नौकरशाही पर निबंध: शीर्ष पांच निबंध | Essay on Bureaucracy: Top 5 Essays. Here is a compilation of essays on ‘Bureaucracy’ for class 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Bureaucracy’ especially written for school and college students in Hindi language.

Essay Contents:

  1. नौकरशाही – अर्थ एवं प्रकृति (Meaning and Nature of Bureaucracy)
  2. नौकरशाही के उदय के कारण (Reason for the Rise of Bureaucracy)
  3. सत्ता तथा नौकरशाही (Power and Bureaucracy)
  4. नौकरशाही की विशेषताएँ (Importance of Bureaucracy)
  5. नौकरशाही की समालोचना (Criticism of Bureaucracy)

Essay # 1.

नौकरशाही – अर्थ एवं प्रकृति (Meaning and Nature of Bureaucracy):

प्रत्येक प्रशासन के लिए प्रशासनिक सेवाएं आवश्यक होती हैं क्योंकि यह प्रशासन में परिपक्वता, स्थायित्व, निर्भिकता, विकास और निश्चितता लाती है । आधुनिक प्रशासनिक सेवा विकसित और विकासशील राज्यों के संदर्भ में इन तकनीकी रूप में प्रशिक्षित स्थायी अधिकारियों द्वारा निर्मित है जो प्रशासन में अपना पूरा समय व जीवनकाल लगा देते है- जिसके कारण प्रशासनिक सेवाएं राजनीति के प्रति उदासीन, निष्पक्ष, क्रियाशील, लोककल्याण के प्रति जागरूक और उत्तरदायित्व से पूर्ण मानी जाती है ।

ADVERTISEMENTS:

उसका चयन योग्यता और तकनीकी ज्ञान के आधार पर होता है । एक उच्च तकनीकी विशिष्टता होने के कारण इसका प्रभाव कार्यपालिका, विधिनिर्माण, सामाजिक आर्थिक व राजनीतिक प्रबंध पर पर्याप्त रूप से पड़ता है । इन्हीं प्रशासनिक सेवाओं Bureaucracy अथवा नौकरशाही का नाम दिया जाता है ।

‘नौकरशाही’ शब्द अस्पष्ट और अनेकार्थी है तथापि प्रशासन में इसका प्रयोग सामान्यतः दो अर्थों में किया जाता है । प्रथम प्रशासन के कार्य पद्धतियों की संरचना के लिए एवं द्वितीय प्रशासकीय अधिकारियों के समूह के लिए । सारांशत: उचित अर्थ में नौकरशाही का अधिकारी एक ऐसा व्यक्ति माना जाता है जो अनुभव, ज्ञान और उत्तरदायित्व की भावना से युक्त होता है ।

‘एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका’ में इसकी व्याख्या बडे सुस्पष्ट शब्दों में की गई है- ”जिस प्रकार तानाशाही का अर्थ तानाशाह का तथा प्रजातंत्र का अर्थ जनता का शासन होता है उसी प्रकार ”ब्यूरोक्रेसी” का अर्थ ‘ब्यूरो’ का शासन है ।”

”नौकरशाही” का अंग्रेजी पर्यावाची शब्द ”ब्यूरोक्रेसी” फ्रेंच भाषा के ‘ब्यूरो’ शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ एक विभागीय उपसंभाग अथवा विभाग से है ।

ADVERTISEMENTS:

जॉन ए॰ बीका के शब्दों में – ”नौकरशाही शब्द उन व्यक्तियों के लिए सामूहिक पद के रूप में प्रयुक्त होता है जो सरकार की सेवाओं में होते हैं ।” सर्वप्रथम ”ब्यूरोक्रेसी” अर्थात नौकरशाही शब्द का प्रयोग फ्रांसीसी अर्थशास्त्री विन्सेन्ट डी गोर्ने (1712-1759) द्वारा किया गया था ।

फ्रेंच अकादमी द्वारा 1798 में प्रकाशित शब्दकोष में इसका अर्थ बताते हुए कहा गया कि ”नौकरशाही शब्द सरकारी ब्यौरों के कर्मचारी वर्ग तथा अध्यक्षों के प्रभाव एवं शक्तियों का परिचायक था ।” कालांतर में राज्य के बढ़ते हुए हस्तक्षेप की स्थिति में यूरोपीय विद्वानों द्वारा इस शब्द का व्यापक प्रयोग किया गया ।

इसका प्रयोग ऐसे कार्यालय के लिए होने लगा जिसमें लालफीताशाही, अनिर्णय, कार्यस्थान, अकार्यकुशलता आदि के दोष परिलक्षित होते हैं ।

