जनसंख्या पर निबंध: परिचय, कारक, सिद्धांत और विचार | Essay on Population: Intro, Factors, Theories and Views.

Essay Contents:

  1. जनसंख्या का परिचय (Introduction to Population)
  2. जनसंख्या और आर्थिक विकास (Population and Economic Development)
  3. जनसंख्या के कारक (Factors Affecting Population)
  4. जनसंख्या वृद्धि का कोले-हूवर मॉडल (Coale-Hoover Model on Population Growth)
  5. राबर्ट कैसेन के जनसंख्या के  प्रति विचार (Views of Robert Cassen on Population)

Essay # 1. जनसंख्या का परिचय (Introduction to Population):

जनसंख्या, आर्थिक गतिविधियों का साधन और साध्य दोनों ही है । वास्तव में, जनसंख्या वृद्धि और आर्थिक विकास एक दूसरे के साथ घनिष्टता से जुड़े हुये हैं । किसी देश के आर्थिक विकास पर जनसंख्या वृद्धि का प्रभाव सदैव एक आकर्षण का बिन्दु रहा है ।

“प्रत्येक राष्ट्र का वार्षिक श्रम वह कोष है जो मौलिक रूप में जीवन की सभी आवश्यक वस्तुएं और सुविधाएं उपलब्ध करवाता है ।” -एडम स्मिथ

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केवल मॉल्थस और रिकार्डों ने अर्थव्यवस्था पर जनसंख्या के विपरीत प्रभावों पर चिन्ता प्रकट की । अल्प विकसित देश जनसंख्या विस्फोट के स्तर से गुजर रहे हैं ।

जनसंख्या के इस विस्फोट ने, पिछले कुछ दशकों में आर्थिक विकास में जो कुछ भी लाभ हुये थे उन्हें शून्य बना दिया है । इस महत्वपूर्ण पहलू के प्रकाश में हम देश में जनसंख्या वृद्धि के आर्थिक विकास पर प्रभाव सम्बन्धों की खोज करेंगे ।


Essay # 2. जनसंख्या और आर्थिक विकास (Population and Economic Development):

आर्थिक विकास के लिये जनसंख्या एक आवश्यक स्रोत है परन्तु कुछ स्थितियों में यह विकासरोधी कारक बन जाता है । यह सस्ता श्रम उपलब्ध करवाने का एक अति महत्वपूर्ण साधन है जो कम लागत पर वस्तुएं बनाने में सहायक होता है । विस्तृत जनसंख्या श्रम विभाजन और बड़े स्तर पर उत्पादन को प्रोत्साहित करती है ।

यह मांग को तीव्र करती है, बाजार के आकार को बढ़ाती है और निवेश के लिये अत्यावश्यक प्रोत्साहन उपलब्ध करवाती है और देश के प्राकृतिक साधनों के सदुपयोग के लिये पर्याप्त जनशक्ति उपलब्ध करवाती है, विशेषतया उन देशों में जहां अधिकांश लोग निर्वाह के लिये कृषि पर निर्भर होते हैं ।

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जनसंख्या वृद्धि का समाज के प्रति व्यक्ति उत्पादन स्तर पर सकारात्मक तटस्थ अथवा नकारात्मक शुद्ध प्रभाव जनसंख्या वृद्धि के विशेष नमूने पर तथा जिस संदर्भ में यह होता है पर निर्भर करेगा ।

अत: जनसंख्या वृद्धि का ढंग और वातावरण जिसमें जनसंख्या की वृद्धि होती है, वह महत्त्वपूर्ण कारक हैं जो इस बात का निर्णय करते हैं कि क्या जनसंख्या विकासवर्धक कारक होगी अथवा विकासरोधी ।

पूंजी की पूर्ति, तकनीक का स्तर, जनशक्ति की गुणवत्ता और नवप्रवर्तन की तीव्र इच्छा भी जनसंख्या के आर्थिक विकास पर प्रभावों के स्वरूप का निर्णय करती है । तकनीकी ज्ञान में उन्नत देश जहां पूजी की बहुलता है, वहां तीव्रतापूर्वक बढ़ती हुई जनसंख्या एक आर्थिक आवश्यकता होगी तथा उसके विकास संवर्धक प्रभाव होंगे ।

