भूस्खलन पर निबंध: अर्थ और प्रकार | Essay on Landslides: Meaning and Types in Hindi.

Essay # 1. भू-स्खलन का अर्थ (Meaning of Landslides):

ठोस चट्टान अथवा शैल यदि अचानक ढलान पर फिसल जायें तो उसको भू-स्खलन कहते हैं । भू-स्खलन एक विश्वव्यापी प्रक्रिया है जो छोटे-बड़े पैमाने पर विश्व के सभी देशों में प्रायः होती रहती है, परंतु बड़े पैमाने पर भू-स्खलन की संख्या कम है जो विशेष परिस्थितियों में होते हैं । भू-स्खलन चंद सेकंडों में हो सकता है तथा इसमें कुछ दिन और महीने भी लग सकते हैं ।

बहुत-से भू-स्खलन नदियों के जलमार्गों के रास्ते में रोधक बनकर बड़े जलाशयों को जन्म देते हैं, जो अस्थाई होती हैं । कुछ समय के बाद ऐसे बाँधों के ऊपर से पानी बहने लगता है और बाँधो को बहा ले जाता है तथा इन अस्थाई जलाशयों अथवा झीलों को समाप्त कर देता है ।

भू-स्खलन अन्य भौतिक आपदाओं जैसे भूकंप, ज्वालामुखी, सुनामी की भांति विनाशकारी नहीं होते, फिर भी यदि किसी बस्ती अथवा नगर या टाऊन के पास भू-श्चलन हो जाये तो भारी जान-माल का नुकसान हो सकता है । भू-स्खलन की तीव्रता चट्टानों की संरचना तथा सघनता पर निर्भर करता है । शैल-बहाव, कीचड-बहाव, चट्टानी टुकड़ों का गिरना, मलवा का खिसकना भू-स्खलन के कुछ उदाहरण हैं ।

Essay # 2. भू-स्खलन के प्रकार (Types of Landslides):

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यूँ तो किसी भी ढलान पर चट्टानों के खिसकने को भू-स्खलन कहते हैं, फिर भी भू-आकृति विज्ञान के विशेषज्ञ भू-स्खलन को निम्न वर्गों में विभाजित करते हैं:

(i) चट्टानों का या चट्टानों के टुकड़ों का गिरना (Rock Fall):

चट्टानों का गिरना एक तीव्रगति का भूस्खलन है, जिसमें चट्टान अथवा चट्टानी टुकड़े तीव्र गति से ढलान के साथ नीचे की ओर गिरते या लुढकते हैं । इस प्रकार के भूस्खलन में अलग-अलग चट्टानी टुकड़े नीचे की ओर गिरते हैं । ढलान के आधार पर मलवा अथवा टालस इकट्ठा हो जाता है ।

(ii) मलवा स्लाइड (Debris Slides):

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इस प्रकार के भू-स्खलन में तुलनात्मक रूप से सूखी चट्टानों के टुकड़े एवं मिट्टी नीचे की ओर खिसकते हैं ।

(iii) कीचड्/मड प्रवाहित होना (Mud-Flow):

इस प्रकार के भू-स्खलन में चट्टानों के टुकड़े, मलवा, मिट्टी एवं पानी इत्यादि मिश्रित होते हैं जो नीचे की ओर खिसकते हैं । इस प्रकार के भू-स्खलन की गति ढलान की तीव्रता एवं कीचड़ की तरलता पर निर्भर करता है । कीचड़ प्रवाह से बहुत-सी बस्तियाँ नष्ट हो सकती हैं ।

इस प्रकार के भू-स्खलन में यदि जल की मात्रा मलवे में अधिक हो तो बहाव की गति होती है जिससे भारी जान व माल को नुकसान हो जाता है ।

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(iv) खड़े ढलान से चट्टानों का खिसकना (Rockfall from Steep Cliff):

खड़े-ढलान से गिरने वाली चट्टानों अथवा चट्टानी टुकड़ों को लुढकने को रॉक-फॉल कहते हैं । जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग पर खूनी नाले में रामसु बस्ती के पास इस प्रकार का भू-स्खलन होता रहता है ।

(v) राक-स्लाइड (Rockslide):

यदि किसी पहाडी ढलान पर कोई चट्टान अपने आधार से अलग होकर नीचे की ओर खिसकने लगे तो उसको रॉक-स्लाइड कहते है ।

(vi) चदृानी धँसाव (Slump):

इस प्रकार के भू-स्खलन में मलवा एक वक्र रेखा की भांति नीचे की ओर खिसकता है और मलवा नीचे ढलान के आधार पर जाकर एकत्रित हो जाता है ।