‘ब्यूरोक्रेसी’ शब्द की व्यवस्थित व्याख्या 1895 में गिटानों मोस्का में अपनी रचना ‘ऐलीमेंट डी साइजा पोलिटिका’ में की जिसका अनुवाद ‘दि रूलिंग क्लास’ के नाम से 1939 में प्रकाशित हुआ । इसमें लेखक ने नौकरशाही को उन सभी राजनीतिक प्रणालियों के प्रशासन के लिए आवश्यक बताया जिन्हें या तो सामंतवादी या नौकरशाही वर्ग में वर्गीकृत किया जाए । फ्रेडरिक के शब्दों में- ”नौकरशाही एक राजनीतिक अध्यक्ष की सत्ता के अधीन कार्यालयों का पदसोपान है ।”

ADVERTISEMENTS:

‘नौकरशाही’ की अवधारणा के आधुनिक संस्करण का विकास होता गया और ”मैक्सवेबर” ने नौकरशाही का समाजशास्त्रीय अध्ययन करते हुए इस शब्द को विभिन्न अर्थों से मुक्त किया और इस बात पर बल दिया कि किसी संगठन के उद्देश्यों अथवा लक्ष्यों की उचित प्राप्ति के लिए नौकरशाही अनिवार्य है । इस संबंध में पिफनर महोदय ने लिखा है कि ”नौकरशाही कार्यों और व्यक्तियों के एक ऐसे रूप में व्यवस्थित संगठन है जो अधिकतम प्रभावशाली रूप में सामूहिक प्रयासों के लक्ष्यों को प्राप्त कर सके ।”

नौकरशाही शब्द के सभी प्रयोगों में मैक्स वेबर, पीटर ल्युनार्ड, फ्रांसिस तथा स्टोन, मार्शल डिमॉक, माइकेल क्रेजियर, जे॰ओ॰ वाइट, आरनोल्ड ब्रेष्ट, वी॰एम॰ होजेलिज, हैनीमैन, फेरेल तथा हैडी, कार्ल मनहीम जैसे विद्वानों का विशेष योगदान रहा है । नौकरशाही शब्द के विभिन्न प्रयोगों और अर्थों को देखकर यह कहा जा सकता है कि निश्चित ही यह शब्द पर्याप्त, अस्पष्ट और अनेकार्थक है ।


Essay # 2.

नौकरशाही के उदय के कारण (Reason for the Rise of Bureaucracy):

अतीत से ही नौकरशाही विद्यमान रही है जैसे प्राचीन मिस्र में, प्राचीन रोम और चीन के प्रशासकों में और धीरे-धीरे यह नौकरशाही मानव के हर क्षेत्र में घुसती चली गई ।

इस नौकरशाही के उदय के प्रमुख कारणों का वेबर ने विवेचन किया है जो निम्नलिखित है:

1. मुद्रा-अर्थव्यवस्था की स्थापना:

यह प्रक्रिया तब शुरू हुई जब यूरोप मध्य युग से निकला । वेबर मुद्रा-व्यवस्था को नौकरशाही के उदय की अनिवार्य शर्त नहीं मानता, क्योंकि मिस्र, रोम, चीन आदि में पहले भी नौकरशाही विद्यमान थी । फिर भी वेबर की मान्यता है कि कुछ हद तक मुद्रा अर्थव्यवस्था भी नौकरशाही के उदय के कारणों में से एक है ।

2. पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का उदय:

मुक्त व्यापार की व्यवस्था जो पूंजीवाद का सार है, ने नौकरशाही को बढ़ावा दिया । इसके कारण ऐसी आवश्यकताओं ने जन्म लिया जो केवल नौकरशाही संगठन ही पूरा कर सकते थे । पूंजीवाद को अपने ही हितों के लिए शक्तिशाली और सुव्यवस्थित सरकारों की आवश्यकता होती है और वह इनका प्रोत्साहन करता है ।

3. लोकतंत्र:

लोकतांत्रिक संस्थाओं के विकास का दूसरा पक्ष है सामंती और कुलीन तत्वों के परम्परागत शासन का विरोध करना तथा उसको समाप्त करने में सहायता देना और साथ ही शिक्षा को प्रोत्साहन देना तथा शिक्षा के आधार पर पदों पर नियुक्तियों का समर्थन करना ।

4. यूरोप की जनसंख्या में वृद्धि:

जनसंख्या के विकास से प्रशासनिक कार्य बढ़ जाते हैं जिनका सामना केवल बडे-बडे संगठनों द्वारा ही किया जा सकता है । दूसरी ओर बडे-बडे संगठनों में नौकरशाही आकार प्राप्त कर लेने की प्रवृत्ति है ।

5. जटिल प्रशासनिक समस्याओं की उत्पत्ति:

सरकारों के द्वारा किये जाने वाले कार्यों की जटिलता बडे पैमाने पर नौकरशाही संगठनों को पैदा करती है । यही प्राचीन मिस्र में हुआ । इस देश में इतिहास में पहली बार नौकरशाही का बड़े पैमाने पर संगठन तब हुआ जब इसको नहरों का निर्माण करने और नियंत्रण करने जैसे जटिल कार्य करने का सामना करना पड़ा ।

आधुनिक समय में यूरोप में केन्द्रीयकरण पर आधारित नए राज्यों को कई ऐसे प्रशासनिक कार्यों से जूझना पड़ा जिनको अतीत में कोई भी नहीं जानता था । इन कार्यों की जटिलता के कारण संगठन में विशेष ज्ञान और प्रभावीपन की आवश्यकता थी, अर्थात् नौकरशाही संगठन अनिवार्य हो गया ।

6. संचार के आधुनिक रूप:

संचार के आधुनिक साधनों के कारण अधिक जटिल और प्रभावी प्रकार के प्रशासन अर्थात् नौकरशाही की आवश्यकता हुई और इसके विकास में आसानी भी हुई ।

वेबर का कथन है कि नौकरशाही का विकास इसलिए हुआ कि यह अपनी विवेकशीलता और तकनीकी उच्चता के कारण आधुनिक जटिल समाज की समस्याओं और कार्यों का सामना करने के लिए यह सबसे अधिक उचित यंत्र सिद्ध हुआ है । इसी उच्चता के कारण नौकरशाही अधिक व्यापक बन गई और भविष्य में इसका और भी अधिक व्यापक बन जाना लाजिमी है ।

मैक्स वेबर (1864-1920) की नौकरशाही का सिद्धांत:

नौकरशाही का व्यवस्थित अध्ययन जर्मनी के समाजशास्त्री मैक्स वेबर के साथ आरंभ हुआ । वेबर ने नौकरशाही पर जो कुछ लिखा है, उसने जितना प्रभाव डाला है और जितने वाद-विवाद को उत्साहित किया है, उस दृष्टि से यह अनेक विद्वानों के सामूहिक योगदान से भी अधिक महत्वपूर्ण है ।

हॉलिवी लिखते हैं – ”मार्क्स की भांति वेबर सिद्धांत पर भी विस्तृत और निरंतर आलोचना हुई है और इस आलोचना का मुख्य निशाना उसकी नौकरशाही की धारणा है किंतु वास्तव में यह इस सिद्धांत के प्रभाव का संकेत है । आमतौर पर अनावश्यक सिद्धांतों की अवेहलना कर दी जाती है और उनको शीघ्र ही भुला दिया जाता है । केवल वही सिद्धांत जो अध्ययनशास्त्र के विकास में महत्वपूर्ण घटना-चिहनों का काम करते हैं, को ही बार-बार आलोचना के लिए चुना जाता है और जितना उन पर अधिक आक्रमण होता है, उतना ही वे अधिक लचीला बन जाते हैं, वेबर का नौकरशाही का सिद्धांत, इसका उदाहरण है । नौकरशाही पर अनेक समकालीन लेखक उसके सिद्धांत की आलोचना से आरंभ करते है, फिर भी यही लेखक वेबर के सिद्धांत से परे हटने का प्रयोग अपने विचारों का स्पष्टीकरण करने के लिए करते हैं । केवल यह दिखाने के लिए कि उनके विचार उससे कितने मित्र हैं ।”

वेबर ने प्रशासन पर बडा विस्तृत और व्यवस्थित विचार अपनी पुस्तक ‘इकॉनामी एंड सोसाइटी’ (Economy & Society) के अंतर्गत प्रभुत्व के समाजविज्ञान में किया है । इस विषय पर उनके और विचार जानने का एक और साधन है उनकी एक अन्य पुस्तक पार्लियामेंट एंड गवर्नमेंट इन द न्यूली ऑरगेनाइज्ड जर्मनी’ ।


Essay # 3.

