नियमों का निर्धारण करती है । 31 अगस्त, 1998 में विश्व व्यापार संगठन की सदस्य संख्या 132 थी ।


Essay # 2.

विश्व व्यापार संगठन की प्रस्तावना (Preamble of W.T.O.):

विश्व व्यापार संगठन प्रस्तावना में वर्णन है कि, यह सुनिश्चित करने के लिये सकारात्मक प्रयत्नों की आवश्यकता विकासशील देशों और विशेषतया उनमें न्यूनतम विकसित देशों के लिये अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की वृद्धि में एक ऐसा भाग सुनिश्चित करना जिससे उनकी आर्थिक विकास की आवश्यकताएं पूरी हो सकें ।

विश्व व्यापार संगठन की प्रस्तावना, गैट के उद्देश्यों का समर्थन करती हैं अर्थात् आय के मानकों की वृद्धि, पूर्ण रोजगार और व्यापार का विस्तार सुनिश्चित करना तथा इन लक्ष्यों को सेवाओं तक बढ़ाना । इसके अतिरिक्त, यह आर्थिक विकास के विभिन्न सोपानों के अनुरूप पर्यावरण के संरक्षण के लिये सतत विकास की धारणा का आरम्भ करता है ।

यह विकासशील देशों के लिये अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की वृद्धि के अनुपात को उच्चतर बनाने, विशेष उपायों की आवश्यकता को भी पहचानता है । विकासशील देश, अन्य विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों द्वारा किये गये उपायों से बढे हुये निर्यातों से लाभान्वित होंगे । विकासशील देशों को अपना दायित्व निभाने के लिये तथा विश्व व्यापार संगठन के बहुपक्षीय व्यापार के लाभों को अधिक प्रभावी दग से प्राप्त करने के लिये तकनीकी सहायता उपलब्ध करनी होगी ।

समझौते का स्वरूप (Nature of Agreement):

नया विश्व व्यापार संगठन (W.T.O.) जो व्यापार और स्थानान्तरण पर सामान्य समझौते (General Agreement on Trade and Transfer) (GATT) का प्रतिस्थापन करता है । पहली जनवरी, 1995 को भारत सहित 85 संस्थापक सदस्यों के समर्थन से लागू हुआ । विश्व व्यापार संगठन अब विश्व-स्तरीय आयामों के तीसरे आर्थिक स्तम्भ के रूप में सामने आया जबकि पहले दो विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक कोष (IMF) हैं ।

नई व्यापार संस्था W.T.O. जिसके पास राष्ट्रों के व्यापार के झगडे निपटाने की शक्ति है तथा सेवाओं और कृषि जैसे क्षेत्रों में मुक्त व्यापार के नियम को विस्तृत करने की शक्ति है । गैट से अधिक क्षेत्र को प्रच्छन्न करती है । विश्व व्यापार संगठन (W.T.O.) के पास 1/3 से अधिक टैरिफ कम करने का प्रावधान है और बाजारों को और अधिक खोलने की व्यवस्था है ।

आशा की जाती है कि नई व्यापार संस्था- W.T.O. के अस्तित्व में आने के परिणामस्वरूप विश्व व्यापार दीर्घकाल में दृढतापूर्वक प्रोत्साहित होगा । वर्ष 2005 के दौरान के अनुमान अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार द्वारा बिक्री $510 बिलियन प्रतिवर्ष तक हो सकती है ।

गैट की भान्ति WTO समझौता भी वस्तुओं के व्यापार को नियमित करेगा, इसके अतिरिक्त यह बीमा और पर्यटन जैसी सेवाओं से सीमा पार भी व्यवहार करेगा । नये विश्व व्यापार संगठन की शर्तें बौद्धिक सम्पदा जैसे पेटैन्ट, कापी राइटस और बैण्ड आदि की रक्षा करेंगी ।

कृषि और वस्त्र उद्योग पूर्णतया WTO समझौते के अधीन प्रच्छन्न हैं । राज्य सबसिडी सम्बन्धी नियमों को कठोर बना दिया गया है ताकि ऐसे भुगतानों को कम किया जा सके । विश्व व्यापार संगठन की उच्चतम संस्था मन्त्री वर्ग का सम्मेलन जो दो वर्षों में कम-से-कम एक बार अवश्य होता है ।

नया व्यापार संगठन पर्यावरण और श्रमिकों के अधिकारों के सम्बन्ध में उत्तर-दक्षिण के दृढ़ मतभेदों का सामना करता है तथा ऐसी समस्याओं का प्राथमिकता के आधार पर समाधान किया जाता है ।

विश्व व्यापार संगठन, लगभग अव्यवस्थित राज्य को वस्तुओं और सेवाओं के $5 बिलियन के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के आर्डर देगा । OECD द्वारा संचालित एक अध्ययन अनुसार, यदि आठवें दौर की व्यवस्थाओं को पूर्णतया लागू किया जाता है तो वर्ष 2002 तक वैश्विक आय $2,74,00 करोड से बढ़ जायेगी । इसमें से $8,600 करोड़ विकासशील देशों को प्राप्त होगा । भारतीय निर्यात सामान्य वृद्धि के अतिरिक्त $15 करोड़ से $200 तक करोड बढेगा ।


Essay # 3.

