जनसंख्या पर निबंध: शीर्ष आठ निबंध | Essay on Population: Top 8 Essays. Here is an essay on the ‘Population of India’ for class 8, 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on the ‘Population of India’ especially written for school and college students in Hindi language.

जनसंख्या पर निबंध| Essay on Population


Essay Contents:

  1. भारत में जनसंख्या (Population in India)
  2. भारत में जनसंख्या वृद्धि (Population Growth in India)
  3. भारत में तीव्र जनसंख्या वृद्धि के निम्न कारण रहे हैं (Causes of Population Explosion in India)
  4. भारत में जनांकिकी संक्रामण (Demographic Transfusion in India)
  5. जनगणना – 2011 (Census – 2011)
  6. राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (National Population Register)
  7. भारत की प्रथम जनसंख्या नीति (India’s First Population Policy)
  8. भारत की जनसंख्या समस्याएँ (Population Problems of India)

Essay # 1. भारत में जनसंख्या (Population in India):

जनसंख्या किसी भी राष्ट्र का सबसे महत्वपूर्ण संसाधन है, जिससे न केवल नैसर्गिक (प्राकृतिक) संसाधनों का उपयोग संभव हो पाता है वरन् कुशल, प्रशिक्षित और मेहनती श्रम शक्ति द्वारा आर्थिक विकास का मार्ग भी प्रशस्त होता है । वस्तुतः किसी देश की वास्तविक ताकत उसकी मानव शक्ति की गुणवत्ता पर निर्भर करती है ।

किसी प्रदेश में जनसंख्या का वितरण भौतिक कारकों के अलावा सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, जनांकिकी आदि अन्य कारकों पर भी प्रमुखता से निर्भर करता है । भारत में विश्व की 17.7% जनसंख्या रहती है ।

ADVERTISEMENTS:

20% जनसंख्या उत्तरी मैदानों एवं 20% तटीय मैदानों में पायी जाती है, जो प्राकृतिक कारकों पर निर्भरता को दर्शाता है क्योंकि इन प्रदेशों में उपजाऊ जलोढ़ मिट्‌टी के अलावा अनुकूल जलवायु भी है ।

परन्तु यहाँ की जनसंख्या वृद्धि पर सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक कारकों का भी व्यापक प्रभाव है । वस्तुतः जैसे-जैसे आर्थिक विकास में गति आती है तथा औद्योगीकरण व नगरीकरण बढ़ता है, वैसे-वैसे भौतिक कारकों के स्थान पर आर्थिक कारकों का महत्व बढ़ता चला जाता है ।

यद्यपि भारत के विशाल प्रकृतिक साधन अभी भी अपने विकास की प्रतीक्षा कर रहे हैं फिर भी यहाँ फिर भी यहाँ सापेक्षिक जनाधिक्य की समस्या है । इसका मुख्य कारण जनसंख्या के गुणात्मक पहलू में पिछड़ापन का होना है, जिससे संसाधनों का समुचित विकास नहीं हो पा रहा है । भारत में जनसंख्या वृद्धि के प्रतिरूप को तीन चरणों में समझा जा सकता है ।


Essay # 2. भारत में जनसंख्या वृद्धि (Population Growth in India):

(i) सामान्य वृद्धि (1891-1921 ई.) (Normal Growth):

ADVERTISEMENTS:

1921 ई. के पूर्व के तीन दशकों में दुर्भिक्ष एवं संक्रामक बीमारियों क प्रकोप के कारण वृद्धि दर अत्यन्त निम्न रही । 1891-1901 तथा 1911-21 के दशकों में तो वस्तुतः जनसंख्या में कमी देखी गई । चूँकि 1921 ई. के पूर्व जनसंख्या वृद्धि अत्यल्प रही थी ।

अतः 1921 ई. को ‘भारत की जनसंख्या का बृहत् विभाजक वर्ष’ (Great Divide Year) भी कहते हैं । इस समय तक भारत जनांकिकी संक्रमण के प्रथम चरण से गुजर रहा था । जन्मदर 48-49/1000 एवं मृत्युदर 42-48/1000 व्यक्ति था ।

(ii) मध्यम वृद्धि (1921-1951 ई.) (Moderate Growth):

1921 के बाद के तीन दशकों में कृषि उत्पादन में वृद्धि तथा यातायात साधनों में विस्तार से दुर्भिक्षों में कमी आई । संक्रामक रोगों की रोकथाम की गई । फलस्वरूप 1951 ई. में जन्मदर लगभग 40/1000 व्यक्ति तथा मृत्युदर 27.4/1000 व्यक्ति तक आ गया ।

