विशेष आर्थिक जोन (सेज) पर निबंध! Here is an essay on ‘Special Economic Zones (SEZ)’ in Hindi language.

पिछले कुछ वर्षों में भारत में आर्थिक ही नहीं राजनीतिक जगत् में भी जिस योजना को व्यापक विरोध के साथ-साथ व्यापक समर्थन भी प्राप्त हुआ है वह हैं-विशेष आर्थिक जोन या क्षेत्र ।  विशेष आर्थिक क्षेत्रों का विरोध यदि किसानों द्वारा किया जाता है, तो इसके साथ ही औद्योगिक प्रगति के समर्थक अर्थवेत्ताओं का एक समूह इनकी स्थापना का समर्थन भी करता है ।

इस विरोध एवं समर्थन के फलस्वरूप पिछले कई वर्षों से विशेष आर्थिक क्षेत्र अत्यधिक चर्चा में रहा है ।  विशेष आर्थिक क्षेत्र, जिसका अंग्रेजी पर्याय स्पेशल इकोनॉमिक जोन (एसईजेड अथवा सेज) है, उस विशेष औद्योगिक क्षेत्र को कहा जाता है, जिसे व्यापार, आर्थिक क्रियाकलाप, उत्पादन तथा अन्य व्यावसायिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष आर्थिक नियमों को ध्यान में रखकर विकसित किया जाता है ।

ये क्षेत्र 10 से 10,000 हेक्टेयर या इससे भी अधिक क्षेत्रफल के हो सकते हैं । इन क्षेत्रों में आधारभूत ढाँचे अर्थात् भवन, कारखाने ऊर्जा, सडक, परिवहन, संचार व्यवस्था इत्यादि की उत्कृष्ट सुविधा होती है ।  लगभग सभी विकसित देशों में विशेष आर्थिक क्षेत्र स्थापित हैं ।

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एसईजेड की स्थापना किसी भी निजी, सार्वजनिक अथवा संयुक्त क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा की जा सकती है, इसके साथ ही विदेशी कम्पनियों को भी इसकी स्थापना की अनुमति प्रदान की जाती है उत्तर प्रदेश में नोएडा, पश्चिम बंगाल में फाल्टा, गुजरात में काण्डला एवं सूरत, महाराष्ट्र में शालारू, तमिलनाडु में चेन्नई, आन्ध्र प्रदेश में बिशाखापत्तनम आदि एसईजेड के उदाहरण हैं ।

वर्ष 2013 तक देश में काम कर रहे 170 विशेष आर्थिक क्षेत्रों ने 10 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया है और कुल निर्यात में इनकी भागीदारी एक-तिहाई रही है ।  पश्चिम बंगाल में नन्दीग्राम एवं टाटा नैनो परियोजना के साथ सिंगुर में हुए हादसे के कारण परियोजना को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था, बावजूद इसके आज इसका देशभर में व्यापक विस्तार किया जा रहा है ।

आज चीन अपने मात्र छ: एसईजेड के बल पर विश्व का दूसरा सबसे बढ़ा निर्यातक देश बन गया है ।  हालाँकि भारत में चीन के सबसे बड़े एसईजेड शेन्चेन, जो लगभग 50 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है, की तरह विस्तृत भू-भाग वाली किसी भी सेज परियोजना को अब तक स्वीकृति नहीं दी गई है, क्योंकि यहाँ इतने बड़े स्तर पर भूमि अधिग्रहण करना आसान कार्य नहीं है ।

भूमि अधिग्रहण से जुड़ी समस्याओं के कारण ही महाराष्ट्र के रायगढ में हेक्टेयर क्षेत्र में फैली सबसे बडी सेज परियोजना के प्रस्ताव को स्वीकृति नहीं मिल पाई । भारत में सेज की स्थापना से पूर्व निर्यात को बढ़ावा देने के उद्देश्य से वर्ष 1965 में गुजरात के काण्डला में सेज से मिलता-जुलता एशिया का प्रथम एक्सपोर्ट प्रोसेजिंग जोन (ईपीजेड) अर्थात् निर्यात प्रक्रिया क्षेत्र स्थापित किया गया था ।