दूसरी ओर, पूंजी में कमी और तकनीकी रूप में पिछड़े हुए देश के लिये बढ़ती हुयी जनसंख्या एक बोझ बन जाती है और समाज के विकास की ओर प्रयत्नों को निष्क्रिय बना देती है । बढ़ती हुई जनसंख्या का अर्थ है विस्तृत होता बाजार जो समाज को निवेश के उच्च स्तर, अधिक उत्पादन और अधिक रोजगार के लिये उत्साहित करता है ।

ADVERTISEMENTS:

”प्रमाण प्रस्तावित करते हैं कि आधुनिक काल में जनसंख्या में वृद्धि अनेक देशों के कुल उत्पादन में इतनी वृद्धि लाई है कि वहां प्रति व्यक्ति उत्पादन में निश्चित दीर्घकालिक वृद्धि हुई है ।” –साईमन कूज़नेटस

हानसेन (Hansen) जनसंख्या वृद्धि के उच्च दर पर आर्थिक विकास की एक शर्त के रूप में बल देते हैं । उनका मत है कि जनसंख्या वृद्धि आर्थिक विकास की एक पूर्व शर्त है । हिरश्मन (Hirschaman) के अवलोकन अनुसार जनसंख्या का दबाव आर्थिक विकास को उत्तेजित करता है ।


Essay # 3. जनसंख्या के कारक (Factors Affecting Population):

(क) जनसंख्या एक गतिवर्द्धक कारक के रूप में (Population as an Accelerating Factor):

जनसंख्या किसी देश के आर्थिक विकास का गतिवर्द्धन निम्न प्रकार से कर सकती है:

1. जनसंख्या पूंजी निर्माण निर्धारित करती है (Population Determines Capital Formation):

बढ़ती हुई जनसंख्या किसी देश का इस योग्य बना सकती है कि वह अपनी श्रम शक्ति के एक बड़े भाग को पूंजी निर्माण वाली परियोजनाओं में व्यस्त कर सके । श्रम अतिरेक अर्थव्यवस्थाओं में श्रमिकों का एक बड़ा भाग ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत होता है (अदृश्य बेरोजगारी) ।

इन लोगों को, कृषि उत्पादन को विपरीत रूप में प्रभावित किये बिना, सरलता से पूंजी निर्माण वाली परियोजनाओं की ओर स्थानान्तरित किया जा सकता है । इस प्रकार अतिरेक श्रम पूंजी निर्माण की दर को बढ़ाने में भारी योगदान कर सकता है ।

नर्कस के कथनानुसार, अतिरेक श्रम शक्ति का अर्थ है कम-से-कम किसी सीमा तक एक अदृश्य बचत सम्भाव्यता । अदृश्य बेरोजगारी के रूप में इन सम्भावित बचतों को किसी देश में पूंजी निर्माण के लिये गतिशील किया जा सकता है ।

2. आर्थिक विकास के आवश्यक कारक के रूप में जनशक्ति की पूर्ति (Supply of Manpower as an Essential Factor for Economic Development):

जनशक्ति का आकार और गुणवत्ता किसी अर्थव्यवस्था में आर्थिक विकास की गति के मुख्य निर्धारक हैं । आर्थिक विकास प्राकृतिक साधनों, पूंजी और तकनीक का फलन है । नि:सन्देह जनशक्ति, विकास की प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण और गतिशील कारक है ।

अत: श्रम शक्ति की पूर्ति के स्रोत के रूप में जनसंख्या वृद्धि आर्थिक विकास का एक आवश्यक कारक था एक विशेष बिन्दु तक जनसंख्या में प्रत्येक वृद्धि का अर्थ होगा उत्पादन की एक बड़ी मात्रा ।