विश्व व्यापार संगठन के उद्देश्य (Objectives of W.T.O.):

WTO के मुख्य लक्ष्य नीचे सूचीबद्ध किये गये है:

(i) WTO का मुख्य लक्ष्य समझौते में कल्पित नई विश्व व्यापार प्रणाली का कार्यान्वयन करना ।

(ii) विश्व व्यापार का इस ढंग से संवर्धन करना जिससे प्रत्येक देश को लाभ प्राप्त हो ।

(iii) यह सुनिश्चित करना कि विकासशील देशों को उनकी विकास आवश्यकताओं के अनुकूल अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के विस्तार के परिणामस्वरूप प्राप्त होने वाले लाभों का बड़ा भाग प्राप्त हो ।

(iv) व्यापार में सभी भागीदारों के बीच प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाना ताकि उपभोक्ताओं को लाभ प्राप्त हो और वैश्विक सम्बद्धता में सहायता प्राप्त हो ।

(v) विश्व में रोजगार का उच्च स्तर सुनिश्चित करने के लिये उत्पादन और उत्पादकता के स्तर को बढ़ाना ।

(vi) विश्व संसाधनों का सर्वोत्तम प्रयोग एवं विस्तार ।

(vii) विश्व स्तर पर लोगों के जीवन स्तर को सुधारना तथा सदस्य राष्ट्रों के आर्थिक विकास को तीव्र करना ।

यहां यह याद रखना आवश्यक है कि WTO के यह उद्देश्य लगभग गैट के उद्देश्यों जैसे ही हैं । यद्यपि, WTO के अन्तर्गत इनकी प्राप्ति के लिये निर्यात प्रतियोगिता, बाजार पहुंच और स्वतन्त्र व्यापार की अधिक कठिन एवं कठोर कार्यान्वयन नीति का अनुकरण करना होगा ।


Essay # 4.

विश्व व्यापार संगठन का क्षेत्र (Scope of W.T.O.):

गैट (GATT) उन वस्तुओं के व्यापार से सम्बन्धित था जो मुख्यता आरम्भिक निर्मित उत्पाद हैं । सेवाओं में व्यापार पर सामान्य समझौता (The General Agreement on Trade in Services) प्रथम बहुपक्षीय समझौता है जिसका लक्ष्य सेवाओं में व्यापार का क्रमिक उदारीकरण है । समझौते में सभी सेवा क्षेत्रों का व्यापार. और सभी रूपों में सेवाओं की पूर्ति सम्मिलित है ।

इस सम्बन्ध में W.T.O. का क्षेत्र गैट से कहीं अधिक है क्योंकि समझौते में नये क्षेत्रों को सम्मिलित किया जाता है अर्थात् वस्तुओं की उत्पादन प्रक्रिया के उलझावों को भी । कृषि के विवादास्पद क्षेत्र को भी सम्मिलित किया गया है और उत्पादन प्रक्रिया के उलझाव रखने वाले क्षेत्रों को भी शामिल किया गया है ।

अन्य नये क्षेत्र हैं:

1. व्यापार से सम्बन्धित बौद्धिक सम्पदा अधिकार (TRIPS)

2. व्यापार सम्बन्धी निवेश उपाय (TRIMS)

3. सेवाओं में व्यापार पर सामान्य समझौता (GATS)

4. उत्पाद से संबंधित व्यापार (Trade in Goods)

WTO गैट की निर्णय निर्माण प्रक्रिया का अनुकरण करेगा ।

निर्णय सर्वसमिति के नियम पर आधारित होगा, जिसे तब अस्तित्व में माना जायेगा जब किसी सदस्य की ओर से औपचारिक विरोध नहीं होगा । यदि सर्वसमिति से कोई निर्णय लेना कठिन हो तो मतदान का आश्रय लिया जा सकता है । निर्णय बहुमत के आधार पर लिया जायेगा तथा एक देश को एक वोट का अधिकार होगा । इस प्रकार WTO का निष्पादन थोड़ा कठिन है परन्तु इसे गैट से अधिक स्वीकार्यता प्राप्त है ।


Essay # 5.

विश्व व्यापार संगठन के कार्य (Functions of WTO):

1. व्यापार एवं प्रशुल्क से संबंधित मुद्दों के लिए एक उचित मच सदस्यों के लिए प्रदान करना ।

2. विश्व संसाधनों का अनुकूलतम प्रयोग करना ।

3. विश्व स्तर पर आर्थिक नीति निर्माण में अधिक सामंजस्य उत्पन्न करने के लिए IMF एवं IBRD का सहयोग करना ।

4. व्यापार नीति समीक्षा प्रक्रिया से संबंधित नियमों एवं प्रावधानों को लागू करना ।

5. विश्व व्यापार समझौता एवं बहुपक्षीय तथा बहुवचनीय समझौते के कार्यान्वयन, प्रशासन एवं परिचालन हेतु सुविधाएं प्रदान करना ।

6. सदस्यों के बीच उत्पन्न विवादों के निपटारे हेतु संबंधित नियमों एवं प्रक्रियाओं को प्रशासित करना ।


Essay # 6.

विश्व व्यापार संगठन मन्त्री स्तरीय कान्फ्रैंस (WTO Ministerial Conference):

विश्व व्यापार संगठन की सबसे उच्च निर्णय निर्माता संस्था, मन्त्री पक्ष की कान्फ्रैंस है जिसे प्रत्येक दो वर्ष पश्चात् बैठक करनी होती है । यह कान्फ्रैंस, किसी भी बहु-पक्षीय व्यापार समझौते के अन्तर्गत सभी मामलों पर निर्णय ले सकती ।

WTO की जनवरी 1995 में स्थापना के पश्चात निम्नलिखित मन्त्री स्तरीय कान्फ्रैंस हुई हैं:

1. सिंगापुर (9-13 दिसम्बर, 1996)

2. जनेवा (18-20 मई, 1998)

3. सीएटल (यू. एस. ए.) (30 नवम्बर से 3 दिसम्बर, 1999)

4. दोहा (कतार) (9 से 14 नवम्बर 2001)

