भारतीय रिज़र्व बैंक पर निबंध | Essay on the Reserve Bank of India in Hindi language!

भारतीय रिज़र्व बैंक पर निबंध | Essay on the Reserve Bank of India


Essay # 1. रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया का सामान्य परिचय (General Introduction to Reserve Bank of India):

रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया भारत का केन्द्रीय बैंक है । रिजर्व बैंक की स्थापना करने हेतु रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया एक्ट सन् 1934 में पारित किया गया था । इसे 6 मार्च, 1934 को लागू किया गया तथा रिजर्व बैंक ने 1 अप्रैल, 1935 से कार्य करना प्रारम्भ किया । 1 जनवरी, 1949 से इसका राष्ट्रीयकरण कर लिया गया ।

संशोधन:

इस अधिनियम में समय-समय पर अनेक बार संशोधन होते रहे हैं । सन् 1948 1956, 1962, 1965, 1974 में महत्वपूर्ण संशोधन किये गये ।

ADVERTISEMENTS:

कार्य-क्षेत्र:

यह अधिनियम जम्मू एवं कश्मीर सहित सम्पूर्ण देश पर लागू होता है ।

अध्याय एवं धाराएं आदि:

इस अधिनियम में प्रथम, द्वितीय, तृतीय, तृतीय (क) तृतीय (ख) चतुर्थ तथा पंचम- इस प्रकार तथा दो अनुसूचियाँ है । मूल अधिनियम में 62 धाराएं थी लेकिन अब कई धातओं को हटा दिया गया है ।

ADVERTISEMENTS:

बैंकिंग प्रणाली का नियमन:

रिजर्व बैंक का मुख्य कार्य देश में मौद्रिक स्थिरता (Monetary Stability) स्थापित करने व देश के हित में मुद्रा एवं साख प्रणाली के उद्देश्य से पत्र-मुद्रा निर्गमन का नियमन करना एवं रक्षित-कोषों का निर्माण करना है । इसके अतिरिक्त एक केन्द्रीय बैंक रूप में रिजर्व बैंक देश की बैंकिंग प्रणाली का नियमन एवं नियन्त्रण भी करता है ।


Essay # 2.

रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया के अधिनियम की प्रमुख व्यवस्थाएँ (Main Provisions of the Act for Reserve Bank of India):

रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया एक्ट के प्रमुख प्रावधान संक्षेप में अग्रानुसार हैं:

ADVERTISEMENTS:

पूंजी (Capital):

रिजर्व बैंक की पूंजी 5 करोड़ रुपये है । 1 जनवरी, 1949 को, इसके राष्ट्रीयकरण के पश्चात् इसकी समस्त पूँजी भारत सरकार के अधिकार में आ गयी है ।

प्रबन्ध (Management):

अधिनियम की धारा 8 के अनुसार रिजर्व बैंक के केन्द्रीय निदेशक मण्डल (Central Board of Directors) में 20 निर्देशक हो सकते हैं ।

बैंक के निदेशक मण्डल का गठन निम्नानुसार किया जाता है:

(1) एक गवर्नर:

जिसकी नियुक्ति भारत सरकार द्वारा 5 वर्ष तक की अवधि के लिए की जा सकती है, किन्तु कार्यकाल समाप्त होने पर जिसे अगली अवधि के लिए पुनर्नियुक्त किया जा सकता है ।

(2) अधिकतम 4 डिप्टी गवर्नर:

जिनकी नियुक्ति भारत सरकार द्वार 5 वर्ष तक की अवधि के लिए की जाती है । कार्यकाल के समाप्त होने पर इन्हें पुनर्नियुक्त किया जा सकता है ।

(3) 4 निदेशक:

इन्हें रिजर्व बैंक के प्रत्येक स्थानीय मण्डल (Local Board) में से एक-एक सदस्य लेकर केन्द्रीय सरकार द्वारा नामांकित (Nominate) किया जाता है ।

(4) 10 निदेशक:

इन्हें भारत सरकार द्वारा 4 वर्ष के लिए नामांकित किया जाता है ।

(5) 1 निदेशक:

इसे भारत सरकार द्वारा नियुक्ति किया जाता है, जो कोई शासकीय अधिकारी (परम्परा के अनुसार भारत सरकार का वित्त सचिव) होता है तथा जिसका कार्यकाल सरकार की इच्छा पर निर्भर करता है । गवर्नर तथा डिप्टी गवर्नर पूर्णकालिक अधिकारी होते है तथा उनके वेतन एवं भत्ते केन्द्रीय निदेशक मण्डल द्वारा केन्द्रीय सरकार की सहमति से निर्धारित किये जाते हैं ।