3. विकास के प्रोत्साहन के रूप में जनसंख्या (Population as an Incentive for Development):

कहा जाता है कि जनसंख्या आर्थिक गतिविधि का साधन और साध्य दोनों ही है । लोग केवल सम्पदा के उत्पादक नहीं बल्कि उपभोक्ता भी हैं । उपभोक्ता के रूप में वह वस्तुओं की मांग उपलब्ध करवाते हैं और बाजार के विस्तार सम्बन्धी परिस्थितियों की रचना करते हैं जो बदले में अधिक विस्तार प्रोत्साहन उपलब्ध करवाते हैं ।

इसके अतिरिक्त, विस्तृत घरेलू बाजार परिमाप की और बड़ी मितव्ययताएं और विविधीकृत उत्पादक संरचना उपलब्ध करवायेगा जिससे बढ़ती हुई जनसंख्या को विविध प्रकार के रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे । अत: एक बढ़ती हुई जनसंख्या किसी देश में आर्थिक विकास के लिये आवश्यक प्रोत्साहन उपलब्ध करवाती है ।

4. औद्योगिक रूप में उन्नत देशों में आर्थिक विकास के महत्त्वपूर्ण स्त्रोत के रूप में जनसंख्या (Population as an Important Source of Economic Growth in Industrially Advanced Countries):

तकनीकी रूप में प्रशिक्षित और निपुण श्रम शक्ति को मानवीय पूंजी माना जाता है । श्रम शक्ति की गुणवत्ता में सुधार किसी देश के आर्थिक विकास में मुख्य सहयोगी हो सकता है । यह सत्य है कि पूंजी संग्रह काफी सीमा तक मानवीय पूजी निर्माण पर निर्भर करता है ।

श्रम शक्ति की गुणवत्ता को ज्ञान, निपुणताएं और लोगों की क्षमताओं को बढ़ाने की प्रक्रिया द्वारा सुधारा जा सकता है । मानवीय पूंजी निर्माण की यह प्रक्रिया, प्रति व्यक्ति अधिक उत्पादन और अर्थव्यवस्था के विकास के उच्च दर की ओर ले जा सकती है ।

5. जनसंख्या बड़े हुए उत्पादन की ओर ले जाती है (Population Leads to Greater Production):

जब तक पूंजी एवं भूमि साधनों की उपलब्धता की तुलना में जनसंख्या का आकार छोटा होता है, लोगों की संख्या में कोई भी वृद्धि बड़े उत्पादन का कारण बनेगी । बड़ी श्रम शक्ति की उपलब्धता से अधिक बड़ा और अधिक गहन श्रम विभाजन सम्भव होगा जिसके फलस्वरूप उत्पादन बढ़ेगा । इससे विशेषज्ञता में भी विस्तार होगा, जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन की बाहरी एवं आन्तरिक मितव्ययताएं प्राप्त होंगी ।

6. जनसंख्या नये ज्ञान के सर्जक के रूप में (Population as a Creator of New Knowledge):

साइमन कुज़नेटस के अनुसार- “आर्थिक उत्पादन का विकास परीक्षित ज्ञान के भण्डार की वृद्धि का फलन है ।” अधिक बड़ी जनसंख्या का अर्थ होगा कि इन सर्जक लोगों की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ नये ज्ञान के भण्डार में भी वृद्धि होगी और समाज अधिक उत्पादन कर सकेगा ।

7. तकनीकों और उत्पादकता में सुधार (Improvement in Techniques and Productivity):

माना जाता है कि जनसंख्या में वृद्धि के कारण तकनीकों और उत्पादकता में सुधार होता है । प्रशिक्षित एवं दक्ष श्रमशक्ति को मानवीय पूंजी समझा जाता है । जनशक्ति की गुणवत्ता में सुधार को किसी देश के आर्थिक विकास का मुख्य सहयोगी माना जाता है । यह मानवीय निपुणताओं के संवर्धन में सहायक है ।

(ख) आर्थिक विकास के रोधी कारक के रूप में जनसंख्या (Population as a Retarding Factor to Economic Growth):

