नैनो टेक्नोलॉजी पर निबंध! Here is an essay on ‘Nano Technology’ in Hindi language.

आज से कुछ समय पूर्व तक मानव कल्पना भी नहीं कर सकता था कि आने वाले समय में ऐसी तकनीक विकसित की जा सकेगी, जिसकी सहायता से स्वतः निर्णय के आधार पर कार्य करने बाले अन्तरिक्ष यान या युद्ध के दौरान रासायनिक एवं जैविक हथियारों से बचाव करने वाले बायोसेंसरयुक्त वस्त्र या रोगकारक कीटाणुओं पर नजर रखने हेतु हमारे शरीर के अन्दर लगाए जाने वाले सेंसरयुक्त बॉयोचिप या फिर अपने में विश्वभर की जानकारियाँ समेटे रेत के कण के आकार वाले का हर निर्मित किए जा सकेंगे, किन्तु आज नैनो टेक्नोलॉजी ने यह सब कर दिखाया है ।

दुनियाभर में ‘आधुनिक थॉमस अल्वा एडिसन’ के रूप में विख्यात अमेरिकी भविष्यवादी वैज्ञानिक रे कुर्जवील का कहना है- ”मैं और बहुत से अन्य वैज्ञानिक मानते हैं कि मात्र 20 वर्षों के पश्चात् नैनो टेक्नोलॉजी के जरिये हमारे पास अपने शरीर को पुन: प्रोग्रामिंग करने के तरीके आ जाएगी जिसके सहारे हम बुढ़ापे को रोक सकेंगे और उसे पीछे कर सकेंगे । रक्त की कोशिका के बराबर नैनोबाट्स का पशुओं पर पहले ही परीक्षण किया जा चुका है और इन्हें जल्द ही ट्‌यूमर ठीक करने खून के थक्के बनने से रोकने एवं बिना निशान डाले ऑपरेशन करने में प्रयोग किया जाएगा ।”

नैनो टेक्नोलॉजी दो शब्दों- नैनो और टेक्नोलॉजी के मेल से बना है, जहाँ नैनो का शाब्दिक अर्थ हैं-बौना और टेक्नोलॉजी का तकनीक । इस प्रकार, नैनो टेक्नोलॉजी का सामान्य अर्थ हुआ ‘सूक्ष्म तकनीक’ । वास्तव में, नैनो टेक्नोलॉजी ऐसा प्रायोगिक विज्ञान है, जिसमें 100 नैनोमीटर से भी छोटे कण प्रयोग में लाए जाते हैं ।

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इस तकनीक में प्रयोग किए जाने बाले पदार्थ नैनोमैटेरियल्स कहलाते हैं । इस अत्याधुनिक तकनीक ने विज्ञान जगत् में क्रान्ति ला दी है । आज भवन निर्माण सामग्री, वस्त्र उद्योग, घरेलू उपकरण वैज्ञानिक उपकरण, खाद्य कागज और पैकिंग उद्योग, चिकित्सा, स्वास्थ्य, खेल, ऑटोमोबाइल्स, कॉस्मेटिक्स, अन्तरिक्ष विज्ञान, कम्प्यूटर, सूचना प्रौद्योगिकी के साथ-साथ अनुसन्धान एवं विकास जैसे क्षेत्रों में नैनो टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जा रहा है ।

नैनो टेक्नोलॉजी को आण्बिक स्तर पर कार्यरत प्रणालियों की इंजीनियरिंग के रूप में परिभाषित किया जा सकता है । यह नैनो स्केल पर आधारित विज्ञान है । नैनो स्केल के अन्तर्गत वैसी वस्तुएँ आती है, जिनका मापन नैनोमीटर द्वारा सम्भव है । 1 से 100 नैनोमीटर तक की वस्तुओं को नैनो स्केल के अन्तर्गत रखा जाता है ।

नैनो स्केल से सम्बद्ध कुछ विशेष तथ्य- एक नैनोमीटर बराबर होता है एक मीटर के अरबवें भाग के अर्थात् 1 नैनोमीटर = 10-9 मीटर

समाचार-पत्र के एक पृष्ठ की मोटाई लगभग एक लाख नैनोमीटर के बराबर होती है ।

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वर्ष 1959 में अमेरिकन फिजीकल सोसायटी की बैठक में प्रसिद्ध भौतिकशास्त्री रिचर्ड फिनमैन ने ‘देयर इज प्लेंटी ऑफ रूम एट बॉटम’ शीर्षक से एक व्याख्यान दिया था, जिसमें उन्होंने एक ऐसी प्रक्रिया के बारे में विस्तारपूर्वक समझाया था, जिसके माध्यम से आने बाले समय में प्रत्येक अणु एवं परमाणु का नियन्त्रण एवं अनुप्रयोग सम्भव था । फिनमैन के इसी व्याख्यान को नैनो टेक्नोलॉजी तथा नैनो साइंस की अवधारणा का प्रारम्भ माना जाता है । उन्होंने कहा था- ”मैं एक साथ बिलियन छोटे कारखाने स्थापित करना चाहता हूँ ।”