सत्ता तथा नौकरशाही (Power and Bureaucracy):

नौकरशाही पर वेबर की धारणा को शक्ति, प्रभुत्व तथा सत्ता पर व्यक्त किए गए उनके विचारों में देखा जा सकता है । वेबर ने शक्ति की परिभाषा इस प्रकार दी है ”शक्ति उस व्यक्ति के पास कही जा सकती है जो विरोध कर सकता है । यदि इस शक्ति का प्रयोग मानव समूहों की संरचना के लिए किया जाए तो यह शक्ति का एक विशेष उदाहरण होता है जिसे ‘सत्ता’ कहते हैं और सत्ता के प्रयोग में यह अनिवार्य है कि एक व्यक्ति अपने अधीनस्थ समूह को सफलतापूर्वक आदेश जारी करता है और वह इसका पालन इस विश्वास के साथ करता है कि ये आदेश विधिवत् हैं ।”

अतः विधिवत् होना या वैधता ही शक्ति और प्रभुत्व को सत्ता में बदल देती है । वेबर के अनुसार सभी सत्ता विधिवत् होती है, क्योंकि सदा ही इसका आधार लोक विश्वास-संरचना पर होता है । वेबर ने सत्ता का वर्गीकरण वैधता पर इसके दावे के आधार पर किया है, क्योंकि इसी पर आश्रित है कि उसका पालन किस प्रकार होता हैं, किस प्रकार का प्रशासनिक स्टॉफ इसके लिए उपयुक्तता है और किस ढंग से सत्ता का प्रयोग होता है । यह वर्गीकरण तीन प्रकार का है- परम्परागत सत्ता, चमत्कारी सत्ता, तथा कानूनी विवेकशील सत्ता ।

1. परम्परागत सत्ता:

इसकी वैधता इस बात में है कि यह अतीत में बहुत समय से चलती आ रही है । यह प्राचीन परंपराओं की पवित्रता में स्थापित विश्वास तथा उन लोगों के स्तर की वैधता पर आधारित है जिनके अधीन वे सत्ता का प्रयोग करते हैं ।

2. चमत्कारी सत्ता:

इस सत्ता की वैधता प्रयोग करने वाले व्यक्ति की उत्कृष्ट व्यक्तिगत नेतृत्व की विशेषताओं पर आधारित होती है । इसका आधार एक व्यक्ति के आदर्शात्मक चरित्र अथवा शौर्य के प्रति असाधारण पवित्रता और भक्ति तथा मूल्यों की व्यवस्था होती है जिसकी स्थापना उसने कर रखी है ।

3. कानूनी विवेकशील सत्ता:

इसकी वैधता का आधार यह है कि यह उचित औपचारिक नियमों के अनुकूल होती है और सत्तारूढ़ व्यक्तियों के इस विश्वास पर कि उनको ये अपने अधीन आदेश जारी करने का अधिकार है । यह इन नियमों की वैधता विश्वास पर आधारित है ।

सत्ता का जो वर्गीकरण वेबर ने किया, उससे उसे संगठनों का वर्गीकरण करने का आधार प्राप्त हो गया ।

सत्ता की इस वैधता में विभिन्न प्रकार के विश्वासों के साथ विभिन्न सत्ता के ढांचे और संगठनात्मक स्वरूप से जुड़े हुए होते है । परंपरागत सत्ता, परंपरागत संगठनों का आधार बनती है । चमत्कारी सत्ता, चमत्कारित आंदोलनों का आधार बनती है । कानूनी विवेकशील सत्ता, आधुनिक संगठनों का आधार है जिसके साथ लगातार बढ़ता हुआ नौकरशाही प्रशासनिक स्टॉफ जुड़ा होता है ।

वेबर का आदर्श-रूप नौकरशाही प्रतिमान अथवा वेबर की आदर्श नौकरशाही:

वेबर ने ‘नौकरशाही’ शब्द का प्रयोग एक निश्चित प्रकार के प्रशासनिक संगठन को बताने के लिए किया । उन्होंने इस बात पर बल दिया कि पत्र के रूप में आधुनिक नौकरशाही संगठन स्वयं स्वाभाविक है । उन्होंने कभी इस प्रकार स्पष्ट तौर पर नौकरशाही की व्याख्या नहीं की, जैसा कि वर्ग अथवा स्तर समूह की व्याख्या की है ।

‘माल्टिन एलबरो’ कहते है कि वेबर की नौकरशाही की धारणा को इस परिभाषा में व्यक्त किया जा सकता है; कि ”नौकरशाही का अर्थ नियुक्त किए गए कर्मचारियों का प्रशासनिक समूह है ।” वे ऐसे कर्मचारियों को नौकरशाही में सम्मिलित नहीं करते जो निर्वाचित हैं अथवा जिनका चयन लॉटरी के द्वारा किया गया है ।

