प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) पर निबंध! Here is an essay on ‘Foreign Direct Investment’ in Hindi language.

वर्तमान समय में वैश्वीकरण की अवधारणा बहुत हावी है । यह बह समय है, जब कोई देश शेष विश्व से कटकर नहीं रह सकता । आज के दौर में सभी देशों की पारस्परिक निर्भरता काफी हद तक बढ़ गई है । इससे उनकी आर्थिक नीतियाँ एवं उनकी अर्थव्यवस्था भी अत्यधिक प्रभावित हुई है ।

कोई भी देश अपने आप में सम्पूर्ण नहीं होता । अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप उसे दूसरे देशों के साथ व्यापारिक साझेदारी करनी ही पड़ती है । यदि वह अपने आप में ही सिमट कर रह जाएगा, तो उसके विकास की गीत मन्द पड जाएगी । भारत भी इस बात को भली-भांति समझ चुका है, इसलिए उसने अपनी पुरानी नीतियों में बड़ा बदलाव करते हुए वर्ष 2011 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment) से सम्बन्धित नीतियों में सुधार किया है ।

‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ क्या है? यह इसके नाम से ही स्पष्ट हो जाता है । प्रत्यक्ष का अर्थ होता है-स्पष्ट रूप से दिखाई देने वाला । इस प्रकार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का तात्पर्य उस स्थिति से है, जब कहे औद्योगिक इकाई अपने देश के अतिरिक्त किसी दूसरे देश में अपनी व्यापार सम्बन्धी सम्भावनाओं का विस्तार करते हुए सीधे तौर पर वहाँ निवेश करें ।

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इसके अन्तर्गत मुख्य रूप से किसी इकाई का अधिग्रहण करना, व्यापार को बढ़ावा देना, सेवाओं में बढ़ोतरी करना आदि शामिल हैं । इसके अन्तर्गत शेयरों की खरीदारी के माध्यम से किए जाने वाले निवेश को शामिल नहीं किया जाता। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आज हर राष्ट्र की अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक हो गया है, हालाँकि भारतीय अर्थव्यवस्था को इसे अपनाने में काफी समय लगा ।

वर्ष 1947 में स्वतन्त्रता मिलने के बाद भारत ने सार्वजनिक अर्थव्यवस्था के प्रतिरूप को अपनाया । इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में सरकार की भूमिका ही मुख्य होती है तथा अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित सभी क्षेत्रों की जिम्मेदारी उसी के कन्धों पर होती है ।

अर्थव्यवस्था के इस प्रतिरूप के अन्तर्गत लघु उद्योगों से लेकर भारी उद्योगों पर केवल सरकार का ही नियन्त्रण होता है । इसमें निजी क्षेत्र के विस्तार की सम्भावनाएं बहुत-ही सीमित होती है । उस समय भारत सरकार का यह कदम उचित था ।

आखिरकार उसे विश्व के सामने यह सिद्ध करना था कि भारतीय स्वतन्त्र रहकर अधिक तेजी से विकास कर सकते हैं और उनमें एक लम्बे समय के संघर्ष के बाद मिली हुई स्वतन्त्रता को बरकरार रखने की काबिलियत है । उस समय भारत सरकार ईस्ट इण्डिया कम्पनी की भांति किसी विदेशी कम्पनी को भारत में आकर निवेश करने देने की छूट देकर पुरानी गलती को दोहरा नहीं सकती थी ।

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विकास को गति देने के लिए सरकार ने पंचवर्षीय योजनाओं पर ध्यान दिया, जिनसे देश को काफी लाभ हुआ, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था इतनी विशाल थी कि अकेले सरकार के लिए उसे सम्भालना सम्भव नहीं था । अस्सी के दशक तक आते-आते सरकार को सभी क्षेत्रों में घाटा होने लगा और सेवाओं की गुणवत्ता में भी कमी आने लगी ।

अन्तराष्ट्रीय स्तर पर रुपये की कीमत गिरने लगी । भारत का आयात बढ़ता ही जा रहा था और निर्यात कम होता जा रहा था । वर्ष 1990-91 के दौरान सरकार का विदेशी-मुद्रा भण्डार लगभग समाप्त हो चुका था और वह अपने आयात के बिलों का भुगतान करने में विफल हो रही थी, तब मजबूरन भारत को अपने स्वर्ण भण्डार को गिरवी रखकर ऋण लेना पडा । यह दौर भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे बुरा दौर था ।