क्षेत्रीय विभाजन:

रिजर्व बैंक को निम्नानुसार 4 प्रशासनिक इकाइयों में बाँटा गया है:

(1) पूर्वी क्षेत्र:

जिसमें असम, मेघालय, नागालैंड, पश्चिमी बंगाल, बिहार, उड़ीसा, मणिपुर, त्रिपुरा, अरुणाचल, मिजोरम, अण्डमान एवं निकोबार द्वीप समूह तथा सिक्किम सम्मिलित हैं ।

(2) पश्चिमी क्षेत्र:

जिसमें गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र गोआ, दमन तथा दीव सम्मिलित हैं ।

(3) उत्तरी क्षेत्र:

जिसमें जम्मू एवं कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, हिमाचलप्रदेश, राजस्थान, उत्तप्रदेश, चण्डीगढ़ एवं दिल्ली सम्मिलित हैं ।

(4) दक्षिणी क्षेत्र:

जिसमें आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, पाण्डिचेरी तथा लक्षद्वीप सम्मिलित हैं ।

स्थानीय मण्डल (Local Boards):

उपर्युक्त-वर्णित प्रत्येक क्षेत्र में एक-एक स्थानीय मण्डल का निम्नानुसार गठन किया जाता है:

(a) निदेशक:

प्रत्येक मण्डल में 4 निदेशक होते हैं जिनकी नियुक्ति केन्द्रीय सरकार द्वारा प्रायः सम्बन्धित क्षेत्र के निवासियों में से अर्थशास्त्र, सहकारिता, बैंकिंग से सम्बन्धित व्यक्तियों में प्राथमिकता देते हुए की जाती है ।

(b) कार्यकाल:

निदेशकों में 4 वर्ष की अवधि के लिए नियुक्त किया जाता है किन्तु जब तक नए निदेशक नियुक्त नहीं होते, पुराने निदेशक कार्य करते रहते है । इनकी पुनर्नियुक्ति भी की जा सकती है ।

(c) अध्यक्ष:

निदेशक अपने में से ही किसी एक को मण्डल का अध्यक्ष चुन लेते है ।

(d) कार्य-क्षेत्र:

इनके कार्यक्षेत्र का निर्धारण केन्द्रीय मण्डल द्वारा किया जाता है । इनका एक प्रमुख कार्य अपने क्षेत्र की बैंकिंग एवं मौद्रिक समस्याओं के बारे में केन्द्रीय मण्डल को परामर्श एवं सुझाव देना है ।

(e) अयोग्यताएँ:

कोई भी वेतनभोगी शासकीय अधिकारी, दिवालिया घोषित व्यक्ति, अस्वस्थ मस्तिष्क वाला या पागल व्यक्ति, किसी बैंक में नियोजित कोई कर्मचारी या अधिकारी अथवा किसी व्यापारिक या सहकारी बैंक के किसी निदेशक को स्थानीय मण्डल का सदस्य नहीं बनाया जा सकता ।


Essay # 3.

रिजर्व बैंक के कार्य (Functions of Reserve Bank):

अधिनियम की धारा 12 के अन्तर्गत रिजर्व बैंक को निम्नलिखित अधिकार प्राप्त है:

(1) रकम जमा करना:

केन्द्रीय एवं राज्य सरकारों, स्थानीय निकायों तथा अन्य व्यक्तियों से बिना ब्याज की जमाएँ स्वीकार करना तथा उनके चैकों आदि का संग्रहण करना ।

(2) बिलों की पुनर्कटौती तथा क्रय:

व्यापारिक बैंकों, कृषि, लघु एवं कुटीर उद्योगों के वित्त- प्रबन्धन के लिए लिखे गये विनिमय-विपत्रों, प्रतिज्ञा-पत्रों आदि की पुनर्कटौती करना एवं क्रय करना ।

(3) व्यापारिक बैंक एवं अन्य संस्थाओं को ऋण एवं अग्रिम स्वीकार करना:

रिजर्व बैंक, अनुसूचित बैंक, राज्य सहकारी बैंकों, स्थानीय निकायों, राज्य वित्त निगमों, औद्योगिक वित्त निगम (I.F.C.) यूनिट ट्रस्ट, वेयर हाउस कॉरपोरेशन, जमा बीमा निगम (Deposit Insurance Corporation), नाबार्ड (NABARD), औद्योगिक विकस बैंक (IDBI) आदि संस्थाओं को ऋण सहायता स्वीकार करना ।