नौकरशाही कर्मचारियों की अनिवार्य विशेषता यह है कि वह एक नियुक्त अधिकारी होता है । वेबर नौकरशाही को ऐसे अधिकारियों के समूह के लिए सामूहिक शब्दावली मानते थे जो एक निश्चित तथा अलग समूह होता है और जिसका प्रभाव सभी बड़े संगठनों जैसे- राज्य, चर्च, राजनीतिक दल, मजदूर संघ, व्यापारिक उपक्रम, विश्वविद्यालय आदि में देखा जा सकता है । इसके अपने ही अलग प्रकार के कार्य होते हैं ।

मैक्स वेबर ने ”नौकरशाही” को प्रशासन की एक तर्कसंगत और विवेकशील व्यवस्था मानते हुए ‘आदर्श प्रकार का रूप’ बताया । आदर्श प्रकार वही है जिसके लिए संगठन प्रयत्नशील हैं । नौकरशाही के ‘आदर्श प्रकार या रूप’ की कतिपय विशेषताओं का वर्णन मैक्स वेबर ने किया और साथ ही यह भी प्रकट किया कि यदि किसी संगठन में ये विशेषताएं उपलब्ध न हों तो यह ‘आदर्श रूप’ का दोष नहीं है वरन् इस बात का प्रतीक है कि संगठन का उतने ही अंगों तक नौकरशाहीकरण नहीं हो सका है ।

वास्तव में वेबर ने प्राचीन मिस्र, रोम, चीन तथा बैजन्टाइन साम्राज्य में नौकरशाहियों के अध्ययनों से प्रेरणा लेकर और नौकरशाहों जो 19 वीं और 20 वीं शताब्दियों में वर्तमान यूरोप में उदय हुई, का अध्ययन करके एक ‘आदर्श नमूने’ के दृष्टिकोण को अपनाया ताकि वे वर्तमान संसार से उन विशेषताओं का केन्द्रीय सार निकाल सकें जो एक पूर्ण तथा विकसित नौकरशाही संगठन का स्वरूप चित्रित कर सके । वेबर के अनुसार नौकरशाही के आदर्श प्रकार या रूप वह हे, जिसको वह विवेकपूर्ण कानूनी नौकरशाही कहते हैं ।


Essay # 4.

नौकरशाही की विशेषताएँ (Importance of Bureaucracy):

 

विशेषताएं इस प्रकार हैं:

1. स्पष्ट श्रम-विभाजन:

इस सिद्धांत के अनुसार किसी संगठन को सुचारु रूप से चलाने हेतु नौकरशाही संगठन के कार्यों और पदों का विस्तृत और विशुद्ध विवरण तैयार किया जाता है तथा प्रत्येक पद के अनुसार उसका अधिकार-क्षेत्र प्रशासकीय नियमों द्वारा पूर्ण रूप से सुनिश्चित कर दिया जाता है और प्रत्येक कर्मचारी को अपना कार्य प्रभावशाली रूप से संपन्न करने के लिए उत्तरदायी बनाया जाता है ।

2. आदेश और दायित्वों के मर्यादित क्षेत्र से युक्त पद सोपानीय सत्ता प्रदान संस्थान:

नौकरशाही संगठन पद सोपान के सिद्धांत का अनुशीलन करता है । तदनुसार प्रत्येक अधीनस्थ कार्यालय एवं कर्मचारी उच्चतर कार्यालय एवं कर्मचारी के नियंत्रण में रहता है । अधीनस्थ कर्मचारी के दायित्वों का समुचित निर्वाह करने हेतु प्रत्येक जाँच अधिकारी को वांछनीय सत्ता प्रदान की जाती है । जिसका प्रयोग करते समय वह अपने अधीनस्थों को आवश्यक निर्देश तथा आदेश जारी कर सकता है ।

3. अमूर्त नियमों की संगत व्यवस्था:

नौकरशाही संगठन में तकनीकी नियमों अथवा नार्म्स के आधार पर कार्यालय की समूची कार्यवाही का नियमन किया जाता है । कार्यालय के सभी कर्मचारियों को इन नियमों तथा नार्म्स का समुचित प्रशिक्षण दिया जाता है । ऐसा प्रशिक्षण नौकरशाही संगठन में प्रवेश की पूर्व-शर्त भी बना दिया जाता है । संगठन में अमूर्त नियमों की एक संगठन व्यवस्था होने के कारण कार्यों में एकरूपता बनी रहती है तथा विभिन्न कार्यों के बीच समन्वय करना सरल हो जाता है ।

