बढ़ती जनसंख्या पर निबंध | Essay on Increasing Population in Hindi.

# 1. जनसंख्या का परिचय (Introduction to Population):

जनसंख्या में वृद्धि देश की प्रभुसत्ता के लिये सबसे बड़ा खतरा है । जनसंख्या के आकार के सन्दर्भ में, भारत की स्थिति चीन के पश्चात दो नम्बर पर है । हमारी जनसंख्या, विश्व की जनसंख्या का लगभग 15 प्रतिशत है और इसका भौगोलिक क्षेत्र विश्व की भूमि के क्षेत्र का केवल 24 प्रतिशत है । भारत की जनसंख्या इस समय यू.एस.ए. और यू.एस.एस.आर. की मिश्रित जनसंख्या से कहीं अधिक है ।

इन दोनों देशों के पास विश्व भूमि का 12 प्रतिशत क्षेत्र है । तथापि, हमारे देश में जनसंख्या की बढती हुई प्रवृत्ति चिन्ता का विषय है । यह वास्तव में जनसंख्या विस्फोट है जो परमाणु विस्फोट से कहीं अधिक भयानक है । वास्तव में, इतनी बड़ी जनसंख्या के साथ, देश अपनी अन्य आर्थिक समस्याओं जैसे निर्धनता, असमानता और बेरोजगारी के साथ लड़ने में असमर्थ है ।

# 2. जनसंख्या की वृद्धि की प्रवृत्तियां (Trends for Growth of Population):

वर्ष 1901 को जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या 236 मिलियन थी, तब से 80 वर्षों की अवधि में अर्थात् 1981 में यह 44.7 करोड़ से बढी । वर्ष 1991 को जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या 843 मिलियन अकित की गई । इस प्रकार पिछली जनगणना काल से 23.5 प्रति हजार की वृद्धि हुई थी ।

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यह तथ्य तालिका 7.1 से स्पष्ट है:

भारत की जनसंख्या की वृद्धि को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है:

(क) स्थिर जनसंख्या का समय (1891-1921):

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किंग्जले डेविस के अनुसार भारत की जनसंख्या वर्ष 1800 से लगभग 50 वर्षों तक लगभग 125 मिलियन पर स्थिर रही । जनसंख्या की प्रथम गणना 1881 में रिकार्ड की गई तथा 1921 के लिये गणना 1.47 करोड़ बड़ी ।

जनसंख्या में यह वृद्धि निम्नलिखित कारणों से थी:

1. वर्ष 1891 से 1901 का समय (Period from 1891-1901):

इन दस वर्षों के दौरान, जनसंख्या 4 लाख लोगों से कम हुई, क्योंकि इन वर्षों के दौरान अकाल, प्लेग तथा मलेरिया के कारण बहुत से लोगों को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा ।

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2. वर्ष 1901 से 1911 का समय (Period from 1901-1911):

1901-1911 इस समय के दौरान जनसंख्या में लगभग 158 लाख की वृद्धि हुई । इसी वृद्धि का कारण अकाल न पड़ना तथा मृत्यु दर में कमी का होना था ।

3. वर्ष 1911 से 1921 तक का समय (Period from 1911-1921):

इस समय के दौरान अकाल, प्लेग, मलेरिया आदि के कारण जनसंख्या लगभग 7 लाख कम हो गई । इक्यूएंजा के कारण देश में 140 लाख लोगों की मृत्यु हुई ।

(ख) जनसंख्या की तीव्र वृद्धि (1921-1951):

वर्ष 1921 तक जनसंख्या की वृद्धि का दर सामान्य अनियमित बना रहा । वर्ष 1921 का वर्ष महान विभाजन का वर्ष माना जाता है । जनसंख्या वृद्धि की दर

1.0 और 1.35 प्रतिशत प्रति वर्ष ऊपर-नीचे होता रही ।

1. वर्ष 1921-1931 का समय (Period of 1921-1931):

इस समय के दौरान जनसंख्या में 276 से वृद्धि हुई ।

2. वर्ष 1931-41 का समय (Period of 1931-41):

वर्ष 1931 और 1941 की जनगणना ने क्रमशः और 30 प्रति मिलियन वृद्धि दर्ज की ।

3. वर्ष 1941 से 51 का समय (Period of 1941-51):

वर्ष 1951 में कुल जनसंख्या 361 मिलियन अर्थात् वर्ष 1941 से 42 मिलियन की वृद्धि थी । वर्ष 1921-51 तक के तीस वर्षों के दौरान वृद्धि 109 तथा औसत