(4) सरकार को ऋण सहायता:

रिजर्व बैंक केन्द्रीय एवं राज्य सरकारों को 3 माह तक की अवधि के ऋण दे सकता है, सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय कर सकता है, तथा केन्द्रीय सरकार तथा राज्य सरकारों के एजेण्ट के रूप में कार्य कर सकता है ।

(5) दस वर्ष तक की अवधि की विदेशी प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय करना ।

(6) समाशोधन:

बैंकों अथवा अन्य संस्थाओं के पारस्परिक व्यवहारों का समाशोधन करना ।

(7) प्रशिक्षण एवं अनुसंधान:

बैंकिंग सम्बन्धी प्रशिक्षण एवं अनुसंधान की व्यवस्था करना । उपर्युक्त के अतिरिक्त रिजर्व बैंक सरकार के बैंकर के रूप में भी कार्य करता है जिसका उल्लेख आगे किया गया है ।

वर्जित कार्य (Prohibited Functions):

धारा 19 के अनुसार रिजर्व बैंक निम्नलिखित कार्य नहीं कर सकता:

(1) कोई अन्य व्यापार या व्यवसाय ।

(2) किसी कम्पनी के अंशों का क्रय अथवा उनकी प्रतिभूतियों पर ऋण देना ।

(3) किसी स्थायी सम्पत्ति के बन्धक अथवा उसके अधिकार-पत्रों की प्रतिभूति पर ऋण देना ।

(4) साधारण व्यक्तियों को ऋण देना ।

(5) चालू अथवा अन्य खातों में जमा राशियों पर ब्याज देना ।

(6) रिजर्व बैंक के केवल दर्शनी विनिमय-विपत्रों में ही लिख सकता है अथवा स्वीकार कर सकता है अन्य प्रकार के नहीं ।


Essay # 4.

विपत्रों की पुनर्कटौती, ऋण एवं अग्रिम (Rediscounting of Bills, Loans and Advances by Reserve Bank of India):

केन्द्रीय बैंक के रूप में, रिजर्व बैंक अन्य व्यापारिक बैंकों के लिए ‘अन्तिम ऋणदाता’ (Lender of Last Resort) होता है ।

इस भूमिका के निर्वाह हेतु अधिनियम की धारा 17(2) में निम्नलिखित प्रावधान हैं:

विपत्रों की पुनर्कटौती एवं क्रय (Rediscounting and Purchase of Bills):

(i) रिजर्व बैंक निम्नलिखित विपत्रों (Bills) तथा प्रतिज्ञा-पत्रों (Promissory Note) पुनः बट्टे पर भुना सकता है तथा क्रय कर सकता है:

भारत में लिखे गए तथा भारत में देय ऐसे व्यापारिक विपत्र एवं प्रतिज्ञा-पत्र जिन पर कम से कम दो अच्छे हस्ताक्षर हों तथा जिनमें से एक हस्ताक्षर किसी ऐसे अनुसूचित बैंक, राज्य सहकारी बैंक अथवा किसी ऐसी वित्तीय संस्था के हों जो मुख्यतः विपत्रों एवं प्रतिज्ञा-पत्रों की स्वीकृति कटौती का कार्य करती हो तथा रिजर्व बैंक द्वार मान्य हो । निर्यात विपत्रों की अधिकतम 180 दिनों तथा अन्य विपत्रों की अधिकतम 90 दिनों के लिए कटौती की जा सकती है । इन दिनों में अनुग्रह-दिवस (Days of Grace) सम्मिलित नहीं करते ।

(ii) कृषि कार्यों के वित्त-प्रबन्धन हेतु लिये गये विपत्र एवं प्रतिज्ञा-पत्र:

रिजर्व बैंक भारत में लिखे गए उन विपत्रों की पुनर्कटौती कर सकता है अथवा उन्हें क्रय कर सकता है जो कृषि कार्यों एवं फसलों के विपणन के वित्त-प्रबन्धन हेतु लिखे जाते हैं तथा जिन पर कम से कम दो अच्छे हस्ताक्षर हों जिनमें से कम-से-कम एक हस्ताक्षर किसी अनुसूचित बैंक राज्य सहकारी बैंक अथवा विपत्रों की कटौती एवं क्रय करने का कार्य करने वाली रिजर्व बैंक द्वारा मान्य वित्तीय संस्था के हों, ये विपत्र पुनर्कटौती/क्रय की तिथि से अधिक-से-अधिक 15 माह (अनुग्रह दिवसों को सम्मिलित न करते हुए) देय होने चाहिए ।