जनसंख्या को किसी देश के आर्थिक विकास के मार्ग में सकारात्मक रुकावट माना जा सकता है । इसी प्रकार एच. डब्ल्यू. सिंगर ने कहा है कि जनसंख्या वृद्धि का आर्थिक विकास दर पर ऋणात्मक प्रभाव होता है ।

अपने मत के समर्थन में उसने आर्थिक विकास दर, शुद्ध बचतों की दर, निवेश की उत्पादकता और जनसंख्या की वृद्धि की दर के बीच सम्बन्ध के प्रदर्शन के लिये निम्नलिखित समता प्रस्तुत की है:

D = SP – r

जहां-

D = आर्थिक विकास की दर

S = शुद्ध बचतों का दर

P = नये निवेश की उत्पादकता

r = जनसंख्या में वृद्धि की दर ।

उपरोक्त समीकरण में, r एक (-) ऋणात्मक चिन्ह के साथ नकारात्मक रूप में प्रकट होता है । यह उस विचार का प्रमाण है कि जनसंख्या आर्थिक विकास के मार्ग में एक बाधा है ।

निम्नलिखित कारणों से जनसंख्या आर्थिक विकास के मार्ग में एक प्रतिबन्धक कारक हो सकती है:

1. जनसंख्या पूंजी निर्माण के दर को कम करती है (Population Reduces the Rate of Capital Formation):

अल्प विकसित देशों में जनसंख्या के सर्जन का निर्धारण पूंजी निर्माण की वृद्धि के लिये किया जाता है । इन देशों में उच्च जन्म दर और निम्न प्रत्याशित आयु के कारण आश्रितों की प्रतिशतता बहुत ऊंची होती है । अल्प विकसित देशों में जनसंख्या का लगभग 40-50 प्रतिशत भाग गैर-उत्पादक आयु वर्ग में होता है जो केवल उपभोग करता है तथा कुछ भी उत्पादन नहीं करता ।

स्पैन्गलर के अनुसार, औद्योगिक देशों में प्रत्येक तीन श्रमिकों के पीछे दो आश्रित होते है । इस कारण भारी निर्भरता का बोझ लोगों की बचत की क्षमता को कम करता है और पूंजी निर्माण की दूर को भी कम करता है । एक अन्य प्रकार से पूंजी निर्माण और भी कम हो जाता है ।

अल्प विकसित देशों में जनसंख्या का तीव्र विकास प्रति व्यक्ति पूंजी की उपलब्धता को कम करता है जिससे श्रम शक्ति की उत्पादकता कम हो जाती है । फलत: उनकी आय कम हो जाती है और उनकी बचत की क्षमता कम हो जाती है जिससे पूंजी निर्माण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है ।

2. जनसंख्या की उच्च दर के लिये अधिक निवेश की आवश्यकता होती है (Higher Rate of Population Requires More Investment):

आर्थिक रूप में पिछड़े हुये देशों में जहां जनसंख्या वृद्धि की दर ऊंची होती है, वहां निवेश की आवश्यकताएं वहां की निवेश क्षमताओं से अधिक होती हैं । तीव्रतापूर्वक बढ़ती हुई जनसंख्या जनसांख्यिक निवेश की आवश्यकताओं को बढ़ाती हैं जबकि साथ ही लोगों की बचत की क्षमता की कम कर देती है ।

यह निवेश आवश्यकताओं और निवेश योग्य कोषों की उपलब्धता के बीच गम्भीर असन्तुलन उत्पन्न करता है । इसलिये, ऐसे निवेश की मात्रा का निर्धारण किसी अर्थव्यवस्था में जनसंख्या वृद्धि के दर द्वारा किया जाता है ।

अन्य शब्दों में, यदि जनसंख्या वृद्धि का दर ऊँचा है, इसके कुल निवेश का बड़ा भाग जनसांख्यिक निवेश द्वारा समाविष्ट कर लिया जायेगा और आर्थिक निवेश के लिये बहुत थोड़ा बचेगा अर्थात् उस निवेश के लिये जो लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा करता है ।