इसके एक दशक से भी अधिक समय बीतने के पश्चात् जापान के वैज्ञानिक नोरियो तानिगुची ने ‘नैनो टेक्नोलॉजी’ शब्द प्रस्तुत किया, परन्तु वास्तव में वर्ष 1981 में ‘स्कैनिंग टनलिंग माइक्रोस्कोप’ के विकास के पश्चात् ही अकेले परमाणु को देख पाना सम्भव हो पाया और आधुनिक नैनो टेक्नोलॉजी की शुरूआत हुई । नैनो टेक्नोलॉजी के बिकास में सूक्ष्मदर्शियों के विकास से महत्वपूर्ण सहायता मिली ।

जहाँ स्कैन टनलिंग माइक्रोस्कोप से नैनो स्केल पर कणों को नियन्त्रित करना एवं विनिर्माण करना सम्भव हुआ, वहीं एटमिक फोर्स माइक्रोस्कोप का निर्माण होने पर सूक्ष्म कणों की सतह का यान्त्रिक अनुभव करने की सुविधा प्राप्त हुई । नैनो टेक्नोलॉजी की क्षमता का पूर्ण लाभ लेने हेतु नैनो उपकरणों, नैनो पदार्थों को आवश्यकता के अनुकूल डिजाइन करना आवश्यक है ।

इस सन्दर्भ में तीन घटक महत्वपूर्ण हैं:

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1. प्रत्येक परमाणु को यथार्थत: सही स्थान पर रखा जाए ।

2. संरचना का निर्माण भौतिकशास्त्री सिद्धान्तों के अनुरूप ही किया जाए, ताकि आण्विक स्तर पर इनकी व्याख्या तथा अनुप्रयोग सम्भव हो ।

3. किसी भी वस्तु के निर्माण की लागत उसमें प्रयुक्त पदार्थ एवं ऊर्जा से अधिक न हो ।

वैश्विक स्तर पर नैनो टेक्नोलॉजी के बढ़ते कारोबार के आधार पर ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि आने बाले दस वर्षों में विश्व बाजार में इस क्षेत्र की भागीदारी 340 विलियन डॉलर की होगी । इस तकनीक के प्रयोग के क्षेत्रों का दिनोंदिन विस्तार होता जा रहा है ।

नैनो टेक्नोलॉजी के द्वारा चिकित्सा उपकरणों व सेंसर का निर्माण कर सैन्य क्षेत्र सहित सामान्य लोगों को भी सहायता पहुँचाई जा सकती हे । पानी की सफाई करने, रासायनिक व जैविक हथियारों से त्वचा की रक्षा करने बाले वस्त्रों, ग्राफीन के प्रयोग वाले इलेक्ट्रॉनिक कण्डक्टर, ट्रांजिस्टर आदि के निर्माण में नैनो टेक्नोलॉजी का प्रयोग सम्भव है ।

ऊर्जा के क्षेत्रों में भी इसका व्यापक प्रयोग हो सकता है जैसे-नैनो आधारित ईंधन सेल, नैनोट्यूब वाले फ्लाईव्हील के निर्माण के साथ-साथ सूर्य प्रकाश को ऊर्जा में परिवर्तित करने में ।  खिड़कियों, कम्प्यूटरों, चश्मों, कैमरों इत्यादि की सतहों पर नैनो स्केल पतली परतों का प्रयोग स्वतः सफाई करने हेतु एवं जलरोधी, कुहासारोधी, खँरोचरोधी, विद्युतरोधी, पराबैंगनी किरणरोधी आदि रूपों में किया जाता है ।

खाद्य पदार्थ निर्माण, संसाधन सुरक्षा और डिब्बाबन्दी के सभी चरणों में यह तकनीक वर्तमान समय की माँग बन चुकी है ।  नैनो पार्टिकल्स का उपयोग उत्प्रेरक के निर्माण के साथ-साथ आवश्यकतानुसार उत्येरक पदार्थ की मात्रा को सयमित करने में भी किया जाता है, जिससे उत्पादन खर्च एवं प्रदूषण को कम करने में मदद मिलती हे । कृषि क्षेत्रों में भी इस तकनीक का उपयोग बढ़ता जा रहा है ।

नैनो सैलूलोज एवं नैनो उर्वरक आदि का निर्माण कर कृषि उत्पादन में क्रान्ति लाई जा सकती है । पोषक पदार्थ ग्राहक क्षमता व रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने बाले नैनो प्रोडक्ट्स किसानों के लिए वरदान साबित होंगे स्वास्थ्य व चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्रों में भी नैनो टेक्नोलॉजी का सार सिद्ध हो रही है ।