इस स्थिति ने भारत को अपनी अर्थव्यवस्था सम्बन्धी नीतियों की पुन समीक्षा करने के लिए विवश कर दिया । तब भारत ने वर्ष 1991 में अर्थव्यवस्थागत सुधार के लिए नई नीति का निर्धारण किया और उदारीकरण, आधुनिकीकरण एवं वैश्वीकरण को अपनी अर्थव्यवस्था में जगह दी । यहाँ से भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को स्वीकृति मिली और साथ में अर्थव्यवस्था का स्वरूप सार्वजनिक से बदलकर मिश्रित हो गया अर्थात् सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र दोनों के लिए अर्थव्यवस्था में भागीदारी के अवसर उपलब्ध हुए ।

वर्ष 1995 में भारत ने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार संगठन (WTO) की सदस्यता हासिल की । इसके बाद सरकार ने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार संगठन के साथ हुए समझौतों को धीरे-धीरे पूरा करना आरम्भ किया । वर्ष 1997 में सरकार ने होलसेल के क्षेत्र में एफडीआई की सीमा 100% कर दी और वर्ष 2006 में सिंगल ब्राण्ड रिटेल के क्षेत्र में भी एफडीआई को 51% की मंजूरी दे दी, जो वर्ष 2011 में बढ़ाकर 100% कर दी गई ।

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इसी क्रम में आगे बढ़ते हुए सरकार ने सितम्बर, 2012 में मल्टी ब्राण्ड खुदरा कारोबार में 51% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी दी । वर्तमान समय में सिंगल ब्राण्ड रिटेल कारोबार में 100% विदेशी निवेश को स्वीकृति प्राप्त है, जिसके अन्तर्गत विज्ञापन, एयरपोर्ट, कोल्ड-स्टोरेज, बीपीओ-कॉल सेण्टर, ई-कॉमर्स, ऊर्जा (परमाणु ऊर्जा के अतिरिक्त) एक्सपोर्ट ट्रेडिंग हाउस, फिल्म, होटल, पर्यटन, मेट्रो रेल, खान, टेह।कॉम, टाउनशिप, पोस्टल सेवा, रोड, हाई-वे, बन्दरगाह, प्रदूषण नियन्त्रण, फार्मास्युटिकल, पेट्रोलियम आदि क्षेत्र शामिल हैं ।

इनके अतिरिक्त, रक्षा क्षेत्र, अखबार एवं मीडिया, पेंशन सेक्टर, कोरियर सेवा तथा टी प्लाण्टेशन में एफडीआई की सीमा 26%, बैंकिंग, केबल नेटवर्क, डीटीएच, इंफ्रास्ट्रक्चर, पेट्रोलियम रिफायनरी में 49%, परमाणु खनिजों, वैज्ञानिक पत्रिका, जर्नल, पेट्रो मार्केटिंग, कोल एण्ड लिग्नाइट खान में 74% तथा मल्टी ब्राण्ड रिटेल में 51% एफडीआई को स्वीकृति प्राप्त है ।

आज के दौर में किसी भी देश के लिए एफडीआई बहुत लाभदायक है । एफडीआई को स्वीकृति मिलने से देश को कई प्रकार के आर्थिक लाभ होते है । इससे सबसे बड़ा लाभ तो यह होता है कि इसके आने से बाजार में पूंजी की मात्रा बढ़ती है, जिससे औद्योगिक क्षेत्रों को विस्तार मिलता है और उत्पादन में वृद्धि होती है ।

दूसरी ओर, एफडीआई से सरकार पर पढ़ने वाला आर्थिक बोझ कम होता है तथा साथ ही राजस्व की मात्रा में वृद्धि भी होती है । विदेशी निवेशकों के आने से बाजार में प्रतिस्पर्द्धा में भी वृद्धि होती है जिससे उपभोक्ता वर्ग को सीधा लाभ होता है । बाजार में प्रतिस्पर्द्धा बढने से उपभोक्ताओं को कम कीमत पर अच्छी गुणवत्ता वाली वस्तुएँ मिलती हैं ।

विदेशी निवेश से न केवल आर्थिक लाभ होता है, बल्कि, और भी कई प्रकार के अप्रत्यक्ष लाभ होते हैं । जब विदेशी कम्पनियाँ किसी दूसरे देश में निवेश करती हैं, तो केवल पूजा का ही निवेश नहीं करती, वे अपने साथ आधुनिक तकनीक भी लाती है जिससे मेजबान देश को दोहरा लाभ होता है । 