5. केनकम (मैक्सिको) (10 से 14 सितम्बर 2003)

6. हांगकांग (13 से 18 दिसम्बर, 2005)

विश्व व्यापार संगठन की छठी मन्त्रीस्तरीय कान्फ्रैंस (Sixth Ministerial Conference of WTO):

विश्व व्यापार संगठन की छठी मन्त्रीपक्षीय कान्फ्रैंस 13 से 18 दिसम्बर 2005 को हांगकांग में हुई ।

कान्फ्रैंस के प्रमुख परिणामों का वर्णन नीचे किया गया है:

1. दोहा कार्य के कार्यक्रम का पूर्ण समाधान तथा 2006 में बातचीत के निष्कर्ष तक पहुंचना ।

2. कृषि एवं गैर-कृषि बाजार पहुंच (NAMA) में रुपात्मकताएं (Modalities) 30 अप्रैल तक स्थापित करना ओर 31 जुलाई, 2006 तक सूचियों का खाका तैयार करना ।

3. वर्ष 2013 तक कृषि में निर्यात सबसिडियों को समाप्त करना, इसका पर्याप्त भाग कार्यान्वयन काल के पहले भाग में पूरा करना । भारत जैसे ‘एग्रीगेट मैय्यरमैंट ऑफ स्पोर्ट (AMS) रहित’ विकासशील देश छोटी-मोटी स्थिति में घटाव और व्यापार विकृत घरेलू सहायता में समग्र कटौती से मुक्त होंगे, जिसमें AMS, ‘द ब्लयु बॉक्स और डी. मिनिमस सम्मिलित हैं, यह मूल्य के 10 प्रतिशत तक एम्बर बॉक्स (Amber Box) सबसिडियां उपलब्ध करने का अधिकार है ।

4. संशोधित सेवा भेटों का दूसरा दौर 31 जुलाई, 2006 तक पेश करना और 31 अक्तुबर, 2006 तक अन्तिम खाका सूचियां पेश करना ।

5. ट्रिप्स समझौते में संशोधन, विकासशील देशों के सार्वजनिक स्वास्थ्य के समाधान का आश्वासन देता है ।

6. सभी विकसित देशों को अल्प-विकसित देशों के सभी उत्पादों के लिये ड्‌यूटी-फ्री, कोटा फ्री बाजार पहुंच । विकासशील देश जो स्वयं को ऐसा करने की स्थिति में घोषित करते हैं क्षेत्र विस्तार में लोच द्वारा ऐसी पहुंच उपलब्ध करेंगे ।

7. विकसित देशों द्वारा 2006 में, कपास में निर्यात सबसिडी समाप्त की जायेगी और बाजार विकृत करने वाली घरेलू सबसिडियां अधिक उच्चाकांक्षा सहित तथा कम समय अवधि में काम करेंगे ।

हांगकांग कान्फ्रैंस के पश्चात् WTO से सम्बन्धित समस्याएं (WTO Related Issues at the Post Hong Kong Conference):

दिसम्बर 2005 में हांगकांग में हुई छठी मन्त्रीपक्षीय कान्फ्रैंस के पश्चात् WTO ने 30 अप्रैल, 2006 तक कृषि और गैर-कृषि बाजार पहुंच (NAMA) में रुपात्मकताएँ (Modalities) स्थापित करना स्वीकार किया । यह खाका जुलाई, 2006 तक प्रस्तुत करना था और दोहा दौर के सभी क्षेत्रों सम्बन्धी बातचीत के निष्कर्ष तक 2006 के अन्त तक पहुंचना था । सेवाओं के सम्बन्ध में सभी कर्मचारियों ने 31 जुलाई, 2006 तक अपने संशोधित प्रस्ताव प्रस्तुत करने थे । गहन बातचीत के बावजूद इन अन्तिम तिथियों का पालन नहीं हो सका ।

कृषि मामलों पर भारत के विचार (India’s View on Agricultural Issues):

अन्य विकासशील देशों सहित भारत, दोहा दौर के अन्तर्गत कृषि के सभी पहलुओं पर विशेष और विभेद पूर्ण व्यवहार पर बल दे रहा है । WTO के अन्तर्गत निम्न आय, दुर्बल साधन और निर्वाह स्तर पर जी रहे किसान जो कीमत अस्थिरता, दृढ़ प्रतियोगिता और बाजार अशुद्धियों का सामना कर रहे हैं की आशंकाओं को कम करने के लिये यह आवश्यक है ।

इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुये, अन्य विकासशील देशों के साथ G-20 और G-31 में इसके सहयोगी भागीदारों के साथ भारत निम्नलिखित (दोहा कृषि परिणाम) मुख्य समस्याओं पर बल दे रहा है:

 

(i) विकृत सबसिडियों की समाप्ति और विकसित देशों द्वारा संरक्षण ।

(ii) आहार एवं जीविका सुरक्षा और ग्रामीण विकास की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये उचित व्यवस्था करना ।

इन तथ्यों के प्रकाश में, भारत ने सही मार्ग चुना कि उत्पादन बढ़ाने और धीरे-धीरे निम्न उत्पादकतापूर्ण कृषि पर निर्भरता से छुटकारा पाने के लिये सरकारों को इस स्थिति में होना चाहिये कि घरेलू उत्पादनकर्ताओं को शीघ्र, सुस्थिर और लाभकर कीमतें दे सकें । इसके लिये प्रभावी उपकरण जैसे विशेष उत्पाद और विशेष संरक्षण तन्त्र भारत जैसे विकासशील देश के लिये आवश्यक है । यद्यपि, हांगकांग में दोनों उपकरणों (विशेष उत्पाद और विशेष संरक्षण) की रूपात्मताओं का अभिन्न भाग और कृषि क्षेत्र में बातचीत का परिणाम समझा गया ।