(iii) कुटीर एवं लघु उद्योगों के वित्त प्रबन्धन हेतु विपत्र एवं प्रतिज्ञा-पत्र:

रिजर्व बैंक अधिक से अधिक 12 माह की अवधि के लिए ऐसे विषयों-प्रतिज्ञा-पत्रों की पुनर्कटौती या क्रय कर सकता है जो रिजर्व बैंक द्वारा अनुमोदित लघु एवं कुटीर उद्योगों के उत्पादन एवं विपणन के अर्थ-प्रबन्धन में सहायता देने के उद्देश्य से भारत में लिखे गए हों एवं भारत में देय हों ऐसे विपत्रों पर कम से कम दो हस्ताक्षर होने चाहिए जिनमें से कम से कम एक किसी अनुसूचित बैंक, राज्य वित्त निगम या रिजर्व बैंक द्वारा मान्य किसी ऐसे वित्तीय संस्थान के हों जो मुख्यतः विपत्रों कई कटौती एवं क्रय करने का कार्य करता हो । यह भी आवश्यक है कि ऐसे विपत्रों के मूलधन एवं ब्याज के भुगतान की गारण्टी राज्य सरकर द्वारा की गई हो ।

(iv) शासकीय प्रतिभूतियों को धारण करने हेतु विपत्रों की पुनर्कटौती:

रिजर्व बैंक ऐसे विपत्रों/ प्रतिज्ञा-पत्रों की पुनर्कटौती या क्रय करने का कार्य कर सकता है ।

जो:

(क) केन्द्रीय सरकर या उच्च सरकारों की प्रतिभूतियों पर अपना अधिकार बनाए रखने अथवा उनमें व्यवसाय करने के उद्देश्य से लिखे गये हों,

(ख) जो भारत में लिखे गए तथा भारत में देय हों,

(ग) जिन पर किसी अनुसूचित बैंक के हस्ताक्षर हों तथा

(घ) जिनकी परिपक्वता की तिथि 90 दिनों (अनुग्रह दिवस को छोड़कर) से अधिक न हो ।

(v) विदेशी विपत्र:

रिजर्व बैंक किसी ऐसे विपत्र या कोषागार विपत्र की पुनर्कटौती कर सकता है ।

जो:

(क) अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के किसी भी सदस्य राष्ट्र में लिखे गये हों,

(ख) जो भारतीय निर्यात व्यवहारों से सम्बन्धित हों ।

रिजर्व बैंक इन विपत्रों को किसी अनुसूचित बैंक या राज्य सहकारी बैंक से क्रय करता है । ऐसे विपत्र पुनर्कटौती की तिथि से प्रथम अवस्था में अधिक से अधिक 180 दिन तथा द्वितीय अवस्था में अधिक से अधिक 90 दिन बाद देय होने चाहिए ।

ऋण एवं अग्रिम (Loans and Advances):

रिजर्व बैंक प्रतिज्ञा-पत्रों एवं अन्य अनुभूतियों के आधार पर व्यापारिक बैंकों को निम्नानुसार ऋण एवं अग्रिम भी प्रदान करता है:

(a) प्रतिज्ञा-पत्रों की प्रतिभूति पर:

रिजर्व बैंक किसी भी अनुसूचित बैंक या राज्य सहकारी बैंक में माँग पर देय अथवा अधिकतम 180 दिनों में परिपक्व होने वाले प्रतिज्ञा-पत्रों की प्रतिभूति पर ऋण व अग्रिम स्वीकृत कर सकता है किन्तु इस हेतु आवेदक बैंक को लिखित में निम्नानुसार धोषणा करनी पड़ती है:

(i) वह ऐसे विपत्रों का धारक है जो भारत में अथवा भारत के बाहर अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के किसी सदस्य देश में निर्यात सम्बन्धी व्यवहारों के लिए लिखे गये हैं तथा इनका मूल्य आवेदन किए गए ऋण/अग्रिम की पूर्ण अदायगी नहीं कर दी जाएगी वह स्वीकृति ऋण राशि के बराबर मूल्य के विपत्रों में अपने पास रखेगा ।

अथवा

(ii) उसने किसी भारतीय निर्यातकर्ता या सम्बन्धित व्यक्ति को जहाज लदान-पूर्व ऋण या अग्रिम स्वीकार किया है अथवा भारत में निर्यात करने हेतु ऋण दिया है तथा ऐसे ऋण की राशि आवेदित ऋण की राशि से कम नहीं है ।

