एक देश का आर्थिक विकास: 4 संकेतक | Read this article in Hindi to learn about the four important indicators of economic development. The indicators are:- 1. प्रति व्यक्ति आय (Per Capita Income) 2. जीवन सूचक की भौतिक गुणवत्ता (Physical Quality of Life Index [PQLI]) 3. मानवीय विकास सूचक (Human Development Index) 4. जीवन सूचक की गुणवत्ता (Quality of Life Index) .

विकास के स्तर के मापन हेतु चार महत्वपूर्ण संकेतक हैं:

Indicator # 1. प्रति व्यक्ति आय (Per Capita Income):

सरल शब्दों में कुल घरेलू उत्पाद (GDP) को एक वित्त अवधि में किसी अर्थव्यवस्था द्वारा उत्पादित उत्पादन स्तर के माप की विधि माना जाता है । परन्तु वस्तुओं पर लोगों का नियन्त्रण जी. डी. पी. से भिन्न है ।

उदाहरणार्थ, देश के बाहर हमारी सम्पत्ति है तथा हमारे नागरिक बाहरी देशों में काम कार रहे हैं । फलत: हम देश के बाहर से वेतन आय और सम्पत्ति आय प्राप्त करते हैं ।

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इसी प्रकार विदेशी लोग भी हमारे देश में इसी प्रक्रिया से गुजरते हैं । इस आय के समन्वय से हम कुल घरेलू उत्पाद (GDP) प्राप्त करते हैं । जहां यह याद रखना आवश्यक है कि जी. डी. पी. और जी. एन. पी. में कोई अन्तर नहीं है । भारत के एक बड़ा देश होने के कारण जी. एन. पी., जी. डी. पी. से कम है ।

अत: जी. डी. पी. एक बेहतर प्रतिनिधिक सूचक है । इसके अतिरिक्त, उत्पादन की प्रक्रिया में हमें स्थिर पूंजी के उपभोग पर भी विचार करना चाहिये । हमें यह सुनिश्चित करना चाहिये कि वर्ष के दौरान पूंजी के स्तर को सुरक्षित रखा जाये अन्यथा स्थिर पूंजी नष्ट हो जायेगी ।

इसलिये, उत्पादन की प्रक्रिया में पूंजीक्षय की राशि घटा दी जानी चाहिये । यह शुद्ध राष्ट्रीय आय (NNP) के रूप में जानी जाती है जो राष्ट्रीय आय के नाम से प्रसिद्ध है । राष्ट्रीय आय को चालू कीमतों और स्थिर कीमतों दोनों पर मापा जा सकता है ।

चालू कीमतों पर राष्ट्रीय आय में भौतिक परिवर्तन उत्पादन और कीमतों दोनों में परिवर्तन सम्मिलित है जबकि स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय में भौतिक उत्पादन में परिवर्तन सम्मिलित होते हैं कीमतों पर नहीं । चालू कीमत पर राष्ट्रीय आय कीमत में परिवर्तन के साथ परिवर्तित हो सकती है चाहे उत्पादन में कोई परिवर्तन न हो ।

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इस प्रकार स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय का प्रयोग राष्ट्रीय आय और कल्याण के बीच सम्बन्धों के अध्ययन के लिये किया जाना चाहिये । स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय वास्तविक राष्ट्रीय आय के रूप में भी जानी जाती है ।

वास्तविक राष्ट्रीय आय भौतिक उत्पादन में परिवर्तन दर्शाती है । बढ़ा हुआ उत्पादन बड़ी हुई जनसंख्या में विभाजित होता है । सम्भव है कि बढ़ा हुआ उत्पादन जनसंख्या में वृद्धि के आधिक्य द्वारा नष्ट हो जाये ।

इस प्रकार वस्तुओं और सेवाओं की प्रति व्यक्ति उपलब्धता का माप वास्तविक प्रति व्यक्ति आय द्वारा किया जा सकता है जो वास्तविक राष्ट्रीय आय को जनसंख्या से विभाजित करके प्राप्त होती है ।

राष्ट्रीय आय की उपयोगिता को लोगों के कल्याण के सूचक अथवा संकेतक के रूप में प्रयोग करने के सम्बन्ध में अर्थशास्त्रियों के बीच बड़ा-विवाद है । हम सूचक को केवल आईना मानते हैं जो लोगों में कल्याण को प्रतिबिम्बित करता है । जीवन की गुणवत्ता जीवन स्तर का प्रतिनिधित्व करती है और विकास के सूचक का अर्थ है अर्थव्यवस्था की वृद्धि ।