3.63 मिलियन प्रति वर्ष थी ।

(ग) वर्ष 1961 के पश्चात जनसंख्या का विस्फोट:

वर्ष 1961 को जनसंख्या विस्फोट का वर्ष कहा जाता है । दस वर्षों के दौरान जनसंख्या में 781 लाख की वृद्धि हुई । जनसंख्या का वृद्धि दर 21.5 था ।

1. वर्ष 1951 से 1961 का समय:

इस दशक के दौरान जनसंख्या में 781 लाख की वृद्धि हुई ।

2. वर्ष 1961 से 1971 का समय:

वर्ष 1961 से 1971 के दौरान, जनसंख्या में 1090 लाख की वृद्धि हुई । जनसंख्या की वृद्धि दर 24.8% था ।

3. वर्ष 1971 से 1981 का समय:

इस समय के दौरान जनसंख्या में 1376 लाख की वृद्धि हुई । जनसंख्या की वृद्धि की दर 25% था ।

4. वर्ष 1981-91 का समय:

इस दशक के दौरान जनसंख्या 84.63 करोड़ थी । वृद्धि दर लगभग 23.8 प्रतिशत था ।

5. वर्ष 1991-2001 के समय:

इस समय के दौरान जनसंख्या 102.70 करोड़ थी एवं 21.34 प्रतिशत वृद्धि हुई ।

6. वर्ष 2001-2011 की अवधि काल में जनसंख्या 1210 मिलियन करोड़ थी ।

इस समय काल में 17.64 प्रतिशत वृद्धि हुई ।

# 3. भारत में जनसंख्या के लक्षण (Features of Population in India):

भारत की जनसंख्या के कुछ महत्वपूर्ण लक्षण निम्नलिखित हैं:

1. जनसंख्या के घनत्व का घटना-बढ़ना (Varying Density of Population):

जनसंख्या के घनत्व का अर्थ है प्रति वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में रहने वाले लोगों की संख्या । वर्ष 1951 में भारत में जनसंख्या का घनत्व 117 था जो वर्ष 2011 में 382 तक बढ गया । हरियाणा में जनसंख्या का घनत्व 573, पंजाब का 550 तथा हिमाचल प्रदेश में 123 था ।

2. ग्रामीण शहरी जनसंख्या (Rural Urban Population):

भारत में शहरी जनसंख्या की प्रतिशतता बढ़ रही है । वर्ष 1951 की जनगणना के अनुसार ग्रामीण जनसंख्या कुल जनसंख्या का 83 प्रतिशत थी और शहरी जनसंख्या 17 प्रतिशत । वर्ष 1991 में ग्रामीण जनसंख्या का प्रतिशत 69 प्रतिशत तक घट गया तथा 2011 में शहरी जनसंख्या 31 प्रतिशत तक बढ़ गई ।

3. आयु की संरचना (Age Structure):

भारतीय जनसंख्या का ढाँचा भी तीव्रता से परिवर्तित हो रहा है । वर्ष 1951 में 0-14 वर्ष की आयु वर्ग के लोगों की गिनती 31.1 प्रतिशत थी, 15 से 64 वर्ष के वर्ग की संख्या 63.6% थी और 64 वर्ष से ऊपर की जनसंख्या 5.3 प्रतिशत थी । वर्ष 2011 में इन्हीं आयु वर्गों की 8 और 9 प्रतिशत थी ।

4. जीवन की प्रत्याशा (Expectancy of Life):

वर्ष 1951 में एक भारतीय की औसत आयु 67.6 वर्ष थी जो वर्ष 2011 में 64.6 वर्ष तक बढ़ गई ।

5. लिंग अनुपात (Sex Ratio):

वर्ष 1951 में 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या 946 थी जबकि 2011 में 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की गणना 940 रह गई ।

6. साक्षरता (Literacy):

वर्ष 1981 में साक्षरता का दर 44 प्रतिशत था, वर्ष 1991 में भारत की जनसंख्या का केवल 52 प्रतिशत भाग साक्षर था । 2011 में पुरुष साक्षरता दर 82.14% तथा स्त्री साक्षरता दर 65.46% थी ।

7. जनसंख्या का व्यवसायिक आबंटन (Occupation Distribution of Population):

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या का 64 प्रतिशत भाग कृषि में व्यस्त था, 20.4 प्रतिशत उद्योगों में और 29.4 प्रतिशत सेवाओं में कार्यरत था ।