ADVERTISEMENTS:

(iii) तीव्र वृद्धि (1951-2011 ई.) (Explosive Growth):

यदि 1921 ई. को भारत की जनसंख्या का वृहत विभाजक वर्ष (Great Divide Year) कहा जाता है, तो वहीं 1951 ई. को ‘जनसंख्या में भारी वृद्धि के प्रारंभिक वर्ष’ की संज्ञा दी जा सकती है । इसके बाद जनसंख्या की वृद्धि दर व निवल वृद्धि आश्चर्यजनक रूप से काफी अधिक रही है ।

1991 ई. (जन्मदर 30.5/1000, मृत्युदर 1.2/1000) के बाद भारत जनांकिकी संक्रमण की तीसरी अवस्था में प्रवेश कर गया है । यद्यपि 1991-2001 एवं 2001-2011 के दशकों में प्राकृतिक वृद्धि दर में गिरावट आई है, परंतु जनसंख्या आधार बड़ा होने के कारण निवल जनसंख्या वृद्धि लगभग 18 करोड़ रही है ।

वर्तमान समय में जन्मदर 21/1000 व्यक्ति एवं मृत्युदर 8/1000 व्यक्ति है । इस प्रकार अभी भी जनसंख्या वृद्धि की गति तेज है ।


Essay # 3. भारत में तीव्र जनसंख्या वृद्धि के निम्न कारण रहे हैं (Causes of Population Explosion in India):

1. अकाल पर नियंत्रण क्योंकि पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि व औद्योगिक उत्पादन बढ़ा ।

2. चिकित्सा में सुधार जिसके फलस्वरूप मृत्युदर में कमी आई ।

3. जन्मदर अधिक होना जो कि सामाजिक-आर्थिक कारकों, सांस्कृतिक पिछड़ापन, गर्म जलवायु का परिणाम रहा है ।

4. औसत आयु अर्थात् जीवन प्रत्याशा में वृद्धि ।

परिवार नियोजन कार्यक्रमों के विस्तार व साक्षरता में वृद्धि से जन्मदर व मृत्युदर दोनों में कमी आई परंतु मृत्युदर में तुलनात्मक रूप से अधिक गिरावट आने के कारण प्राकृतिक वृद्धि दर अभी भी ऊँची बनी हुई है ।


Essay # 4. भारत में जनांकिकी संक्रामण (Demographic Transfusion in India):

भारत जनांकिकी संक्रमण के चार विस्तृत चरणों में से दो चरण पार कर चुका है । 1921 ई. तक भारत पूर्व औद्योगिक कृषि प्रधान समाज रहा था, जिसमें जन्मदर व मृत्युदर दोनों के उच्च रहने के कारण जनसंख्या वृद्धि दर अत्यन्त निम्न रही । इस समय तक भारत जनांकिकी संक्रमण के प्रथम चरण में था ।

1921 ई. से 1991 ई. तक जन्मदर लगभग पहले जैसी बनी रही एवं इसमें कम गिरावट दर्ज की गई, परंतु अकाल व संक्रामक रोगों पर नियंत्रण होने व परिणामस्वरूप मृत्युदर में कमी आने के कारण जनसंख्या में वृद्धि दर अत्यधिक तीव्र रही । वस्तुतः 1961 के बाद से जन्म दर में थोड़ा ह्रास देखा गया था, परन्तु वास्तविक वृद्धि दर 2% से अधिक ही थी ।

1991 के बाद पहली बार वास्तविक जनसंख्या वृद्धि दर 2% से कम हुई है । 1991 ई. के बाद भारत जनांकिकी संक्रमण के तीसरे चरण में प्रवेश कर चुका है एवं अब प्राकृतिक वृद्धि दर में गिरावट की प्रवृति शुरू हुई है । ऐसा माना जा रहा है कि वर्तमान जन्मदर ह्रास प्रवृति के रहने से भारत 2021 ई. तक ही जनांकिकी संक्रमण के चौथे चरण में पहुँच जाएगा ।


Essay # 5. जनगणना – 2011 (Census – 2011):

जनसंख्या आकार के अनुसार राज्यों तथा केन्द्रशासित प्रदेशों का क्रम:

2001 तथा 2011:

जनगणना – 2011:

लिंगानुपात व साक्षारता के अनुसार राज्यों तथा केन्द्रशासित प्रदेशों का क्रम:

भारत की जनगणना-2011 (Census of India 2011):

योजनागत विकास हेतु जनगणना एवं जनांकिकी गुणों में परिवर्तन का व्यापक महत्व है । भारत में पहली जनगणना 1872 ई. में ‘लार्ड मेयो’ के कार्यकाल में हुई थी । परंतु 1881 ई. से अर्थात् ‘लार्ड रिपन’ के समय से प्रत्येक दस वर्ष के अंतराल पर जनसंख्या का क्रमवार आकलन (नियमित दशकीय जनगणना) प्रारंभ हो गई । ‘डब्ल्यु. सी. प्लाउडेन’ भारत के प्रथम जनगणना आयुक्त थे ।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से भारत का सातवां जनगणना अभियान का पहला चरण अप्रैल से सितम्बर, 2010 के बीच, जबकि दूसरा चरण 9 से 28 फरवरी, 2010 के बीच पूरा हुआ । 21वीं सदी की दूसरी जनगणना के आँकड़े देश के महापंजीयक व जनगणना आयुक्त ‘सी. चंद्रमौली’ की उपस्थिति में 31 मार्च, 2011 को अंतरिम आँकड़े (Provisional Data) जारी किए गए ।

दो चरणों में पूर्ण हुई इस जनगणना भारत की जनगणना-2011 का शुभंकर (Mascot) एक ‘प्रगणक शिक्षिका’ को बनाया गया था । इस जनगणना का स्लोगन था- ‘हमारी जनसंख्या हमारा भविष्य’ ।

अंतरिम आँकड़ों के जारी होने के लगभग दो वर्ष बाद 30 अप्रेल, 2013 को अंतिम आँकड़े (Final Data) जारी किए गये थे । पुनः मणिपुर के सेनापति जिले के तीन उपखण्डों के वास्तविक आँकड़ों को शामिल करने के बाद 7 जनवरी, 2014 को संशोधित एवं वास्तविक आँकड़े प्रकाशित किए गए ।

जनगणना के अंतिम आँकड़ों के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या 1 मार्च, 2011 को 1,21,08,54,977 है, जो अमेरिका, इंडोनेशिया, ब्राजील, पाकिस्तान, बांग्लादेश और जापान की कुल सम्मिलित जनसंख्या के बराबर है । यह विश्व की कुल जनसंख्या का 17.5 प्रतिशत है ।

जनगणना-2011 के आँकड़ों का सबसे उल्लेखनीय पक्ष यह है कि इसमें पिछले दशक (1991-2001) के मुकाबले जनसंख्या की वृद्धि में गिरावट दर्ज की गई है । यहाँ 1991-2001 के दौरान भारत की जनसंख्या में 21.54 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी, वहीं 2001-11 के दौरान यह दशकीय वृद्धि मात्र 17.7 प्रतिशत रह गई है ।

जनसंख्या-2011 के कुछ अन्य प्रमुख बातें निम्नलिखित हैं (Some Other Highlights of Census 2011):

i. दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी वाले देश चीन और भारत के बीच का फासला भी घटा है । 2001 में 23.8 करोड़ था जो 2011 में 13 करोड़ हो गया ।

ii. देश में महिलाओं की कुल आबादी 58 करोड़ 75 लाख एवं पुरुषों की कुल आबादी 62 करोड़ 32 लाख है ।

iii. बीते दस वर्षों में भारत की जनसंख्या में 17.7 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई । इस दौरान कुल जनसंख्या में 18.18 करोड़ का इजाफा हुआ है ।

iv. 1911-21 के दशक के बाद यह पहला दशक है जब जनसंख्या में कुल वृद्धि पिछले दशक से कम रही है ।

v. पुरुषों की आबादी में 17 प्रतिशत और महिलाओं की आबादी में 18 प्रतिशत की बढ़ोतरी हु ।

vi. जनगणना में उसे साक्षर माना गया है जिनकी उम्र 7 वर्ष या अधिक है एवं जो किसी भाषा में पढ़ने के साथ-साथ लिखने में भी सक्षम हो ।

vii. 15वीं जनसंख्या के अंतिम आँकड़ों के मुताबिक पिछले दस वर्षों में भारत का कुल लिंगानुपात 933 से बढ़कर 943 हो गया है, जो वर्ष 1961 के बाद सर्वाधिक है । लेकिन, 0-6 आयुवर्ग के बच्चों का लिंगानुपात 927 से घटकर 919 हो गया । यह अनुपात आजाद भारत का सबसे निचला स्तर है ।