(iii) उसने व्यावसायिक या व्यापारिक व्यवहारों या कृषि कार्यों अथवा कृषि उपज के विपणन के लिए या घोषणा में उल्लेखित अन्य कार्यों के लिए ऋण या अग्रिम स्वीकृत किया है ।

(b) अन्य सम्पत्तियों की प्रतिभूति:

रिजर्व बैंक अनुसूचित बैंकों को निम्नलिखित सम्पत्तियों की प्रतिभूति पर भी अधिक से अधिक 90 दिन की परिपक्वता वाले ऋण स्वीकृत कर सकता है:

(i) ऐसे स्कन्ध, निधियाँ या प्रतिभूतियाँ (स्थायी सम्पत्ति के अलावा) जिनमें भारतीय संसद के किसी अधिनियम या अन्य किसी प्रचलित कल के अनुसार प्रन्यास सम्पत्तियों का विनियोजन किया जा सकता है ।

(ii) स्वर्ण, रजत या इनके स्वामित्व-विलेख ।

(iii) ऐसे विपत्र एवं प्रतिज्ञा-पत्र जिनकी पुनर्कटौती करने अथवा क्रय कराने हेतु रिजर्व बैंक अधिकृत है तथा जिनके मूल एवं ब्याज के भुगतान की गारण्टी राज्य सरकार द्वारा दी गई है ।

(iv) माल के स्वामित्व सम्बन्धी विलेखों द्वारा समर्पित किसी अनुसूचित बैंक या राज्य सहकारी बैंक के प्रतिज्ञा-पत्र जो प्रार्थी बैंक के पक्ष में व्यावसायिक व्यवहारों अथवा अल्पकालीन कृषि ऋणों की प्रतिभूति के रूप में हस्तांतरित, अभिहस्तांतरित या गिरवी रखे हुए होने चाहिए । निर्यात बिलों की अवधि ऋण के पश्चात् 180 दिनों से अधिक नहीं होनी चाहिए ।

(c) आपातकालीन अग्रिम:

रिजर्व बैंक व्यापारिक बैंकों को आपातकालीन ऋण एवं अग्रिम भी स्वीकार कर सकता है ।

धारा 17 के प्रावधानों का अतिक्रमण करते हुए आपातकालीन ऋण निम्नानुसार स्वीकृत किए जा सकते हैं:

(i) ऐसे विपत्रों एवं प्रतिज्ञा-पत्रों की पुनर्कटौती एवं क्रय-विक्रय जो धारा 17 के अन्तर्गत प्रतिबन्धित है ।

(ii) न्यूनतम 1 लाख रु. के बराबर विदेशी मुद्रा का क्रय अथवा विक्रय,

(iii) राज्य सहकारी बैंक अथवा उसके द्वारा अनुशंसित उसके कार्य-क्षेत्र में रजिस्टर्ड किसी सहकारी बैंक को ऋण स्वीकृत करना, तथा

(iv) किसी अन्य व्यक्ति को ऋण स्वीकृत करना ।

उपर्युक्त ऋण माँग पर अथवा 90 दिनों की अवधि में देय हो सकते है तथा रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित शर्तों के अन्तर्गत दिये जाते है ।

नकद-कोष (Cash Reserves):

अधिनियम की धारा 42(1) के अनुसार प्रत्येक अनुसूचित बैंक को धारा 42(2) के अन्तर्गत भेजी जाने वाली विवरणिका में दिखाए गए कुल औसत दैनिक दायित्वों का 3 प्रतिशत सदैव नकद-कोष के रूप में रिजर्व बैंक के पास जमा रखना पड़ता है । रिजर्व बैंक यदि चाहे तो भारत सरकार के गजट में अधिसूचना प्रकाशित करके इस प्रतिशत में बढा सकी है किन्तु, वह इसे बढाकर 15 प्रतिशत से अधिक नहीं कर सकती ।

अनुसूचित बैंकों के कुल दायित्वों की गणना में निम्नलिखित को सम्मिलित नहीं कर सकते:

(i) प्रदत्त पूँजी, सुरक्षित निधि तथा लाभ-हानि खाते का क्रेडिट शेष ।

(ii) रिजर्व बैंक, औद्योगिक विकास बैंक (IDB) तथा कृषि पुनर्वित्त निगम (ARC) से लिए गए ऋण ।

(iii) राज्य सहकारी बैंक द्वारा सरकर से लिया गया ऋण तथा राज्य सहकारी बैंकों के अन्तर्गत कार्य करने वाले सहकारी बैंकों से नकद-कोष के रूप में प्राप्त राशि जो अधिनियम द्वारा अधिकृत हो ।