# 4. वर्ष 2026 तक जनसंख्या का प्रक्षेपण (Population Projection by 2026):

जनसंख्या पर राष्ट्रीय आयोग द्वारा मई 2006 को निर्मित जनसंख्या प्रक्षेपणों पर तकनीकी वर्गों ने वर्ष 2001 से 2026 तक जनसंख्या के प्रक्षेपण तैयार किये हैं । इसलिये तालिका 7.2 इन प्रक्षेपण को विस्तार में प्रस्तुत करती है ।

तालिका 7.2 से स्पष्ट है कि भारत की दर्शायी गई जनसंख्या का 2001 और 2011 में अनुमान, 1029 और 1,193 मिलियन है और 2021 में 1,340 मिलियन तथा 2026 में 1,400 मिलियन । यह वार्षिक जनसंख्या वृद्धि भी दर्शाती है जिसकी धीरे-धीरे वर्ष 2026 के अन्त तक 1.6 प्रतिशत से 0.9 प्रतिशत घटने की सम्भावना है ।

सुपरिचित ‘जनसांख्यिक लाभ’ 15 से 64 वर्षों के क्रियाशील आयु वर्ग के जनसंख्या अनुपात में व्यक्त होंगे । यह धीरे-धीरे 62.9 प्रतिशत से बढ़ कर 2026 में 68.4% हो जायेगा । जनसांख्यिक लाभ का वास्तविक निष्कासन यद्यपि उचित स्वास्थ्य सम्भाल सुनिश्चित करने तथा अन्य मानवीय साधन विकास जैसे शिक्षा पर बहुत निर्भर करेगा ।

i. जन्म दर तथा मृत्यु दर (Birth Rate and Death Rate):

यह माना हुआ तथ्य है कि जनसंख्या की प्रवृत्ति केवल जन्म और मृत्यु दरों का फलन नहीं है परन्तु स्थानान्तरण की दिशा का स्तर भी है । परन्तु भारत के सन्दर्भ में स्थानान्तरण महत्वपूर्ण कारक नहीं है । तथापि, भारत की जनसंख्या समस्या को समझने के लिये, वर्तमान शताब्दी के आरम्भ होने से जन्म एवं मृत्यु दरों को प्रमुखता देना उचित होगा । तालिका 7.3 जन्म और मृत्यु दरों का स्पष्ट चित्रण करती है ।

स्वतन्त्रता पूर्व काल में जन्म और मृत्यु दर दोनों ही बहुत ऊंचे थे । जो आगामी काल में बहुत गिर गये । 1901-1911 की जनगणना के अनुसार जन्म दर 49.2 प्रति हजार थी जबकि मृत्यु दर 42.6 प्रति हजार रिकार्ड की गई । वर्ष 1951-61 के दौरान जन्म दर स्पष्टता 41.7 प्रति हजार देखी गई जबकि मृत्यु दर 22.8 था ।

वर्ष 1961-71 में जन्म दर 41.2 प्रति हजार तथा मृत्यु दर 19.0 प्रति हजार तक घट गई जिससे जनसंख्या को 22.2 व्यक्ति प्रति हजार की प्राकृतिक वृद्धि प्राप्त हो गई । संक्षेप में अन्तिम चार-पाँच दशकों में जन्म दर में गिरावट की वही दर है ।

दूसरी ओर, बेहतर चिकित्सक सुविधाओं के कारण मृत्यु दर बहुत कम हो गई है । पुन: पिछले 50 वर्षों में, शिशु मृत्यु दर में निरन्तर गिरावट आई है । चेचक जोकि एक अति घातक रोग था अब पूर्णतया नियन्त्रण में है । फलतः जनसंख्या का प्राकृतिक वृद्धि दर बढ़ कर अधिकतम 22.21 प्रति हजार अथवा, 1961-81 के दौरान 2.2% प्रतिवर्ष तक पहुंच गया ।

वर्ष 1991-92 में जन्म दर और मृत्यु दर क्रमशः 28.6 और 9.2 प्रति हजार अंकित किया गया । वर्ष 2001-02 में यह 25.0 और 8.1 प्रति हजार था जो पुन: 23.8 और 7.6 प्रति हजार तक गिर गया । वर्ष 2010-11 में जन्म दर 21.8 प्रति हजार व 7.1 मृत्यु दर थी ।

ii. लिंग अनुपात (Sex Ratio):

