वित्तीय प्रबंधन पर निबंध: परिभाषा और लक्षण | Essay on Financial Management: Definition and Characteristics in Hindi.

Essay # 1. वित्तीय प्रबन्ध का अर्थ (Meaning of Financial Management):

प्रत्येक व्यावसायिक क्रिया का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सम्बन्ध वित्त से होता है । उत्पादन, विपणन, क्रय आदि क्रियाओं में वित्तीय पहलू का समावेश होता है । वित्त की समस्याओं का घनिष्ठ सम्बन्ध क्रय, उत्पादन और विपणन की समस्याओं से होता है । इस प्रकार सभी विभागों की क्रियाओं में वित्त की समस्या किसी न किसी रूप में निहित होती है ।

वित्तीय प्रबन्ध उन समस्त गतिविधियों का समावेश करता है जो भावी फण्ड बहाव की मात्रा एवं समय सम्बन्धी निर्णयों को प्रभावित करती है । वित्त, उत्पादन और विपणन के बीच वही कार्य करता है जो मशीन को चलाने में तेल पदार्थ का होता है । उत्पादन और विपणन सम्बन्धी निर्णयों में कुछ ऐसे भी पहलू होते है जो वित्तीय प्रबन्ध के क्षेत्र में नहीं आते, यद्यपि वे वित्त में प्रभावित करते हैं ।

उत्पादन की दशाओं में परिवर्तन या व्यवसाय के प्रबन्ध में कर्मचारियों की सहभागिता या विपणन और विज्ञापन तकनीकी में परिवर्तन आदि ऐसी समस्याएँ है जो मूलतः उत्पादक प्रबन्ध, कर्मचारी प्रबन्ध, विपणन प्रबन्ध के क्षेत्र में ही शामिल की जाएगी ।

Essay # 2. वित्तीय प्रबन्ध की परिभाषा (Definition of Financial Management):

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कुछ प्रमुख वित्तवेत्ताओं द्वारा दी गयी वित्तीय प्रबन्ध की परिभाषा निम्नलिखित हैं:

(1) जे.एल. मैसी (J.L. Massie) के मतानुसार – ”वित्तीय प्रबन्ध एक व्यवसाय की वह संचालनात्मक प्रक्रिया है जो कुशल संचालनों के लिये आवश्यक वित्त को प्राप्त करने तथा उसका प्रभावशाली ढंग से उपयोग करने के लिये उत्तरदायी होती है ।”

(2) जेएफ. ब्रेडले (J.F. Bradly) के शब्दों में – ”वित्तीय प्रबन्ध व्यावसायिक प्रबन्ध का वह क्षेत्र है जिसका सम्बन्ध पूंजी के विवेकपूर्ण उपयोग एवं पूजी साधनों के सतर्क चयन से है ताकि व्यय करने वाली संस्था अपने उद्देश्यों की प्राप्ति की ओर बढ सके ।”

(3) हॉवर्ड एवं उपटन (Howard and Upton) के शब्दों में – ”वित्तीय प्रबन्ध से आशय, नियोजन एवं नियन्त्रण कार्यों को वित्त कार्य पर लागू करना है ।”

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(4) नियरमैन एवं स्मिथ (Bierman and Smith) के मतानुसार – ”वित्तीय प्रबन्ध पूँजी के स्रोतों का निर्धारण करने तथा उसके अनुकूलतम उपयोग का मार्ग ढूँढने वाली प्राविधि है ।”

Essay # 3. वित्तीय प्रबन्ध की विशेषताएं (Characteristics of Financial Management):

वित्तीय प्रबन्ध के सम्बन्ध में आधुनिक विचारधारा तथा कुछ प्रमुख वित्त विशेषज्ञों द्वारा दी गयी परिभाषाओं के आधार पर निम्न विशेषताओं को देखा जा सकता है:

(1) उच्च प्रबन्धकीय निर्णयों में सहायक (Helpful in Top Managerial Decisions):

वित्तीय प्रबन्ध की आधुनिक विचारधारा के आधार पर वित्तीय प्रबन्धक उपक्रम के सर्वोत्तम प्रबन्ध की निर्णय लेने में सहायता पहुँचाता है । दूसरे अर्थों में, वित्तीय प्रबन्ध को सर्वोच्च प्रबन्ध की सफलता के लिए महत्वपूर्ण भूमिका प्राप्त होती है ।

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(2) समन्वय का आधार (Basis of Co-Ordination):

