निजीकरण: योग्यता और डेमिटिट्स | Read this article in Hindi to learn about the merits and demerits of privatisation.

निजीकरण के पक्ष में तर्क (Merits of Privatisation):

निजीकरण का निम्नलिखित तर्कों के आधार पर समर्थन किया जाता है:

1. उद्देश्यों की स्पष्टता (Clarity of Objectives):

बहुत सी सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों में निगम के उद्देश्यों सम्बन्धी स्पष्टता नहीं होता । सार्वजनिक उद्यमों में प्रबन्धकों के बीच लाभ उद्देश्यों तथा सामाजिक दायित्वों को लेकर उच्च मात्रा में अस्पष्टता बनी रहती है । बहुत सी ऐसी इकाइयां दोनों ही मोर्चों पर असफल रहती है । अतः निजीकरण के पश्चात् लाभ सबसे बड़ा सामाजिक दायित्व बन जाता है ।

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2. बजट घाटों को कम करना (Reduction in Budgetary Deficits):

यदि सार्वजनिक इकाई निवेश पर 10 प्रतिशत लाभ उपलब्ध करती है तो बजटीय घाटे का प्रश्न ही नहीं उठता । परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है । बजटीय घाटा वर्ष दर वर्ष तीव्रता से बढ रहा है । उदाहरणतया, बजटीय घाटा जा वर्ष 1983-84 में 1417 करोड रुपये था, वर्ष 1990-91 में बढ कर 10,772 करोड़ रुपये हो गया । अतः सरकार बढ़ते बजटीय घाटे को सार्वजनिक इकाइयों के शेयरों की बिक्री द्वारा नियन्त्रित कर सकती है ।

3. सार्वजनिक ऋण को कम करना (Reduction in Public Debt):

हरबर्ट हूवर ने ठीक ही अवलोकन किया है, ”युवा धन्य हैं क्योंकि उन्हें विरासत में राष्ट्रीय ऋण प्राप्त होगा” (Blessed are the Young for they shall Inherit the National Debt.) हमारे राजनेता बाइबल के कथन से अनभिज्ञ थे, ”उधार की दावतों द्वारा हमें भिखारी नहीं बन जाना चालिये ।”

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सार्वजनिक ऋण खगोलीय अनुपातों में बढ़ा है । वर्ष 1950-51 सार्वजनिक ऋण 2900 करोड रुपये था जो 1990-91 में बढकर 3,11,400 करोड़ रुपयों तक पहुंच गया । इस प्रकार बढता हुआ सार्वजनिक ऋण एक गम्भीर समस्या है । यह दुःख का विषय है तथा यदि सार्वजनिक ऋण में ऐसी वृद्धि का तीव्रतापूर्वक घटाया नहीं जाता तो देश का सर्वनाश तय है ।

4. अधिक सेवओं की रचना (Creation of More Jobs):

नई पूंजी और लाभों को नई सेवाओं का मुख्य सात माना जाता हे । अतः यदि सार्वजनिक उद्यम बड़े-बड़े लाभ कमाना आरम्भ कर देता है तो अनेक नई परियोजनाएं आरम्भ होंगी जो देश में अधिक रोजगार के अवसर उत्पन्न करने में सहायक होंगी ।

5. पूंजी बाजार का संवर्धन (Promotion of Capital Market):

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जैसे वर्ष 1977-79 के दौरान जब (FERA) फेरा मामले ने पूंजी बाजारों में एक बडी लहर को जन्म दिया । सेल (SAIL), बेमल (BEML), आइपीसीएल (IPCL), एम आर एल आदि सार्वजनिक उद्यमों की विनिवेश प्रक्रिया भारतीय बाजार को प्रोत्साहन उपलब्ध करेगी ।

6. तुरन्त निर्णय की सम्भवता (Possibility of Immediate Decision):

सार्वजनिक उद्यम अपनी यन्त्र रचना की प्रतिक्रिया को तीव्र कर सकते हैं तथा किसी व्यापार जैसे ढंग से कार्य कर सकते हैं यदि विभिन्न सरकारी विभाग उन्हें अपनी पकड़ से कुछ ढीला कर सके । इसके अतिरिक्त बाजार स्थल पर निर्णय लेने की गति, 18वीं शताब्दी के उपनिवेशी ढंगों और 19वीं शताब्दी के लेखा-परीक्षण प्रणाली से अधिक महत्वपूर्ण है ।

7. कम राजनैतिक हस्ताक्षेप (Less Political Intervention):

सार्वजनिक उद्यम राजनैतिक वर्गों के हस्ताक्षेप के बिना अधिक सुस्पष्ट ढंग से कार्य कर सकते हैं । सामान्य राजनैतिक वर्ग अथवा स्वार्थी हित उन्हें भिन्न दशाओं में खींचते हैं । यह तभी सम्भव होगा यदि राजनेताओं के हस्ताक्षेप को विनिवेश द्वारा दूर किया जाता है । अतः राजनेताओं और अधिकारियों को सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों से दूर रखा जाना चाहिये ।

