वाटरशेड प्रबंधन पर निबंध | Essay on Watershed Management in Hindi!

Essay # 1. जल-विभाजक प्रबंधन का अर्थ (Meaning of Watershed Management):

दो जल अपवाह क्षेत्रों की सीमा को जल विभाजक करते हैं । यह सीमा दो जल अपवाहों के क्षेत्रफल को एक-दूसरे से अलग करती हैं । दूसरे शब्दों में कोई भी क्षेत्रफल जिसमें वर्षा का जल एकत्रित होकर किसी नदी-नाले के द्वारा अपवाहित होता है ।

वॉटरशेड (Watershed) कहलाता है । यह नदी बेसिन का पर्यावाची है । प्रत्येक वॉटरशेड का क्षेत्रफल भिन्न-भिन्न होता है । कोई वॉटरशेड चन्द हेक्टयर और कोई हजारों हेक्टयर क्षेत्रफल पर फैला होता है ।

क्षेत्रफल के आधार पर वॉटरशेड को (i) दीर्घ वॉटरशेड, (ii) मध्यम वॉटरशेड, एवं (iii) लघु-वॉटरशेड में विभाजित किया जा सकता है । वॉटरशेड के भौतिक, जैविक, आर्थिक एवं सामाजिक तथ्यों में पारस्परिक संबंध होता है और दूसरे पर आश्रित होते हैं तथा प्रभावित करते हैं ।

Essay # 2. जल-विभाजक प्रबंधन के उद्देश्य (Objectives of Watershed Management):

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जलविभाजक प्रबंधन के मुख्य उद्देश्य निम्न प्रकार हैं:

(i) पारिस्थितिकी संतुलन स्थापित करना ।

(ii) मिट्‌टी का संरक्षण कर, वर्षा जल संचय करना (Rain Water Harvesting) तथा भूगर्त जल का पुन: संभरण (Recharge) करना ।

(iii) वॉटरशेड के क्षेत्रफल में टिकाऊ कृषि का विकास करना, वानिकी एवं वृक्षारोपण करना पशुपालन करना ।

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(iv) फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिये उचित फसल चक्र अपनाना ।

(v) क्षेत्र के लोगों की आय बढ़ाने के लिये विकल्पों का पता लगाना ।

Essay # 3. वॉटरशेड प्रबन्धन के सिद्धान्त (Principles of Watershed Management):

वॉटरशेड प्रबन्धन के मुख्य सिद्धान्त निम्न प्रकार हैं:

(i) भूमि उपयोग उसकी क्षमता के अनुसार किया जाना चाहिये ।

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(ii) वर्षा जल संरक्षण (Rain Water Harvesting) ।

(iii) वर्षा के अधिकतर जल को जलाशयों, झीलों तालाबों आदि में संचित करना ।

(iv) भूमि को अपरदन एवं अपरदन-नालियों (Gully and Rill) से बचाना ।

(v) उपयुक्त स्थानों पर जल संचय के लिये बाँध (Check Dams) बनाना । तथा भूगर्त जल को रिचार्ज करना ।

(vi) उपयुक्त फसलों के प्रतिरूपों की पहचान करना ।

(vii) प्रति हेक्टयर एवं प्रति जल इकाई से अधिक उत्पादन करना ।

(viii) फसलों एवं कृषि सघनता में वृद्धि करना ।

(ix) सीमान्त भूमि (Marginal Land) एवं कम उपजाऊ एवं बन्जर भूमि का सदुपयोग करना ।

(x) बाजारों, मण्डियों, गोदामों, सडकों जैसी मूलभूत सुविधाओं को विकसित करना ।

(xi) पारिस्थितिकी, परितन्त्र एवं पर्यावरण को टिकाऊ बनाना ।

Essay # 4. विधि तन्त्र (Methodology of Watershed Management):

वॉटरशेड-प्रबंधन में जल संचय जल उपयोग एवं सदुपयोग पर विशेष बल दिया जाता है । इस विधि तन्त्र में उपयुक्त मानचित्रों तथा दूर संवेदी (Remote Sensing) का उपयोग किया जाता है । इस प्रकार के मानचित्रों भूमि जल तथा प्राकृतिक वनस्पति के प्रतिरूपों को दर्शाकर उनका अवलोकन किया जाता है ।

प्राकृतिक साधनों के मानचित्रों के साथ-साथ फसलों के प्रतिरूपों उनकी प्रति हेक्टर उत्पादकता फसलों की बीमारियों इत्यादि का अवलोकन किया जाता है । इन मानचित्रों की सहायता से सम्भावित जलाशयों एवं बांधों के निर्माण के स्थलों का निर्धारण किया जाता है ।

इस प्रकार के मानचित्रों के अध्ययन के पश्चात उपयुक्त कृषि पद्धति, सामाजिक वानिकी (Social Forestry), मृदा संरक्षण, तथा जल संरक्षण (Water Conservation) को योजनायें बनाई जाती हैं और पर कार्यवाही की जाती है । भिन्न-भिन्न भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार, विधि तन्त्र में परिवर्तन एवं संशोधन किया जाता है ।