इससे स्मार्ट दवाओं के निर्माण में सहायता मिल सकती है, जो रोगों को बिना दुष्प्रभाब के तेजी से समाप्त कर सकती है । इस तकनीक से निर्मित नैनो लोशन कोशिकाओं को जवान व तन्दुरुस्त रखने के साथ-साथ बुढ़ापे व रोगों से भी बचाव करने में सहायक है । नैनो ट्यूब कैंसर जैसे रोगों के उपचार में भी काफ़ी उपयोगी है ।

इसके साथ-साथ कॉर्डियो-वैस्कुलर, स्कलेरोसिस, एल्जाइमर, पार्किंसंस, मधुमेह आदि रोगों में भी इस तकनीक के प्रयोग की व्यापक सम्भावना देखी जा रही है ।  इजराइल की तेल अवीव यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों ने मात्र एक परमाणु की मोटाई वाला नैनो रोबोट तैयार किया है, जो शरीर की धमनियों और शिराओं द्वारा औषधियों को शरीर के किसी भी भागों तक पहुँचा सकता है । ग्रीन नैनो टेक्नोलॉजी के माध्यम से पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान में भी काफी मदद मिल सकती है ।

नैनो टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भारत ने भी विकसित देशों की श्रेणी में स्वयं को स्थापित करने में सफलता पाई है । इस क्षेत्र में हमारा देश चौथे स्थान पर है । भारत में नैनो टेक्नोलॉजी के जनक ‘भारत रत्न’ से सम्मानित महान् वैज्ञानिक डॉ. सीएनआर राव को माना जाता है ।

इस क्षेत्र में नैनो ट्‌यूब्स व ग्राफीन के अलावा इन्होंने ट्रांजीशन मेटल ऑक्साइड सिस्टम, मेटल इंसुलेटर ट्राजीशन, सीएमआर मैटेरियल, सुपर कण्डक्टिविटी, मल्टीफेरीक्सी, हाईब्रिड मैटेरियल आदि पर महत्वपूर्ण शोध किए है । विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के तत्वावधान में वर्ष 2007 में राष्ट्रीय नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मिशन (एनएसटीएम) की स्थापना की गई ।

वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसन्धान परिषद (सीएनआईआर) ने विभिन्न क्षेत्रों में नैनो टेक्नोलॉजी के अनुप्रयोग हेतु अनुसन्धान व बिकास कार्य प्रारम्भ किए हैं ।  न्यू मिलेनियम इण्डियन टेक्नोलॉजी लीडरशिप इनिशिएटिव (एनएमआईटीएलआई) इस परिषद का फ्लैगशिप प्रोग्राम है, जिसके अन्तर्गत नैनो टेक्नोलॉजी से सम्बद्ध कार्यक्रम चलाए जा रहे है । प्रत्येक नवीन अन्वेषण की तरह ही नैनो टेक्नोलॉजी के अनुप्रयोगों का भी नकारात्मक स्वरूप है ।

वैज्ञानिक शोधों में यह तथ्य सामने आया है कि नैनो कण मानव व अन्य जीव-जन्तुओं के स्वास्थ्य हेतु हानिकारक सिद्ध हो सकते है । जुराबों को दुर्गन्धमुक्त रखने में प्रयोग किए जाने वाले नैनो कण जुराबों को धोने के क्रम में तालाब, नदी आदि में पहुँचकर कृषि व पर्यावरण को नुकसान पहुँचा सकते है ।

नैनो कणों वाले वातावरण में रखे गए चूहों में सूजन, जलन, तनाव जैसी समस्या देखी गई है । नैनो टाइटेनियम ऑक्साइट ग्रहण करने वाले चूहों के डीएनए व गुणसूत्र में भारी क्षति पाई गई । श्वसन के द्वारा कार्बन नैनो टूयूब्श के अधिक मात्रा में शरीर में जाने पर मीजोथेलियोमा नामक कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है ।

टेनिस रैकेट से हवाई जहाज तक में प्रयोग किए जाने वाले नैनो फाइबर्स के भी नकारात्मक प्रभाव देखे जा चुके है । नैनो टेक्नोलॉजी के असेम्बलर्स व डिअसेम्बलर्स का प्रयोग तबाही मचाने वाले हथियारों के निर्माण में भी किया जा सकता है ।

नैनो टेक्नोलॉजी के सम्भावित खतरों को देखते हुए हमें इस क्षेत्र में फूँक-फूँक कर कदम रखने की जरूरत है । ऐसी नीतियाँ बनाई जानी चाहिए, जिनसे नैनो टेक्नोलॉजी के खतरनाक प्रभावों पर काबू पाया जा सके । तभी यह तकनीक मानव सहित सम्पूर्ण सजीव जगत् व पर्यावरण के लिए बरदान सिद्ध हो सकेगी ।

जीव-जगत् के कल्याण और प्रकृति के हित को ध्यान में रखकर ही हमारे देश के महान् वैज्ञानिक व पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अक्ल कलाम ने कहा हैं- ‘सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों को पहले ही से स्वयं में समाहित करने वाली नैनो टेक्नोलॉजी भविष्य का क्षेत्र ।’

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