viii. पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की साक्षरता दर में तेजी से वृद्धि हुई है । पिछले दशक में महिलाओं के साक्षरता दर में 12% एवं पुरुषों के साक्षरता दर में 7% की वृद्धि दर्ज की गई ।

ix. 29 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में लिंगानुपात में सुधार हुआ है लेकिन बिहार, गुजरात और जम्मू-कश्मीर में इसमें गिरावट आई है ।

x. नागालैण्ड देश का एकमात्र राज्य है, जिसकी जनसंख्या में कमी आई है । इस दशक में नागालैंड की जनसंख्या वृद्धि दर नकारात्मक रही है, जबकि पिछले दशक में सर्वाधिक जनसंख्या वृद्धि दर नागालैंड की रही थी ।

xi. मुम्बई के नजदीक का ‘ठाणे’ सबसे अधिक आबादी वाला जिला के रूप में उभरकर सामने आया है ।

xii. भारत में जन्मदर में गिरावट आई है । कुल जनसंख्या के मुकाबले बच्चों की जनसंख्या (0-6 वर्ष की आयु) का अनुपात 2001 में 15.9 प्रतिशत से गिरकर 2011 में 13.6 प्रतिशत हो गया, जो भारत में घटती उर्वरता का सूचक है । 0-6 साल तक के बच्चों की संख्या घटी है ।

xiii. हरियाणा और चण्डीगढ़ में पिछले 110 वर्षों में सबसे बेहतर महिला अनुपात दर्ज किया गया है, जो क्रमशः 879 और 818 है । लेकिन यह अब भी देश में सबसे बदतर है जो इस बात का संकेत है कि भ्रूण हत्याएँ अब भी जारी है ।

xiv. सबसे बेहतर लिंगानुपात (प्रति 1000 पुरुषों दर स्त्रियों की संख्या) वाले दो राज्य केरल (1,084) और पुदुच्चेरी (1,037) है ।

xv. सबसे कम लिंगानुपात वाले दो केन्द्र शासित राज्य दमन दीप (618) और चंडीगढ़ (818) है ।

xvi. अरूणाचल प्रदेश के कुरंग कुमे (111.0 1 फीसदी) और पुदुच्चेरी के यनम (77.15) फीसदी) जिले में जनसंख्या वृद्धि दर सबसे ज्यादा रही ।

xvii. नागालैण्ड के लोंगलेंग (-58.39 फीसदी) और किफिरे (-30.54) जिले में जनसंख्या वृद्धि दर सबसे कम रही ।

xviii. पिछले दशक की भांति इस दशक में भी जनसंख्या का एक प्रकार से विस्फोट सा रहा है । यद्यपि जनसंख्या वृद्धि दर में कमी आई है, परन्तु जनसंख्या में जैविक रूप से पुनरुत्पादक वर्ग के बड़े होने के कारण कुल 18 करोड़ की दशकीय वृद्धि हुई है ।

xix. इस जनगणना में जनसंख्या घनत्व की दृष्टि से पश्चिम बंगाल (1,028), बिहार (1,106) व केरल (860) प्रथम तीन राज्य रहे हैं ।

xx. इस बार की जनगणना में 7 हजार शहर और 6 लाख गांवों में लोगों की गिनती की गई ।

xxi. भारत में जाति आधारित जनगणना 1881 में शुरू हुई थी और सन् 1931 के बाद समाप्त कर दिया गया था । 2011 से एक बार फिर जातीय जनगणना कराने को मंजूरी दी गई ।

xxii. पहली जनगणना में कुल 14 सवाल पूछे गए थे । वर्ष 2011 की जनगणना में 29 सवाल पूछे गए ।

xxiii. 2011 की जनगणना में कुछ नए सवाल जोड़े गए । मसलन कम्प्यूटर/लैपटॉप की उपलब्धता और इंटरनेट सुविधा । खाना बनाने के लिए ईंधन के रूप में एलपीजी को शामिल किया गया ।

xxiv. पहली बार किन्नरों (थर्ड जेंडर) को अन्य श्रेणी में शामिल किया गया, उन्हें ने तो महिला और न पुरुष श्रेणी में रखा गया ।