इसके अतिरिक्त, विकासशील देशों को अधिकार होगा कि विशेष उत्पादों की पर्याप्त संख्या को स्वयं-नमोदृष्ट करें । यह स्व-नमोदृष्ट उत्पाद अन्य देशों से, लोचपूर्ण व्यवहार आकर्षित करेंगे । वर्ष 2006 के अन्त में, सदस्यों ने ‘दोहा कार्य कार्यक्रम’ के सभी क्षेत्रों में बातचीत को स्थगित करने तथा बातचीत को पुन: मोल- तोल के वातावरण में आरम्भ करने की सहमति प्रकट की ।

WTO मोल-तोल तथा जिनेवा वार्ता और भारत (WTO Negotiations, Talks at Geneva and India):

फरवरी 2007 में बड़े स्तर पर बातचीत पुन: आरम्भ हुई । इस बैठक में भारत की निम्न आय और साधन हीन कृषि उत्पादकों पर सबसे अधिक चर्चा हुई । औद्योगिक टैरिफों के लिये, भारत की वृद्धि और विकास सम्बन्धी आशंकाओं पर भी विचार हुआ जहाँ भारत ने NAMA II गठबन्धन का साथ दिया ।

जुलाई 2008 की WTO चर्चा में कृषि सबसिडी और औद्योगिक टैरिफ परिचर्चा का मुख्य विषय थे । परन्तु कृषि सबसिडी समस्या पर संयुक्त राज्यों के कठोर रवैये के कारण बातचीत असफल हो गई । सात वर्ष लम्बी दोहा वार्ता उस मात्रा सम्बन्धी मतभेद का समाधान नहीं कर सकी जिसके अनुसार चीन, भारत, ब्राजील, दक्षिणी अमरीका आदि जैसे महान् विकासशील देशों को कृषि और औद्योगिक उत्पादों में अपने बाजार खोलने चाहिये । बैठक तीव्र विवाद के साथ समाप्त हुई ।

गतिरोध तब आरम्भ हुआ जब यू.एस.ए. भारत और चीन के इस प्रस्ताव से सहमत नहीं हुआ कि यदि कृषि उत्पादों का आयात 15 प्रतिशत बढ़ता है तो उन्हें 25 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क लगाने की आज्ञा मिलनी चाहिये । परन्तु यू.एस.ए. चाहता था कि अतिरिक्त शुल्क की आज्ञा तब हो यदि उच्च आयात 40 प्रतिशत से बढे, जो भारत को पूर्णतया अस्वीकार्य था ।

वर्तमान परिस्थितियों में, यदि यू. एस. ए. जैसे विकासशील देश सबसिडी और टैरिफ ढांचे पर लोच का प्रदर्शन नहीं करते तो विकासशील देशों को आगे बढ़ कर ‘एफरो-प्‌शियन मार्किट को-आपरेशन’ (Afro-Asian Market Co-Operation) का निर्माण करना चाहिये ताकि वे क्षेत्र में बहु-पक्षीय व्यापार से परस्पर लाभ प्राप्त कर सकें ।

भारत में बौद्धिक सम्पदा अधिकारों (IPRs) को अपनाना (Adoption of Intellectual Property Rights (IPRs) in India):

व्यापार सम्बन्धी बौद्धिक सम्पदा के प्रस्तावों के अन्तर्गत, नया गैट समझौता 10 वर्षों की परिवर्तन अवधि उपलब्ध करता हे जिसके दौरान औषध, कैमीकलज और आहार उत्पादों में उत्पाद पेटैन्ट आरम्भ किये जायें । उत्पाद पेटैन्ट अधिकांश औषधियों को प्रभावित नहीं करेंगे और शेष के लिये सरकार गैर-व्यापारिक जन-उपयोग के लिये तथा अपर्याप्त उपलब्धता अथवा अति उच्च कीमतों की स्थिति को रोकने के लिये अनिवार्य लाइसेंस प्रणाली आरम्भ कर सकती है ।

नये गैट समझौते के लागू हो जाने के पश्चात् भारत को अपनी प्रक्रिया एवं उत्पाद पेटैन्ट नियम परिवर्तित करना पडेगा । परन्तु इससे औषध बाजार और इसकी कीमतों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि 85 प्रतिशत औषधियां पेटैन्ट रहित हैं । अतः औषधियों के वर्तमान पुश्त की कीमत पर कोई प्रभाव नहीं होगा । परन्तु औषध की नई पुश्त की कीमतें पेटैन्ट नियम में संशोधन के कारण बढ सकती हैं ।

भारत सरकार ने WTO समझौते के अधीन नव-निर्मित बौद्धिक सम्पदा अधिकारों (IPRs) को अपनाने के लिये निम्नलिखित पग उठाये हैं:

1. WTO समझौते के एक भाग के रूप में भारत को समझौते के अधीन, अपने दायित्वों को पूरा करने के लिये अपने नियम और कानून बनाने थे । परिणामस्वरूप इसे पेटैन्ट एक्ट 1970 को WTO समझौते के IPRs के व्यापार सम्बन्धी पहलुओं के समझौते की व्यवस्थाओं अनुसार संशोधित करने की आवश्यकता थी ।

भारत के पास जनवरी 1, 1995 से समझौते की व्यवस्थाएं लागू करने के लिये पांच वर्ष की परिवर्तन अवधि थी । शिल्प शास्त्रीय क्षेत्रों में अब तक असुरक्षित क्षेत्रों में उत्पाद पेटैन्ट संरक्षण बढ़ाने के लिये पांच वर्षों की अतिरिक्त परिवर्तन अवधि भी उपलब्ध थी ।