किसी भी उपक्रम में वित्तीय प्रबन्धक अन्य विभागों के सहयोग तथा समन्वय के बगैर सफलता प्राप्त नहीं कर सकता । अतः आधुनिक युग में वित्तीय प्रबन्धक उपक्रम के सभी कार्यों से समन्वय स्थापित कराता है ।

(3) केन्द्रीय प्रकृति (Centralized Nature):

व्यावसायिक प्रबन्ध के समस्त क्षेत्रों में वित्तीय प्रबन्ध ही एक ऐसा क्षेत्र है जिसकी प्रकृति मूलतः केन्द्रीयकृत है । आधुनिक औद्योगिक उपक्रम में विपणन में उत्पादन कार्यों का विकेन्द्रीकरण तो सम्भव है किन्तु वित्त कार्य का विकेन्द्रीकरण व्यावहारिक दृष्टि से वांछनीय नहीं होता है, क्योंकि वित्तीय समन्वय एवं नियन्त्रण की स्थिति केन्द्रीयकरण के द्वारा ही स्थापित की जा सकती है । इस स्थिति को स्थापित किये बिना व्यवसाय के उद्देश्यों की पूर्ति सम्भव नहीं होगी ।

(4) कार्य मूल्यांकन का मापदण्ड (Measure of Performance):

वित्तीय निर्णय आय की मात्रा तथा व्यावसायिक जोखिम इन दोनों को प्रभावित करते हैं । दूसरे शब्दों में, नीति विषयक, निर्णय जोखिम एवं लाभदायकता पर प्रभाव डालते हैं तथा ये दोनों कारक सम्मिलित रूप में फर्म के मूल्य को निर्धारित करते हैं । अतः वित्तीय परिणामों के आधार पर ही व्यवसाय की कार्य निष्पत्ति का मूल्यांकन किया जाता है ।

(5) विश्लेषणात्मक एवं वृहद स्वरूप (Analytical and Wider Form):

वित्तीय प्रबन्धक की आधुनिक विचारधारा विश्लेषणात्मक एवं अधिक व्यापक है । इसके अन्तर्गत आन्तरिक एवं बाह्य परिस्थितियाँ सभी पर ध्यान देकर श्रेष्ठ वित्तीय प्रबन्ध पर बल दिया जाता है ।

(6) सतत् प्रशासनिक प्रक्रिया (Continuous Administrative Function):

परम्परागत रूप से व्यवसाय में वित्तीय प्रबन्ध यान्त्रिक कार्य था, जबकि आधुनिक रूप में वित्तीय प्रबन्ध का कार्य एक सतत् प्रशासनिक प्रक्रिया है क्योंकि व्यवसाय के सफल संचालन के लिये कोषों के लाभपूर्ण एवं सम्यक् उपयोग का दायित्व भी अब इस क्षेत्र की परिधि में आता है फलस्वरूप वित्तीय प्रबन्धक की भूमिका के महत्व को प्रत्येक व्यावसायिक संगठन में मान्यता दी जाने लगी है ।

(7) व्यावसायिक प्रबन्ध का एक महत्वपूर्ण अंग (An Important Organ of Business Management):

आधुनिक व्यावसायिक प्रबन्ध में वित्तीय प्रबन्धक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । व्यवसाय की सभी गतिविधियों में वित्तीय प्रबन्धक व्यवसाय निर्णयों में आधारभूत भूमिका निभाता है । फलस्वरूप वित्तीय प्रबन्ध व्यावसायिक प्रबन्ध का एक अभिन्न अंग बन गया है ।

Essay # 4. वित्तीय प्रबन्ध का महत्व (Importance of Financial Management):

हसबंड एवं डोकरे की राय में – ”विभिन्न आर्थिक एवं व्यावसायिक गतिविधियों को एक सूत्र में बाँधने के लिये वित्तीय आवश्यकता होती है ।”  इसी कारण वित्तीय प्रबन्ध, व्यवसाय प्रबन्ध का एक प्रमुख अंग बन गया है ।

जे.एफ. ब्रेडले का तर्क है कि – ”वित्तीय प्रबन्ध व्यावसायिक प्रबन्ध का वह क्षेत्र है जिसका सम्बन्ध पूजी का सम्यक प्रयोग एवं पूजी के साधनों के सर्तकतापूर्ण चयन से है, ताकि व्यवसाय से इसके उद्देश्यों की पूर्ति की दिशा में निर्देशित किया जा सके ।”

वित्तीय प्रबन्ध के महत्व और उपयोगिता का अध्ययन निम्न शीर्षकों में किया जा सकता है:

(1) कृषि के क्षेत्र में महत्व (Importance in Agriculture Sector):