4. प्रत्येक कार्यालय के स्पष्टतः परिभाषित कार्य:

कानूनी रूप से प्रत्येक पद के कार्यों को परिभाषित व मर्यादित कर दिया जाता है ताकि कोई किसी के कार्यों में हस्तक्षेप न करे ।

5. स्वतंत्र संविदा के आधार पर अधिकारियों की नियुक्ति:

नौकरशाही संगठन में प्रत्येक कर्मचारी के साथ स्वतंत्र समझौता किया जाता है, कोई व्यक्ति किसी के दबाव या बाध्यता के कारण पद ग्रहण नहीं करता ।

6. तकनीकी योग्यताओं के आधार पर प्रत्याशियों का चयन:

नौकरशाही संगठन के कर्मचारी निर्वाचित नहीं होते वरन् योग्यता परिक्षाओं द्वारा उनकी तकनीकी योग्यता जांचने तथा आवश्यक प्रशिक्षण संबंधी प्रमाण-पत्र देखने के बाद उनकी नियुक्ति की जाती है ।

7. वेतन एवं पेंशन का अधिकार:

नौकरशाही संगठन में संगठन की आय के आधार पर कर्मचारी का वेतन तय नहीं किया जाता वरन् पद सोपान में उसका स्तर, पद के दायित्व, सामाजिक स्थिति आदि बातों को ध्यान में रखकर तय किया जाता है ।

8. पूर्णकालीन पदाधिकारी:

नौकरशाही संगठन का प्रत्येक कर्मचारी अपने कार्यालय को अपना पूरा समय प्रदान करता है । अवैधानिक रूप से अथवा आशिक समय में काम करने वाले कर्मचारी द्वितीय स्तर के माने जाते हैं ।

9. आजीवन व्यवसाय:

ऐसे संगठन में प्रत्येक कर्मचारी अपने पद को आजीवन व्यवसाय बना लेता है । वरिष्ठता या कार्य-संपन्नता के आधार पर उसकी पदोन्नति होती रहती है ।

 

10. अधिकारीगण प्रशासन के साधनों का स्वामित्व नहीं करते:

नौकरशाही संगठन का प्रत्येक पदाधिकारी प्रशासन के साधनों के स्वामित्व से अलग रहता है । वह अपनी पद स्थिति का विनियोग नहीं कर सकता ।

11. औपचारिक निर्वैयक्तिकता की भावना:

वेबर के मतानुसार नौ बरशाही संगठन के पदाधिकारी अवैयक्तिक व्यवस्था और औपचारिक रूप रो स्थापित व्यवहार के नियमों के अधीन होते हैं । संगठन के भीतर या बाहर दूसरों के साथ व्यवहार में वे इन्हीं नियमों का पालन करते हैं ।

कर्मचारीगण वैयक्तिक रूप से स्वतंत्र होते है । वे केवल अपने पद से संबंधित अवैयक्तिक कर्त्तव्यों को सम्पादित करते हैं जिसमें घृणा अथवा प्रेम के लिए कोई स्थान नहीं होता ।

12. कठोर एवं व्यवस्थित, अनुशासन तथा नियंत्रण:

नौकरशाही संगठन के किसी भी पदाधिकारी को अनियंत्रित अथवा स्वच्छन्द नहीं होने दिया जाता । यहां नियंत्रण तथा अनुशासन की उपयुक्त व्यवस्था की जाती है । यही शक्ति वितरण किया जाता है तथा उत्तरदायित्व एक से अधिक निकायों के बीच बाट दिया जाता है । नौकरशाही पर कार्यपालिका, व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका के समुचित नियंत्रण की व्यवस्था की जाती है ।

13. अधिकतम कार्यकुशलता:

वेबर के कथनानुसार अनुभव से यह ज्ञान होता है कि विशुद्ध नौकरशाही प्रकार का संगठन तकनीकी दृष्टि से अधिकतम कुशलता प्राप्त करने में समर्थ है । यह कार्यकुशलता कई कारणों का परिणाम है जैसे-प्रत्येक कर्मचारी अपने कार्य का विशेषज्ञ होता है, वह पक्षपातहीन रूप से कार्य करता है, उसके कार्यों में उचित समन्वय तथा नियंत्रण रहता है, कार्यों में यांत्रिकता तथा पहल का अभाव होने के कारण ये दुतगामी बन जाते हैं, आदि ।

14. तटस्थता:

नौकरशाही जिस राजनीतिक शासन की सेवा में हो उसके प्रति उन्मुखता और समर्थन में उससे गैर राजनीतिक तथा तटस्थ रहने की उम्मीद की जाती है । यह मूल्य के प्रति उदासीन तथा उसी कार्य से प्रतिबद्ध होती है जो इसे सम्पादित करने को दिया जाता है ।