2. भारत, जो औषधीय एवं कृषि-रसायनों के क्षेत्रो में उत्पाद पेटेट उपलब्ध नहीं करता, उसे यह 1 जनवरी, 1995 से उपलब्ध करने शे, औषधीय एवं कृषि-रसायनों के लिये उत्पाद पेटैन्ट का आवेदन पत्र प्राप्त करने का तन्त्र और कुछ शर्तों को पूरा करने पर, पाच वर्षो की अवधि के लिये अनन्य बाजार अधिकार देने थे अथवा जब तक पेटैन्ट नहीं दिया जाता अथवा इसे अस्वीकार नहीं किया जाता जो भी कम हो ।

इन परिवर्तनो को वर्ष 1995 के आरम्भ से 31 दिसम्बर, 1994 को एक अध्यादेश जारी करके लागू करना था । दसवीं लोक सभा के भंग हो जाने के कारण रह हो चुके, अध्यादेश को प्रतिस्थापित करने के लिये एक बिल पेश किया गया । इसी प्रकार ‘Trade and Merchandised Marks Act, 1958’ पर व्यापक पुनर्विचार के लिये इसे लोक सभा में पेश किया गया, परन्तु यह रह हो गया ।

3. IPRs को लागू करने के लिये प्रशासन प्रणाली को नियमित एवं सीधा करने के लिये अनेक उपाय किये गये । अब तक प्रकाशित लगभग 30 मिलियन पेटैन्ट दस्तावेजों के वर्तमान स्टॉक में व्यवहार्य और अपनाने योग्य तकनीकों के ज्ञान को प्रच्छन्न करने वाले लगभग एक मिलियन पेटैन्ट दस्तावेजों में सम्मिलित हैं ।

इन दस्तावेजों में सम्मिलित सूचना उद्योग को उपलब्ध करने के लिये एक आधुनिक पेटैन्ट सूचना स्थापित की गई है । इसके लिये एकत्रीकरण से सम्बन्धित उपायों के तन्त्रीकरण और उन्नतकरण, आधुनिक शिल्प शास्त्र और प्रशिक्षित कर्मचारियों के प्रयोग से पेटैन्ट सूचना सुधार और प्रसार की आवश्यकता है । पेटैन्ट सूचना व्यवस्था के आधुनिकीकरण की परियोजना जून 1996 में पूरी हुई ।

4. ट्रेड मार्कों के प्रोत्साहन और प्रभावी संरक्षण उपलब्ध करने से उपभोक्ता कल्याण बढ़ता है । तदानुसार, ट्रेड मार्क रजिस्ट्री के आधुनिकीकरण के लिये परियोजना को मई 1996 में पूरा किया गया । रजिस्ट्री की क्षमता का विस्तार ट्रेड मार्क पंजीकरण विधि के आधुनिकीकरण और ट्रेड मार्क पंजीकरण विधि और संभार-तन्त्र (Logistics) को बडे कार्यालय और ब्रांचों के दृढ़ीकरण द्वारा किया गया ।

अधिक आधुनिकीकरण, जिसमें पेटैन्ट और डिजाइन देने की प्रक्रिया का कम्प्यूटरीकरण शामिल है, ब्रांच कार्यालयों के बीच नेटवर्क स्थापित करने और अन्तर्राष्ट्रीय पेटैन्ट और डिजाइन डाटाबेस से ऑन लाइन सम्बन्धों पर सरकार सक्रिय विचार कर रही है ।

समझौते से प्रत्याशित लाभ (Expected Benefits from the Agreement):

नये व्यापार की रूपरेखा को ध्यान में रखते हुये, यह आशा की जाती है कि भारत जैसे विकासशील देश निश्चित रूप में गेट समझौते से लाभ उठायेंगे ।

ये महत्वपूर्ण लाभ निम्नलिखित हो सकते हैं:

1. निर्यात संवर्धन:

अनेक कारणों से निर्यात संवर्धन के रूप में भारत को मुख्य लाभ होगा । विकसित देशों में, कृषि वस्तुओं के आयात में बाधाओं के कम होने से भारत द्वारा कृषि उत्पादों के निर्यात बढेंगे । इसके अतिरिक्त, कृषि आधारित उद्योग अधिक निर्यात द्वारा बहुत सा विदेशी विनिमय कमायेंगे । इसी प्रकार, मुक्त व्यापार के सन्दर्भ में निर्यात विस्तार और भी तीव्र होगा ।

2. दक्षता में लाभ:

डण्केल (Dunkel) प्रस्ताव दक्षता में सुधार करेंगे, क्योंकि बाहरी क्षेत्र में मुक्त व्यापार निर्धारक दक्षता लायेगा । कारक उन गतिविधियों की ओर बढ़ेंगे जहां उन्हें अधिक कमाई होगी । फलस्वरूप उत्पादन, आय और रोजगार में वृद्धि होगी । इसके अतिरिक्त प्रतियोगी दक्षता में वृद्धि होगी । बडी इकाइयां बाहरी स्रोतों और घरेलू साधनों से उत्पादन लागत कम करने के लिये प्रतिस्पर्द्धा करेंगी । इससे अधिक प्रतियोगिता-पूर्ण और वृद्धि कम लागत-पूर्ण हो जायेगी ।

3. व्यापार रूपरेखा को बदलना:

आशा की जाती है कि उमड़ता हुआ व्यापार दृश्य विश्व व्यापार को विश्व के विकासशील देशों में अनेक नये तत्वों के आरम्भण द्वारा बड़े रूप में प्रभावित करेगा । क्योंकि कृषि वस्तुओं और सेवाओं के व्यापार को बाधाओं को कम करने-समाप्त करने की समझौता सीमा के भीतर लाना है, यह गैर-टेरिफ बाधाएँ बाह्य क्षेत्र से बाहर जायेंगी और घरेलू नीतियों को अपनायेगी ।