3. यह प्रति व्यक्ति पूंजी की उपलब्धता को कम करता है (It Reduces per Capita Availability of Capital):

अल्प विकसित देशों में जनसंख्या का आकार प्रति व्यक्ति पूंजी की उपलब्धता को भी कम करता है । यह अल्प विकसित देशों के सम्बन्ध में सत्य है जहां पूंजी दुर्लभ है और इसकी पूर्ति लोचहीन है ।

तीव्रतापूर्वक बढ़ती हुई जनसंख्या प्रति श्रमिक पूंजी की उपलब्धता में क्रमिक गिरावट लाती है । इससे उत्पादकता गिरती है और घटते प्रतिफल आरम्भ हो जाते हैं ।

4. विस्तृत जनसंख्या बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न करती है (Larger Population Creates the Problem of Unemployment):

जैसे ही जनसंख्या तीव्रता से बढ़ती है तो श्रमिकों की बड़ी संख्या श्रम बाजारों में आती है तथा उन सबको रोजगार उपलब्ध करवाना सम्भव नहीं हो पाता । वास्तव में, अल्प विकसित देशों में, रोजगार खोजने वालों की संख्या इतनी तीव्रता से बढ़ रही है कि नियोजित विकास की ओर सभी प्रयत्नों के बावजूद, सभी को रोजगार उपलब्ध करवाना सम्भव नहीं हो सका ।

बेरोजगारी, अल्प रोजगार और अदृश्य बेरोजगारी इन देशों के सामान्य लक्षण हैं । तीव्रतापूर्वक बढ़ती हुई जनसंख्या, आर्थिक रूप में पिछड़े हुये देशों के लिये उनकी बेरोजगारी की समस्याओं के समाधान को लगभग असम्भव बना देती है ।

5. प्रति व्यक्ति आय पर विपरीत प्रभाव (Adverse Effect on per Capita Income):

तीव्रता से बढ़ती हुई जनसंख्या किसी अर्थव्यवस्था की प्रति व्यक्ति आय को सीधे प्रभावित करती है । ”आय के आशावादी स्तर” तक, जनसंख्या की वृद्धि प्रति व्यक्ति आय का बढ़ाता है परन्तु उसके पश्चात् इसे कम करना आवश्यक है ।

एक प्रकार से जब तक जनसंख्या वृद्धि की दर आर्थिक विकास की दर से नीचे रहती है प्रति व्यक्ति आय बढ़ेगी परन्तु यदि जनसंख्या वृद्धि की दर आर्थिक विकास की दर से बढ़ जाती है, जैसा कि अल्प विकसित देशों में प्राय: होता है, तो प्रति व्यक्ति आय अवश्य घटेगी ।

6. तीव्र जनसंख्या वृद्धि खाद्य पदार्थों की समस्याएं उत्पन्न करती है (Rapid Population Growth Creates Food Problems):

बढ़ी हुई जनसंख्या का अर्थ है ‘खाने के लिये अधिक मुँह’ जो उपलब्ध खाद्य पदार्थों के भण्डार पर दबाव डालते हैं । यही कारण है कि तीव्रता से बढ़ती हुई जनसंख्या वाले अल्प विकसित देशों में खाद्य पदार्थों के अभाव की समस्या रहती है ।

कृषि उत्पादन की वृद्धि से सम्बन्धित सभी प्रयत्नों के बावजूद वह अपनी बढ़ती हुई जनसंख्या की आहार आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाते तथा इस अन्तराल को भरने के लिये नियमित रूप में यू. एस. ए., कैनेडा, आस्ट्रेलिया और अन्य देशों से अनाज आयात करना पड़ता है । आहार की दुर्लभता आर्थिक विकास पर विपरीत प्रभाव डालती है ।

7. पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव (Adverse Effect on Environment):