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बहुत से अर्थशास्त्रियों का विचार है कि राष्ट्रीय आय कल्याण, जीवन के स्तर और अर्थव्यवस्था की वास्तविक वृद्धि का एक अच्छा मानदण्ड नहीं है । उनका विचार है कि आर्थिक कल्याण, अपूर्ण होते हुये, सम्पूर्ण कल्याण नहीं है जिसकी लोग आशा करते हैं ।

सुझाव (Suggestions):

प्रति व्यक्ति आय के माप की दुर्बलताओं को दूर करने के हेतु सुझाव नीचे दिये गये हैं:

(i) व्यक्तियों की राष्ट्रीय आय के वितरण की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिये । यह दर्शाया गया है कि किसी समाज का कल्याण केक (Cake) के आकार तथा देश में आम लोगों के बीच उसका वितरण किस प्रकार होता है इस बात पर निर्भर करता है ।

(ii) कुछ समय से लोग अधिक फुर्सत का आनन्द ले रहें हैं । तथापि अनेक लोगों के अनुसार, यह सूचक अन्तिम उद्देश्य हो सकता है । परन्तु कल्याण के बेहतर परिणाम प्राप्त करने के लिये इसके मूल्य को राष्ट्रीय आय में जोड़ने की आवश्यकता है ।

(iii) विभिन्न प्रकार के प्रदूषण के सन्दर्भ में हानिकारक प्रभावों की सामाजिक लागत को भी घटाया जा सकता है ।

Indicator # 2. जीवन सूचक की भौतिक गुणवत्ता (Physical Quality of Life Index [PQLI]):

सन् 1979 में डी. मौरिस ने एक संयुक्त जीवन सूचक की भौतिक गुणवत्ता का निर्माण किया । उसने कहा कि अधिकांश संकेतक विकास प्रक्रिया की आगतें थीं न कि विकास प्रक्रिया के परिणाम । यह संकेतक दर्शाते हैं कि आर्थिक रूप में कम विकसित देश केवल औद्योगीकृत देशों के अल्प-विकसित रूपान्तरण हैं ।

इसलिये, उसने तीन संघटकों का मिश्रण किया जो हैं- शिशु मर्त्यता, जीवन प्रत्याशा और मौलिक साक्षरता । यह लोगों की मौलिक आवश्यकताओं को पूरा करने में निष्पादन का माप करेंगे ।

संकेतकों का चयन है:

1. जीवन प्रत्याशा का संकेतक [Life Expectancy Indicator (LEI)],

2. शिशु मर्त्यता का संकेतक [Infant Mortality Indicator (IMI)],

3. मौलिक साक्षरता संकेतक [Basic Literacy Indicator (BLI)] ।

इन तीन संकेतकों को अनेक प्रकार से सुधारा जा सकता है । तथापि प्रो. मौरिस ने जन्म पर जीवन प्रत्याशा (LE) का संकेतक के रूप में प्रयोग किया । शिशु मर्त्यता का अर्थ है एक वर्ष से पहले की आयु से पहले मृत्यु न कि जन्म पर जीवन प्रत्याशा ।

इसलिये, प्रो. मौरिस ने सुझाव दिया कि एक वर्ष से पहले की आयु पर जीवन प्रत्याशा का प्रयोग किया जाना चाहिये । यदि एक वर्ष की आयु एक पर जीवन प्रत्याशा के आंकड़े उपलब्ध नहीं हो, इन्हें एक सूत्र के प्रयोग से निकाला जा सकता है जो जन्म पर जीवन प्रत्याशा, शिशु मर्त्यता और बच्चों के अनुपात से सम्बन्धित है ।

संकेतकों का सामान्यीकरण कैसे किया जाये? (How to Normalise Indicators?):

 

हम जानते हैं कि जीवन प्रत्याशा को वर्षों के सन्दर्भ में मापा जाता है जबकि शिशु मृत्यु दर को प्रति हजार के सन्दर्भ में और मौलिक साक्षरता को प्रतिशत के सन्दर्भ में । उन्हें सरलता से जोड़ा नहीं जा सकता ।

इसके अतिरिक्त मौलिक साक्षरता का न्यूनतम स्वाभाविक शून्य और अधिकतम 100 हो सकता है, जबकि अन्य संकेतकों के लिये कोई भी प्राकृतिक न्यूनतम अथवा अधिकतम मूल्य नहीं है । तुलना के लिये सभी स्तरों का सामान्यीकरण किया जाना चाहिये । प्रो. मौरिस ने तीनों प्रकरणों में प्रत्येक के सर्वोत्तम और सबसे बुरे स्तरों का चयन किया ।