(vii) मृदा का रेंगना (Soil Creep):

यह एक बहुत मद गति वाला भूस्खलन है । इसमें मृदा के कण ढलान पर धीरे नीचे की ओर खिसकते रहते हैं । दिन में तापमान की वृद्धि तथा रात में तापमान के कमी होने के कारण चहानों के कण अलग होते रहते हैं । यह प्रक्रिया चट्टानों के दिन में फैलने एवं रात में सुकड़ने के कारण होती है । इस प्रकार के भू-स्खलन के लिये बहुत-से उपाय सुझाये जाते हैं, ढलानों को चबूतरों में काटना भी एक प्रभावशाली तरीका है ।

(viii) ब्लॉक-स्लाइड (Block-Slide):

इस प्रकार के भू-स्खलन में पूरा ब्लॉक ही नीचे की ओर खिसकता है ।

(ix) धरती-खिसकना अथवा अर्थ-क्रीप (Earth Creep):

धरातल का ढलान पर नीचे खिसकने का मुख्य कारण मलवे में जल-मात्रा का अधिक होना है । इसमें भूमिगत जल की भी विशेष भूमिका होती है । यदि ऐसे स्थान पर ढलान को काटकर सड़क का निर्माण किया जाये तो धरती नीचे की ओर खिसकने लगती है ।

(x) धँसाव (Subsidence):

इस प्रकार के भू-स्खलन में धरती नीचे की ओर धँसने लगती है । भूपटल से अधिक जल का निकालना, तेल निकालने तथा खनन के कारण इस प्रकार का धँसाव संभव होता है । इस प्रकार का भू-स्खलन प्रायः कार्स्ट प्रदेशों में देखा जा सकता है ।

Essay # 3. भू-स्खलन आपदा बचाव के उपाय (Remedial Steps for Landslides):

भू-स्खलन अंतर्जात तथा बर्हिजात बालों के कारण आते हैं ।

ये प्रायः अकस्मात् घटित होते हैं जिस कारण इनके बारे में भविष्यवाणी करना कठिन कार्य होता है फिर भी कुछ प्रभावशाली उपाय जो इस आपदा के प्रतिकूल प्रभाव को कम कर सके निम्नलिखित हैं:

(i) भू-स्खलन प्रभावित क्षेत्रों के मानचित्र तैयार करना (Mapping of the Landslide Prone Areas):

भू-स्खलन आपदा के प्रकोप को कम करने के लिये, ऐसे क्षेत्रों के मानचित्र तैयार करना अनिवार्य हैं जहाँ यह आपदा प्रायः आती है । ऐसे क्षेत्रों में जंगलों को काटने तथा भवन निर्माण एवं पशु-चरन (Grazing) पर पाबंदी लगाई जानी चाहिए ।

(ii) मजबूत-दीवार निर्माण करना (Retaining Walls):

जिस ओर भू-स्खलन का मलवा लुढ़क रहा हो उस ओर मजबूत मजबूत-दीवार का निर्माण करना चाहिए । ध्यान रहे ऐसी मजबूत दीवार के निर्माण के कारण प्राकृतिक जल अपवाह में रुकावट उत्पन्न न हो ।

(iii) इंजीनियरिंग संरचनाएँ (Engineering Structures):

विभिन्न प्रकार की इंजीनियरिंग उपाय करके भी भू-स्खलन आपदा के प्रकोप को कम किया जा सकता है । जैसे पत्थरों और लोहे के तारों के जाल को भू-स्खलन के स्थान पर लगाना ।

(iv) जल अपवाह नियंत्रण (Surface Drainage Control):

यदि जलवाह ठीक प्रकार से हो तो चट्टानों में जल-रिसाव कम होगा जिसके कारण भू-स्खलन की संभावना कम होगी ।

(v) वृक्षारोपण (Planting of Trees):

वृक्षारोपण, भूस्खलन रोकने का एक प्रभावशाली तरीका है । वृक्षों की जड़ों से चट्टानों में मजबूती आती है तथा मिट्टी अपरदन भी कम होता है ।

(vi) भूमि का वैज्ञानिक उपयोग (Scientific Use of Land):

पर्वतीय भागों तथा नदियों के पर्वतीय क्षेत्रों में वैज्ञानिक विधियों से भूमि उपयोग करना चाहिए । भू-स्खलन के बारे में लोगों में जागरूकता उत्पन्न करने की आवश्यकता है तथा इस बारे में ग्रामीण स्तर पर संगोष्ठी भी करने की आवश्यकता है ।

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