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अपने देश की इस ईपीजेड परियोजना से प्रोत्साहित होकर चीन की सेज परियोजनाओं की तर्ज पर भारत में विशेष आर्थिक क्षेत्र की अवधारणा के अनुकूल औद्योगिक क्षेत्रों के निर्माण की प्रक्रिया वर्ष 2000 में तब प्रारम्भ हुई, जब सरकार ने वर्ष 2000 में ही विशेष आर्थिक क्षेत्र नीति का निर्माण किया था ।

इसका उद्देश्य अधिक-से-अधिक विदेशी निवेशकों को आकर्षित कर व्यापार को बढ़ावा देना था । इसके अलावा विशेष आर्थिक क्षेत्र को और विशिष्ट बनाकर व्यापार को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2006 में विशेष आर्थिक क्षेत्र अधिनियम पारित किया गया, जिसका उद्देश्य निर्यात के लिए आधिकारिक तौर पर अनुकूल मच प्रदान करना था ।

इस नए अधिनियम में विशेष आर्थिक क्षेत्र की इकाइयों एवं इसे विकसित करने वाली कम्पनियों को कर में छूट का प्रावधान किया गया है । एसईजेड का निर्माण सिर्फ केन्द्र द्वारा ही नहीं, बल्कि राज्य सरकारों एवं निजी कम्पनियों द्वारा भी किया जा रहा है ।  इसके लिए पंजाब, गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश एवं तमिलनाडु जैसे कुछ राज्यों ने भी राज्य एसईजेड अधिनियम बनाए हैं ।

इसके अतिरिक्त कई अन्य राज्यों ने राज्य एसईजेड नीतियों का भी निर्माण किया है ।  विशेष आर्थिक क्षेत्र अधिनियम, 2005 के अनुसार, एसईजेड में स्थापित होने बाली इकाइयों को शुरूआत के पाँच वर्षों तक कर में 100% की छूट एवं इसके बाद अगले पाँच वर्षों तक 50% की छूट दिए जाने का प्रावधान है ।

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एसईजेड विकसित करने वालों को भी 10 से 15 वर्ष की समय-सीमा के लिए आयकर में 100% छूट का प्रावधान किया गया है ।  इस अधिनियम का उद्देश्य एसईजेड को आधिकारिक रूप से सशक्त बनाना तथा उसे स्वायत्तता प्रदान करना है, ताकि एसईजेड से संबन्धित प्रकरणों का निपटारा शीघ्र हो सके । इसके लिए इन क्षेत्रों में आयात-निर्यात सम्बन्धी विश्व स्तर की सुविधा उपलब्ध कारवाई जाती है ।

इस अधिनियम के पश्चात विशेष आर्थिक क्षेत्र (संशोधन) नियम, 2006 विशेष आर्थिक क्षेत्र (संशोधन) नियम, 2007 विशेष आर्थिक क्षेत्र (दूसरा संशोधन) नियम, 2007 विशेष आर्थिक क्षेत्र (संशोधन) नियम, 2009 एवं विशेष आर्थिक क्षेत्र (संशोधन) नियम, 2013 भी बनाए गए ।

केन्द्र में श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बनी भाजपा सरकार हाल में पारित किए गए भूमि अधिग्रहण कानूनों को कारोबार के दृष्टिकोण से अधिक आसान बनाने के उपायों पर भी विचार कर रही है विशेष आर्थिक क्षेत्र को तीन स्तरीय प्रशासनिक व्यवस्था से नियन्त्रित किया जाता है । एक शीर्ष निकाय अनुमोदन बोर्ड की तरह कार्य करता है और यह अनुमोदन समिति के साथ क्षेत्रीय स्तर पर एसईजेड से सम्बन्धित मामलों को देखता है ।

एसईजेड की इकाइयों के प्रदर्शन का समय-समय पर विश्लेषण करने के लिए इनकी निगरानी भी की जाती है । एसईजेड के कई लाभ है इससे आयात-निर्यात को बढ़ावा मिलता है, इससे विदेशी निवेश में वृद्धि होती है आयात-निर्यात को बढ़ावा मिलने एवं विदेशी निवेश में वृद्धि होने के कारण अत्यधिक संख्या में लोगों को रोजगार मिलता है, जिससे बेरोजगारी जैसी समस्याओं के समाधान में सहायता मिलती है ।

