क्षेत्रीय असंतुलन के 9 मुख्य संकेतक | 9 Main Indicators of Regional Imbalances | Hindi!

Read this article in Hindi to learn about the nine main indicators of regional imbalances. The indicators are:- 1. प्रति व्यक्ति आय (Per Capita Income) 2. निर्धनता रेखा से नीचे जनसंख्या (Population below Poverty Line) 3. विद्युतीकरण (Electrification) 4. प्रति व्यक्ति कृषि उत्पादन (Agriculture Output per Capita) and a Few Others.

आर्थिक असमानता के महत्वपूर्ण कारक जो देश के विभिन्न क्षेत्रों में विद्यमान हैं उन पर निम्नलिखित अनुसार परिचर्चा की गई है:

Indicator # 1. प्रति व्यक्ति आय (Per Capita Income):

इसका प्रयोग प्रायः प्रान्तों की आर्थिक स्थिति का अनुमान लगाने के लिये किया जाता है । कृषि वृद्धि एवं औद्योगिक विकास की अन्तर्राज्य असमानताओं के स्तर ने प्रति व्यक्ति आय की भिन्नताओं में योगदान किया है । पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों ने सिंचाई के अधीन अधिक क्षेत्र तथा उर्वरकों के उच्च स्तरीय प्रयोग के कारण कृषि उत्पादन की उच्च दर प्राप्त की है । बिहार की प्रति व्यक्ति आय बहुत नीची है और हरियाणा की सबसे ऊंची । क्षेत्रीय असमानताएं घटने की बजाए बढ़ रही हैं ।

Indicator #2. निर्धनता रेखा से नीचे जनसंख्या (Population below Poverty Line):

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निर्धनता रेखा से नीचे की जनसंख्या भी क्षेत्रीय असन्तुलन और असमानताओं का निर्माण करती है । वर्ष 2011-12 में निर्धनता रेखा से नीचे लोगों की प्रतिशतता 8.10% हिमाचल प्रदेश तथा 33.1% बिहार में थी । ग्रामीन क्षेत्रों में गरीबी 25.7% ओर शहरों में 13.7% है और समग्र भारतीय गरीबी 721.9% है ।

Indicator # 3. विद्युतीकरण (Electrification):

विकास के लिये विद्युत एक आवश्यक पूर्वापेक्षा है तथा वे प्रान्त जहाँ विकास प्रक्रिया ठीक नहीं है उनके तीव्र विकास में अड़चनें पड़ती हैं । हरियाणा और पंजाब में शतप्रतिशत विद्युतीकरण प्राप्त किया जा चुका है, परन्तु असम, बिहार, राजस्थान और अरुणाचल प्रदेश इस क्षेत्र में अभी भी पीछे हैं ।

Indicator # 4. प्रति व्यक्ति कृषि उत्पादन (Agriculture Output per Capita):

कृषि उत्पादन की पैदावार और तकनीकें भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में भिन्न हैं । पंजाब और हरियाणा के प्रान्तों ने कृषि उत्पादन में उन्नति की है । जबकि आसाम, उडीसा और नागालैण्ड जैसे प्रान्त अब भी बैलगाड़ी के युग में उत्पादन की प्राचीन विधियों और पिछड़ी हुई कृषि में रहते हैं ।

Indicator # 5. शहरीकरण (Urbanisatiion):

यह भी आर्थिक विकास का एक महत्त्वपूर्ण संकेतक है । महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात और कर्नाटक जैसे प्रान्तों में शहरी जनसंख्या अधिक है जबकि उड़ीसा, आसाम, नागालण्ड और हिमाचल प्रदेश में कम ।

Indicator # 6. यातायात और संचार (Transport and Communication):

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क्षेत्रीय असन्तुलनों का एक और महत्वपूर्ण संकेतक यातायात और संचार, बैंक, बीमा, सार्वजनिक स्वास्थ्य तथा शिक्षा आदि है । पंजाब, हरियाणा और महाराष्ट्र में ये सुविधाएँ भली-भाँति उपलब्ध हैं जबकि हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, आसाम, बिहार और उड़ीसा में इनका अभाव है ।

Indicator # 7. औद्योगीकरण (Industrialisation):

विभिन्न प्रान्तों में औद्योगीकरण का प्राप्त स्तर भिन्न-भिन्न है । बिहार, उड़ीसा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में कुल आय में उद्योगों का भाग केवल 10 से 12 प्रतिशत है जबकि महाराष्ट्र, बंगाल और हरियाणा में यह बहुत ऊंचा है । कृषि पर अत्याधिक निर्भरता ने औद्योगीकरण को क्षति पहुंचायी है ।

Indicator # 8. वित्त का अभाव (Lack of Finance):

वित्त का अभाव भी किसी क्षेत्र के निर्विघ्न विकास में एक बाधा है । वित्तीय संस्थाएँ विभिन्न विकास योजनाओं के लिये धन देने में झिझकती हैं क्योंकि उन्हें ऋण की वापसी के सम्बन्ध में आशंका रहती है । फलतः ये क्षेत्र पिछड़े रहते है ।

Indicator # 9. राजनीतिक दबाव (Political Pressure):

प्रायः देखा जाता है कि राजनीतिक बल विकास प्रक्रिया में अनावश्यक हस्तक्षेप करते हैं । वास्तव में वह अपने इलाकों में वोट बैंक को प्रभावित करने के लिये विकास की दिखावे वाली परियोजनाएँ लाना चाहते हैं । इस प्रकार के हस्तक्षेप से किसी क्षेत्र के आवश्यक विकास में बाधा पड़ती है ।