जीवन प्रत्याशा और मौलिक साक्षरता के सकारात्मक संकेतकों के प्रकरण में सर्वोत्तम को अधिकतम द्वारा और सबसे बुरे को न्यूनतम द्वारा दर्शाया गया है जबकि शिशु मर्त्यता के नकारात्मक प्रकरण में, सर्वोत्तम को न्यूनतम द्वारा और सबसे बुरे को अधिकतम द्वारा दर्शाया जाता है ।

सकारात्मक तत्वों के वास्तविक स्तरों को सामान्यीकृत संकेतकों में परिवर्तित करने के लिये, पहले न्यूनतम मूल्यों को वास्तविक मूल्यों से घटाया जाता है तब अन्तराल को वर्ग से विभाजित किया जाता है ।

सकारात्मक संकेतकों के लिये सूत्र हैं:

प्राप्ति का स्तर = (वास्तविक मूल्य – न्यूनतम मूल्य/अधिकतम मूल्य – न्यूनतम मूल्य) शिशु मर्त्यता के नकारात्मक संकेत के लिये, वास्तविक मूल्य को अधिकतम मूल्य से घटाना होता है तथा यदि कोई अन्तराल हो तो उसे वर्ग (Range) से विभाजित करना होगा ।

सूत्र है:

 

प्राप्ति का स्तर = (न्यूनतम मूल्य – वास्तविक मूल्य/अधिकतम मूल्य – न्यूनतम मूल्य)

संक्षेप में, जीवन सूचक की भौतिक गुणवत्ता (PQLI) प्राप्त करने के लिये तीन सूचकों का औसत निकाला जाता है ।

PQLI = (1/3) (LEI + IMI + BLI)

न्यूनतम और अधिकतम मूल्यों का चयन (Choice of Minimum and Maximum Values):

जीवन प्रत्याशा और शिशु मर्त्यता के प्रकरण में कोई प्राकृतिक न्यूनतम तथा अधिकतम मूल्य नहीं होते । मूल्यों से संकेतकों (Indices) की ओर परिवर्तन रेखीय है । देश के इन संकेतकों में वास्तविक मूल्यों का स्थापन करें तथा जीवन सूचक की भौतिक गुणवत्ता के तर्कसंगत संकेतक प्राप्त करें ।

प्रो. मौरिस के अनुसार तीनों संघटकों के प्रत्येक संकेतक को शून्य से 100 तक के मानदण्ड पर रखा जाता है जहां शून्य पूर्णतया परिभाषित सबसे बुरा निष्पादन दिखाता है जबकि 100 एक पूर्णतया सर्वोत्तम निष्पादन का प्रतिनिधित्व करता है ।

PQLI सूचक की गणना तीनों संकेतकों का औसत बना कर प्रत्येक को समान भार देकर की जाती है और सूचक को 0 से 100 तक मापा जाता है । यहां यह अवश्य याद रखना चाहिये कि तीनों संकेतकों में प्रत्येक, परिणामों का माप करता है, न कि आगतों की जैसे आय का ।

प्रत्येक वितरण प्रभावों के प्रति संवेदनशील है । यह दर्शाता है कि इन संकेतकों में सुधार उनसे लाभ उठाने वाले लोगों के अनुपात में वृद्धि का सूचक है । परन्तु कोई भी संकेतक विकास के किसी विशेष स्तर पर निर्भर नहीं करता । प्रत्येक संकेतक स्वयं को अन्तर्राष्ट्रीय की ओर ले जाता है ।

गैबन (Gabon) के प्रति हजार जीवित जन्मों के पीछे 229 शिशुओं की मर्त्यता दर सन् 1950 में सबसे बुरी दर थी । मौरिस इसे जीवन प्रत्याशा सूचनांक में शून्य का स्थान देते हैं । ऊपरी छोर पर, सन् 2000 में सर्वोत्तम प्राप्ति 7 प्रति हजार थी ।

पुन: आयु एक पर वियतनाम (Vietnam) की जीवन प्रत्याशा सन् 1950 में 38 वर्ष थी । मौरिस इसे जीवन प्रत्याशा सूचक के शून्य पर रखते हैं । सन् 2000 में स्त्रियों और पुरुषों के लिये ऊपरी सीमा 77 वर्ष निर्धारित की गई थी अन्त में, 15 वर्ष पर साक्षरता दर को साक्षरता सूचक के रूप में लिया गया है ।

प्रो. मौरिस ने सह-सम्बन्ध का प्रयोग निम्नवत् किया है:

 

