Read this article in Hindi to learn about:- 1. अपशिष्ट जल का अर्थ (Meaning of Waste Water) 2. अपशिष्ट जल की उत्पत्ति (Origin of Waste Water) 3. विकासशील देशों में प्रशोधन (Treatment in Developing Countries).

अपशिष्ट जल का अर्थ (Meaning of Wastewater):

अपशिष्ट जल वह जल है जो विभिन्न कार्यों के लिए एक बार प्रयुक्त होने के बाद पुन: प्रयोग करने योग्य नहीं रह जाता । इसी तरह उद्योगों में भी जल प्रदूषित हो जाता है । यह भी व्यर्थ जल है, किन्तु प्राय: ऐसे जल को अपशिष्ट जल या औद्योगिक अपशिष्ट या औद्योगिक बहिःस्राव कहा जाता है ।

पिटर का अपशिष्ट जल वर्गीकरण (Peter Wastewater Classification):

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पिटर (1972) ने अपशिष्ट जल की 10 कोटियां बताई हैं जिनमें जल के पीएच, निलंबित पदार्थों, विघटनीय पदार्थों, विषैले पदार्थों, रोगाणुओं, उर्वर-तत्वों, उष्मा तथा स्वाद गंध को ध्यान में रखा जाता है । उपर्युक्त वर्गीकरण घटकों के आधार पर किया गया है ।

 

अपशिष्ट जल की उत्पत्ति (Origin of Wastewater):

मल-जल की उत्पत्ति आवासीय, संस्थागत और वाणिज्यिक एवं औद्योगिक प्रतिष्ठानों से होती है और इसमें शौचालयों, स्नानघरों, बौछारों, रसोईघरों, हौजों इत्यादि से निकलने वाले घरेलू अपशिष्ट द्रव शामिल हैं जो मल-जल नालियों के माध्यम से निष्कासित होते हैं । कई क्षेत्रों के मल-जल में उद्योग और वाणिज्य से निकलने वाले अपशिष्ट तरल पदार्थ भी शामिल होते हैं ।

धूसर जल एवं काले जल के रूप में घरेलू अपशिष्ट का अलगाव एवं निकासी आज के विकसित विश्व के लिए बहुत आम होता जा रहा है और साथ में धूसर जल का इस्तेमाल पौधों में पानी देने के लिए किया जा रहा है या शौचालयों को जल से साफ करने के लिए इनका पुनर्चक्रण किया जा रहा है ।

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अधिकांश मल-जल में छतों या गाड़ी खड़ी करने की जगहों से निकलने वाले सतही जल भी शामिल होते हैं और इनमें अपवाही तूफानी जल भी हो सकता है । तूफानी जल से निपटने में सक्षम मल-जल निकास प्रणालियों को संयुक्त प्रणालियों या संयुक्त मल-जल नालियों के नाम से जाना जाता है ।

ऐसी प्रणालियों से आमतौर पर परहैज किया जाता है क्योंकि अपनी मौसमीपन की वजह से ये प्रणालियां मल-जल प्रशोधन के कार्य को जटिल बना देती हैं और इस तरह मल-जल प्रशोधन संयंत्रों की क्षमता को घटा देती है । प्रवाही परिवर्तनशीलता की वजह से भी प्रशोधन सुविधाएं अक्सर आवश्यकता से अधिक बड़ी और बाद में अधिक महंगी हो जाती है ।

इसके अलावा, प्रशोधन संयंत्र की क्षमता से अधिक जल प्रवाह प्रदान करने वाले भारी तूफानों से मल-जल प्रशोधन प्रणाली पर बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ सकता है जिससे जल छलकाव या अतिप्रवाह की समस्या उत्पन्न हो जाती है । आधुनिक मल-जल नाली विकास के तहत वर्षा जल के लिए अलग से तूफानी जल नाली प्रणालियों की व्यवस्था उपलब्ध कराने की प्रवृत्ति अपनायी जा रही है ।

चूंकि वर्षा का जल छात्रों के ऊपर और जमीन पर बहता है, इसलिए यह अपने साथ मिट्टी के कण एवं अन्य तलछट, भारी धातु, कार्बनिक यौगिक, जानवरों का अपशिष्ट पदार्थ और तेल एवं ओंगन सहित विभिन्न संदूषित पदार्थों को भी ले जाता है । कुछ इलाकों में इस तूफानी जल को सीधे जलमार्गों में निष्कासित करने से पहले इसे प्रशोधन के कुछ स्तरों से गुजरना जरूरी है ।