एसईजेड विदेशी मुद्रा के अर्जन में भी सहायक होता है । इस तरह, यह देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करता है । एसईजेड में हर प्रकार की सुविधा एवं छूट के कारण वस्तुओं की निर्माण लार है । इस तरह औद्योगिक प्रगति के दृष्टिकोण से भी एसईजेड अत्यन्त लाभप्रद है ।

पिछले कुछ वर्षों से किसानों द्वारा एसईजेड का विरोध किया जा रहा है । पश्चिम बंगाल के सिंगूर जिले में टाटा द्वारा प्रस्तावित एसईजेड के निर्माण को किसानों के व्यापक विरोध के कारण रद्द करना, इसका अच्छा उदाहरण है । अब प्रश्न उठता है कि जब एसईजेड कई फायदे हैं, तो इसका विरोध क्यों किया जा रहा हैं?

वस्तुतः औद्योगिक प्रगति के लिए कृषि भूमि के उपयोग से किसानों को लाभ कम एवं नुकसान अधिक है । कृषि भूमि के बदले में अच्छी कीमत से किसानों की समस्या हल नहीं हो सकती । कृषि भूमि के अधिग्रहण के बाद उनके लिए रोजगार की समस्या उत्पन्न होने का खतरा होता है ।

यही कारण है कि देश के लगभग हर क्षेत्र में जहाँ एसईजेड का निर्माण प्रस्तावित है, किसानों द्वारा इसका विरोध किया जा रहा है । एसईजेड के लिए भूमि के अधिग्रहण के बाद उस क्षेत्र के लोगों के लिए पुनर्वास की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है ।

देश में बढ़ती जनसंख्या के अनुकूल उपजाऊ जमीन की वैसे ही कमी महसूस की जाती रही है । देश के कुल क्षेत्रफल का केवल 43% भू-भाग कृषि योग्य है । यदि इसका एक बडा हिस्सा एसईजेड को समर्पित कर दिया जाए, तो भारतीय कृषि एवं खाद्यान्न उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ेगा । इन्हीं कारणों से किसानों द्वारा सेज का विरोध किया जाता है ।

एसईजेड का विकास बड़े पैमाने पर किया जाना, यद्यपि देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए आवश्यक भी है, किन्तु इसके लिए देश की बहुसंख्यक ग्रामीण जनता विशेषकर किसानों के हितों की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए । एसईजेड के लिए कृषि योग्य उपजाऊ भूमि के अधिग्रहण को सही नहीं ठहराया जा सकता ।

भारत के कुल क्षेत्रफल का लगभग 24% भू-भाग बंजर एवं अनुपजाऊ है । यदि सेज के लिए ऐसी जमीन का उपयोग किया जाए, तो इसके दोहरे लाभ हो सकते हैं एक ओर कृषि योग्य भूमि भी बची रहेगी, तो दूसरी ओर बंजर जमीन का भी उपयोग हो जाएगा ।

देश की कुल श्रम शक्ति का लगभग 52% भाग कृषि एवं इससे सम्बन्धित उद्योग-धन्धों से अपनी आजीविका चलाता है । यदि कृषि योग्य भूमि का उपयोग सेज के लिए किया गया, तो इनके लिए अनेक प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हो सकती है ।

अधिक संख्या में एसईजेड की स्थापना देश की अर्थव्यवस्था में सुधार एवं औद्योगिक प्रगति के दृष्टिकोण से आवश्यक है, किन्तु इसके लिए बंजर एवं अनुपयोगी जमीन का ही उपयोग किया जाना चाहिए, तभी इसका उद्देश्य सार्थक होगा ।  सम्पूर्ण देश को विशाल आर्थिक क्षेत्र में रूपान्तरित करने हेतु शासन के सभी स्तरों पर सुधार एवं सामाजिक स्तर पर व्यापक बदलाव लाने की आवश्यकता है ।

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