xxv. देश के कुछ जनजातियों की जनगणना रात में की जाती है क्योंकि दिन में उनका ठिकाना नहीं होता ।

xxvi. अंडमान निकोबार द्वीप समूह जैसे इलाकों में कुछ ऐसी जनजाति है, जो इंसानों से मेलजोल नहीं रखती और उनका सम्पर्क भी प्रतिबंधित है । इनकी जनगणना के लिए द्वीपों के चारों तरफ नाम के जरिए कमल और नारियल जैसे सामान भेजे जाते हैं । उनसे आकर्षित होकर जब वे पानी की तरफ आते हैं तभी जनगणना होती है ।

xxvii. सन् 2030 में भारत की आबादी 1 अरब 40 करोड़ के पार होगी व भारत चीन से आगे होगा ।

जनसंख्या – 2011 से संबन्धित कुछ महत्वपूर्ण आंकड़े:

अनुसूचित जातियाँ (Scheduled Castes):

भारत में स्वतंत्रता के समय अनुसूचित जातियों की जनसंख्या 5.17 करोड़ थी जो बढ़कर 1991 ई. में 13.82 करोड़ तथा 2001 ई. में 16.66 करोड़ और वर्ष 2011 में 20.137 करोड़ (देश की कुल जनसंख्या का 16.6%) हो गई है । इस प्रकार पिछले 60 वर्षों में इनकी जनसंख्या में तीन गुने से भी अधिक वृद्धि हुई ।

2001-2011 के दौरान अनुसूचित जाति की दशकीय वृद्धि दर 20.8% रही है । सर्वाधिक एवं न्यूनतम अनुसूचित जाति जनसंख्या वाले राज्य क्रमशः उत्तर प्रदेश एवं मिजोरम हैं । इसी प्रकार अनुसूचित जाति की सर्वाधिक एवं न्यूनतम जनंसख्या प्रतिशतता वाले राज्य क्रमशः पंजाब एवं मिजोरम है ।

वर्ष 2011 में अनुसूचित जाति का लिंगानुपात 945 तथा साक्षरता का प्रतिशत 37.41 है (पुरूष साक्षरता 49.91 एवं स्त्री साक्षरता 23.76) । नागालैण्ड, अण्डमान निकोबार और लक्षद्वीप में अनुसूचित जाति नहीं पाई जाती ।

अनुसूचित जनजातियाँ (Scheduled Tribes):

15वीं जनगणना 2011 के अनुसार भारत में अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या 10.42 करोड़ (देश की कुल जनसंख्या का 8.6%) है । भारत में सर्वाधिक अनुसूचित जनजाति मध्य प्रदेश में पाई जाती है, जो राज्य की समस्त जनसंख्या का 21.1% है । दादर एवं नगर हवेली में संख्या की सर्वाधिक 1,78,564 अनुसूचित जनजाति पाए जाते हैं, जो किसी केंद्र शासित प्रदेश में सर्वाधिक है ।

वर्ष 2011 में अनुसूचित जजातियों का लिंगानुपात 990 है, जो वर्ष 2001 के लिंगानुपात से 12 अधिक हैं । जजातियों में सर्वाधिक लिंगानुपात गोवा (1,046) का है और सबसे कम जम्मू-कश्मीर (924) का है । पुदुच्चेरी, दिल्ली, चंडीगढ़, हरियाणा तथा पंजाब में कोई भी अनुसूचित जनजाति नहीं पाई जाती है ।

धार्मिक जनगणना-2011 (Population by Religion):

अगस्त, 2015 को भारत के महापंजीयक और जनगणना आयुक्त ने वर्ष 2011 के धार्मिक जनगणना के आँकड़े जारी किए । आँकड़े के अनुसार वर्ष 2001 से 2015 के बीच देश की जनसंख्या औसतन 17.7% बढ़कर 121.09 करोड़ हो गई है ।

इसमें हिन्दुओं की कुल संख्या 96.63 करोड़ है, जो देश की कुल जनसंख्या का 79.8% है एवं इसमें 0.7% की गिरावट दर्ज की गई है जबकि मुसलमानों की कुल जनसंख्या 17.22 करोड़ है, जो देश की कुल जनसंख्या का 14.2% है एवं इनमें 0.8% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है ।