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तूफानी जल के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले प्रशोधन की प्रक्रियाओं के उदाहरणों में अवसादन बेसिन, गीली जमीन, विभिन्न प्रकार के निस्पंदन युक्त एवं अंतर्वेशित ठोस गुम्बज और चक्राकार विभाजक (मोटे ठोस पदार्थों को हटाने के लिए) शामिल हैं । अलग स्वच्छता नालियों में कोई तूफानी जल शामिल नहीं होना चाहिए ।

स्वच्छ नालियां आम तौर पर तूफानी नालियों की तुलना में बहुत छोटी होती है और इन्हें तूफानी जल को ले जाने के लिए बनाया नहीं गया है । यदि निम्नतलीय क्षेत्रों में स्वच्छता नाली प्रणाली में अत्यधिक तूफानी जल को निष्कासित किया गया तो वहां अपरिष्कृत मल-जल का जमाव हो सकता है ।

विकासशील देशों में मल-जल प्रशोधन (Wastewater Treatment in Developing Countries):

दुनिया भर में प्रशोधित किए जाने वाले नालियों में संग्रहित अपशिष्ट जल की भागीदारी पर कुछ विश्वसनीय आंकड़े आज भी मौजूद हैं । कई विकासशील देशों में अधिकांश घरेलू और औद्योगिक अपशिष्ट जल को बिना किसी प्रशोधन के या केवल प्राथमिक प्रशोधन के बाद निष्कासित कर दिया जाता है ।

लैटिन अमेरिका में संग्रहित अपशिष्ट जल में से लगभग 15 प्रतिशत अपशिष्ट जल प्रशोधन संयंत्रों (वास्तविक प्रशोधन के विभिन्न स्तरों के साथ) से होकर गुजरता है । अपशिष्ट जल प्रशोधन के सम्बन्ध में दक्षिण अमेरिका के वेनेजुएला नामक एक निम्न औसत देश में उत्पन्न मल-जल में से 97 प्रतिशत मल-जल को पर्यावरण में अपरिष्कृत रूप में ही निष्कासित कर दिया जाता है ।

ईरान जैसे मध्य पूर्व के एक अपेक्षाकृत विकसित देश में तेहरान की अधिकांश जनसंख्या पूरी तरह से अप्रशोधित मल-जल को शहर की भूमिगत जल में पहुंचा देती है । इजराइल में, कृषिगत उपयोग हेतु प्रदान किए जाने वाले जल में से लगभग 50 प्रतिशत जल नालियों का पुनर्निर्मित जल होता है ।

भावी योजनाओं में नाली के प्रशोधित जल के उपयोग के साथ-साथ अधिक विलवणीकरण संयंत्रों के अधिष्ठापन की योजनाओं को भी शामिल करने की जरूरत है । अधिकांश उप-सहारा अफ्रीका अपशिष्ट जल प्रशोधन रहित है ।

मल-जल उपचार (Treatment of Wastewater):

मल-जल उपचार, या घरेलू अपशिष्ट उपचार, अपशिष्ट जल और घरेलू मल-जल, दोनों अपवाह (अपशिष्ट) और घरेलू से Contaminants निकालने की प्रक्रिया है । यह भौतिक, रासायनिक ओर जैविक प्रक्रियाओं में शामिल करने के लिए भौतिक, रासायनिक और जैविक Contaminants को दूर कर सकते हैं ।

इसका उद्देश्य एक पर्यावरण सुरक्षित तरल पदार्थ अपशिष्ट (या इलाज प्रवाह) स्ट्रीम और एक ठोस (या इलाज कीचड़) अपशिष्ट निपटान या पुन: उपयोग के लिए उपयुक्त (आमतौर पर खेत, उर्वरक के रूप में) का उत्पादन होता है ।

उन्नत प्रौद्योगिकी का उपयोग करना यह अब संभव है, पुन: उपयोग पानी पीने के लिए मल-जल प्रवाह करने के लिए हालांकि सिंगापुर NE Water के अपने उत्पादन में उत्पादन पैमाने पर इस तरह की तकनीक को लागू करने के लिए केवल देश है ।

भारी धातुएँ (Heavy Metals):

भारी धातुएं भी प्रदूषण वृद्धि में सहायक है । संयुक्त राज्य की पर्यावरण सुरक्षा ऐजेंसी (EPA) ने अपने दस्तावेज में जिन छ: धातुओं को भारी धातु माना है ।

वे है:

परन्तु उपरोक्त के अतिरिक्त एल्युमिनियम हैंडबुक में मात्र पाँच धातुओं को भारी धातु माना गया है ।

किंतु 5 या इससे अधिक घनत्ववाली धातुओं को भारी धातुएँ कहने का प्रचलन है । परमाणु क्रमांक 20 से अधिक क्रमांक वाले सारे तत्व (क्षारीय, क्षारीय मृदा, लैंथनाड तथा ऐक्टिनाइड तत्वों को छोड़कर) भारी धातु कहलाते हैं, ये सारे तत्व कहलाते हैं ।

