विदेशी पूंजी के प्रकार| Read this article in Hindi to learn about the top three types of foreign capital. The types are:- 1. निजी विदेशी पूंजी (Private Foreign Capital) 2. अन्तर-सरकार ऋण (Inter-Government Lending) 3. संस्थानिक ऋण (Institutional Lending or Rentier Capital).

प्राय: तीन प्रकार की पूंजी होती है, अर्थात्:

(क) निजी विदेशी पूंजी (Private Foreign Capital),

(ख) अन्तर-सरकार ऋण (Inter-Government Lending),

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(ग) संस्थानिक ऋण (Institutional Lending or Rentier Capital) ।

Type # 1.  निजी विदेशी पूंजी (Private Foreign Capital):

निजी विदेशी निवेश अल्प विकसित देशों की ओर स्थानान्तरित होने वाली विदेशी पूंजी का एक आवश्यक रूप है । परन्तु पिछले कुछ समय से इसका महत्व पर्याप्त रूप में कम हो गया है तथा घरेलू साधनों की उचित सुरक्षा के लिये विकासशील देश यह ऋण लेने के पक्ष में नहीं हैं ।

यह निवेश ‘स्पष्ट निवेश’ का रूप ले सकते हैं जिसमें विदेशी निवेशकर्त्ता विदेशों में स्थूल सम्पत्ति के स्वामी होते हैं । यह ‘पोर्टफोलियो निवेश’ भी बनते हैं जिसमें प्रतिभूतियों का क्रम सम्मिलित है ।

इस प्रकरण में अन्तर यह है कि स्पष्ट निवेश में नियन्त्रण उस उद्यम के निवेशकर्त्ता में संलिप्त होता है जिसमें निवेश किया गया है । इसलिये निजी विदेशी पूंजी अल्प विकसित देशों में कम ही प्रवाहित हुई है और उनके विकास कार्यक्रमों के मुख्य भाग का वित्त प्रबन्ध सार्वजनिक विदेशी पूंजी द्वारा किया जाता है ।

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यू. एस. ए. जैसे देशों और अन्तर्राष्ट्रीय वित्त संगठनों में निजी ऋणों को कहीं अधिक महत्व दिया है । निजी विदेशी पूंजी के सम्भावित प्रयोग के कारण स्वतन्त्र व्यापार का अन्त, आर्थिक नियोजन का आरम्भ और सार्वजनिक क्षेत्र का विकास है ।

तथापि, कुछ देर पहले से निजी विदेशी निवेश के बड़े भाग का प्रयोग पहले से विकसित देशों द्वारा किया गया है तथा पिछड़े हुये देश जिनको इसकी अधिक आवश्यकता थी उन्होंने इसका उपयोग नहीं किया । इसके अतिरिक्त निजी विदेशी पूंजी का निवेश कुछ ही प्रकार के उद्योगों तक सीमित है जिनमें पैट्रोलियम अधिक महत्वपूर्ण है ।

यह देखा गया है कि निजी विदेशी पूंजी का मुख्य उद्देश्य लाभों को अधिकतम बनाना है, न कि समाज का कल्याण । एशिया ने निजी विदेशी पूंजी के बहुत छोटे भाग को आकर्षित किया है ।

निजी विदेशी पूंजी की किस्में (Types of Private Foreign Capital):

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निजी विदेशी पूंजी के मुख्य स्वरूपों का वर्णन नीचे किया गया है:

1. व्यापारिक ऋण (Commercial Loans):

व्यापारिक ऋण विदेशी वित्तीय संस्थाओं से लिये जाते हैं । यह आरम्भिक कालों के लिये ब्याज के बाजार दर पर उपलब्ध करवाये जाते हैं । यह दर प्राय: सरकारी अभिकरणों द्वारा दी गई पूंजी से ऊंची होती है ।

2. इक्युटी पूंजी (Equity Capital):

इक्युटी पूंजी दो रूपों में आती है उनमें एक सीधे विदेशी निवेश से है । यह दीर्घकालिक वचनबद्धता होती है क्योंकि यह पांच वर्षों तक किसी समय के लिये लिया जाता है । इसमें उद्यम का नियन्त्रण सम्मिलित है जिसमें विदेशी लोग निवेश करते हैं ।

इक्युटी पूंजी के एक अन्य रूप को विदेशी प्रतिभूति निवेश कहा जाता है तथा यह आवश्यक रूप में वित्तीय सौदा है जिसमें विदेशियों द्वारा भारतीय सकन्ध, बॉण्ड और मुद्रा का सम्पत्ति के रूप में क्रय सम्मिलित है ।