लिंग अनुपात का अर्थ है कि प्रति हजार पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या । भारत की स्थिति अन्य देशों से बिल्कुल भिन्न है । उदाहरणतया रूस में प्रति हजार पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या 1170 थी । यू. के. में 1060 तथा यू. एस. ए. में 1050 थी जबकि 1991 की जनगणना के अनुसार भारत में यह 927 थी ।

तालिका 7.4 दर्शाती है कि 1901 में भारत में लिंग अनुपात 972 प्रति हजार था जोकि वर्ष 1921 में 953 तक तथा वर्ष 1931 में 950 तक गिर गया । पुन:, वर्ष 1951 में लिंग अनुपात 946 तक गिर गया, वर्ष 1981 में यह 934 तथा 1971 में 930 प्रति हजार था ।

वर्ष 1991 में यह 927 प्रति हजार दर्ज की गई तथा 2001 में व 2011 में 929 हो गई । प्रान्त अनुसार केरला में स्त्रियों की संख्या पुरुषों से अधिक है वहां प्रति हजार पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या 1040 है । सबसे कम स्त्रियों का अनुपात सिक्किम में 832 रिकार्ड किया गया । केन्द्र शासित प्रदेशों में अण्डेमान और निकोबार द्वीपों में यह अनुपात 760 पर न्यूनतम है ।

iii. शहरी ग्रामीण जनसंख्या (Rural Urban Population):

किसी देश की ग्रामीण शहरी जनसंख्या का अनुपात उस देश के औद्योगिकीकरण के स्तर की सूचक है । जैसे ही उद्योग गति पकड़ते हैं तो शहरी जनसंख्या बढ़ना आरम्भ कर देती है क्योंकि भारत मुख्यता: एक कृषि प्रधान देश है, शहरी जनसंख्या ग्रामीण जनसंख्या से कम है ।

तालिका 7.5 वर्ष 1901 से ग्रामीण शहरी जनसंख्या का अनुपात प्रदर्शित करती है । वर्ष 1991 की जनसंख्या दर्शाती है की लगभग 25.7 प्रतिशत जनसंख्या अर्थात 78.6 करोड़ लोग शहरी क्षेत्रों में रह रहे थे । इसके विरुद्ध जनसंख्या का 69% भाग अर्थात् 84 करोड़ लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते थे । इसका अर्थ है कि भारत के आर्थिक जीवन में उद्योगों की भूमिका सापेक्षतया कम है ।

तालिका 7.5 दर्शाती है कि पिछले 100 वर्षों में देश की शहरी जनसंख्या की प्रतिशतता में वृद्धि हुई है तथा यह 11 प्रतिशत से बढ़ कर 31 प्रतिशत तक पहुंच गई है । इससे प्रमाणित होता है कि भारत के आर्थिक जीवन में शहरों की भूमिका बढ़ रही है, परन्तु इस दिशा में उन्नति बहुत धीमी है ।

विकसित देशों की तुलना में, शहरों की संख्या और शहरी क्षेत्री में रहने वाले लोगों की जनसंख्या का अनुपात बहुत नीचा है । जनसंख्या का केवल 26 प्रतिशत भाग शहरी क्षेत्रों में रहता है जबकि यूके में जनसंख्या का 80 प्रतिशत भाग, यू.एस.ए. में 74 प्रतिशत, जापान में 72 प्रतिशत रूस में 60 प्रतिशत तथा फ्रांस में 52 प्रतिशत भाग शहरी क्षेत्रों में रहता है ।

शहरी जनसंख्या में वृद्धि के कारण (Causes for Increase in Urban Population):

शहरी जनसंख्या में वृद्धि के दो मुख्य कारण हैं:

1. प्रवास प्रभाव (Migration Effect):

भारत में ग्रामीण लोगों को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता जैसे रोजगार के कम अवसर, आय का निम्न स्तर, शिक्षा सुविधाओं का अभाव, स्वास्थ्य एवं चिकित्सक सुविधाओं का अभाव । अतः इन कठिनाइयों से छुटकारा पाने के लिये ग्रामीण लोग शहरों में स्थानान्तरण कर लेते हैं ।

2. आकर्षण प्रभाव (Attraction Effect):

शहरी जीवन के अपने आकर्षण हैं । ग्रामीण लोग इन आकर्षणों से प्रभावित होकर कस्बों और शहरों में रहने का निर्णय लेते हैं ।

राष्ट्रीय सैम्पल सर्वे अनुसार – ”ग्रामीण पुरुषों के शहरों में प्रवास का मुख्य कारण रोजगार है तथा स्त्रियों का वैवाहिक सम्बन्ध ।”