इसके अतिरिक्त, घरेलू निवेश उपाय और बौद्धिक सम्पदा अधिकार विभिन्न देशों में घरेलू नीतियों को प्रभावित करने के लिये व्यापारिक सौदे करेंगे इसी प्रकार, बहुराष्ट्रीय निगमों की सहायता से भारत विकासशील देशों में और विकसित देशों में भी एक अग्रगामी देश के रूप में सामने आयेगा ।

वास्तव में, बाजार नेतृत्व वाले वैश्वीकरण की प्रवृति व्यापार बाधाओं और रुकावटों के बिना अनेक वस्तुओं और सेवाओं में व्यापार को प्रोत्साहित कर सकता है । इसे वस्तुओं और सेवाओं तथा विदेशी निवेश के चलन के सम्बन्ध में विभिन्न देशों में स्वतन्त्र, समतल और समान स्थितियों की आवश्यकता है ।

4. प्रति-राशिपातन से लाभ:

गैट समझौते में व्यवस्था की गयी है कि यदि राशिपात आयात, आयातकर्ता देश के घरेलु उद्योग को हानि पहुंचाता है तो अनुबंधित सदस्यों को अधिकार है कि वे राशिपातन-विरोधी उपायों को अपनाएं । भारत में कई देशों द्वारा अपने उत्पादों का राशिपातन किया जाता है, इन नियमों से यहाँ की सरकार को राशिपालन के खिलाफ नियम बनाने में मदद मिलेगी ।

5. स्वजेनेरिस व्यवस्था से लाभ:

पौध प्रजनकों के अधिकारों की व्यवस्था के माध्यम से किसानों के। ज्यादा सुधरे हुए और परिष्कृत बीज बाजार में मिल सकेंगे और इससे भारत के कृषि अनुसंधान संस्थानों को ही ज्यादा लाभ मिलेंगे । ‘स्वजेनेरिस’ व्यवस्था से कृषि क्षेत्र में अनुसंधान और विकास निवेश बढ़ेगा और अधिक उपज देने वाली बेहतर किस्मों का विकास होगा ।

6. अन्य व्यवस्था से लाभ:

 

(अ) विदेशी-मुद्रा भंडारों में वृद्धि:

भारत के निर्यातों एवं विशेषज्ञों की सेवाओं के निर्यात से होने वालों वृद्धि से विदेशी-मुद्रा की प्राप्ति होगी, तथा देश में एक मजबूत विदेशी-मुद्रा कोष बनेगा ।

(ब) विदेशी निवेश में वृद्धि:

समझौते में विदेशी निवेश कम्पनियों को घरेलू कम्पनियों के बराबर रखे जाने की व्यवस्था है । इससे देश में विदेशी निवेश बढ़ेंगे ।

(स) विदेशी वस्तुएँ की उपलब्धता:

गैट समझौते से उदारीकरण को जो बल मिलेगा उससे देश में विदेशी वस्तुओं की उपलब्धता बढ़ जायेगी । देश के नागरिकों को अनेकों वस्तुएँ सस्ते दामों पर उपलब्ध होने लगेंगी ।

(द) रोजगार वृद्धि:

भारत के व्यापार में वृद्धि के कारण 7 लाख व्यक्तियों के लिए अतिरिक्त रोजगार सृजन की संभावना है । निर्यात बढने से रोजगार व आमदनी बढ़ना भी स्वाभाविक है ।


Essay # 7.

विश्व व्यापार संगठन की उन्नति (Progress of World Trade Organisation – WTO):

मात्रात्मक बाधा (Quantitative Restriction – QRs):

भुगतानों के सन्तुलन आधार पर कायम आयात पर मात्रात्मक बाधाओं का WTO में 1997 में 2714 टैरिफ के लिये आठ अंक के स्तर पर संशोधन किया गया । हमारे भुगतानों के सन्तुलन की स्थिति में सुधार को ध्यान में रखते हुये, भुगतानों के सन्तुलन सम्बन्धी समिति ने भारत को इन मात्रात्मक बाधाओं की समाप्ति की योजना बनाने का आग्रह किया ।

इस समिति के सामने प्रस्तुतियों पर आधारित और पश्चात् हमारे मुख्य व्यापार भागीदारों से परामर्श के आधार पर यू.एस.ए. को छोड कर उन देशों से समझौता हुआ जिसके अनुसार 1997 से आरम्भ होने वाले छ: वर्षों की अवधि में मात्रात्मक बाधाओं को समाप्त कर दिया जायेगा । यू.एस.ए. ने छाप विवाद निपटारा तन्त्र के अधीन एक विवाद को बेहतर समझा ।

पैनल की रिपोर्ट और अपील संस्था का अनुकरण करते हुये भारत और यू.एस.ए. ने द्विपक्षीय समझौता स्वीकार किया जो 1.4.2001 तक तर्कसंगत समय अवधि निर्धारित करेगा, जिसके भीतर भारत, वर्तमान मात्रात्मक बाधाओं को धीरे-धीरे समाप्त करने के सम्बन्ध में विवाद निपटारा संस्था को नियम और सिफारिशें भेजेगा । उस समय, टैरिफ रेखाओं की संख्या जिन पर मात्रात्मक बाधाएँ हैं 1429 तक आठ अंको के स्तर पर कम हो गई ।

व्यापार से सम्बन्धित बौद्धिक सम्पदा अधिकार [Trade Related Intellectual Property Rights (TRIPS)]:

समझौता, दलों द्वारा अपनाये जाने वाले संरक्षण के न्यूनतम मानक, अग्रलिखित के सम्बन्ध में निश्चित करता है:

(क) कॉपी राइटस और सम्बन्धित अधिकार,

(ख) ट्रेड मार्कस,

(ग) भौगोलिक संकेत,

(घ) औद्योगिक डिजाइन,

(ङ) पेटैन्ट,

(च) लेआऊट डिजाइन्स ऑफ इन्टैगरेटिड और

(छ) गुप्त सूचना का संरक्षण (ट्रेड सीकरेटस) और इनका कार्यान्वयन ।

TRIPS समझौते की व्यवस्थाओं को लागू करने के लिये सभी विकासशील देश को पाँच वर्षों की ‘परिवर्तन अवधि’ उपलब्ध होगी । जो देश कुछ क्षेत्रों में उत्पाद पेटैन्ट उपलब्ध नहीं करते उत्पाद पेटैन्ट की व्यवस्थाओं अन्य पांच वर्षों की देरी से कर सकते हैं ।

तथापि, उन्हें ऐसे उत्पादों के लिये अनन्य बाजार अधिकार उपलब्ध करने पड़ेंगे जो 1.1.95 के पश्चात् पेटेन्ट प्राप्त करते हैं । WTO समझौते के अधीन हमारे दायित्वों के अनुसार ”द पेटैन्टस (अमैन्डमैंट) एक्ट, 1999” मार्च 1999 में पास हुआ जो अनन्य विपणन अधिकार उपलब्ध करेगा ।

पेटैन्ट (Patents):

पेटैन्ट क्षेत्र में मुख्य दायित्व यह है कि शिल्प शास्त्र के सभी क्षेत्रों में अन्वेषण चाहे उत्पादों के हो या प्रक्रियाओं के, पेटैन्ट योग्य होंगे यदि वह तीन परीक्षण पूरे करते हैं वे हैं- नये, आविष्कारशील पग सम्मिलित हो और उद्योग में प्रयोग के योग्य हो ।

सामान्य सुरक्षा छूट के अतिरिक्त जो सम्पूर्ण TRIPS समझौतों पर लागू होती है, पेटैन्ट-योग्यता से छूट की आज्ञा उन आविष्कारों से है जिनका व्यापारिक उच्च प्रयोग सार्वजनिक व्यवस्था की सुरक्षा अथवा नैतिकता, मानवीय, पशु पौधों के जीवन अथवा स्वास्थ्य अथवा पर्यावरण को गम्भीर हानि रोकने के लिये होता हो ।

नैदानिक (Diagnostic), चिकित्सीय और उपचार के शल्यक (Surgical) उपाय जिनसे मानवीय, पशुओं और पौधों का उपचार होता हो और सूक्ष्म जीवों के अतिरिक्त पशु उपचार होता हो को पेटैन्ट से छूट मिल सकती है । समझौते के लिये पेटैन्ट की उपलब्ध अवधि 20 वर्ष है । इन परिवर्तनों तथा अन्य परिवर्तनों के लिये एक बिल संसद में पेश किया गया जिसे एक “Joint Select Committee of the Houses” को भेज दिया गया ।

पौधा विविधताओं के सम्बन्ध में, एक प्रभावी सुई-जैनरिस अथवा उसके किसी मिश्रण द्वारा पेटैन्टों के संरक्षण का दायित्व है । समझौता सुई-जैनरिस प्रणाली के तत्वों को नहीं उभारता तथा इसे प्रत्येक सरकार पर छोड़ दिया जाता है कि वह तत्व निर्धारित करे जो प्रभावी संरक्षण उपलब्ध करने के योग्य हो ।

एक सुई-जैनरिस प्रणाली को स्थापित करने का निर्णय लिया गया है क्योंकि इसे हमारे राष्ट्रीय हित में समझा गया है । इस सम्बन्ध में कृषि मन्त्रालय द्वारा विधि-निर्माण का मामला संसद में पेश किया गया जिसे एक संयुक्त संसद समिति की ओर प्रेषित कर दिया गया ।

संयुक्त सर्किट के डिजाइनों का निर्माण (Layout Designs of Integral Circuits):

द्वारा प्रशासित एक अन्तर्राष्ट्रीय समझौते में भारत एक हस्ताक्षर कर्ता है (वाशिगटन ट्रीटी में) वाशिंगटन ट्रीटी के मूख्य दायित्व कुछ वृद्धि के साथ TRIPS समझौते में भी सम्मिलित किये गये हैं तथा उन निर्मित डिजाइनों में बौद्धिक सम्पदा के संरक्षण को प्रच्छन्न करते हैं जो ‘ले-आउट डिजाइन’ इसलिये मौलिक हैं क्योंकि वे उनके रचनाकर्ता के अपने बौद्धिक प्रयत्नों का परिणाम हैं ।

दायित्व में विदेशी अधिकार धारकों को राष्ट्रीय व्यवहार और 10 वर्ष की संरक्षण अवधि सम्मिलित है । ‘ले-आउट डिजाइनों’ को संरक्षण देने के लिये, 20 दिसम्बर 1999 को ‘इलैक्ट्रोनिक्स डिपार्टमैंट’ द्वारा राज्य सभा में एक ‘विधि निर्माण’ (Legislation) प्रस्तुत किया गया ।

कॉपीराइट और सम्बन्धित अधिकार (Copyright and Related Rights):