(iv) रिजर्व बैंक द्वारा नकद कोषों में वृद्धि के आदेश में प्रस्तावित वृद्धि की दर का उल्लेख भी किया जाता है तथा वृद्धि का यह आदेश केवल उन दायित्वों पर लागू होता है जो आदेश जारी होने के पश्चात् पड़ते है ।

(v) रिजर्व बैंक द्वारा अतिरिक्त नकद राशि का निर्धारण कुल नए दायित्वों से अधिक नहीं किया जा सकता । पुराने एवं नए नकद-कोषों का योग कुल दायित्वों के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए ।

(vi) जब रिजर्व बैंक नकद कोषों के प्रतिशत में वृद्धि करता है तो वह इस वृद्धि के परिणामस्वरूप जमा की गई अतिरिक्त राशि पर अनुसूचित बैंकों को उस दर से ब्याज का भुगतान कर सकता है जो उसके (रिजर्व बैंक के) द्वारा निर्धारित किया जाए । इन निधियों पर ब्याज तभी मिलता है जब अनुसूचित बैंक निर्धारित सीमा तक निधियों रखता है ।

दण्ड व्यवस्था:

अनुसूचित बैंक के संचालक, प्रबन्धक या सचिव जो न्यूनतम राशि से कम राशि के नकद-कोष रिजर्व बैंक के पास रखने का दोषी होता है, उनमें से प्रत्येक को 500 रु. प्रति सप्ताह की दर से अर्थदण्ड तब तक देना पड़ता है जब तक यह त्रुटि जारी रहती है ।

अधिकारियों पर लगाये जाने वाले इस अर्थदण्ड के अलावा बैंक को भी न्यूनतम कोष से कम पड़ने वाली राशि पर दण्डात्मक ब्याज देना पड़ता है । त्रुटि के प्रथम सप्ताह में व्याज की दर बैंक दर से 3 प्रतिशत अधिक तथा दूसरे सप्ताह से उसे बढ़ाकर बैंक दर से 5 प्रतिशत अधिक कर दिया जाता है ।

यदि यह त्रुटि लम्बी अवधि तक जारी रहती है तो रिजर्व बैंक सम्बन्धित बैंक को यह निर्देश दे सकती है कि वह नए निक्षेप स्वीकार न करे । इस आदेश का पालन न करने पर बैंक के संचालकों पर 500 रु. प्रति सप्ताह की दर से अर्थदण्ड लगाया जा सकता है ।

अर्थ-दण्डों के भुगतान के लिए रिजर्व बैंक आदेश निर्गमित करता है तथा दोषी अधिकारी को आदेश प्राप्त होने के 14 दिनों के अन्दर इस अर्थ-दण्ड को चुकना होता है । यदि वह ऐसा नहीं करता तो रिजर्व बैंक अधिकृत न्यायालय में अपील कर सकता है ।

दोषी पाए जाने पर न्यायालय बैंक के प्रति एक प्रमाण-पत्र निर्गमित कर देता है जो न्यायालयीन डिक्री के समान प्रभावी होता है । किन्तु यदि रिजर्व बैंक इस बात से सन्तुष्ट हो जाए कि दोषी द्वारा त्रुटि के लिए समुचित कारण थे तो वह ब्याज एवं दण्ड में क्षमा कर सकता है ।

निर्धारित प्रपत्र में सूचना:

प्रत्येक अनुसूचित बैंक को प्रत्येक शुक्रवार (यदि शुक्रवार को सार्वजनिक अवकाश हो तो बृहस्पतिवार) को अपने नकद-कोषों के बारे में जानकारी निर्धारित प्रारूप में अपने प्रधान कार्यालय को भेजनी होती है । इस प्रपत्र पर बैंक के दो उत्तरदायी अधिकारियों के हस्ताक्षर होने चाहिए । प्रधान कार्यालय 5 दिन के अन्दर इसे रिजर्व बैंक में भेज देता है । इन प्रावधानों का पालन न करने पर दोषी बैंक को 100 रु. प्रति दिन के अर्थ-दण्ड से दण्डित किया जा सकता है ।


Essay # 5.