तीव्रता से बढ़ती हुई जनसंख्या पर्यावरण में परिवर्तन लाती है । तीव्र जनसंख्या वृद्धि के कारण बेरोजगार पुरुषों और स्त्रियों की संख्या में अत्याधिकवृद्धि हुई है तथा इस कारण से बहुत से लोगों को पारिस्थितिक रूप में संवेदनशील क्षेत्रों की ओर धकेला जाता है जैसे पर्वतीय क्षेत्रों और ऊष्ण कटिबन्धीय वनों की ओर ।

इस कारण वनों को काट कर खेती के लिये प्रबन्ध किया जाता है जिस कारण गम्भीर पर्यावरणीय परिवर्तन होते हैं । इसके अतिरिक्त, बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण बहुत से लोग औद्योगिक रूप में उन्नत शहरी क्षेत्रों में जा बसते हैं जिस कारण शहरों में गम्भीर वायु जल और शोर प्रदूषण फैल जाता है ।

8. तीव्र जनसंख्या वृद्धि सामाजिक संरचना को कम कर देती है (Rapid Population Growth Declines Social Infrastructure):

भारत जैसा कल्याणकारी राज्य जो लोगों की सामाजिक आवश्यकताओं को पर्याप्त रूप में पूरा करने के लिये वचनबद्ध है, वहां सरकार को मौलिक सुविधाएं जैसे शिक्षा, आवास, चिकित्सक सहायता उपलब्ध करवाने के लिये बहुत सा व्यय करना पड़ता है ।

वहां जनसंख्या में तीव्र वृद्धि इस आर्थिक बोझ को और भी बढ़ा देती है । बढ़ी हुई जनसंख्या उत्पादक अभिकर्त्ता के रूप में कार्य नहीं कर पाती और जनसंख्या की गुणवत्ता में सुधार को कम कर देती है ।

स्कूल जाने वाले आयु वर्ग के बच्चों की संख्या में वृद्धि और श्रम शक्ति में नये प्रवेश करने वालों की बड़ी संख्या शिक्षा और प्रशिक्षण सुविधाओं पर भारी दबाव डालती है जिससे शिक्षा की गुणवत्ता के सुधार में बाधा पड़ती है । इसी प्रकार घनी जनसंख्या और जनसंख्या में तीव्र वृद्धि लोगों के स्वास्थ्य सुधार को समस्या को और भी बिगाड़ देती है ।

9. आत्म-निर्भरता के मार्ग में बाधा (Obstacle to Self-Reliance):

जनसंख्या की अधिकता आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के मार्ग में बाधा है क्योंकि असंख्य लोगों की खाद्य पदार्थों को आवश्यकताओं की व्यवस्था करनी पड़ती है । इसके अतिरिक्त निर्यात आधिक्य को भी बहुत कम करना पड़ता है और निर्यात में कमी के कारण आयतों का भुगतान करना कठिन हो जाता है तथा विदेशी सहायता पर निर्भर होना पड़ता है । अत: जनसंख्या पर नियन्त्रण किये बिना आत्मनिर्भरता का लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सकता ।

10. कृषि विकास की घटती हुई प्रवृत्ति (Declining Trend of Agriculture Development):

अल्प विकसित देशों में लोग अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं तथा कृषि उनका मुख्य व्यवसाय है । यदि जनसंख्या बढ़ती है तो भूमि-व्यक्ति अनुपात बिगड़ जाता है जिस कारण जोत-क्षेत्र का आकार कम हो जाता है । जो मशीनों का उपयोग असम्भव बना देता है ।

इससे कृषि क्षेत्र में अदृश्य बेरोजगारी और अल्प बेरोजगारी उत्पन्न होती है जिससे भीड़ बढ़ जाती है तथा कृषि एवं अन्य सामाजिक गतिविधियों के लिये भूमि की कमी हो जाती है । इस प्रकार जनसंख्या में वृद्धि कृषि विकास के मार्ग में बाधा बनती है और विकासशील देशों में अन्य अनेक समस्याएं उत्पन्न करती है ।