धार्मिक जनगणना से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य (Some Important Facts of Religious Census):

i. वर्ष 2001 से 2011 के बीच देश की कुल आबादी मे हिन्दुओं की आबादी 0.7% घटी जबकि मुस्लिमों की 0.8% बढ़ी है ।

ii. वर्ष 2001 से 2011 के दौरान एक दशक में हिन्दुओं की दशकीय वृद्धि दर 16.8% रही जबकि मुस्लिमों की 24.6% ।

iii. हिन्दुओं में सबसे अधिक दशकीय वृद्धि दर (2001-2011) दादर एवं नागर हवेली में 56.6% रही, वहीं मुस्लिमों की सबसे अधिक दशकीय वृद्धि दर भी 98.1% दादर एवं नागर हवेली में रही ।

iv. हिन्दुओं का लिंगानुपात 939, मुस्लिमों का 951, ईसाईयों का 1,023, सिक्खों का 903, बौद्धों का 965 तथा जैनियों 954 हैं ।

v. हिंदुओं की सबसे अधिक हिस्सेदारी वाला राज्य/केंद्र शासित प्रदेश हिमाचल प्रदेश (राज्य का 95.2%) तथा सबसे कम हिस्सेदारी वाला राज्य/केंद्र शासित प्रदेश मिजोरम (2.7%) है ।

vi. मुस्लिमों की सबसे अधिक हिस्सेदारी वाला राज्य/केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप (96.6%) तथा सबसे कम हिस्सेदारी वाला राज्य/केंद्र शासित प्रदेश मिजोरम (1.4%) है ।

vii. हिन्दुओं में सबसे अधिक लिंगानुपात वाला राज्य/केंद्र शासित प्रदेश केरल (1,077; इसके बाद पुदुच्चेरी-1037) है जबकि सबसे कम लिंगानुपात लक्षद्वीप (947) में हैं ।

viii. मुस्लिमों में सबसे अधिक लिंगानुपात वाला राज्य/केंद्र शासित प्रदेश करेल (1,125) तथा सबसे कम लिंगानुपात सिक्किम (890) में हैं ।


Essay # 6. राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (National Population Register):

भारत सरकार ने पहली बार जनगणना अभियान के दौरान देश के लिए एक राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर तैयार करने का निर्णय लिया है । यह नागरिकता अधिनियम, 1955 और नागरिकता (नागरिकों का पंजीयन और राष्ट्रीय पहचान जारी करना) नियमावली, 2003 के अंतर्गत चलाई जा रही है ।

राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर का उद्देश्य देश के सभी नागरिकों के व्यक्तिगत ब्योरों को एकत्र करना तथा ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों के 15 वर्ष के ऊपर के सभी लोगों के फोटोग्राफ व दसों अंगुलियों की छाप लेना है । यह रजिस्टर एक व्यापक डाटा बेस तैयार करेगा, जिनमें 15 प्रकार के प्रश्नावलियाँ हैं ।

इसकी अधिकतर सूचनाएँ गोपनीय होगी । केवल कुछ जानकारियाँ इलेक्टोरल रॉल या टेलीफोन डायरेक्टरी के रूप में अवलोकन हेतु प्रकाशित की जाएगी । डाटा बेस तैयार करने के उपरांत 15 वर्ष के उम्र की ऊपर के हर भारतीय नागरिक को एक ‘यूनिक आइडेन्टिटी नम्बर’ यानि UID जारी किया जाएगा ।

आधार परियोजना (यूआईडी प्रोजेक्ट) (Adhaar Project):

केन्द्र सरकार ने अनन्य पहचान संख्या (Unique Identification – UID) कार्यक्रम का नाम परिवर्तित कर ‘आधार’ कर दिया है । आधार परियोजना के ‘लोगो’ में चमकता पीला सूर्य और बीच में अंगुलियों के निशान होंगे । नागरिक की आधार संख्या जारी करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति का ‘बायोमीट्रिक पहचान’ लेने हेतु लगभग 10 फिंगरप्रिंट, एक फोटो और आइरिस स्कैन लिया आदि लिया जाता है ।

29 सितम्बर, 2010 को उत्तर महाराष्ट्र के नांदुरबर जिले के ‘तेंभाली गांव’ में महत्वाकांक्षी यूआईडी प्रोजेक्ट (आधार परियोजना) का उद्‌घाटन किया । यह देश पहला आधार गाँव है । इस गांव की आदिवासी महिला ‘रंजना सोनावणे’ यूआईडी हासिल करने वाली पहली नागरिक बन गई है ।