ये अत्यल्प मात्रा में उपस्थित रहते हैं, अत: लेश तत्व कहलाते हैं । कुछ भारी धातुएँ स्वास्थ्यप्रद भी होती हैं । विषाक्तता निश्चित करने का कोई स्वीकृत मानद नहीं है । प्रमुख भारी धातुओं में आर्सेनिक (As), बेरियम (Ba), बेरीलियम (Be), कैडमियम (Cd), कॉपर (Cu), लेड (Pb), मैंगनीज (Mg), सिल्वर (Ag), निकेल (Ni), सिलेनियम (Se), मरकरी (Hg), वैनेडियम (V), तथा जिंक (Zn) आते हैं ।

ज्ञात हो कि 105 ज्ञात तत्वों में से 83 धातुएँ हैं ओर इनमें से 68 धातुओं का घनत्व 5 है । भारी धातुओं का घनत्व 5 है । भारी धातुओं को लेश तत्व अथवा विषैला तत्व भी कहा जाता है । मानव शरीर में नौ लेश तत्वों का समुचित संतुलन जल तथा मिट्टी में होना आवश्यक हैं । ये है- कोबाल्ट (Co) कॉपर फ्लुओरीन आयोडिन आयरन मैगनीज सेलीनियम तथा जिंक ।

भारी धातुओं के अधिक संचय होने से मानव में वृक्क संबंधी रोग उत्पन्न हो जाते हैं:

i. (Cd) से इटाइ रोग उत्पन्न होता हैं (जापान में) ।

ii. (Hg) से मिनिमाता रोग होता हैं । (जापान में) ।

iii. (As) से (यदि 03 पी पी एम से अधिक हो) हाइपरकेरैटोसिस तथा चर्म कैंसर होता हैं ।

iv. (B, Se) से (मिट्टी से 2 पी पी एम से अधिक होने पर) कृषीय फसलों पर विषैला प्रभाव पड़ता है ।

v. (Sr90) से अस्थि में (Ca) का विपरीत संतुलन पैदा होता है ।

vi. (Cr) की न्यून मात्रा से पेशाब में से शर्करा जाने लगती है ।

vii. (Zn) की न्यून मात्रा (जल में निश्चित मात्रा) से धमनियों का कठिन्य हो जाता है ।

नीचे भारी धातुओं का संदूषण तथा मनुष्यों पर पड़ने वाला प्रभावों का उल्लेख किया गया है:

भारी धातुओं के स्रोत (Sources of Heavy Metals):

भारी धातुओं के प्रमुख स्रोत निम्नवत है:

1. कच्चा मल, जल, घरेलू अपशिष्ट, शैलों का अपक्षय तथा शहरी कूड़ा-कचड़ा एवं कृषि-कार्य ।

2. औद्योगिक बहि:स्राव ।

यमुना के जल तथा अवसाद में भी भारी धातुएं पायी जाती हैं । दुर्गापुर क्षेत्र में जिंक (Zn), लेड (Pb), क्रोमियम (Cr), आर्सेनिक (As) तथा मरकरी (Hg) की उपस्थिति बहि:स्रावों में पाई जाती है जिससे नदी में आर्सेनिक (As) तथा मरकरी (Hg) की पर्याप्त मात्रा पाई गई ।

बंबई तथा पुणे के औद्योगिक क्षेत्रों से निकले बहिःस्राव नदियों में मिलकर कॉपर (Cu), कैडमियम (Cd) तथा मरकरी (Hg) को बढ़ानेवाले हैं । केरल में पेरियार नदी के अवसाद में लेड (Pb) की हानिकारक सांद्रता पाई गई हैं ।

तमिलनाडु के कुंओं में औद्योगिक क्षेत्र में क्रोमियम (Cr) की मात्रा काफी अधिक (54-1500 पी.पी.एम.) पाई गई है । अलीगढ़ के आस-पास गंगा में भारी धातुओं का संचय पाया गया है । बिहार में गंगा तथा उसकी सहायक नदियों में आर्सेनिक (As), कैडमियम (Cr), ताँबा (Cu), लोहा (Fe), सीसा (Pb), मैंगनीज (Mn), पारा (Hg), निकेल (Ni), भारी धातुएँ पाई गई ।

किन्तु प्राप्य भारी धातुएँ अधिकतम सहिष्णुता-सीमा के नीचे हैं । गंगाजल की कठोरता कम है । (114 पी.पी.एम.) इसलिए भारी तत्वों का संचय अधिक हैं । गंगा का जल ब्रह्मपुत्र नदी के जल से दुगुना लवणीय है । अनुमान है कि गंगा ओर ब्रह्मपुत्र नदियाँ मिलकर प्रतिवर्ष 118 मिलियन टन विलयिन ठोस बंगाल की खाड़ी में ले जाकर डालती है ।