Essay # 4. जनसंख्या वृद्धि का कोले-हूवर मॉडल (Coale-Hoover Model on Population Growth):

जनसंख्या वृद्धि और आर्थिक विकास के बीच सम्बन्ध का परीक्षण कोले और हूवर ने बीसवीं शताब्दी के पचास के दशक के अन्तिम वर्षों में अपने विद्वतापूर्ण पुस्तक “कम आय वाले देशों में जनसंख्या वृद्धि और आर्थिक विकास” (Population Growth and Economic Development in Low Income Countries) में किया ।

उन्होंने अर्थव्यवस्था की तुलना दो समय पथों पर की-एक अधिक उपजाऊपन सहित और दूसरा कम उपजाऊपन के साथ । अपने प्रतिदर्श आर्थिक-जनसांख्यिक मॉडल में उन्होंने पाया कि निवेश का अंश अनुत्पादक प्रयोग की ओर भी मोड़ दिया जायेगा ।

अन्य शब्दों में, पूंजी के गहरा करने के स्थान पर पूंजी का विस्तार (विशेषतया, सामाजिक ऊपरी खर्चों के रूप में) होगा । इस प्रकार हूवर ने निष्कर्ष निकाला कि पहले 15 वर्षों के समय में जब उपजाऊपन के अन्तर का श्रम के आकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, कुल GNP और प्रति व्यक्ति GNP दोनों ही उच्च उपजाऊपन के अन्तर्गत निम्न उपजाऊपन की तुलना में कम होगी ।

दीर्घकाल में, क्योंकि उच्च उपजाऊपन के अन्तर्गत श्रम-शक्ति तीव्रता से बढ़ती है, उत्पादन भी तीव्रता से बढ़ने की प्रवृत्ति दर्शाता है । इस तथ्य को मान्यता देते हुए कोले और हूवर मॉडल प्रस्तावित करता है कि GNP उच्च उपजाऊपन के अन्तर्गत तीव्रता से बढ़ेगी, उसी समय यह जनसंख्या वृद्धि पर्याप्त क्षतिपूर्ति नहीं कर पायेगी और इस प्रकार GNP की प्रति व्यक्ति वृद्धि उच्च उपजाऊपन के अन्तर्गत निम्न उपजाऊपन की तुलना में निम्न होगी ।

सैद्धान्तिक रूप में कोले और हूवर मॉडल परिष्कृत प्रतीत हो सकते हैं, परन्तु अनेक देशों से उपलब्ध प्रमाण अनेक सन्देह उत्पन्न करते हैं । यह सन्देह बचतों के कल्पित विस्तार और निवेश प्रभावों के संघटन के सम्बन्ध में है ।

उदाहरणतया- भारत में उच्च उपजाऊपन के बावजूद बचतों की दर में वृद्धि हुई है और इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि उपजाऊपन के निम्न होने पर भी यह और भी ऊंचे होते हैं ।

भूतकाल में, निर्धन लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने वाले कार्यक्रमों की ओर कोई साधन निर्दिष्ट नहीं किये गये जिनके बीच उपजाऊपन ऊंचा होता है । यहां तक कि सातवीं योजना में, निर्धन लोगों के कल्याण सम्बन्धी बहुत आडम्बर के बावजूद, योजना के कुल व्यय का केवल 5.6 प्रतिशत भाग ‘न्यूनतम आवश्यकताएं कार्यक्रम’ के लिये उपलब्ध करवाया गया ।


Essay # 5. राबर्ट कैसेन के जनसंख्या के  प्रति विचार (Views of Robert Cassen on Population):

राबर्ट कैसेन के लिये, कोले-हूवर मॉडल में सम्पूर्ण समष्टि आर्थिक प्रभावों के अतिरिक्त समस्याएं अधिक महत्व रखती है । यद्यपि वह सोचते हैं कि इन अर्थशास्त्रियों द्वारा प्रस्तुत तर्क पूरी तरह से गलत नहीं है ।

