कैलाश सत्यार्थी की जीवनी | Essay on Kailash Satyarthi in Hindi language.

कैलाश सत्यार्थी सामाजिक कार्यकता और ‘बचपन बचाओ आन्दोलन’ के संस्थापक अध्यक्ष हैं । सम्प्रति वे ‘ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर’ के अध्यक्ष भी हैं । बचपन बचाओ आन्दोलन में लगभग 70,000 स्वयंसेवक हैं, जो लगातार मासूमों के जीवन में खुशियों के रंग भरने के लिए कार्यरत हैं ।

उन्होंने अब तब 80 हजार से अधिक बच्चों की जिन्दगी बदली है । 11 जनवरी, 1954 को मध्य प्रदेश के विदिशा में जन्मे कैलाश सत्यार्थी ने भोपाल गैस त्रासदी के राहत अभियान में भी जमकर काम किया । पिछले दो दशकों से वे बालश्रम के विरुद्ध आवाज उठा रहे हैं और इस आन्दोलन को वैश्विक स्तर पर ले जाने के लिए जाने जाते हैं ।

पेशे से इलेक्ट्रानिक इंजीनियर रहे कैलाश सत्यार्थी ने कम उम्र में ही कैरियर छोड़कर बच्चों के लिए कार्य करना शुरू कर दिया । उन्होंने ‘बचपन बचाओ आन्दोलन’ (बालश्रम के खिलाफ) की स्थापना वर्ष 1983 में की । उनके अनुसार, बाल मजदूरी महज एक बीमारी नहीं है, बल्कि कई बीमारियों की जड है । इसके कारण कई जिन्दगियाँ तबाह होती हैं । कैलाश सत्यार्थी का मानना है कि जमीनी स्तर पर कोई भी काम करना नहीं चाहता । सेवा ने अब एक व्यवसाय का रूप ले लिया है ।

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समस्या को खत्म करने में किसी की दिलचस्पी नहीं है अगर होती तो बाल मजदूरी कब की खत्म हो गई होती । दिल्ली और मुम्बई जैसे देश के बड़े शहरों की फैक्ट्रियों में बच्चों के उत्पीड़न से लेकर ओडिशा और झारखण्ड के दूरवर्ती इलाकों से लेकर देश के लगभग हर कोने में उनके संगठन ने बँधुआ मजदूरी के खिलाफ कड़े कानून बनाने की वकालत की ।

गैर-सरकारी संगठनों तथा कार्यकर्ताओं की सहायता से कैलाश सत्यार्थी ने हजारों ऐसी फैक्ट्रियों तथा गोदामों पर छापे पड़वाए, जिनमें बच्चों से काम करवाया जा रहा था ।  उन्होंने ‘रगमार्क’ की शुरूआत की, जो इस बात को प्रमाणित करता है कि तैयार कार्पेट (कालीन) तथा अन्य कपड़ों के निर्माण में बच्चों से काम नहीं करवाया गया है । ‘रगमार्क’ दक्षिण एशिया में दिया जाता है ।

इस पहल से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बाल अधिकारों के प्रति जागरूकता पैदा करने में काफी सफलता मिली । कैलाश सत्यार्थी ने विभिन्न रूपों में प्रदर्शनों और परिकल्पना एवं नेतृत्व को अंजाम दिया, जो सभी शान्तिपूर्ण ढंग से पूरे किए गए । बाल मजदूरी को लेकर और इससे उन्हें संगठित आन्दोलन खड़ा करने में मदद मिली ।

बाल मजदूरी कराने वाली फैक्ट्रियों में छापेमारी के उनके प्रारम्भिक प्रयास का फैक्ट्री मालिकों ने कड़ा विरोध किया तथा कई बार पुलिस ने भी उनका साथ नहीं दिया, किन्तु धीरे-धीरे उनके काम की महत्ता को पहचान मिली । 17 मार्च, 2011 को दिल्ली की एक कपड़ा फैक्ट्री पर छापे के दौरान उन पर हमला किया गया ।

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इससे पहले वर्ष 2004 में ग्रेट रोमन सर्कस से बाल कलाकारों को छुड़ाने के दौरान हमला हुआ, किन्तु दृढ़ इच्छाशक्ति वाले और कर्त्तव्यनिष्ठ कैलाश सत्यार्थी इस दिशा में आगे बढ़ते गए । कैलाश सत्यार्थी ने बच्चों के लिए आवश्यक शिक्षा को लेकर शिक्षा के पूर्ण अधिकार का आन्दोलन चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।

सत्यार्थी द्वारा किए गए इन महत्वपूर्ण कार्यों को ध्यान में रखते हुए उन्हें वर्ष 2014 के नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा की गई । यह पुरस्कार उन्हें पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई के साथ संयुक्त रूप से दिया गया है ।

नोबेल मिलने पर उन्होंने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा- ”यह सम्मान सवा सौ करोड़ भारतीयों का सम्मान है । यह भारत के लोकतन्त्र की जीत है, जिसकी वजह से भारत से यह लड़ाई आरम्भ हुई और आज दुनिया में हम जीत रहे हैं । यह उन बच्चों की भी जीत है, जो अपनी जिन्दगी बदलने के कड़े संघर्ष में जुटे हैं ।”

इस प्रतिष्ठित सम्मान से पूर्व कैलाश सत्यार्थी को कई सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है, जिनमें प्रमुख है- डिफेण्डर्स ऑफ डेमोक्रेसी अवार्ड (2009 अमेरिका), मेडल ऑफ द इटालियन सीनेट (2007 इटली), फ्रीडम अवार्ड (2006 अमेरिका), रॉबर्ट ऑफ केनेडी इण्टरनेशनल ह्यूमन राइट्‌स अवार्ड (1995 अमेरिका), फ्रेडरिक एबर्ट इण्टरनेशनल ह्यूमन राइट्स अवार्ड (जर्मनी) ।

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कैलाश सत्यार्थी भारत में जन्मे पहले व्यक्ति हैं, जिन्हें नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है । नोबेल कमेटी ने अधिकारिक बयान में कहा कि कैलाश सत्यार्थी ने बहुत-से विरोध प्रदर्शन किए, लेकिन उन्होंने महत्मा गाँधी की शान्ति और अहिंसा की परम्परा को कायम रखा ।

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