कॉपीराइट और सम्बन्धित अधिकारों के क्षेत्र में अर्थात् अभिनय करने वालों, फोनोग्राम और प्रसारण संगठनों के अधिकारों में समझौता ‘बीमी कन्वेंशन’ (Beme Convention) की व्यवस्थाओं के साथ अनुपालन चाहता है । कम्प्यूटर कार्यक्रमों को साहित्यिक कार्यों की भान्ति संरक्षण मिलेगा ।

कॉपीराइट और अभिनयकर्ताओं के अधिकार और फोनोग्रामों के उत्पादनकर्ताओं के संरक्षण की अवधि 50 वर्ष से कम नहीं होगी । प्रसार संगठनों के प्रकरण में संरक्षण अवधि कम से कम 20 वर्ष होगी ।

भारत बीमा कन्वेनशन का एक हस्ताक्षरकर्ता है । द कापीराइट एक्ट, 1957 जैसा कि 1994 में संशोधित किया गया, हमारी आशंकाओं का ध्यान रखता है और अभिनयकर्ताओं के अधिकारों की अवधि के प्रकरण को छोड़ कर TRIPs समझौते की आवश्यकताओं को पूरा करता है । इस अवधि को 50 वर्षों तक बढ़ाने के लिये एक बिल संसद द्वारा दिसम्बर 1999 में पास किया गया ।

ट्रेड मार्क्स (Trademarks):

ट्रेड मार्कस नियम ‘द ट्रेड एण्ड मर्चेन्डाइस मार्क्स एक्ट (TMM) 1958’ अपने आवश्यक लक्षणों सहित, अन्तर्राष्ट्रीय नियमों अनुसार है । TMMA के संशोधन के लिये वर्ष 1993 में एक बिल संसद में पेश किया गया जिससे सर्विस मार्क्स को भी संरक्षण उपलब्ध हो बिल पास नहीं हो सका तथा रह हो गया । यद्यपि, इस सम्बन्ध में एक बिल दिसम्बर 1999 में संसद द्वारा पास किया गया जो सर्विस मार्क्स को संरक्षण उपलब्ध करता है ।

भौगोलिक संकेत (Geographic Indications):

समझौते में एक सामान्य दायित्व है कि दल (Parties) रुचि रखने वाले पक्षों की वैध साधन उपलब्ध करेंगे जो किसी साधन को वस्तु के पदनाम अथवा प्रस्तुति के प्रयोग में रोक सके, जो सकेत करती है कि विचाराधीन वस्तु अपने उत्पन्न होने के वास्तविक स्थान के अतिरिक्त अन्य भौगोलिक क्षेत्र में उत्पन्न करनी है । भारत में, हमारे पास, भौगोलिक संकेतों सम्बन्धी ऐसा कोई विशेष नियम नहीं है ।

‘Case Law’ यद्यपि, भौगोलिक संकेतों के संरक्षण के लिये वैध कार्यवाही के योग्य बनाता है । TRIPS समझौते की आड़ में इस विषय पर एक नया नियम बनाने का निर्णय लिया गया इस सम्बन्ध में एक बिल संसद द्वारा दिसम्बर 1999 में पास किया गया ।

ओद्योगिक डिजाइन (Industrial Designs):

औद्योगिक डिजाइनों के सम्बन्ध में दायित्व ऐसे हैं कि स्वतन्त्र रूप में रचित डिजाइन जो नये अथवा मौलिक हैं संरक्षित किये जायेंगे संरक्षण से बाहर करने का एक विकल्प है, तकनीकी अथवा प्रकार्यात्मक विचारो द्वारा निर्दिष्ट डिजाइन, इसके विपरीत सौन्दर्यपरक विचारों से प्रेरित डिजाइन औद्योगिक डिजाइनों के अन्तर्गत प्रच्छन्न होते हैं ।

हमारा कानून ‘द डिजाइनज एक्ट 1911’ एक बहुत पुराना अधिनियम है जिसके आधुनिकीकरण की आवश्यकता है । औद्योगिक विकास विभाग ने इस सम्बन्ध में एक बिल तैयार किया जिसे राज्य सभा ने वर्ष 1999 में पास किया और अब लोक सभा द्वारा पास किया जायेगा ।

व्यापार सम्बन्धी निवेश उपाय (Trade Related Investment Measures – TRIMs):

TRIMs समझौते के अन्तर्गत, विकासशील देशों के पास 31 दिसम्बर, 1999 तक पांच वर्षों की एक परिवर्तन अवधि होगी जिसके भीतर वह ऐसे उपायों को कायम रख सकते हैं जो समझौते के अनुकूल नहीं है । बशर्ते कि उनके सम्बन्ध में उचित ढंग से सूचना दी गई हो ।

हमने दो TRIMs के सम्बन्ध में सूचित किया अर्थात् कुछ औषधीय उत्पादों के उत्पादन में आवश्यक स्थानीय धारिता से सम्बन्धित और उपभोक्ता वस्तुओं की 22 श्रेणियों में निवेश के प्रकरण में लाभ सन्तुलन की आवश्यकता ।

‘Seattle Ministerial Conference’ की निष्कर्षहीनता को ध्यान में रखते हुये, जहां विकासशील देशों को सूचित TRIMs के विलोपन के लिये परिवर्तन अवधि के विस्तार सम्बन्धी प्रार्थना पर कोई निर्णय नहीं लिया गया था, यह देखने की आवश्यकता है कि इस मामले पर सामान्य परिषद् द्वारा क्या अन्तिम निर्णय लिया जाता है ।

टैरिफ (Tariffs):

टैरिफ स्तरों को 1.3.2000 तक कम करने सम्बन्धी हमारी वचनबद्धता गैर-कृषि और गैर-वस्त्र मदों में बनी हुई है । इन दायित्वों को पूरा करने के लिये आवश्यक कार्यवाही की जायेगी ।


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