अंटार्कटिका पर निबंध | Essay on Antarctica in Hindi language!

अंटार्कटिक विश्व का पांचवाँ बड़ा महाद्वीप है । अंटार्कटिका 140 लाख वर्ग किमी. में फैला है । यह दक्षिणी गोलार्द्ध में अवस्थित है तथा अकेला ऐसा महाद्वीप है, जो पूरी तरह निर्जन और वीरान है । पूर्णतः हिमाच्छादित रहने के कारण इसे ‘श्वेत महाद्वीप’ भी कहा गया है ।

इस महाद्वीप की खोज का प्रयास सर्वप्रथम अंग्रेज नाविक जेम्स कुक द्वारा किया गया था, परंतु अंटार्कटिक वृत्त पार करने के बावजूद भी वे इसकी मुख्य भूमि तक नहीं पहुँच पाए । इस महाद्वीप की मुख्य भूमि की खज करने वाला व्यक्ति फेबियन वेलिंग शॉसेन था, जो 1820 रई. में वोस्टॉक नामक जहाज पर सवार होकर यहाँ आया था ।

दक्षिणी ध्रुव तक पहुँचने वाला प्रथम व्यक्ति नॉर्वे निवासी एमंडसन (1911 ई.) था । अंटार्कटिक पहुँचने वाले प्रथम भारतीय रामचरणजी (1960 ई.) थे जबकि डॉ. गिरिराज सिरोही दक्षिणी ध्रुव पर पहुँचने वाले प्रथम भारतीय थे ।

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1981 ई. से यहाँ प्रतिवर्ष भारतीयों का अभियान दल आने लगा है तथा 1984 में भारत ने इस महाद्वीप पर भू-संरचना, मौसम, पर्यावरण, जीवाश्म, जीव-जंतु, वनस्पति, खनिज आदि के वैज्ञानिक परीक्षण हेतु यहाँ एक स्थायी मानवयुक्त केन्द्र ‘दक्षिणी गंगोत्री’ स्थापित किया । अब यह पूरी तरह नष्ट हो चुका है ।

1987 ई. में भारतीय शोध केन्द्र ‘मैत्री’ की स्थापना की गई । प्रिड्‌ज बे के निकट ‘लार्समन हिल्स’ में 2006 ई. में नवीन शोध केन्द्र बनाया गया है । मार्च, 2009 में 29वें भारतीय अंटार्कटिक अभियान में इसके पर्वतीय क्षेत्रों का अध्ययन किया गया । लार्समन हिल्स में भारत ने अपना तीसरा अनुसंधान केन्द्र ‘भारती’ स्थापित किया है । 18 मार्च, 2012 से यहाँ परीक्षण कार्य शुरू कर दिए गए हैं ।

इस केन्द्र का सेवा काल 25 वर्ष निर्धारित किया गया है । गोवा के वास्कोडिगामा में केन्द्रीय अंटार्कटिक और समुद्र अनुसंधान (NCAOR) संस्थान ने आइसोट्रेस लेबोरेटरी का उद्‌घाटन किया गया । 23 जुलाई, 2014 को भारत का पहला बहुसेंसर ऊसर वेधशाला इंडआर्क (Ind ARC) ‘कौंग्स्फजौर्डेन’ में स्थापित किया गया ।

अंटार्कटिक का 98% भाग सदा बर्फ से ढका रहता है । इस बर्फ की औसत मोटाई 2 से 5 किमी. है । केवल पाल्मर प्रायद्वीप कुछ सीमा तक बर्फ से मुक्त रहता है । इसका कोई तटीय मैदान नहीं है । केवल 2% भाग गर्मी में बर्फहीन होता है । ‘पॉल्मर प्रायद्वीप’ एकमात्र ऐसा भू-भाग है, जो बर्फ से कुछ हद तक मुक्त है ।