वेबर का यह दावा है कि तकनीकी दृष्टिकोण से इन विशेषताओं के कारण नौकरशाही एक उच्च मात्रा की विवेकशील तथा प्रभावकारिता प्राप्त करने की योग्यता रखती है । यह किसी भी अन्य संगठन से अधिक उन्नत है । श्रम विभाजन के कारण कार्यों का दोबारा करना कम हो जाता है और मतभेद भी कम हो जाते हैं । पद सोपान से केन्द्रीय नियोजन, समन्वय, नियंत्रण तथा अनुशासन आसान हो जाते हैं ।

योग्यताओं के आधार पर भर्ती करने से ज्ञान का स्तर ऊँचा होता है और कार्य अधिक योग्यता से होता है । नियमों से मानवीकरण होता है जिसके कारण प्रयास अथवा मेहनत में बचत होती है, साथ ही नियमों के कारण यह आवश्यकता भी नहीं रहती कि प्रत्येक व्यक्तिगत समस्या के लिए एक नए सुझाव को ढूंढा जाए । इससे परिणामों की भविष्यवाणी की जा सकती है ।

निर्वेयक्तिता के कारण निरपेक्षता को प्रोत्साहन मिलता है और विवेकहीन कार्य पक्षपात तथा भेदभाव को रोका जा सकता है । राजनीतिक, अध्ययन तर्क शक्ति के प्रति अविवेक, वचनबद्धता को सुरक्षित करता है ।

आदर्श प्रकार की नौकरशाही की इन विशेषताओं को वेबर ने प्रशिया के प्रशासनिक सिद्धांतों और यूरोप के प्रशासनिक इतिहास से लिया किंतु यह याद रखना चाहिए कि यह एक आदर्श प्रारूप हैं (लक्ष्य नहीं) जिसको विशुद्ध अथवा अभीसप्त रूप में वास्तविकता में नहीं पाया जा सकता ।


Essay # 5.

नौकरशाही की समालोचना (Criticism of Bureaucracy):

मैक्स वेबर स्वयं नौकरशाही की कमियों के प्रति जागरूक है और इसीलिए वह दो खतरों को मॉडल देने से पहले ही जान लेता है:

1. संगठनों में अत्यधिक नियमबद्धता कर्मचारियों की मानसिक क्षमता कमजोर बना देगी ।

2. नौकरशाही में समाज का अधिकांश नागरिक भाग अपने को अलग समझेगा, इसीलिए वेबर ने नौकरशाही का नियंत्रण शक्तिशाली संसदीय समितियों के माध्यम से करने का सुझाव दिया था । मैक्स वेबर द्वारा प्रस्तुत विश्लेषण की प्रतिक्रिया स्वरूप समाजशास्त्रियों, व्यवहारवादियों तथा लोक प्रशासन के विद्वानों द्वारा भारी आलोचनाएँ प्रस्तुत की गई हैं ।

1. वेबर ने अनौपचारिक नियमों और संरचनाओं को अनदेखा किया । चेस्टर बनार्ड के अनुसार, ”अनौपचारिक संरचनाओं के बिना यह मॉडल अधूरा है ।” इसी संबंध में पीटर बनो ने वाशिगंटन डी॰सी॰ की जिला समितियों में कार्य करते हुए यह देखा कि समस्त लिखित नियम भी मिलकर सभी प्रशासनिक परिस्थितियों का परिचय नहीं दे सकते और इसी प्रकार आर.के मर्टन ने भी कहा है कि वेबर के माडेल में व्यवहारिक कट्‌टरता विकसित हो जाती है जो संगठन के कार्यों में सहायता कम देती है और बाधक अधिक बनती है ।

अनौपचारिक गुटों में ही ये क्षमता होती है कि वे उद्देश्यात्मक सहयोग और सम्प्रेषण को बढावा दे सकें जिससे प्रशासन का समस्या प्रबंध का कार्य बिना कठिनाइयों के या बिना लालफीताशाही के पूरा हो सके ।

टॉमबर्न्स तथा जी.एम. स्टॉकर का मत है कि विकास प्रशासन में जहाँ परिवर्तनशीलता और व्यक्ति की प्रतिबद्धता परम आवश्यकताएँ हैं, वहाँ वेबर की औपचारिकता बाधक का कार्य करती है ।