8. उत्तरदायित्व में वृद्धि (Increase in Accountability):

सार्वजनिक उद्यमों का एक बार निजीकरण हो जाने पर और उनके शेयरों का शेयर बाजार में सूचीयन हो जाने पर, बाजार शक्ति इन इकाइयों को उत्तरदायी बनने के लिये विवश कर देगी । बैलेंस शीट का अनुशासन सभी निगमित अनुशासनों का सबसे प्रभावी सूचक है ।

9. संसाधनों के अभाव का समाधान (Solution to Shortage of Resources):

फ्रांस की एक कहावत के अनुसार धन के बिना एक व्यक्ति दांत रहित भेड़िये की भान्ति है । आधुनिक सरकारें हथियारों और वित्तीय रियायतों पर अपने अमूल्य संसाधनों को व्यर्थ गवा रही है जबकि कुछ सफल सार्वजनिक उद्यम कोष के अत्याधिक अभाव का अनुभव कर रहे हैं ।

निजीकरण के पश्चात् लाभ अर्जित करने वाली तथा लाभ वितरण करने वाली कम्पनिया वृद्धि के लिये अतिरिक्त साधन जुटाने के लिये देश ओर विदेश के पूंजी बाजारों से सम्पर्क कर सकती हैं । बजटीय राशि निर्धारणों पर निर्भर करने की कोई आवश्यकता नहीं होगी ।

निजीकरण के विरूद्ध तर्क (Demerits of Privatisation):

निजीकरन को तर्कसंगत ठहराने के बावजूद इसमें अनेक त्रुटियाँ पाई जाती हैं ।

मुख्य त्रुटियों का वर्णन नीचे किया गया है:

1. गतिशील प्रबन्ध की खोज (Search for Dynamic Management):

औद्योगिक देशों में अल्पविकसित देशों की तुलना में बदलाव के लिये प्रेरणा तुलनात्मक रूप में कठिन होती है । यहाँ तक कि औद्योगिक रूप में उन्नत देशों में, निजीकरण में अधिक गतिशील प्रबन्ध की खोज सम्मिलित है । परन्तु कुछ अल्प विकसित देश निजीकरण द्वार बेहतर प्रबन्ध को उत्तेजित करना चाहते हैं क्योंकि उनका मुख्य हानि पहुँचने वालों से छुटकारा पाना होता है । ये सरकारें सार्वजनिक उद्यमों जो ठीक प्रकार से कार्य नहीं करते । इन देशों का बजट भरी हो जाता है ।

2. सामाजिक अशान्ति (Social Unrest):

सार्वजनिक उद्यमों में प्रायः एक मजबूत दबाव वर्ग होता है । उनमें से कुछ बाणी में चतुर लोग होते हैं । वह संघर्ष करने में नहीं झिझकते क्योंकि वह परिवर्तित हो रही वास्तविकताओं को स्वीकार नहीं करते । जब कोई व्यक्ति खैरात का अभ्यस्त हो जाता है तो वह स्व-सम्मान को भूल जाता है । तदानुसार, घेराव, धरना, भूख-हड़ताल, बन्द आदि रूपों में सामाजिक अशान्ति जन्म लेती है ।

3. उत्पादक संघों का निर्माण (Formation of Cartels):

निजीकरण के पश्चात् उत्पादक संघों के निर्माण की पूर्ण सम्भवता रहती है । इसलिये, थोड़ी-सी असावधानी राज्य के एकाधिकार को निजी एकाधिकार में परिवर्तित कर देगी । इसलिये सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि अर्थव्यवस्था में निजीकरण अस्वस्थ और प्रतिबन्धित व्यापार व्यवहारों की ओर न ले जाये ।

4. बहु-राष्ट्रीय कम्पनियों का प्रवेश (Entry of Multinationals):

निजीकरण के विपक्ष में एक दोष यह है कि बहुराष्ट्रीय निगमों को आमन्त्रित करता है । यह निगम बहुत सी जोखिमपूर्ण बुराइयों का सामना करते है जैसे सट्टेबाजी आदि ।

5. राजनैतिक अस्थायित्व (Political Instability):

निजीकरण राजनैतिक अस्थायित्व की ओर ले जाता है । सत्ता दल से लेकर विरोधी दल तक कोई भी निजीकरण से प्रसन्न नहीं है क्योंकि इससे उनका राजनैतिक प्रभाव समाप्त होता है । इसके अतिरिक्त उनके निहित स्वार्थों को ठेस लगेगी और निजीकरण की प्रक्रिया का सामना करना पड़ेगा ।

6. दुर्बल वर्गों के लिये कोई सुरक्षा नहीं (No Safety for Weaker Section):

निजीकरण के पश्चात् दुर्बल वर्गों को विरोध का सामना करना पड़ेगा क्योंकि उन्हें कोई सुरक्षा कवच प्राप्त नहीं होगा । राष्ट्रीय नवीकरण (Nation Renewal Fund) एक आंशिक समाधान होगा ।

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