आज अमेरिका और ब्रिटेन जैसे विकसित देशों की अर्थव्यवस्था काफी मजबूत है, तो इसका सबसे अधिक श्रेय एफडीआई को जाता है इन देशों में दिल खोलकर एफडीआई का स्वागत किया जाता है, जिसका परिणाम पूरे विश्व के सामने है ।

वर्ष 1991 के बाद से भारत में भी एफडीआई को स्वीकृति दी गई है लेकिन अभी भी भारत में इसकी राह में अनेक बाधाएँ हैं । यद्यपि सिंगल ब्राण्ड रिटेल में थोड़े -बहुत विरोध के बाद भारत में एफडीआई का प्रवेश आसानी से हो गया था, लेकिन मल्टी ब्राण्ड खुदरा कारोबार में एफडीआई का काफी विरोध हो रहा है ।

मल्टी ब्राण्ड खुदरा कारोबार में एफडीआई को सरकारी अनुमति मिलने से विदेशी कम्पनियाँ भारत में भी अपने स्टोर खोल सकेंगा, हालाँकि राज्यों में ऐसे स्टोर खुलेंगे या नहीं, इस बारे में फैसला लेने का अधिकार राज्यों पर ही छोड दिया गया है ।

अब विदेशी मल्टी ब्राण्ड कम्पनियाँ भारत में भारत की कम्पनियों के साथ मिलकर काम कर सकेगी । इसमें सबसे खास बात यह है कि विदेशी कम्पनियों की भागीदारी 51% से अधिक नहीं होगी ।  मल्टी ब्राण्ड खुदरा कारोबार में एफडीआई के समर्थकों का तर्क है कि इससे देश में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, किसानों की स्थिति सुधरेगी, बिचौलियों की भूमिका खत्म हो जाएगी और रुपये की हालत में सुधार होगा ।

इन सबका लाभ देश की जनता को मिलेगा, उन्हें सस्ती दरों पर अच्छी वस्तुएँ मिलेगी, लेकिन दूसरी ओर इसके विरोधी भी कम नहीं है । खुदरा व्यापार में एफडीआई का सबसे अधिक विरोध व्यापारियों द्वारा किया जा रहा है । उनका कहना है कि इससे देश में बेरोजगारी को बढावा मिलेगा और स्वदेशी लघु उद्योग चौपट हो जाएंगे, क्योंकि बे बॉलमार्ट और केस्को जैसी बडी कम्पनियों का सामना नहीं कर पाएंगे ।

उनका कहना है कि देश में एक वॉलमार्ट के खुलने से 1800 खुदरा व्यापारी बेरोजगार हो जागे, तो सोचिए कि देश में बेरोजगारी की दर किस भयानक स्तर पर पहुँच सकती है । आज जब अमेरिका समेत कई देशों से वॉलमार्ट और केस्को जैसी कम्पनियों की छुट्टी हो रही है, तो हम क्यों उन्हें भारत आन का निमन्त्रण दे रहे हैं? कई राजनीतिक दल भी खुदरा व्यापार में एफडीआई का विरोध कर रहे हैं ।

उनके अनुसार, सरकार के इस कदम से देश आर्थिक गुलामी की ओर ही अग्रसर होगा । यह स्पष्ट है कि एफडीआई से लाभ और हानि दोनों ही सम्भव है, लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए इस समय सिंगल ब्राण्ड और मल्टी ब्राण्ड खुदरा कारोबार, दोनों में ही एफडीआई की तत्काल आवश्यकता है ।

भारत एक विशाल आबादी वाला देश है, इसलिए इसकी जरूरतों को पूरा करने के लिए विदेशी निवेश को प्रोत्साहन देना ही होगा ।  हो सकता है कि आरम्भ में इससे कुछ मुश्किलें पैदा हो, परन्तु यदि सरकार अपनी भूमिका को ठीक प्रकार से निभाए और नागरिकों के हितों को प्रमुखता दे, तो एफडीआई से लाभ होने की सम्भावनाएं अधिक हैं ।

दूसरी बात यह है कि विदेशी निवेशकों द्वारा अभी भी भारत में निवेश करना आसान नहीं है । यही वजह है कि वर्ष 2012 से लेकर अब तक भारत में विदेशी निवेश में कोई विशेष वृद्धि नहीं हुई है यानि कि भारत में निवेश करना इतना भी सरल नहीं है, इसलिए भारतीय उद्योगों को एफडीआई का विरोध करने के स्थान पर स्वयं को मजबूत बनाने का प्रयास करना चाहिए । इसी में न का हित निहित है ।

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