आयु एक पर जीवन प्रत्याशा और शिशु मर्त्यता के बीच सह-सम्बन्ध का गुणांक उच्च मात्रा का और नकारात्मक होता है । ऐसा ही सह सम्बन्ध साक्षरता और शिशु मर्त्यता दर के बीच होता है अर्थात् साक्षरता के साथ शिशु मर्त्यता दर घटती है ।

साक्षरता और जीवन प्रत्याशा के बीच गुणांक सकारात्मक सह सम्बन्ध की उच्च मात्रा दर्शाता है अर्थात् साक्षरता के साथ जीवन प्रत्याशा भी बढ़ जाती है । इसलिये मौरिस आयु एक पर जीवन प्रत्याशा और शिशु मर्त्यता को जीवन की भौतिक गुणवत्ता के बहुत अच्छे संकेतक मानते हैं ।

साक्षरता और जीवन प्रत्याशा भी ऐसे ही हैं । वास्तव में साक्षरता संकेतक विकास के लिये सम्भाव्यता प्रदर्शित करता है । हम नीचे दी गई तालिका में दो अल्प विकसित देशों और दो विकसित देशों का PQLI निष्पादन और प्रति व्यक्ति जी. एन. पी. पुन: प्रस्तुत करते हैं ।

 

तालिका 1.1 दर्शाती है कि भारत एक ”बास्कट केस” (Basket Case) है जो धीमा है, साथ ही सन् 1950 से 1970 के दौरान 20 वर्षों की अवधि के दौरान 14 से 40 तक इसकी PQLI में कोई महत्त्वपूर्ण सुधार नहीं पाया गया ।

इसकी औसत GNP में निम्न वृद्धि के बावजूद प्रति व्यक्ति आय में 1.8 की वृद्धि हुयी जबकि श्रीलंका की PQLI इस समय के दौरान बहुत ऊंची थी, यद्यपि, इसकी प्रति व्यक्ति औसत जी. एन. पी. लगभग वही थी । यू. एस. ए. और इटली दोनों विकसित देशों की PQLI बहुत ऊंची थी ।

परन्तु इटली की प्रति व्यक्ति औसत जी. एन. पी., यू. एस. ए. से दुगनी थी । इस सम्बन्ध में प्रो. मौरिस ने पाया कि जी. एन. पी. प्रति व्यक्ति और PQLI के बीच कोई स्वचालित सम्बन्ध नहीं है ।

वास्तव में, सामाजिक सम्बन्धों की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति, पोषणात्मक स्थिति, सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा और पारिवारिक वातावरण समाज की PQLI निर्धारित करते हैं । इसके अतिरिक्त, उच्च PQLI को उत्पन्न करने और बनाये रखने के लिये संस्थागत प्रबन्धों के निर्माण के लिये पर्याप्त समय की आवश्यकता होती है ।

त्रुटियां (Shortcomings):

जीवन सूचक की भौतिक गुणवत्ता (PQLI) की निम्नलिखित सीमाएं अथवा त्रुटियां हैं:

(i) प्रो मौरिस मानते हैं कि PQLI मौलिक आवश्यकताओं का सीमित माप है । यह जी. एन. पी. को सहयोग देता है उसे प्रतिस्थापित नहीं करता । संक्षेप में यह आर्थिक वृद्धि का माप नहीं करता ।

(ii) यह आर्थिक एवं सामाजिक विकास के बदलते ढांचे की व्याख्या करने में असफल है ।

(iii) प्रो. मौरिस ने अपने तीन तत्वों के लिये केवल स्वेच्छाचारी भारों का प्रयोग किया ।

(iv) मायर ने पाया कि PQLI द्वारा प्राप्त गैर-आय कारक महत्व रखते हैं परन्तु आय और उपभोग आंकड़े और एकत्रीकरण के वितरण संवेदी ढंग, जिनके द्वारा समग्र निर्धनता सूचक प्राप्त होते है, भी ऐसे हैं ।

उपरोक्त त्रुटियों के बावजूद PQLI अल्प विकसित क्षेत्रों और समाज के अल्प विकसित वर्गों की पहचान करने में सहायक है । अत: यह राज्य नीति द्वारा की जाने वाली तुरन्त कार्यवाही के क्षेत्रों की ओर संकेत करता है ।

Indicator # 3. मानवीय विकास सूचक (Human Development Index [HDI]):

जीवन की गुणवत्ता के सूचक को ध्यान में रखते हुये, संयुक्त राष्ट्र ने सबसे पहले वर्ष 1990 में मानवीय विकास सूचक तैयार किया और प्रकाशित किया ।

मानवीय विकास सूचक निम्नलिखित तीन मौलिक मानवीय पहलुओं का अध्ययन करता है:

(i) लम्बा जीवन जीना अथवा दीर्घ आयु स्तर (Longevity) (LEI);

(ii) शैक्षिक उपलब्धियों (Educational Attainment) का ज्ञाता होना (EAI);

(iii) वास्तविक प्रति व्यक्ति जी. डी. पी. पर जीवन स्तर (SLI) ।

इन तीनों संकेतकों को निम्न प्रकार वर्णित किया जा सकता है:

HDI = (1/3) (LEI + EAI + SLI)

आओ हम इन तीनों पहलुओं की विस्तार से व्याख्या करें:

(i) दीर्घ आयु स्तर (Longevity) (LEF):

दीर्घ आयु स्तर का अर्थ है जन्म पर जीवन प्रत्याशा । इसका अभिप्राय है कि सामान्यत: एक नवजात शिशु के कितने वर्ष जीवित रहने की सम्भावना है । भारत में, इस समय जीवन प्रत्याशा 63 वर्ष है ।

(ii) शैक्षिक उपलब्धि (EAI):

इसका अर्थ है देश के लोगों द्वारा औसत के आधार पर प्राप्त शिक्षा की उपलब्धि ।

शैक्षिक उपलब्धि के संघटकों का वर्णन निम्नलिखित दो तत्वों द्वारा किया जाता है:

(क) वयस्क साक्षरता दर (ALR),

(ख) कुल नामांकन अनुपात (GER) ।

(क) वयस्क साक्षरता दर (Adult Literacy Rate (ALR)):

15 वर्ष या इससे ऊपर आयु के लोगों की दर अथवा प्रतिशतता जो अपने दैनिक जीवन में छोटे तथा सरल कथनों को समझ, पढ़ और लिख सकते हैं को साक्षर कहा जा सकता है । इसका अर्थ है कि प्रत्येक साक्षर व्यक्ति कुछ वाक्य लिखने या पढ़ने के योग्य होना चाहिये ।

यदि कोई व्यक्ति हस्ताक्षर कर सकता परन्तु सरल वाक्यों को पढ़ने या लिखने में असमर्थ है तो उसे साक्षर नहीं कहा जा सकता । इस प्रकार, केवल पढ़ने अथवा केवल लिखने की योग्यता किसी व्यक्ति को साक्षर नहीं बनाती । साक्षरता लोगों की गुणवत्ता का चिन्ह है ।

(ख) कुल नामांकन अनुपात (GER):

कुल नामांकन अनुपात का अर्थ है शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर नामांकित विद्यार्थियों की संख्या । यह विभिन्न आयु वर्गों की जनसंख्या की प्रतिशतता है जो शैक्षिक प्रयत्नों में व्यस्त है । शिक्षा स्तर में- प्राथमिक माध्यमिक और तृतीयक स्तर सम्मिलित हैं ।

शिक्षा के मौलिक तत्व प्राथमिक स्तर पर उपलब्ध किये जाते हैं । शिक्षा के माध्यमिक स्तर की पढ़ाई मिडल और सैकण्डरी स्तर पर होती है । विश्व विद्यालय स्तर की शिक्षा का अध्ययन तृतीयक स्तर पर होता है ।

सामान्य नामांकन अनुपात प्राइमरी, मिडल, सैकण्डरी और विश्वविद्यालय स्तर पर दाखिला प्राप्त करने वालों की प्रतिशतता दर्शाता है । उच्च GER जीवन की उच्च गुणवत्ता दर्शाता है । प्रत्येक अर्थव्यवस्था को चाहिये कि जहां तक सम्भव हो सके सामान्य नामांकन अनुपात को बढ़ाने का ईमानदारी से प्रयत्न करें ।

(iii) प्रति व्यक्ति वास्तविक जी. डी. पी. अथवा जीवन स्तर (SLI):

यह किसी देश के लोगों के जीवन स्तर का माप माना जाता है । मानवीय विकास सूचक की गणना के लिये हमें दीर्घ आयु स्तर, शैक्षिक उपलब्धि तथा प्रति व्यक्ति वास्तविक जी डी. पी. के अध्ययन और विश्लेषण की आवश्यकता होती है ।

मानवीय विकास सूचक का निर्माण (Construction of Human Development Index):

मानवीय विकास सूचक के निर्माण के लिये दो पग अपनाने की आवश्यकता है ।

ये पग हैं:

1. प्रासंगिक संकेतकों का निर्माण (Construction of Relevant Indices),

2. संकेतकों का सरल औसत लेना (Taking the Simple Average of the Indices) ।

1. प्रासंगिक संकेतकों का निर्माण (Construction of Relevant Indices):