यूआईडी प्रोजेक्ट के तहत बारह अंकों की एक-एक संख्या के माध्यम से देश के प्रत्येक नागरिक को अद्वितीय पहचान दी जा रही है । गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली लोगों को आधार संख्या के आबंटन पर 100 रुपए का भुगतान किया जाने का प्रावधान है ।

यूआईडी में भारत के प्रत्येक नागरिक से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियों जैसे उसकी आमदनी, खर्च, बीमा पॉलिसी, बैंक खाता, स्वास्थ्य का हालचाल बगैरह एक स्थान पर एकत्रित कर दी जाएगी और अंगूठा निशानी के रूप में उसकी बायोमीट्रिक पहचान के साथ जोड़ दी जाएगी ।

यूआईडी नम्बर बहुउद्देश्यीय होगा । बैंक अकाउंट से लेकर ड्राइविंग लाइसेन्स, पासपोर्ट और चुनाव पहचान पत्र इसके जरिए बनाए जा सकेंगे । विदेशों में भी यह भारतीयों की पहचान बनेगा । यूआइडी प्रोजेक्ट (आधार परियोजना) विश्व की सबसे बड़ी और अनूठी सूचना प्रौद्योगिकी परियोजना है ।


Essay # 7. भारत की प्रथम जनसंख्या नीति (India’s First Population Policy):

भारत की प्रथम जनसंख्या नीति 1948 ई. में आई । प्रारम्भ में परिवार नियोजन पर बल दिया गया । उसके बाद परिवार कल्याण की अवधारणा आई । 1974 ई. में बुखारेस्ट में जनसंख्या पर हुए अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में विकासशील देशों में जनसंख्या नियंत्रण हेतु विशेष कदम उठाने पर जोर दिया गया ।

इसके बाद भारत में भी 1976 ई. में नई जनसंख्या नीति आई, जिसमें मात्रात्मक लक्ष्यों को हासिल करने की अत्यधिक जोर दिया गया था । इस जनसंख्या नीति को ठीक से लागू नहीं किया जा सका क्योंकि जनसंख्या नियंत्रण को बाध्यकारी बनाने के प्रयासों की तीखी प्रतिक्रिया हुई एवं लक्ष्य के विपरीत जन्म-दर में तेजी से वृद्धि हुई ।

अतः जनसंख्या नियंत्रण हेतु मात्रात्मक के स्थान पर गुणात्मक पहलू पर जोर दिया जाने लगा है । स्थायी बंध्याकरण के स्थान पर अब शिशुओं के बीच अंतराल पर ध्यान दिया जा रहा है । इस हेतु प्रजनन व शिशु के देखभाल की समुचित व्यवस्था तथा गर्भ निरोधकों व स्वास्थ्य सुविधाओं का बुनियादी ढाँचा बनाना प्रमुख लक्ष्य है ।

पहले मातृत्व व शिशु स्वास्थ्य कार्यक्रम (MCHP) लागू किया गया एवं वर्तमान समय में प्रजनन व शिशु स्वास्थ्य कार्यक्रम (RCHP) चल रहा है । जनसंख्या नीति-2000 में इसे प्रभावी ढंग से लागू करने की योजना है । जनसंख्या नीति का प्रभावी कार्यान्वयन जरूरी है ।

इसे खंडवार व वर्गवार ढंग से लागू करने हेतु विशेष रणनीति बनाना आवश्यक है ताकि जनसंख्या की अवांछित वृद्धि पर नियंत्रण पाया जा सके । पंचायती राज संस्थाओं की जनसंख्या नियंत्रण कायक्रमों में सक्रिय सहभागिता व जवाबदेही सुनिश्चित करना भी जरूरी है, क्योंकि समस्या अभी भी ग्रामीण भारत में अधिक है ।

जनसंख्या नीति-2000 (Population Policy 2000):

एम.एस. स्वामीनाथन कमिटी की रिपोर्ट के आधार पर इस जनसंख्या नीति का निर्माण किया गया है ।

इसमें जनसंख्या संबंधी लक्ष्यों को तीन चरणों में बांटकर देखा गया है:

1. तात्कालिक लक्ष्य:

इसके अंतर्गत प्रजनन व शिशु के देखभाल की समुचित व्यवस्था तथा गर्भ निरोधकों व स्वास्थ्य सुविधाओं का बुनियादी ढाँचा बनाना प्रमुख लक्ष्य है ।

2. मध्यकालीन लक्ष्य:

इसके अंतर्गत 2010 ई. तक कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate-TFR) को 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर पर लाना प्रमुख लक्ष्य रखा गया था । इसके लिए 14 राष्ट्रीय जनांकिकी लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं । इनमें छोटे परिवार को प्रोत्साहित करने के लिए 16 प्रेरक व प्रोत्साहक उपाय शामिल हैं ।

स्वास्थ्य बीमा, बालिका समृद्धि, मातृत्व-सुविधा, महिला-सशक्तिकरण व शिक्षा, 14 वर्ष तक अनिवार्य स्कूली शिक्षा, शिशु मृत्यु दर को प्रति हजार जीवित जन्म दर पर 30 तक सीमित करना, लड़कियों की विवाह-आयु बढ़ाना, जन्म-मरण, विवाह व गर्भ का शत-प्रतिशत पंजीकरण कराना, जच्चा मृत्युदर अनुपात को प्रति लाख में 100 से कम करना, एड्‌स व यौन-रोगों पर नियंत्रण आदि इनमें प्रमुख हैं ।

3. दीर्घकालीन उद्देश्य:

इसके अंतर्गत 2045 ई. तक सामाजिक व आर्थिक विकास तथा पर्यावरणीय संरक्षण के अनुरूप स्थिर जनसंख्या की प्राप्ति का लक्ष्य रखा गया है । इस हेतु 2026 ई. तक लोक सभा की सीटें नहीं बढ़ाने का निर्णय लिया गया है ताकि जनसंख्या नियंत्रण के कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जा सके ।


Essay # 8. भारत की जनसंख्या समस्याएँ (Population Problems of India):

i. भारत जनांकिकी संक्रमण के तीसरे चरण के प्रारंभिक दौर में है एवं अब जन्म दर में कमी की प्रवृति स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रही है । जहाँ यह वर्ष 1991-2001 में 1.95% वार्षिक था वहीं वर्ष 2001-2011 में यह घटकर 1.64% रह गया है ।

ii. परंतु, जनसंख्या का जैविक आधार बड़ा होने के कारण जनसंख्या वृद्धि दर कम होने के बावजूद पिछले दशक में जनसंख्या लगभग 18 करोड़ बढ़ी अर्थात् प्रति वर्ष लगभग 30-40 लाख परिवार की वृद्धि हुई । इससे विभिन्न संसाधनों पर दबाव बढ़ेगा ।

iii. पहली तीन पंचवर्षीय योजनाओं में जी.डी.पी. में कुल 53% वृद्धि हुई जबकि प्रति व्यक्ति आय में यह वृद्धि मात्र 19% की रही ।

iv. इस संदर्भ में 1974 में बुखारेस्ट में हुए प्रथम जनसंख्या सम्मेलन में स्व. इंदिरा गांधी ने यह वक्तव्य दिया था कि जनसंख्या विस्फोट की अवस्था में नियोजन कार्य करना वास्तव में ऐसे स्थान पर मकान बनाना है जिसे बाढ़ का पानी हर वर्ष बहा ले जाता है ।

v. भारत की अधिकतर जनसंख्या कृषि प्रधान होने के कारण यहाँ सामाजिक मूल्य परंपरागत हैं । इसीलिए सामाजिक-धार्मिक आदि कारणों के कारण भी जनसंख्या में प्राकृतिक वृद्धि होती है । कुल प्रजनन दर (TFR-प्रति दम्पत्ति सन्तानों की संख्या) अभी भी उच्च बना हुआ है । यह अतिरिक्त जनसंख्या वृद्धि ग्रामीण-नगरीय स्थानान्तरण का कारक बनता है ।

vi. बाल आयु वर्ग अधिक है, यद्यपि इसमें कमी की प्रवृत्ति है । जीवन-प्रत्याशा में वृद्धि हुई है परंतु अभी भी यह विकसित देशों से काफी कम है ।

vii. भारत की 60% से भी अधिक जनसंख्या प्राथमिक कार्यों में लगी हुई है । ‘कोलिन क्लार्क’ के अनुसार जहाँ प्राथमिक कार्यों में अधिकतर जनसंख्या रहती है वहाँ जनसंख्या की आर्थिक उत्पादकता काफी कम होती है व जीवन-स्तर निम्न रहती है ।

जबकि, द्वितीयक या तृतीयक कार्यों में अधिक जनसंख्या होने पर जनसंख्या की आर्थिक उत्पादकता अधिक रहती है एवं जीवन-स्तर उच्च रहता है ।


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