आयु का ढांचा (Age Structure):

आयु का ढांचा जननक्षमता, मृत्यु और प्रवास के इतिहास का सूचक है । भारत में वर्ष 1951 से आयु ढांचे को तालिका 7.6 में दर्शाया गया है ।

तालिका 7.6 वर्ष 1951-1991 के दौरान आयु आबंटन में स्थिरता दर्शाती है ।

0-14 वर्षों के आयु वर्ग इन काल के दौरान, लोगों के अनुपात में बहुत थोड़ा परिवर्तन हुआ । वर्ष 1961 और 1971 की जनगणना दौरान, इस छोटे आयु वर्ग की जनसंख्या के अनुपात में वृद्धि हुई, यह वृद्धि विशेषतया बच्चों के मृत्यु दर कमी के कारण हुई ।

वर्ष 1981 तक, 1960 और 1970 के दशकों में जनसंख्या वृद्धि का दर वास्तव में स्थिर रहने के बावजूद 0-14 की आयु वर्ग के बच्चों का अनुपात तथा युवा-अनुपात घटा है । यह जनक्षमता के दरों में गिरावट के कारण था । 60 अथवा इससे ऊपर आयु का अनुपात जिसने वर्ष 1971 तक वृद्धि दर्शायी थोडा और बढ कर 6.2 के अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच गया, 15 से 59 वर्ष के क्रियाशील आयु वर्ग की जनसंख्या का अनुपात वर्ष 1971 से 1991 के दौरान वर्ष 1961 की जनगणना में दर्शाये मूल्य से बढ़ गया ।

इसके अतिरिक्त आशा की जाती है कि जनन क्षमता गिरावट की यदि मृत्यु दर में गिरावट द्वारा क्षतिपूर्ति नहीं की जाती तो निचले आयु वर्गों में जनसंख्या का अनुपात नीचा हो जायेगा ।

iv. जीवन की प्रत्याशा (Expectation of Life):

जीवन की प्रत्याशा का अर्थ है किसी राष्ट्र के लोगों की औसत आयु । भारत में आयोजन के आरम्भ से पूर्व जीवन की प्रत्याशा बहुत कम थी । परन्तु भारत में आयोजन के आरम्भ होने से इसने स्थिरतापूर्वक सुधरना आरम्भ कर दिया है । उदाहरणतया, वर्ष 1921 में जीवन की प्रत्याशा 19.4 वर्ष थी जो 1931 में 26.9 वर्षों तक बढ़ गई ।

वर्ष 1951 में यह 33 वर्ष, 1971 में 52 वर्ष और वर्ष 1991 में 59 वर्ष थी । वर्ष 2001 में जीवन की प्रत्याशा 66.2 वर्ष रिकार्ड की गई जैसा कि तालिका 7.7 में दिखाया गया है । यद्यपि ए. के. दास गुप्ता का विचार है कि आर्थिक विकास की प्रक्रिया में, जनसंख्या का वृद्धि दर उतना निर्धारक कारक नहीं है जितनी कि जीवन की प्रत्याशा ।

उसके अनुसार, आर्थिक विकास के सन्दर्भ में जीवन की प्रत्याशा का महत्व ठीक प्रकार से पहचाना नहीं गया है । भारत जैसे देश में बचत का निम्न दर भी जीवन की निम्न प्रत्याशा के कारण ।

v. साक्षरता (Literacy):

वर्ष 1991 की जनगणना से स्पष्ट है कि भारत की जनसंख्या का 52% भाग पढ़ा-लिखा था । इनमें 64% पुरुष और 40% स्त्रियाँ हैं । राजस्थान में साक्षरता की दर 24% तक नीचा है जबकि केरल ने देश में सबसे ऊंची दर प्राप्त की है । पंजाब में साक्षरता दर 41%, हरियाणा में 36% और हिमाचल प्रदेश में 42% है ।

यू. के., यू. एस. ए. और फ्रांस जैसे विकसित देशों में साक्षरता का अनुपात 90% से 95% के बीच है । वर्ष 1991 से 2001 की दस वर्षीय अवधि में सभी राज्यों तथा केन्द्र शासित क्षेत्रों में शिक्षित जनसंख्या में वृद्धि हुई है । वर्ष 2011 में, देश का साक्षरता दर 74.4 प्रतिशत रिकार्ड किया गया जिनमें 82.14% पुरुष और 65.46% स्त्रियां हैं ।

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