(क) मानवीय विकास के प्रत्येक संकेतक का न्यूनतम और अधिकतम मूल्य निश्चित करना (Fixing Minimum and Maximum Value of each Indicator of Human Development):

संकेतकों का निर्माण करते समय पहला पग है प्रत्येक संकेतक का न्यूनतम और अधिकतम मूल्य निर्धारित करना । संयुक्त राष्ट्र संघ (U.N.O) द्वारा सन् 1997 के लिये निश्चित न्यूनतम व अधिकतम मूल्य तालिका 1.2 में दिये गये हैं ।

 

यहाँ PPP का अर्थ है क्रय शक्ति की क्षमता । पी. पी. पी., जी. डी. पी. की गणना देशों के बीच मूल्यों के अन्तर को दूर करके की जाती है ।

यू. एन. ओ. द्वारा न्यूनतम और अधिकतम मूल्यों का आकलन और प्रकाशन किया गया है । यह मानकीकृत मूल्य है तथा सामान्यतया सभी देशों में प्रयुक्त होते हैं ।

(ख) व्यक्तिगत संकेतकों का परिकलन (Computing Individual Indices):

मानवीय विकास सूचकों के निर्माण के लिये सभी संकेतकों के व्यक्तिगत संकेतकों के परिकलन की आवश्यकता होती है ।

व्यक्तिगत संकेतकों के निर्माण के लिये सूत्र नीचे दिया गया है:

सन् 1970 में जन्म पर भारत की जीवन प्रत्याशा को 62.6 वर्ष मानते हुये हम सूत्र की व्याख्या करते हैं ।

हम निम्नलिखित अनुसार सूत्र के प्रयोग से जीवन प्रत्याशा सूचक का परिकलन करेंगे:

(जीवन प्रत्याशा का अधिकतम एवं न्यूनतम मूल्य 80.0 और 20.0 मानते हुये)

हम शैक्षिक उपलब्धि प्राप्ति के व्यक्तिगत संकेतक और समन्वित प्रति व्यक्ति वास्तविक जी. डी. पी. का परिकलन करेंगे । हम पहले वास्तविक, अधिकतम और न्यूनतम मूल्यों की गणना करेंगे और तब ऊपर परिचर्तित सूत्र को प्रयुक्त करेंगे ।

मानवीय विकास सूचक की गणना के लिये हमें निम्न तीन संकेतकों को बनाने की आवश्यकता है:

(i) भारत की जीवन प्रत्याशा सूचक (Life Expectancy Index of India):

यह सूचक किसी देश के लोगों की जीवन प्रत्याशा सम्बन्धी प्राप्तियों की मात्रा का मापन करता है । सूचक का मूल्य 0-1 के बीच बदलता है । उदाहरणार्थ वर्ष 1997 के लिये भारत का जीवन प्रत्याशा सूचक 0.63 है । इसका अर्थ है कि जीवन प्रत्याशा दर 60% (0.60 × 100) है ।

(ii) शैक्षिक उपलब्धि सूचक (Educational Attainment Index):

यह सूचक लोगों की शैक्षिक उपलब्धि के स्तर का मापन करता है । इस सूचक का मूल्य भी 0 से 1 के बीच परिवर्तित होता है । उच्च सूचक शैक्षिक उपलब्धि के उच्च स्तर को दर्शाता है । भारत का शैक्षिक उपलब्धि स्तर इस समय लगभग 0.57 अथवा 57% है । लोगों की शैक्षिक उपलब्धि उनके जीवन की गुणवत्ता का एक माप है ।

(iii) वास्तविक जी. डी. पी. प्रति व्यक्ति सूचक (Real GDP per Capital Index):

प्रति व्यक्ति वास्तविक जी. डी. पी. लोगों के जीवन की गुणवत्ता का एक अन्य महत्वपूर्ण माप है । वास्तविक जी. डी. पी. की गणना स्थिर कीमतों पर की जाती है । यह भौतिक उत्पादन के वास्तविक परिवर्तन को दर्शाती है । प्रति व्यक्ति जी. डी. पी. जनसंख्या से विभाजित स्थिर कीमतों पर जी. डी पी. है ।

वास्तविक प्रति व्यक्ति जी. डी. पी. वास्तविक प्रति व्यक्ति आय के रूप में भी जानी जाती है । यह प्रति व्यक्ति आय की तुलना में लोगों के जीवन की गुणवत्ता की बेहतर मानदण्ड है । उच्च प्रति व्यक्ति जी. डी. पी. लोगों के जीवन की बेहतर गुणवत्ता दर्शाती है । इस समय हमारी प्रति व्यक्ति वास्तविक जी. डी. पी. का सूचक लगभग 0.49 है ।