रिजर्व बैंक को विवरण (Returns to Reserve Bank of India):

प्रत्येक अनुसूचित बैंक को रिजर्व बैंक के पास एक विवरण या रिटर्न प्रस्तुत करना पड़ता है जिसमें निम्नलिखित सूचनाओं को सम्मिलित किया जाता है:

(i) माँग एवं सावधि दायित्वों की कुल राशि ।

(ii) भारत स्थित बैंकों से लिए गए कुल ऋण (माँग एवं सावधि दायित्वों में वर्गीकृत करके) ।

(iii) भारत में रखे गये विधिमान्य नोट एवं सिक्के ।

(iv) भारत में रिजर्व बैंक के पास जमा राशि ।

(v) अन्य बैंकों को चालू खातों में माँग तथा अल्प सूचना पर देय जमा राशियों ।

(vi) केन्द्रीय एवं राज्य सरकारों की प्रतिभूतियों (ट्रेजरी बिल्स तथा ट्रेजरी डिपॉजिट रसीद सहित) में विनियोजित राशि (पुस्तक-मूल्य पर) ।

(vii) भारत में स्वीकृत ऋण एवं अग्रिमों की कुल राशियाँ ।

(viii) भारत में स्वदेशी एवं विदेशी विपत्रों की कटौती एवं क्रय में विनियोजित कुल राशि ।

यह विवरण प्रति शुक्रवार को बनाकर आगामी पाँच दिनों में रिजर्व बैंक के पास भेजना होता है तथा इस पर बैंक के दो उत्तरदायी अधिकारियों के हस्ताक्षर होने चाहिए ।

यदि रिजर्व बैंक इस बात से सन्तुष्ट हो जाए कि अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण कोई बैंक प्रति सप्ताह उपर्युक्त विवरण नहीं भेज सकता तो रिजर्व बैंक:

(i) उस बैंक को प्रावधिक (Provisional) साप्ताहिक विवरण भेजकर 10 दिनों की अवधि में अन्तिम-विवरण (Final Return) भेजने की अनुमति दे सकता है ।

(ii) उस बैंक को साप्ताहिक विवरण के बजाय मासिक विवरण भेजने की अनुमति प्रदान कर सकता है, जो माह समाप्त होने के 14 दिन के अन्दर-अन्दर भेजना पड़ता है ।

दण्ड:

उपर्युक्त विवरण (Return) न भेजने पर दोषी बैंक को जब तक त्रुटि जारी रहे, 100 रु. प्रतिदिन की दर से अर्थ-दण्ड से दण्डित किया जा सकता है ।


Essay # 6.

ऋण एवं अग्रिम सम्बन्धी सूचनाओं का संग्रहण (Collection of Credit Information by Reserve Bank of India):

धारा 45 (a), (b) तथा (c) में इस सम्बन्ध में निम्नलिखित प्रावधान हैं:

रिजर्व बैंक भारत में कार्यरत किसी भी व्यापारिक बैंक अथवा भारत सरकार द्वारा अधिकृत ऋण एवं अग्रिमों के बारे में उपर्युक्त प्रारूप में सूचनाएँ माँग सकती है ।

यह सूचनाएँ निम्नलिखित से सम्बन्धित हो सकती हैं:

(i) किसी ऋणी या किसी वर्ग के ऋणियों को स्वीकृत ऋण-राशि एवं उसका स्वरूप तथा अन्य साख सुविधाएँ ।

(ii) उपयुक्त (i) के अन्तर्गत स्वीकृत ऋणों के लिए प्राप्त प्रतिभूतियों की प्रकृति ।

(iii) बैंक द्वारा अपने किसी ग्राहक या उनके किसी वर्ग को प्रदत्त ऋण गारण्टी ।

(iv) ऋणी अथवा ऋणियों तथा उनके वित्तीय व्यवहार का इतिहास ।

(v) अन्य कोई सूचनाएँ जिन्हें रिजर्व बैंक साख के नियमन हेतु आवश्यक समझे ।

रिजर्व बैंक द्वारा साख सूचनाएँ उपलब्ध कराना (Furnishing of Credit Information by Reserve Bank of India):

प्रत्येक बैंक को ग्राहकों के खातों की गोपनीयता के वैधानिक दायित्व के बावजूद भी उपर्युक्त वर्णित सूचनाएँ रिजर्व बैंक को देनी होंगी:

धारा 45(D) के अनुसार कोई बैंक किसी व्यक्ति विशेष के साथ सम्पन्न अथवा प्रस्तावित वित्तीय अनुबन्धों के बारे में रिजर्व बैंक से साख सम्बन्धी सूचनाएँ माँग सका है । इस हेतु उसे निर्धारित प्रारूप में आवेदन करना होगा । रिजर्व बैंक चाही गई सूचना यथाशीघ्र उपलब्ध करायेगा, किन्तु वह सूचना देते समय उन बैंकों के नामों का उल्लेख नहीं करेगा जिनसे वह सूचना प्राप्त की गई है । ऐसी सूचना समेकित (Consolidate) रूप में दी जाती है । रिजर्व बैंक यदि चाहे, तो ऐसी सूचना के लिए 25 रु. तक शुल्क ले सकता है ।

सरकार का बैंकर (Banks of Government):

अधिनियम की धारा 20,21 तथा 22 के प्रावधानों के अनुसार रिजर्व बैंक केन्द्रीय एवं राज्य सरकारों के बैंकर के रूप में उनके लिए निम्नलिखित कार्य कर सकता है:

(1) उनके लिए करों तथा ऋण की रकम प्राप्त करना तथा उन्हें बिना ब्याज के रखना ।

(2) सार्वजनिक ऋण (Public Debt) व्यवस्था करना- ऋण प्राप्त करना, ब्याज का भुगतान करना तथा ऋण का शोधन करना ।

(3) उनको ऋण/अग्रिम स्वीकृत करना ।

(4) शासकीय प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय करना ।

नोट निर्गमन (Issue of Paper Currency):

रिजर्व बैंक को नोट निर्गमन का एकाधिकार, धारा 22 के अन्तर्गत प्राप्त है । रिजर्व बैंक 2, 5, 10, 20, 50, 100, 500 तथा 1000 रुपये वाले नोट निकलता है तथा उन्हें चलन में डालता है । 1 रुपये का नोट भारत सरकर निकालती है किन्तु उन्हें चलन में डालने तथा उनका हिसाब-किताब रखने का कार्य रिजर्व बैंक ही करता है ।

धारा 33 के अनुसार रिजर्व बैंक जितनी राशि के नोट निकलता है उसके पीछे मिलाकर 200 करोड़ रुपये के मूल्य का स्वर्ण तथा विदेशी प्रतिभूतियों (जिनमें कम से कम 115 करोड़ रुपये के मूल्य का स्वर्ण होना अनिवार्य है) को धरोहर रखनी पड़ती है ।

विदेशी मुद्रा का लेन-देन (Foreign Exchange Transaction):

अधिनियम की धारा 40 के अनुसार रिजर्व बैंक मुम्बई, दिल्ली, कलकत्ता, मद्रास तथा सरकार द्वारा निर्धारित अन्य केन्द्रों पर अधिकृत व्यापारियों को विदेशी मुद्रा का क्रय-विक्रय निर्धारित शर्तों एवं दरों पर करता है । विदेशी विनिमय का कोई भी व्यवहार 2 लाख रु. से कम मूल्य का नहीं होना चाहिए ।

कृषि साख के लिए कोष (Funds for Agricultural Credit):

रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा 46(A) तथा 46(B) के अन्तर्गत कृषि वित्त की व्यवस्था करने हेतु निम्नलिखित दो कोषों की स्थापना की गई है:

(a) राष्ट्रीय कृषि साख (दीर्घकालीन संचालन) कोष [National Agricultural Credit (Long Term Operations) Fund]

(b) इसके अतिरिक्त धारा 54 के अनुसार रिजर्व बैंक का कृषि साख विभाग [Agricultural Credit Dept.] भी है ।

औद्योगिक वित्त (Industrial Finance):

रिजर्व बैंक ने औद्योगिक वित्त की व्यवस्था में योगदान देने हेतु अधिनियम की धारा 46 (C) के अन्तर्गत राष्ट्रीय औद्योगिक साख (दीर्घकालीन संचालन) कोष की स्थापना की है ।

बैंक दर (Bank Rate):

अधिनियम की धारा 49 के अन्तर्गत रिजर्व बैंक को यह अधिकार प्राप्त है कि वह समय-समय पर बैंक दर (Bank Rate) की घोषणा करेगा जिस पर वह विनिमय-विपत्रों तया अन्य व्यापारिकपत्रों की पुनर्कटौती करेगा या क्रय करेगा ।

अंकेक्षण (Audit):

धारा 50, 51 तथा 52 में की गई व्यवस्थाओं के अनुसार भारत सरकार रिजर्व बैंक के खातों का लेखा-परीक्षण करने हेतु कम-से कम 2 अंकेक्षकों की नियुक्ति कर सकती है तथा कन्ट्रोलर एवं ऑडीटर जनरल को भी रिजर्व बैंक के खातों की जाँच करने का आदेश दे सकती है ।


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