कैसेन को विश्वास है कि भारत खाद्य पदार्थों की पूर्ति बढ़ा कर तीव्रतापूर्वक बढ़ती हुई जनसंख्या के लिये आहार की व्यवस्था करने में सक्षम है । के. एस. पारिख के अध्ययन के सन्दर्भ में देखा गया कि जनसंख्या की समस्या वर्ष 2001 तक जनसंख्या वृद्धि की उच्चतम प्रकरणों के अन्तर्गत प्रबन्ध योग्य है ।

एम.एस. स्वामीनाथन का अध्ययन इस विचार का समर्थन नहीं करता परन्तु अनुसन्धान और निवेश के लिये बड़े प्रयत्न का प्रस्ताव करता है । यद्यपि कैसेन का मत है कि कृषि उत्पादन को बढ़ाने के प्रयत्न के लिये साधनों की आवश्यकता होगी, जिनका, अन्यथा निर्माण क्षेत्र में प्रयोग हो सकता है जहां उच्च उत्पादकता है ।

वह मानते हैं कि अभी तक वे साधन जिन्हें कृषि में निवेश किया गया है, कृषि की पिछली उपेक्षा के कारण सम्भव है किसी अन्य स्थान पर उच्च प्रतिफल प्राप्त न कर पायें, परन्तु उसे विश्वास है कि भविष्य में ऐसी स्थिति नहीं होगी ।

उसने कहा- “अन्त में वह बिन्दु निश्चित रूप प्राप्त हो जायेगा जहां अतिरिक्त सदस्यों को आहार उपलब्ध करवाने की आवश्यकता उच्च प्रतिफल वाले निर्माण…..के स्थान पर निम्न प्रतिफल वाले कृषि क्षेत्र में प्रयोग के लिये विवश करेगी जब तक की नई तकनीक चित्र को परिवर्तित नहीं करती ।”

कैसेन के अनुसार पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था में जनसंख्या की तीव्र वृद्धि व्यवसायिक वितरण में परिवर्तन रोकती है । “जब तक रोजगार की रचना आर्थिक नीति का महत्त्वपूर्ण लक्ष्य रहता है क्योंकि अधिकांश कम आय वाली अर्थव्यवस्थाएं बड़े स्तर की बेरोजगारी का जोखिम नहीं उठा सकती । इन देशों में तीव्र जनसंख्या वृद्धि परम्परावादी अर्थव्यवस्था के प्रभुत्व वाली अर्थव्यवस्था के निर्माण क्षेत्र में परिवर्तन को स्थगित कर देती है । यह केवल बढ़ती हुई जनसंख्या की कृषि आवश्यकताओं के कारण नहीं बल्कि कृषि और निर्माण क्षेत्र में रोजगार की रचना की सापेक्ष निवेश लागतों के कारण भी है ।”

कोले और हूवर की भांति कैसेन भी मानते हैं कि किसी भी बड़ी श्रम शक्ति वाली अर्थव्यवस्था की उत्पादक सम्भाव्यता बड़ी होगी और उत्पादन जनसंख्या की वृद्धि के साथ बढ़ने की प्रवृत्ति प्रदर्शित करेगा, परन्तु उनका दृढ़ विश्वास था कि जनसंख्या वृद्धि के साथ प्रति व्यक्ति उत्पादन नहीं बढ़ेगा ।

जनसंख्या वृद्धि को अर्थव्यवस्था के लिये गुणकारी बताने वाले तर्कों को अस्वीकार करते हुये उन्होंने इसे वर्तमान भारत के लिये अप्रासंगिक बताते हुए कहा कि ”जनसंख्या और श्रम शक्ति की निरन्तर वृद्धि, आय में बढौतरी और निर्धनता के विलोपन के मार्ग में बाधा है ।”

अत: यह स्पष्ट है कि जनसंख्या में वृद्धि भारत के आर्थिक विकास के मार्ग में एक बाधा है परन्तु यह आवश्यक रूप में आर्थिक प्रगति के लिये अति महत्वपूर्ण प्रतिबन्ध नहीं है ।


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