2. वेबर के आदर्श प्रकार के इस कथन कि ‘नौकरशाही संगठन कम-से-कम तकनीकी दृष्टि से उच्चतम क्षमता प्राप्त करने में सक्षम होता है’, काफी आलोचना हुई है । हरबर्ट साइमन व चेस्टर बनार्ड जैसे व्यवहारवादी सिद्धांतकारों ने जोर देकर कहा है कि वेबर के संरचनात्मक दृष्टिकोण को अपनाने से प्रशासनिक दक्षता गिर जाएगी ।

उनका कहना है कि संगठन में दक्षता अनौपचारिक संगठनों तथा श्रेष्ठ मानव-संबंधों से बढाई जा सकती है । कोई अधिकारी सफलतापूवर्क कार्य कर सके इसके लिए उसे अधिकतम संचालन स्वतंत्रता देना आवश्यक है ।

3. वेबर की आलोचना इस बात के लिए भी की जाती है कि उसने अपने सिद्धांत में मानव-व्यवहार, संबंध, मनोबल अथवा प्रेरक-तत्वों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है । उसके सिद्धांत को मशीनी सिद्धांत तथा बंद-प्रणाली प्रतिमान कहा गया है जिसमें नौकरशाही के औपचारिक विवेकी पक्ष पर आवश्यकता से अधिक बल दिया गया है, मगर वृहद् औपचारिक संगठन के सामाजिक, सांस्कृतिक वातावरण के संपूर्ण विस्तार और व्यवहारमूलक लक्षणों की अवेहलना कर दी है ।

4. लास्की का कहना है कि नौकरशाही की विशेषता प्रशासन में बंधे-बधाएँ (रूटीन) रवैये के प्रति विशेष लगाव, नियमों के प्रति लचक की उपेक्षा, निर्णय लेने में विलंब करना, प्रयोग करने से इंकार आदि है ।

लार्ड हेवार्ड ने अपनी पुस्तक ‘न्यू डिक्योटिज्य’ में लिखा है कि आज नागरिकों के अधिकार और स्वतंत्रता खतरे में हैं क्योंकि इस विशिष्ट नौकरशाही ने निजी विवेक से प्रयुक्त होने वाली शक्तियों का प्रयोग बहुत अधिक कर दिया है जो प्रजातांत्रिक प्रशासन के सिद्धांतों के नितांत विरुद्ध है ।

5. आर.के. मर्टन का कहना है कि नौकरशाही एक ऐसा संगठनात्मक ढांचा है जिसकी विशिष्टता उद्देश्यों और लक्ष्यों की प्राप्ति की अपेक्षा रूढ़ता और नियम तथा विनियमों पर आवश्यकता से अधिक जोर देने की है । अधिकारी वर्ग में लोक संपर्क अभाव और वर्ग अंहकार बहुत अधिक होता है ।

6. आलोचकों के अनुसार – वेबर का मॉडल सुस्थिर वातावरण में बंधे-बंधाये और बार-बार दोहराये जाने वाले कार्यों के लिए बहुत अच्छा है । इस मॉडल में परिवर्तन को स्वीकार करने की बहुत कम क्षमता है । विकासशील देशों में, जहाँ सामाजिक व आर्थिक पुनर्निर्माण के लिए तेजी से परिवर्तन लाना आवश्यक है, नौकरशाही का परंपरागत ढांचा इस प्रकार के आह्वान पर कार्य करने में असमर्थ है । अपनी रूढ़ता और अनन्यता की वजह से नौकरशाही मॉडल शीघ्र गति से होने वाले परिवर्तन की परिस्थितियों के योग्य नहीं है ।

ट्रीस्ट के अनुसार – ”यह बिल्कुल गलत धारणा है कि विकासशील देशों के बडे पैमाने के संगठनों को कम-से-कम प्रारंभिक काल में सैनिकीय तरीके से उसी नौकरशाही की प्रणाली से गठित किया जाए जिसका विकसित देशों में बहिष्कार होने लगा है ।”

7. नौकरशाही के बारे में प्रेस्थस जैसे दूसरे लेखकों ने भी यही कहा है कि वेबर का सिद्धांत विदेशी संस्कृति की उपज है, विकासशील देशों में प्रयुक्त होने के लिए यह बिल्कूल अनुपयुक्त है ।

8. रिग्स की मान्यता है कि आधुनिककाल में वातावरण, अंतरिक्ष आणविकी, शिक्षा और ग्रामीण विकास में तेजी से परिवर्तन लाने वाले कार्य हुए हैं, उन सभी के लिए वेबर का आदर्श वैधानिक मॉडल अनुपयुक्त साबित हुआ है ।


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