2. तीनों संकेतकों का सरल औसत लेना (Taking the Simple Average of Three Indices):

जीवन प्रत्याशा सूचक, शैक्षिक उपलब्धि तथा वास्तविक जी. डी. पी. प्रति व्यक्ति सूचक के परिकलन के पश्चात् हम से इन तीनों संकेतकों के सरल औसत के परिकलन की आशा की जाती है ।

तीन संकेतकों के सरल औसत की गणना के लिये हमारे पास निम्नलिखित सूत्र है:

मानव विकास सूचक (Human Development Index) (HDI):

उदाहरण:

मान लो जीवन प्रत्याशा सूचक है 0.52, शैक्षिक उपलब्धि सूचक है 0.68 और प्रति व्यक्ति वास्तविक जी. डी. पी. प्रति व्यक्ति सूचक वर्ष 1997 के लिये 0.42 है ।

उपरोक्त अंकों से मानव विकास सूचक की गणना करें:

समाधान:

 

एच. डी. आई (1991 के लिये)

ऐसा प्रतीत होता है कि भारत का मानव विकास सूचक 0.54 है । अन्य शब्दों में, भारत में मानव विकास की प्राप्ति 54 प्रतिशत है (.54 × 100) । इस सूचक के अनुसार मानव विकास में, कुल 174 देशों में भारत का 132वां स्थान है ।

इसका मानव विकास सूचक 0.932 है । विश्व का औसत मानव विकास सूचक 0.706 है । जहां, इस प्रकरण में हमने देखा है कि लोगों का कल्याण प्रत्यक्षत: मानव विकास सूचक से सम्बन्धित है ।

इसका अर्थ है कि उच्च मानव विकास, उच्च कल्याण से सम्बन्धित है और निम्न मानव विकास निम्न कल्याण से है:

सीमाएं (Limitations):

मानव विकास सूचक (HDI) आलोचना से मुक्त नहीं है ।

इसकी सीमाएं हैं:

(i) प्रो. अमर्त्या सेन के अनुसार, यह अपक्व सूचक है जो एक सरल संख्या में मानव विकास और वंचन के एक जटिल यथार्थ को पकड़ने का प्रयत्न करता है ।

(ii) कुछ आलोचकों के अनुसार मानव विकास के केवल तीन संकेतक ही नहीं हैं । शिशु मर्त्यता, पोषण आदि जैसे अन्य संकेतक भी हैं जिनकी उपेक्षा की गई है ।

(iii) एच. डी. आई (HDI) सापेक्ष मानव विकास का मापन करता है न कि निरपेक्ष मानव विकास का । इस कथन अनुसार यदि सभी देश उसी भारित दर पर अपने एच. डी. मूल्य को सुधारते हैं, तो कम मानवीय विकास वाले देशों के सुधारों की कोई पहचान प्राप्त नहीं होगी ।

(iv) भार का प्रयोग पूर्णतया स्वेच्छाचारी है जो कोई भी फलदायक परिणाम नहीं देता ।

(v) किसी देश का मानव विकास सूचक (HDI) वहाँ पायी जाने वाली उच्च असमानता सकता है ।

(vi) यह अनुभव किया जाता है कि प्रति व्यक्ति जी एन. पी. श्रेणी लेने की वैकल्पिक इसकी अन्य सामाजिक संकेतकों से सहायता करना बेहतर परिणाम उपलब्ध करेगा ।

इस प्रकार, हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि मानव विकास सूचक (HDI) लोगों के जीवन का मानदण्ड है । इसके अतिरिक्त एच. डी. आई. लोगों के कल्याण को मापने का राष्ट्रीय आय से बेहतर मानदण्ड है ।

मानव विकास सूचक वास्तविक प्रति व्यक्ति जी. डी. पी. ही सीमित नहीं है बल्कि यह दीर्घ आयु स्तर (जीवन प्रत्याशा) और शैक्षिक उपलब्धि पर भी विचार करता है ।

Indicator # 4. जीवन की गुणवत्ता का सूचक (Quality of Life Index):

लोगों के जीवन की गुणवत्ता, किसी देश के लोगों के जीवन स्तर को मापने का एक अन्य सूचक है । यह लोगों की राष्ट्रीय एवं प्रति व्यक्ति आय से प्रभावित होता है ।

अन्य अनेक कारक जैसे उपभोग, उत्पादन, स्वास्थ्य, पर्यावरण, शिक्षा, स्वतन्त्रता, सुरक्षा, अहिंसा, शान्तिमय वातावरण आदि भी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में मानवीय कल्याण को प्रभावित करते हैं । अन्य शब्दों में कोई भी अकेला कारक लोगों का कल्याण निर्धारित नहीं करता ।