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शीत ऋतु और ग्रीष्म ऋतु में महाद्वीप का अलग-अलग आकार होने के कारण ही इसे ‘गतिशील महाद्वीप’ कहा जाता है । समुद्री तटों से बर्फ के बड़े-बड़े टुकड़े टूटकर समुद्र में तैरते रहते हैं, जिन्हें ‘हिमशैल’ कहते हैं । ये हिमशैल मीठे पानी के भंडार हैं । अंटार्कटिका में बर्फ की 19 मीटर मोटी परत के नीचे ‘विदा’ नामक अत्यधिक खारा झील मिला है ।

‘क्वीन मॉड’ पर्वत श्रेणी इस महाद्वीप को दो बराबर भागों में बाँटती है । यहाँ की सर्वोच्च चोटी ‘विंसन मैसिफ’ है । ‘माउंट एर्बुश’ यहाँ का अकेला सक्रिय ज्वालामुखी है ।

अंटार्कटिक की भूमि तीन महासागरों से घिरी है- हिन्द महासागर, प्रशांत महासागर और अटलांटिक महासागर । इन महासागरों के दक्षिणी छोर को दक्षिणी महासागर या अंटार्कटिक महासागर कहते हैं । इसका तापमान 4C से कम रहता है ।

वेडेल सागर व रॉस सागर अंटार्कटिक सागर के ही भाग हैं । विश्व में सबसे कम तापमान अंटार्कटिक के वोस्टॉक में रिकॉर्ड किया गया था, जो -95 है । अंटार्कटिक के ‘पोल ऑफ कोल्ड’ में विश्व के न्यूनतम वार्षिक तापमान मिलता है । सूर्य के उत्तरायण के बाद यहाँ छः महीने तक रात होती है जबकि सूर्य के दक्षिणायन के बाद यहाँ छः महीने तक दिन रहता है ।

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परंतु सूर्य की किरणें इतनी तिरछी होती हैं कि वायु गर्म नहीं हो पाती । नवम्बर से फरवरी का समय मुख्य ग्रीष्मकाल है । ओजोन रिक्तिकिरण की प्रक्रिया की खोज सबसे पहले अटार्कटिका में 1985 ई. मे हुई ।

यह भी धीरे-धीरे स्पष्ट हो गया कि अंटार्कटिका के ऊपर छिद्र (होल) में क्रमशः फैलाव हो रहा था । अंटार्कटिका पर ध्रुवीय शीर्ष (Polar High) स्थान होने के कारण क्लोरोफ्लोरो कार्बन सर्दियों में बर्फ-क्रिस्टल (रवा) के रूप में वहाँ जमा हो जाते हैं ।

बसंत ऋतु में जब बर्फ पिघलने लगती है, तो बर्फ-क्रिस्टल के रूप में बने क्लोरोफ्लोरो कार्बन मुक्त होकर ओजोन परत को तोड़कर छिद्र कर देते हैं या फिर पहले से बन चुके छिद्र के आकार को बढ़ाते रहते हैं । इसी छिद्र से होकर सूर्य की खतरनाक किरणें सीधे धरती पर पहुँचती हैं ।

लाइकेन और मॉस यहाँ की मुख्य वनस्पति है । अल्बाटरोस व पेटरल नामक उड़ने वाले समुद्री पक्षी तटीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं । पेंग्विन इस महाद्वीप की अपनी पहचान है । यहाँ क्रिल ही एक मात्र साधन है, जिसके विकास की संभावनाएँ हैं । क्रिल, मछली के झुंडों में रहती है । इससे कई उत्पाद बन सकते हैं ।

इस महाद्वीप में विश्व के वैज्ञानिक अनुसंधान कार्य में लगे हुए हैं । यहाँ से अनेक प्रकार के खनिज द्रव्य जैसे- सोना, चांदी, तांबा, कोयला, मैंगनीज, यूरेनियम, प्लैटिनम, क्रोमियम, खनिज तेल, प्राकृतिक गैस आदि की जानकारी मिल चुकी है, किन्तु प्राकृतिक कठिनाइयों के कारण अभी यह लाभ नहीं दे सकता ।

हाँ, परन्तु यह वैज्ञानिकों को पृथ्वी के बारे में अधिक जानकारी देने के अनोखे अवसर अवश्य प्रदान करता है । इसलिए इसे ‘विज्ञान के लिए समर्पित महाद्वीप’ भी कहते हैं ।

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