उन्नत कृषि के लिये कृषि क्षेत्र में भी वित्तीय प्रबन्ध की महत्वपूर्ण भूमिका है, क्योंकि आज कृषकों को अच्छे बीज, रसायन खादों और कृषि यन्त्रों के सन्दर्भ में चुनाव हेतु वित्तीय परामर्श जरूरी होता है ।

(2) वित्तीय संस्थओं के लिये महत्व (Importance for Financial Institutions):

अभिगोपकों विनियोग बैंकों एवं प्रन्यास कम्पनियों के व्यवस्थापकों के लिए प्रस्तुत विषय का व्यापक शान अनिवार्य है । इसके अतिरिक्त व्यापारिक बैंकों एवं अन्य सभी प्रकार की वित्तीय संस्थाओं के प्रबन्धकों को भी विषय का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए । यही कारण है कि प्रायः इस प्रकार की संस्थाएँ अपने लिए ऐसे वित्तीय विशेषज्ञों की सेवाएँ प्राप्त करती हैं जो वित्तीय प्रबन्ध के प्रत्येक पहलू से पूर्ण परिचित होते हैं ।

(3) पूंजी निवेशक एवं अंशधारियों के लिये महत्व (Importance for Investors and Shareholders):

देश के अनेक विनियोक्ता अपनी संचित पूजी का विनियोग इन कम्पनियों को प्रतिभूतियों में करते हैं । विनियोक्ताओं में धनी एवं साधारण सभी वर्गों के व्यक्ति होते हैं । उनका मार्गदर्शन करने के लिए देश में विनियोग बैंक का अभाव रहा है तथा उन्हें विनियोग के लिए ‘सिक्यूरिटी डीलर्स’ (Security Dealers) तथा ‘वित्तीय दलालों’ पर निर्भर रहना होता है ।

उन सबसे यह आशा नहीं की जा सकती है कि वे स्वयं निर्णय कर सकें कि किस कम्पनी क चुनाव किया जाये अथवा किन प्रतिभूतियों में धन लगाया जाये ? किन्तु जिन विनियोक्ताओं को वित्तीय प्रबन्ध के सिद्धान्तों का ज्ञान होता है, वे स्वयं में उचित निर्णय करने की स्थिति में हो जाते है । ऐसे विनियोक्ता भी जो स्थायी रूप से अंशधारी न बनकर केवल परिकल्पों (Speculators) के रूप में ही विनियोग करते है |

कम्पनी का स्वामित्व अंशधारियों में निहित होता है । संख्या अधिक होने के कारण वे प्रबन्ध में प्रत्यक्ष भाग नहीं लेते और प्रबन्ध का भार निर्वाचित संचालक- मंडल को सौंप देते हैं । संचालक मण्डल अंशधारियों के हित में इस कर्तव्य का किस सीमा तक और किस प्रकार पालन करते है, यह देखना अंशधारियों का कार्य है । यदि अंशधारी वित्तीय प्रबन्ध के सिद्धान्तों से अवगत हैं तो कम्पनी की साधारण सभाओं में कम्पनी की वित्तीय दशा का उचित मूल्यांकन कर सकेंगे ।

(4) प्रबन्धकों के लिये महत्व (Importance for Management):

प्रबन्धक जनता द्वारा विनियोजित धन के प्रन्यासी (Trustees) होते है और निगमों में जनता के विभिन्न वर्गों की पूजी का विनियोग किया जाता है जिसकी सुरक्षा का भार प्रबन्धकों पर ही होता है । प्रबन्धकों को यह भी ध्यान रखना होता है कि विनियोजित पूजी की मात्रा पर नियमित रूप में उचित लाभ प्राप्त होता रहे, ताकि सदस्यों को विनियोजित पूजी एवं जोखिम के लिए समुचित लाभांश दिया जा सके ।

(5) कर्मचारियों के लिये महत्व (Importance for Employees):

आज औद्योगिक उपक्रमों में श्रम संघों का महत्व बढा है । कर्मचारी संघ के नेताओं में वित्त की प्रवीणता हासिल करने पर वे कर्मचारियों को मजदूरी, बोनस, भत्ते व अन्य सुविधाओं को बढाने के लिये कारगर ढंग से मांगो को रख सकते हैं ।

(6) अन्यों के लिये महत्व (Importance for Others):

अन्य सब ऐसे व्यक्तियों में भी जो देश की आर्थिक समस्याओं में रुचि रखते हैं, निगमों के वित्तीय प्रबन्ध का ज्ञान लाभ पहुंचाता है, जैसे- अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, राजनीतिज्ञ, वाणिज्य एवं व्यवसाय के विद्यार्थी इत्यादि ।