साथ ही, यह भी उल्लेखनीय है, कि अपने आप में राष्ट्रीय आय कल्याण की एक मात्र एक प्रतिनिधि निर्धारक नहीं है । इस प्रकार यह आवश्यक है कि कल्याण के सभी निर्धारकों को जीवन की गुणवत्ता को मापने के लिये, इकट्ठा किया जाये ।

परन्तु अवधारणा और सांख्यिकी कठिनाइयों के कारण सभी तत्वों को हिसाब में लेना सम्भव नहीं है । इसलिये, यह कहा जाता है कि कुछ चयनित सामाजिक कारकों वाला सूचक तैयार किया जाये जो जीवन की गुणवत्ता का सूचक निर्धारित करें ।

उदाहरणतया, मानवीय विकास सूचक (HDI) को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के अन्तर्गत तैयार किया गया है । वास्तव में, वह जीवन की गुणवत्ता को मापने का प्रयत्न करते हैं तथा हमें अन्त में इसका प्रयोग करना चाहिये ।

उसी समय यह याद रखना भी आवश्यक है कि यह संकेतक अन्तर्राष्ट्रीय संदर्भ में विकसित किये गये थे । इनका प्रयोग, विभिन्न देशों को इनकी प्राप्तियों के सांख्यिकी मूल्य के अनुसार अवरोही क्रम में प्रयोग किया जाता है ।

दास गुप्ता और वीले (Weale) ने छ: प्रचालों पर विचार किया है जिसे वह जीवन स्तर, संकेतक अथवा कल्याण के संघटक कहते हैं वे हैं:

(i) पी. पी. पी. $ (PPP$) में प्रति व्यक्ति आय,

(ii) जन्म पर जीवन प्रत्याशा-वर्षों में,

(iii) प्रति हजार जीवित जन्मों में शिशु मर्त्यता दर,

(iv) वयस्क जनसंख्या के प्रतिशत में वयस्क साक्षरता दर,

(v) सात बिन्दु वाले पैमाने में राजनैतिक अधिकारों का सूचक,

(vi) सात बिन्दु वाले पैमाने में नागरिक अधिकारों का सूचक ।

जहां यह ध्यान रखना आवश्यक है कि नागरिक अधिकार व्यक्तियों के अधिकार हैं (जो राज्य द्वारा दिये गये हैं) जबकि राजनैतिक अधिकार नागरिकों के अधिकार वे हैं जिनसे वे अपने देश के प्रशासन में भूमिका निभा सकते हैं ।

निष्कर्ष (Conclusion):

बहुत से विद्वान विकास के उपरोक्त संकेतकों से सन्तुष्ट नहीं हैं । उन्होंने पाया कि प्रत्येक संकेतक की अपनी-अपनी कठिनाइयां हैं । एक वर्ग का विश्वास है कि जी. एन. पी. अथवा प्रति व्यक्ति आय सर्वोत्तम संकेतक हैं । इन्हें केवल संशोधनों की आवश्यकता है ।

दूसरों का विचार है कि उन्हें सीधे विकास का मापन करना चाहिये विशेषतया सामाजिक विकास का । उन्होंने सभी सम्भव तत्वों पर विचार किया जो आधुनिकीकरण, शहरीकरण और उद्योगीकरण से टकराते हैं ।

इसी प्रकार प्रो. मौरिस ने जीवन की भौतिक गुणवत्ता का सूचक (PQLI) तैयार किया । उनका विचार है कि यह विकास के परिणाम का प्रतिनिधित्व करता है । परन्तु वह इसके मौद्रिक पहलुओं पर विचार करने में असफल रहे जो अन्तर्राष्ट्रीय तुलना की समस्या उत्पन्न करते हैं ।

शिशु मर्त्यता और जीवन प्रत्याशा दोनों जनसांख्यिकी लक्षणों से सम्बन्धित है । एच. डी. आई. जिसमें प्रति व्यक्ति आय के साथ दीर्घ आयु स्तर और ज्ञान सम्मिलित है, में त्रुटियां हो सकती हैं । अत: हम कह सकते हैं कि संकेतक के चयन को एक विकल्प की आवश्यकता है ।

तथापि, पी. दास गुप्ता और मार्टिन वीले ने जीवन की गुणवत्ता के कुछ पहलुओं को एक सूचक में मिश्रित करके एक समाधान प्रस्तुत किया जो बेहतर परिणाम उपलब्ध कर सकता है ।