भारी धातुओं से सांद्रता (Concentrations from Heavy Metals):

इनकी अधिकतम अनुमानत: सांद्रता (Permissible Concentration) (मिग्रा./ली.) निम्नवत् है:

हमारे देश में बाक्साइट की 62, क्रोमाइट की 20, ताम्र की 11, लौह की 374, मैंगनीज की 315 तथा जिंक की 1 खान है । ऐसा कहा जाता है कि महाराष्ट्र में जितना पारा काम में लाया जाता है उसका 95% उपयोग बंबई के आस-पास स्थित आठ उद्योगों द्वारा किया जाता है ।

इन उद्योगों का सारा बहि:स्राव अरब सागर में गिराया जाता है । औद्योगिक बहिःस्रावों में भारी धातुओं की उपस्थिति पाई जाती है । वस्तुत: धातु-कर्म, रासायनिक उद्योग, खनन, रंग, लुगदी तथा कागज, चर्म उद्योग, वस्त्र उद्योग, उर्वरक, पेट्रोलियम परिष्करण तथा कोयला दहन- ये औद्योगिक स्रोत है भारी धातुओं के ।

स्पष्ट है कि अल्पकालिक सिंचाई के लिए भारी तत्वों की काफी अधिक मात्रा सहायक हो सकती है, किन्तु निरंतर सिंचाई के लिए प्रयुक्त होनेवाले जल में इन तत्वों की अधिकता नहीं होनी चाहिए ।

भारी धातुओं का वनस्पतियों पर ऐसा प्रभाव पड़ता है कि इसके सम्पर्क में आने पर वे संदूषित हो जाती है । उदाहरणार्थ, पारा उद्योग के आस-पास की वनस्पति अत्यधिक पारे से संदूषित होती है (वायु प्रदूषण से) ।

खानों के आस-पास उगाई जानेवाली तरकारियों में सीसा, कैडमियम, पारा तथा समुद्री प्लैंकटनों में भी ताँबा, जिंक, कैडमियम तथा सीसा का संचय पाया जाता है ।

धातु प्रदूषण का पता लगाना मानीटरन द्वारा संभव है किन्तु मानीटरन के लिए बहुत सारे नमूनों का परीक्षण आवश्यक होता है जो बहुत खर्चीला तथा समय लेने वाला है । यही कारण है कि जब कोई शिकायत आती है तभी परीक्षण किया जाता है । किन्तु पूर्वसूचना जल्दी-से-जल्दी तैयार की जानी चाहिए ।

भारी धातुओं का प्रभाव सभी पशु व पौधों पर समान रूप से नहीं पड़ता जो संवेदनशील होते हैं, उन पर इसका प्रभाव अधिक पड़ता है । जिन्हें सूचकों की तरह प्रयुक्त किया जा सकता है । वे साधन सस्ते हैं और स्थानीय रूप से विशेष लाभप्रद है ।

इस विधि को बायोमानीटरन कहा जाता है । उदाहरणार्थ, पर्सन (1948) में काई का उपयोग उच्च ताम्र सांद्रता ज्ञान करने के लिए किया । इसी प्रकार फिनलैंड तथा कनाडा में स्फैगनम काई का प्रयोग जिंक, लेड तथा कैडिमियम की मात्रा ज्ञात करके मिट्टी में कैडमियम का पता लगाया जाता है ।

मक्का की निचली पत्ती में सबसे अधिक कैडमियम रहता है । बंबई के आस-पास किए गए ऐसे अध्ययनों का अपना महत्व है । विभिन्न धातुओं के लिए कुछ सूचक पौधे हैं जो नीचे दिए जा रहे हैं ।

निष्कर्ष:

उपर्युक्त वर्णित समस्त तथ्यों का अध्ययन करने से यह स्पष्ट होता है कि, जल विभिन्न कारणों से प्रदूषित होता है, जैसे- औद्योगिक क्षेत्रों में विभिन्न कार्यों के लिए जल का एक कर प्रयोग करने के बाद वह प्रयोग योग्य नहीं रह जाता है । इसी तरह उद्योगों में भी जल प्रदूषित हो जाता है ।

वर्षा का जल छतों के ऊपर और जमीन पर बहता है इसलिये यह अपने साथ मिट्टी के कण एवं अन्य तरह की तलछट, भारी धातु, कार्बनिक यौगिक, जानवरों का अपशिष्ट पदार्थ और तेल एवं अनेक ओंगन सहित विभिन्न संदूषित पदार्थों को भी वहा के ले जाता है, इस प्रकार भी जल प्रदूषित होता है ।

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