(क) सार्वजनिक विदेशी पूंजी (Public Foreign Capital):

निजी विदेशी पूंजी की तुलना में सार्वजनिक विदेशी पूंजी अल्प विकसित निर्धन देशों की निवेश आवश्यकताओं को पूरा करने में अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है ।

विकासशील देशों में आने वाली प्रत्याशित निजी विदेशी पूंजी की मात्रा सीमित होने के कारण अधिकांश विकास कार्यक्रम सरकार को ही आरम्भ करने पड़ते हैं । निर्धन देशों को अधिकतर सार्वजनिक विदेशी निवेश पर ही निर्भर करना चाहिये ।

इस प्रकार सार्वजनिक विदेशी निवेश अल्प विकसित देशों में पूंजी निर्माण की दर को बढ़ाने में विशेष महत्व रखता है । इस प्रकार की पूंजी अल्प विकसित देशों में या तो अन्तर-सरकारी ऋणों के रूप में अथवा अन्तर्राष्ट्रीय अभिकरणों से संस्थानिक साख के रूप में आ सकती है ।

Type # 2.  अन्तर-सरकारी ऋण (Inter-Government Lending):

आज के विश्व में अन्तर-सरकारी ऋण, विदेशी पूंजी के सभी साधनों से अधिक महत्व रखता है । तथापि, निजी अन्तर्राष्ट्रीय निवेश के स्वर्ण काल में भी विदेशी पूंजी का बड़ा भाग अन्तर-सरकारी ऋण के रूप में था । सार्वजनिक विदेशी निवेश निजी विदेशी निवेश की तुलना में अधिक लाभप्रद है ।

आर. नर्कस के शब्दों में- ”सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा पूंजी व्यय के लिये विदेशी ऋणों का लाभ यह है कि इन्हें घरेलू आर्थिक विकास के लिये प्रयुक्त किया जा सकता है । इस प्रकार की पूंजी को प्राप्तकर्त्ता देश की विकास योजनाओं अनुसार प्रयुक्त किया जा सकता है ।”

यह स्पष्ट रूप में ऋण प्राप्त करने वाले देश की आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है । दूसरे, विकासशील देशों में आर्थिक एवं सामाजिक संरचनात्मक विकास के लिये सरकारी ऋण बहुत प्रासंगिक होता है ।

विभिन्न देशों का अनुभव दर्शाता है कि विदेशी ऋणों से सहायता प्राप्त सरकारी निवेश जन सेवाओं और संरचनाओं के रूप में देश के विकास की नींव रखने का उपयुक्त ढंग हो सकता है । इसी प्रकार, सार्वजनिक बन्धी पूंजी में निवेश के लिये भारी कोष और अनेक आशंकाएं सम्मिलित होते हैं कि निजी निवेशों से अधिक प्रत्याशा नहीं की जा सकती ।

अन्तर-सरकारी ऋणों में कुछ त्रुटियां हैं:

1 पहले, विदेशी सरकारी ऋण और सहायताएं लगभग निश्चित रूप में राजनीतिक और आर्थिक डोर से बंधी होती हैं । इस रूप में, वह तटस्था के लिये अति जोखिमपूर्ण प्रमाणित होती है ।

2. दूसरे, ऐसे ऋण और अनुदान विभिन्न देशों के बीच उनकी आवश्यकताओं के अनुसार नहीं बल्कि राजनीतिक आधारों पर वितरित किये जाते हैं ।

3. तीसरे, विदेशी पूंजी का यह स्रोत अधिक विश्वसनीय नहीं है ।

Type # 3. संस्थानिक ऋण (Institutional Lending):

अल्पविकसित देश विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय अभिकरणों द्वारा विदेशी पूंजी की भारी खुराक प्राप्त कर रहे हैं । ये संस्थाएं उपलब्ध कोष को आवश्यकता और कोष के उचित उपयोग की सम्भावनाओं के आधार पर वितरित करती हैं परन्तु वह राजनीतिक विचारों की ओर ध्यान नहीं देती ।

विकासात्मक कोष उपलब्ध करवाने वाले सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अभिकरणों में अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund), पुनर्निर्माण और विकास का अन्तर्राष्ट्रीय बैंक (International Bank of Reconstruction and Development), अन्तर्राष्ट्रीय विकास समुदाय (International Development Association), अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निगम (International Finance Corporation), और एशियन विकास बैंक (Asian Development Bank) आदि सम्मिलित हैं ।

संभवत: यह विदेशी पूंजी का सर्वोत्तम रूप हैं जिनका प्रयोग अल्पविकसित देश अपने आर्थिक विकास की गति को तीव्र करने के लिये कर सकते हैं ।